09/02/2025
कौन थे वे चौरासी सिद्ध और नौ नाथ ?
सिद्ध, बौद्ध धम्म की वज्रयान शाखा की नींव डालने वाले और उस दौर में भयंकर क्रांति करने वाले थे. चौरासी सिद्ध आठवीं से ग्यारहवीं सदी में बौद्ध धर्म के प्रतिनिधि थे, जब भारत में मूल बौद्ध धम्म का काफ़ी विलोप हो चुका था.
आज तिब्बत और नेपाल में जो बौद्ध धर्म है वह असल में इन्ही का प्रचार किया हुआ धर्म है. इनमें अस्सी पुरुष और चार महिलाएँ थी.
वज्रयान विचार के प्रचार के लिए सिद्धों द्वारा जन भाषा में जो साहित्य लिखा वह हिन्दी के सिद्ध साहित्य में आता है। वे हिंदी के आदि कवि हैं. कई सिद्ध पालि और संस्कृत के धुरंधर पंडित और ग्रंथकार थे.
लुईपा, सरहपा और कनिपा के लिखे हुए दोहा ग्रंथ तिब्बत में बहुत प्रसिद्ध है. वज्रयान के गीतों में कनिपा, नाडपा और शवरिपा बहुत प्रसिद्ध है. नेपाल में आज भी इन गीतों का बहुत प्रचार है.
भारत की योग साधना में कई प्रसिद्ध आसनों और मुद्राओं के जनक और प्रचार करने वाले भी यही सिद्ध थे. सभी का संबंध पीठ नालंदा और विक्रमशिला जैसे शिक्षा केंद्रों से था.
सभी चौरासी सिद्ध वज्रयानी बौद्ध थे और वाममार्गी थे यानी तंत्र साधना के साधक थे. हज़ारों मंत्र तंत्र के जनक और प्रचारक थे. सिद्धों से ही नाथ संप्रदाय निकला जिसके नौ नाथ प्रसिद्ध हैं.
आज हमारे समाज में डरावने रूप में जो विभत्स देवी देवता नज़र आते हैं ये सभी इन्हीं चौरासी सिद्धों की उपज थी. यानी तंत्र मंत्र के साथ देवी देवताओं के भी सृजक और पूजक थे. अलग अलग उद्देश्यों के लिए अलग अलग तंत्र मंत्र और देवी देवता इन्होंने ही ईजाद किये थे. इस प्रकार इतिहास, साहित्य, तंत्र साधना, मंत्र शास्त्र, दर्शन आदि कई धाराओं के ये विचारक थे.
सिद्ध साहित्य का आरम्भ सिद्ध सरहपा से होता है जिन्हें प्रथम सिद्ध माना जाता है। इन सिद्धों में सरहपा, शबरपा, लुइपा, डोम्भिपा, कनिपा तथा कुक्कुरिपा हिन्दी के प्रमुख सिद्ध कवि हैं. तिब्बती परंपरा में सिद्धों के नाम के साथ ‘पा’ लगाया जाता है जिसका अर्थ होता है गुरु, आचार्य.
भारत में हमारे समाज में अब भी दूसरे शब्दों और नामों के साथ कई संप्रदायों में सिद्धों की मान्यताएं मौजूद है.
आजकल के कई संप्रदाय यह जानकर हैरान होंगे कि उनके शब्द, उनकी रहस्य क्रियाएं, भावनाए जाकर इन्हीं सिद्धों में मिलती है. भावना और शब्द साखी में कबीर से लेकर राधास्वामी तक के सभी संत चौरासी सिद्धों के ही वंशज कहे जा सकते हैं.
कबीर का प्रभाव नानक तथा दूसरे संतों पर पड़ा फिर उनका अपनी अगली पीढ़ी पर प्रभाव पड़ा और स्वरूप बदलता गया. आज कई मत,पंथ, संप्रदाय, समुदायों के आराध्य इन्हीं चौरासी सिद्धों में से हैं भले ही नाम,शब्द और रूप हल्के बदल गए हो.
संदर्भ : महापंडित राहुल सांकृत्यायन साहित्य