08/07/2025
अमरनाथ की पवित्र गुफा में हर साल प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग बनना किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह गुफा श्रीनगर से लगभग 145 किलोमीटर दूर, 3,978 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यूँ तो इस गुफा की छत से हर जगह पानी की बूँदें टपकती हैं, लेकिन गुफा के एक विशेष कोने में उन्हीं बूंदों से हर साल एक विशाल शिवलिंग का निर्माण हो जाता है। यह घटना विज्ञान के लिए आज भी एक पहेली है। यह गुफा हर साल श्रावण माह में लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है, क्योंकि यहां पर प्राकृतिक रूप से बनने वाला बर्फ का शिवलिंग एक अलौकिक चमत्कार की तरह उभरता है। यह शिवलिंग हर वर्ष गुफा के एक खास कोने में स्वतः आकार लेता है। आश्चर्य की बात यह है कि पूरी गुफा में पानी टपकता है, लेकिन यह शिवलिंग केवल उसी विशेष स्थान पर ही बनता है।
आगे बड़ने से पहले अगर आप भी भगवान शिव के सच्चे भक्त हैं, तो एक बार कमेन्ट में हर हर महादेव जरूर लिखें महादेव आपकी हर इच्छा पूरी करें। अमरनाथ में सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि गुफा के अंदर बनने वाला यह शिवलिंग ठोस बर्फ का होता है, जबकि गुफा के बाहर और आस-पास पाई जाने वाली बर्फ कच्ची और मुलायम होती है। इस बर्फ के शिवलिंग का आकार चंद्रमा की कलाओं के साथ बढ़ता और घटता है। यह पूर्णिमा के दिन अपने पूर्ण आकार में होता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे पिघलकर लुप्त हो जाता है। यह कैसे संभव है कि पानी की बूँदें केवल उसी स्थान पर जमकर शिवलिंग का आकार लेती हैं और उनका चक्र चंद्रमा से जुड़ा होता है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है।
अमरनाथ का रहस्य केवल बर्फ के शिवलिंग तक ही सीमित नहीं है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु अक्सर एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव करते हैं। मीलों की कठिन चढ़ाई के बाद थके-हारे तीर्थयात्री जैसे ही गुफा में प्रवेश करते हैं, उनकी सारी थकान रहस्यमयी तरीके से दूर हो जाती है। इसके अलावा, मुख्य शिवलिंग के साथ ही बर्फ से दो और छोटी आकृतियाँ बनती हैं, जिन्हें माता पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है।
गुफा से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा अमर कबूतरों के जोड़े की है। माना जाता है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरता का रहस्य सुनाया था। वे यह रहस्य किसी और को नहीं सुनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक शांत और गुप्त स्थान के रूप में इस गुफा को चुना। कथा सुनाते समय माता पार्वती को नींद आ गई, लेकिन वहां मौजूद दो कबूतरों ने पूरी कथा सुनी। शिव-पार्वती का संवाद सुनते हुए वे बीच-बीच में गुटर-गूं करते रहे, जिससे भगवान शिव को लगा कि पार्वती कथा सुन रही हैं।
अमरता का रहस्य सुन लेने के कारण यह कबूतरों का जोड़ा भी अमर हो गया। आश्चर्य की बात यह है कि जहाँ साल के आठ महीने भयंकर बर्फबारी के कारण जीवन का कोई निशान नहीं होता, वहाँ आज भी श्रद्धालुओं को इन कबूतरों का जोड़ा दिखाई दे जाता है।
पुरातत्व विभाग इस गुफा को लगभग 5,000 साल पुराना मानता है, जिसका अर्थ है कि यह महाभारत काल से अस्तित्व में है। कल्हण द्वारा रचित 'राजतरंगिणी' जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, इस गुफा की खोज 18वीं सदी में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गड़रिये ने की थी, जो अपनी बकरियाँ चराते हुए यहाँ पहुँच गया था। आज भी चढ़ावे का एक हिस्सा उसके वंशजों को दिया जाता है।
अमरनाथ की गुफा आस्था, रहस्य और विज्ञान का एक अनूठा संगम है, जो हर साल लाखों लोगों को अपनी ओर खींचता है और हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि इस ब्रह्मांड में अभी भी बहुत कुछ है जो हमारी समझ से परे है।
अमरनाथ की पवित्र गुफा में हर साल प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग बनना किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह गुफा श्रीनगर ....