मेरी इमोशनल कहानिया

मेरी  इमोशनल कहानिया “Lord, make me an instrument of thy peace. Where there is hatred, let me sow love,
Where there is [email protected]

भगवान से संवाद करने का अर्थ है, अपने मन को शांत करना, ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण रखना, और नियमित रूप से प्रार्थना और...
29/03/2025

भगवान से संवाद करने का अर्थ है, अपने मन को शांत करना, ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण रखना, और नियमित रूप से प्रार्थना और ध्यान करना।

मन की शांति:
भगवान से बात करने के लिए, सबसे पहले अपने मन को शांत और एकाग्र करना आवश्यक है.
ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण:
भगवान से संवाद करने के लिए, उनके प्रति प्रेम और समर्पण का भाव होना चाहिए.
प्रार्थना:
नियमित रूप से प्रार्थना करें, अपनी इच्छाओं और जरूरतों को ईश्वर के सामने रखें.
ध्यान:
ध्यान के माध्यम से, आप अपने मन को शांत कर सकते हैं और ईश्वर के साथ जुड़ सकते हैं.
आस्था:
ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखें, क्योंकि आस्था ही वह माध्यम है जो आपको ईश्वर से जोड़ती है.
सकारात्मक सोच:
नकारात्मक विचारों और संदेहों से दूर रहें, क्योंकि वे दिव्य शक्ति के प्रति ग्रहणशीलता को कम कर देते हैं.
सच्चे हृदय से:
ईश्वर से बात करते समय, अपने हृदय से बात करें, न कि केवल शब्दों से.
प्रार्थना के नियम:
वैध इच्छाओं के साथ:
ईश्वर के पास केवल वैध इच्छाओं के साथ ही जाएं.
भिखारी की तरह नहीं:
ईश्वर से प्रार्थना करते समय, एक भिखारी की तरह नहीं, बल्कि एक बेटे की तरह प्रार्थना करें.
गहराई से और लगातार:
जब आप गहराई से और लगातार प्रार्थना करते हैं, तो आप अपने दिल में एक महान खुशी महसूस करेंगे.
उदाहरण:
"हे ईश्वर, मैं आपका बच्चा हूँ। आप मेरे पिता हैं। आप और मैं एक हैं।"
"मैं आपकी कृपा और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करता हूँ।"
"मुझे आपकी शक्ति और प्रेम की आवश्यकता है।"

07/01/2025

एक ग़रीब आदमी था। एक दिन वह राजा के पास गया और बोला- 'महाराज, मैं आपसे कर्ज़ मांगने आया हूं। कृपा कर आप मुझे पांच हजार रुपये दें। मैं पांच वर्ष के अंदर आपके रुपये वापस कर दूंगा।' राजा ने उसकी बात पर विश्‍वास कर उसे पांच हजार रुपये दे दिए। पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्‍यक्ति ने राजा के पांच हजार रुपये नहीं लौटाये तब राजा को मजबूरन उसके घर जाना पड़ा। लेकिन वहां वह व्‍यक्ति नहीं मिला। जब भी राजा वहां जाता बहाना बना कर उसे वापस भेज दिया जाता। एक दिन फिर राजा उस व्‍यक्ति के घर गया। वहां और कोई तो नहीं दिखा, एक छोटी लड़की बैठी थी। राजा ने उसी से पूछा- 'तुम्‍हारे पिता जी कहा हैं ?'

लड़की बोली- 'पि‍ताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं।'
राजा ने फिर पूछा- 'तुम्‍हारा भाई कहां है ?'
लड़की बोली- 'बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं।'
राजा के समझ में एक भी बात नहीं आ रही थी। इसलिए वह फिर पूछता है- 'तुम्‍हारी माँ कहां है ?'
लड़की बोली- 'मां एक से दो करने गई है।'
राजा उसके इन ऊल-जुलूल जवाब से खीझ गया। वह गुस्‍से में पूछता है- 'और तुम यहां बैठी क्‍या कर रही हो ?'
लड़की हंसकर बोली- 'मैं घर बैठी संसार देख रही हूं।'

राजा समझ गया कि लड़की उसकी किसी भी बात का सीधा जवाब नहीं देगी। इसलिए उसे अब इससे इन बातों का मतलब जानने के लिए प्‍यार से बतियाना पड़ेगा। राजा ने चेहरे पर प्‍यार से मुस्‍कान लाकर पूछा- 'बेटी, तुमने जो अभी-अभी मेरे सवालों के जवाब दिये, उनका मतलब क्‍या है ? मैं तुम्‍हारी एक भी बात का मतलब नहीं समझ सका। तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ।'
लड़की ने भी मुस्‍करा कर पूछा - 'अगर मैं सभी बातों का मतलब समझा दूं तो आप मुझे क्‍या देंगे ?'
राजा के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र उत्‍कंठा थी। वह बोला- 'जो मांगोगी, वही दूंगा।'
तब लड़की बोली- 'आप मेरे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी।'
राजा ने कहा- 'ठीक है, मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा। अब तो सारी बातों का अर्थ समझा दो।'
लड़की बोली- 'महाराज, आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नहीं समझा सकती। कृपा कर आप कल आयें। कल मैं ज़रूर बता दूंगी।'

