18/02/2024
कबीर वाणी
"कुष्टी होवे संत बंदगी कीजिए ।
हो वैश्या के विश्वास चरण चित दीजिए ।।"
भावार्थ :- यदि किसी भक्त को कुष्ट रोग(कोढ़) है और वह भक्ति करने लगा है, तो भक्त समाज को चाहिए कि उससे घृणा न करे। उसको प्रणाम करे! जैसे अन्य भक्तों को करते हैं।
उसका सम्मान करना चाहिए। उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए।
भक्ति करने से उस जीव का जीवन सफल होगा, और रोग भी ठीक हो जाएगा।
इसी प्रकार किसी वैश्या "बेटी-बहन" को प्रेरणा बनी है भक्ति करने की, सत्संग में आने की, उसको परमात्मा पर विश्वास हुआ है।
वह सत्संग विचार सुनेगी तो बुराई भी छूट जाएगी। उसका कल्याण हो जाएगा। समाज से बुराई निकल जाएगी।
यदि वह सत्संग में आएगी ही नहीं तो उसको अपने पाप कर्मों का अहसास कैसे होगा?
जैसे - मैला वस्त्र जल तथा साबुन के संपर्क में नहीं आएगा तो निर्मल कैसे होगा?
इसलिए ऐसी बदनाम स्त्री भी भक्ति करती है तो उसको भी विशेष आदर से बुलायें ताकि उसको सत्संग में आने में संकोच न हो।
यदि उसको रोकोगे तो आप स्वयं पाप के भागी बन जाओगे।