27/05/2025
दुनिया में हर जगह अपनी ठसक थोपने वाला अमेरिका अब खुद उलझन में है। ऑपरेशन सिंदूर ने उसकी ईगो को झटका दे दिया है।
अब नया वर्ल्ड ऑर्डर बन रहा है—
जिसका केंद्र भारत है, न कि व्हाइट हाउस।
वैश्विक राजनीति की जब भी बात होती है, तो चर्चा घूमकर वर्ल्ड ऑर्डर पर ही टिकती है। यानी दुनिया किसकी बात मानेगी, कौन नियम बनाएगा, और किसकी चलनी चाहिए?
वर्ल्ड ऑर्डर....
अमेरिका दशकों से खुद को इस वर्ल्ड ऑर्डर का बॉस मानता आया है। 1949 में नाटो की स्थापना इसी सोच का हिस्सा थी।
संयुक्त राष्ट्र में पाँच देश वीटो पावर रखते हैं—अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। इनमें ब्रिटेन और फ्रांस नाटो में हैं, तो अमेरिका को कोई परेशानी नहीं।
लेकिन रूस और चीन जैसे देश उसे बॉस मानने को तैयार नहीं, और यही उसका सबसे बड़ा सिरदर्द है।
रूस भले कमजोर हुआ हो, पर झुका नहीं है।
चीन का उभार यूएसए की नींद उड़ाए हुए है। इसी खतरे को भांपते हुए हेनरी किसिंजर जैसे अमेरिकी रणनीतिकार पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि हर जगह ताकत झाड़ने की आदत अमेरिका को महंगी पड़ेगी।
अमेरिका दिखावा करता है लोकतंत्र और मानवाधिकारों का, पर असल में जब-जहाँ उसका फायदा दिखा, तानाशाहों को गले लगाया।
पाकिस्तान, सऊदी अरब इसके उदाहरण हैं।
और फिर दुनिया भर में टांग अड़ाने की आदत के चलते वियतनाम, इराक, अफगानिस्तान जैसे युद्धों में अमेरिका को मुँह की खानी पड़ी।
इन युद्धों से अमेरिका को मिला क्या..??
बाबा जी का उल्लू 😂😂
अब दुनिया को हांकने का जमाना गया। नेतृत्व वही काम करता है जो संवाद, साझेदारी और समझदारी से हो। मगर अमेरिका का रवैया ऐसा है कि न वो किसी का दोस्त है, न दुश्मन—सिर्फ अपने फायदे का साथी है।
रूस तो अब यूक्रेन युद्धविराम की भी बात नहीं सुन रहा। क्योंकि वो जानता है कि अमेरिका का हर प्रस्ताव उसके फायदे का एजेंडा होता है।
ये सब देखकर अब बाकी देश भी समझ चुके हैं कि डराने-धमकाने से कुछ नहीं होगा। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए यह दिखा दिया कि बिना शोर मचाए भी कैसे युद्ध जीता जाता है।
और अमेरिका को ये सबसे ज्यादा चुभ गया है। डोनाल्ड ट्रंप युद्धविराम का प्रस्ताव देकर भारत पर दबाव बनाना चाहते थे, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि अब फैसले दिल्ली से होंगे, वाशिंगटन से नहीं।
फ्रांस द्वारा राफेल के सॉफ्टवेयर कोड में देरी भी इसी दबाव की एक चाल है।
अमेरिका चाहता है कि भारत उसकी बात माने, लेकिन भारत अब सिर्फ सुनता नहीं, जवाब भी देता है।
अमेरिका ने जिस तरह ताकत के नशे में हर जगह दखल दिया, वही अब उसके गले की हड्डी बन चुका है।
और अब स्थिति यह है कि अफगानिस्तान और वियतनाम जैसे देश उसे सबक सिखा चुके हैं।
आख़िर में बात वही है—
शक्ति होना बड़ी बात नहीं है, उसे संयम से संभालना असली कमाल है। और अमेरिका यही संयम खो चुका है। भारत अब नए वर्ल्ड ऑर्डर में संयमित शक्ति का प्रतीक बन चुका है।