राजा अगले दिन फिर उस व्‍यक्ति के घर गया। आज वहां सभी लोग मौजूद थे। वह आदमी, उसकी पत्‍नी, बेटा और उसकी बेटी भी। राजा को देखते ही लड़की पूछी- 'महाराज, आपको अपना वचन याद है ना ? '

राजा बोला- 'हां मुझे याद है। तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा।'

लड़की बोली- 'सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं, इसका मतलब था कि वर्षा हो रही थी और हमारे घर की छत से पानी टपक रहा था। पिताजी पानी रोकने के लिए छत को छा (बना) रहे थे। यानि वर्षा का पानी आसमान से ही गिरता है और हमलोग तो यही मानते हैं कि आसमान में ही स्‍वर्ग है। बस, पहली बात का अर्थ यही है। दूसरी बात मैंने कही थी कि भइया बिना झगडा़ के झगड़ा करने गये है। इसका मतलब था कि वे रेंगनी के कांटे को काटने गये थे। अगर कोई भी रेंगनी के कांटे को काटेगा तो उसके शरीर में जहां-तहां कांटा गड़ ही जायेगा, यानि झगड़ा नहीं करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेंगी। '

राजा उसकी बातों से सहमत हो गया। वह मन-ही-मन उसकी चतुराई की प्रशंसा करने लगा। उसने उत्‍सुकता के साथ पूछा- 'और तीसरी-चौथी बात का मतलब बेटी ? '

लड़की बोली- 'महाराज, तीसरी बात मैंने कही थी कि माँ एक से दो करने गई है। इसका मतलब था कि माँ अरहर दाल को पीसने यानि उसे एक का दो करने गई है। अगर साबुत दाल को पीसा जाय तो एक दाना का दो भाग हो जाता है। यानि यही था एक का दो करना। रही चौथी बात तो उस समय मैं भात बना रही थी और उसमे से एक चावल निकाल कर देख रही थी कि भात पूरी तरह पका है कि न‍ही। इसका मतलब है कि मैं एक चावल देखकर ही जान जाती कि पूरा चावल पका है कि नहीं । अर्थात् चावल के संसार को मैं घर बैठी देख रही थी।' यह कहकर लड़की चुप हो गई।

राजा सारी बातों का अर्थ जान चुका था। उसे लड़की की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्‍चर्य में डाल दिया था। फिर राजा ने कहा- 'बेटी, तुम तो बहुत चतुर हो। पर एक बात समझ में नही आई कि यह सारी बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्‍यों बुलाया ?'

लड़की हंसकर बोली- ' मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं भात बना रही थी। अगर मैं आपको अपनी बातों का मतलब समझाने लगती तो भात गीला हो जाता या जल जाता, तो माँ मुझे ज़रूर पीटती। फिर घर में कल कोई भी नही था। अगर मैं इनको बताती कि आपने कर्ज़ माफ कर दिया है तो ये मेरी बात का विश्‍वास नहीं करते। आज स्‍वयं आपके मुंह से सुनकर कि आपने कर्ज़ माफ कर दिया है, जहां इन्‍हें इसका विश्‍वास हो जायेगा, वहीं खुशी भी होगी। '

राजा लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ। उसने अपने गले से मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- 'बेटी, यह लो अपनी चतुराई का पुरस्‍कार! तुम्‍हारे पिताजी का कर्ज़ तो मैं माफ कर ही चुका हूं। अब तुम्‍हें या तुम्‍हारे घरवालों को मुझसे बहाना नहीं बनाना पड़ेगा। अब तुम लोग निश्चिंत होकर रहो। अगर फिर कभी किसी चीज की ज़रूरत हो तो बेझिझक होकर मुझसे कहना।'

इतना कहकर राजा लड़की को आशीर्वाद देकर चला गया। लड़की के परिवारवालों ने उसे खुशी से गले लगा लिया।

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ||यह काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होता है, यह बह...
06/09/2024

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ||

यह काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होता है, यह बहुत बड़ा भक्षक और पापी है, इसे तुम अपना शत्रु जानो।

इस श्लोक में, भगवान कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं और ये बहुत बड़े भक्षक और पापी हैं। भगवान कृष्ण अर्जुन को इन्हें अपना शत्रु मानने की सलाह दे रहे हैं।

अहिंसा परमो धर्मःपरतु भय बिनु होइ न प्रीतिइसका अर्थ है:"अहिंसा सबसे बड़ा धर्म हैदूसरों के साथ प्रेम करने के लिए भय की आव...
13/08/2024

अहिंसा परमो धर्मः
परतु भय बिनु होइ न प्रीति

इसका अर्थ है:

"अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है
दूसरों के साथ प्रेम करने के लिए भय की आवश्यकता होती है"

यह श्लोक दो महत्वपूर्ण बातें कह रहा है:

1. अहिंसा (हिंसा न करना) सबसे बड़ा धर्म है, अर्थात यह सबसे महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य है।
2. दूसरों के साथ प्रेम करने के लिए भय की आवश्यकता होती है, अर्थात हमें दूसरों से प्रेम करने के लिए उनका सम्मान करना चाहिए और उनके प्रति भयभीत होना चाहिए।

यह श्लोक हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रेम और अहिंसा कितने महत्वपूर्ण हैं और हमें कैसे अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाना चाहिए।

अदुवैत सिद्धांत एक दार्शनिक और धार्मिक सिद्धांत है जो एकता और एकरूपता को दर्शाता है। यह सिद्धांत कहता है कि सभी चीजें एक...
12/08/2024

अदुवैत सिद्धांत एक दार्शनिक और धार्मिक सिद्धांत है जो एकता और एकरूपता को दर्शाता है। यह सिद्धांत कहता है कि सभी चीजें एक ही हैं और कोई दuality नहीं है।

अदुवैत सिद्धांत के मुख्य बिंदु हैं:

1. एकता : अदुवैत सिद्धांत कहता है कि सभी चीजें एक ही हैं और कोई दूसरा नहीं है।
2. एकरूपता : अदुवैत सिद्धांत कहता है कि सभी चीजें एक ही स्वरूप में हैं और कोई भेद नहीं है।
3. निराकार : अदुवैत सिद्धांत कहता है कि ईश्वर या ब्रह्म निराकार है और कोई रूप नहीं है।
4. निर्गुण : अदुवैत सिद्धांत कहता है कि ईश्वर या ब्रह्म निर्गुण है और कोई गुण नहीं है।

अदुवैत सिद्धांत के कुछ उदाहरण हैं:

1. अद्वैत वेदांत : यह हिंदू धर्म का एक दर्शन है जो अदुवैत सिद्धांत को मानता है।
2. बौद्ध धर्म : बौद्ध धर्म के कुछ संप्रदाय अदुवैत सिद्धांत को मानते हैं।
3. जैन धर्म : जैन धर्म के कुछ संप्रदाय अदुवैत सिद्धांत को मानते हैं।

अदुवैत सिद्धांत के लाभ हैं:

1. एकता की भावना : अदुवैत सिद्धांत हमें एकता की भावना देता है।
2. शांति और संतुष्टि : अदुवैत सिद्धांत हमें शांति और संतुष्टि देता है।
3. ज्ञान और समझ : अदुवैत सिद्धांत हमें ज्ञान और समझ देता है।

05/08/2024

श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए कई मंत्रों का जाप किया जा सकता है, यहाँ कुछ प्रसिद्ध शिव मंत्र हैं:

1. "ओम नमः शिवाय" - यह मंत्र भगवान शिव के नाम का जाप करता है और उनकी महिमा को स्मरण करता है।
2. "महामृत्युंजय मंत्र" - यह मंत्र भगवान शिव की महिमा को स्मरण करता है और मृत्यु के भय से मुक्ति के लिए उपयोग किया जाता है।
- "ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्"
3. "शिव पंचाक्षर मंत्र" - यह मंत्र भगवान शिव के पांच अक्षरों का जाप करता है और उनकी महिमा को स्मरण करता है।
- "नमः शिवाय"
4. "शिव गायत्री मंत्र" - यह मंत्र भगवान शिव की महिमा को स्मरण करता है और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- "ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्"

इन मंत्रों का जाप श्रावण मास में किया जा सकता है, और व्यक्ति अपने मन को भगवान शिव की महिमा की ओर ले जा सकता है।

05/08/2024

SB 5.23.6 श्रीमद्भागवत महापुराण का एक श्लोक है, जो भगवान कृष्ण की महिमा का वर्णन करता है।

यह श्लोक निम्नलिखित है:

"नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न च क्रियाभिर्न त्यागेन
एकत्वम् योगेन यस्तु मां पश्यति स पश्यति माम् यथा"

अर्थ: मुझे वेदों से नहीं, तपस्या से नहीं, दान से नहीं, क्रियाओं से नहीं, त्याग से नहीं जाना जा सकता है। केवल एकत्व योग से जो मुझे देखता है, वह मुझे वास्तविक रूप से देखता है।

इस श्लोक में भगवान कृष्ण यह बता रहे हैं कि उन्हें केवल एकत्व योग से ही जाना जा सकता है, जिसमें भक्त अपने आप को भगवान के साथ एक मानता है। अन्य किसी भी साधन से भगवान का साक्षात्कार नहीं किया जा सकता है।

03/08/2024

श्रावण मास में कुछ विशेष बातें करनी चाहिए:

- भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए
- रुद्राभिषेक करना चाहिए
- मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करने चाहिए
- भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना चाहिए
- व्रत रखना चाहिए
- दान करना चाहिए
- भगवान शिव की कथा सुननी चाहिए
- भगवान शिव के गुणों का स्मरण करना चाहिए

श्रावण मास में इन बातों को करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

इसके अलावा, श्रावण मास में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:

- इस मास में मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए
- इस मास में शराब और तम्बाकू का सेवन नहीं करना चाहिए
- इस मास में दिन में सोना नहीं चाहिए
- इस मास में रात में जागरण नहीं करना चाहिए

इन बातों का ध्यान रखने से श्रावण मास का पूरा लाभ मिल सकता है।

03/08/2024

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक लड़का रहता था जिसका नाम रोहन था। रोहन बहुत ही शरारती और नकलची था। वह हमेशा अपने दोस्तों की नकल करता था और उन्हें हंसाता था।

एक दिन, रोहन के गांव में एक महान संत आए। संत ने गांव के लोगों को उपदेश दिया और उन्हें सच्चाई और दया के मार्ग पर चलने के लिए कहा।

रोहन ने सोचा कि वह संत की नकल करेगा और लोगों को हंसाएगा। उसने संत के जैसे ही वस्त्र पहने और उनकी तरह ही बोलने लगा।

लेकिन जब रोहन संत की नकल कर रहा था, तो उसने देखा कि लोग उसे नहीं समझ रहे हैं और वह उन्हें हंसा नहीं पा रहा है। उसने सोचा कि वह कुछ और करेगा।

रोहन ने संत से मिलकर उनसे कहा, "मैं आपकी नकल कर रहा था, लेकिन लोग मुझे नहीं समझ रहे हैं। मैं क्या करूं?"

संत ने रोहन से कहा, "नकल करने से कुछ नहीं होगा। तुम्हें अपने जीवन में सच्चाई और दया को अपनाना होगा। तभी तुम लोगों को हंसा पाओगे और उनके दिलों में जगह बना पाओगे।"

रोहन ने संत की बात मानी और अपने जीवन में सच्चाई और दया को अपनाया। उसने लोगों की मदद करनी शुरू की और जल्द ही वह गांव का सबसे प्यारा लड़का बन गया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि नकल करने से कुछ नहीं होगा, हमें अपने जीवन में सच्चाई और दया को अपनाना होगा तभी हम लोगों के दिलों में जगह बना पाएंगे।

03/08/2024

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही धार्मिक और सच्चा था। वह हमेशा भगवान की सेवा में लगा रहता था और लोगों की मदद करता था।

एक दिन, उस गांव में एक बड़ा अकाल पड़ गया। लोगों के पास खाने को अन्न नहीं था। ब्राह्मण ने सोचा कि वह कुछ करना चाहिए। उसने अपने घर के पास एक छोटा सा बगीचा बनाया और उसमें अन्न उगाने लगा।

कुछ दिनों बाद, बगीचे में अन्न तैयार हो गया। ब्राह्मण ने सोचा कि वह इस अन्न को लोगों में बांट देगा। लेकिन जब वह अन्न लेने गया, तो उसने देखा कि एक हिरणी अपने बच्चों के साथ उस बगीचे में आ गई है।

ब्राह्मण को दया आ गई और उसने सोचा कि वह हिरणी और उसके बच्चों को अन्न नहीं खाने देगा। लेकिन फिर उसने सोचा कि अगर वह ऐसा करेगा, तो वह भगवान की सेवा नहीं कर रहा होगा।

इसलिए, उसने हिरणी और उसके बच्चों को अन्न खाने दिया और स्वयं उपवास रखा। भगवान ने ब्राह्मण की सच्चाई और दया से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया और गांव में फिर से अन्न की प्रचुरता हो गई।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई, दया और भगवान की सेवा करने से हमें भगवान का आशीर्वाद मिलता है और हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

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