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आज रीमा बहुत ही परेशान हो गई थी। थोड़ा-थोड़ा तो बहुत दिनों से चल रहा था।मगर आज की बात सुन कर के तो उसको बहुत बुरा लगा। औ...
28/09/2024

आज रीमा बहुत ही परेशान हो गई थी।

थोड़ा-थोड़ा तो बहुत दिनों से चल रहा था।

मगर आज की बात सुन कर के तो उसको बहुत बुरा लगा।

और उसने भी अपने परिवार वालों को अपनी अहमियत और कदर करने का सबक सिखाने का फैसला लिया है।

हुआ कुछ ऐसा रीमा जब शादी हो कर आई थी बहुत अच्छी जॉब करती थी। ₹50000 महीना कमाती थी मगर उसकी सास ससुर सब और उसके पति नहीं चाहते थे की वह नौकरी करें।

उसने भी अपनी इच्छा को एक तरफ रख कर नौकरी से इस्तीफा दे दिया और घर संभालने लगी।

घर भी वह बहुत अच्छे से संभाल रही थी।

छोटे-बड़े सबका ध्यान रखती थी।

समय बीता गया बच्चों का भी ध्यान रखती थी पढ़ाना लिखाना समय पर खाना थोड़े सहायक रखे हुए थे। मगर खाना बनाने का काम और भी बहुत काम होते हैं सब वह करती थी।

24 घंटे चक्कर घिन्नी के जैसे घूमती रहती थी।

मगर फिर भी घरवाले उसकी कदर नहीं करते थे। जब भी होता कुछ ना कुछ उसको सुनाते ही रहते थे। हद तो तब हुई जब एक दिन उसने कहा मेरा सिर दुख रहा है और मेरी तबीयत ठीक नहीं है।

आज मैं खाना नहीं बना सकती तो मम्मी जी आज आप खाना बना लीजिए।

सास और ननद और पति उसको बहुत ही भला बुरा कहने लगे तुम पूरे दिन घर में रहकर करती क्या हो। तुमसे इतना सा काम नहीं होता है।

क्यों नाटक कर रही हो सिर दुखने का चलो उठो खाना बनाओ।

उसको बहुत तकलीफ हुई वह एक बात नहीं बढ़ाना चाहती थी।

किसी तरह उठकर कि उसने खाली खिचड़ी बना दी।

घर में घमासान युद्ध हो गया खाली खिचड़ी कोई खाने की चीज है।

दिन भर आराम करती रहती हो और खाने में ही है खिचड़ी खाली हम नहीं खाएंगे।

उसने बोला आपको दिखता नहीं है मेरी तबीयत ठीक नहीं है।

1 दिन अगर आप खाना बना लेंगे तो कैसा रहेगा। और नहीं तो खाली खिचड़ी खा लीजिए।

मैंने कितनी मुश्किल से बनाई है उस पर बहुत सारे अपशब्द सुनने के बाद वह बिना खाए सो गई।

उसके बाद में ऐसा बहुत बार हो गया।

और अब तो बच्चे भी बोलने लगे कि तुम करती क्या हो मां।

हमारी मनपसंद की चीजें भी नहीं बना सकती हो।

पूरे दिन घर में ही तो रहती हो।

हमारे दोस्तों की मां तो देखो कितनी स्मार्ट रहती है।

नौकरी भी करती हैं घर भी संभालती हैं,

और तुम तो खाली घर में रहती और दिन भर एकदम व्यस्ततम लगती हो।

हमको तो अपने दोस्तों को मिलाने में भी शर्म आने लगी है।

यह सुनकर उसको बड़ी तकलीफ होती थी।

आज उसने मन में ठान लिया था बहुत हुआ बहुत सुन लिया।

अब इनको सबक सिखाना ही पड़ेगा।

दूसरे दिन सुबह वह एकदम जल्दी से उठी बिना किसी को बताए अपना बैग तैयार करा और अपनी डॉक्टर दोस्त के घर चली गई।

फोन को भी स्विच ऑफ कर दिया।

अब घर में सुबह सुबह किसी को चाय नहीं मिली। नाश्ता नहीं मिला, पति को पेपर नहीं मिला, और सुबह-सुबह कामवाली सहायक

ने भी लैंडलाइन पर फोन करआने से मना कर दिया।

अब तो पूरा घर अस्त-व्यस्त था।

सब एक दूसरे को बोल रहे थे रीना तुमको कुछ बोल कर गई है।

बच्चों तुमको तुम्हारी मां कुछ बोल कर गई है।

सब एक दूसरे को मना करने लगे कि नहीं हमको तो कुछ नहीं कहा।

अब जब अपने हाथ से काम करना पड़ा तो सबको नानी याद आ गई।

समझ में आया कि घर में कितने काम होते हैं।

जो उनको आसानी से सब टेबल पर मिल जाता था। सब घर में मिलता था वही उनको खुद को करना पड़ रहा है।

तो कैसा लग रहा है।

फोन करा तो फोन बंद आ रहा था।

अब तो घर वालों को सब को अपनी गलतियां अपना कहा वह याद आने लगा। उन्होंने उस पर कितनी ज्यादती करी है।

पूरे दिन चक्कर गिन्नी के जैसे काम करती रहती थी। तो भी उसके सिर दर्द और उसकी तबीयत ठीक न होने पर भी कोई उसकी मदद करने तैयार नहीं हुआ।

सब अपने आप को कोसने लगे।

शायद इस सब से घबरा करके उसने घर ही छोड़ दिया लगता है।

कम से कम बता कर तो जाती।

फिर सब आपस में बोलने लगे किसको बता कर जाती।

किसको उसकी बात सुनने की फुर्सत थी हमेशा उसको ताने ही देते थे।

यहां तक पति बच्चे

सास-ससुर कोई भी सीधे मुंह बात ही नहीं करता था।

उसकी नंद को याद आया उसे।

खाली चाय ही तो मांगी थी उसमें उसको इतना सुनाने की क्या जरूरत थी। उसकी तबीयत खराब थी तो मैं उसको चाय बना कर दे देती तो क्या हो जाता। सब अपने आप को कोसने लगे।

मगर क्या हुआ अब तो वह घर छोड़कर चली गई थी। कहां ढूंढे कुछ समझ में नहीं आ रहा।

ऐसे करते करते तीन-चार दिन निकल गए उसके पियर फोन करा तो वहां भी नहीं थी।

4 दिन में ही घर वाले सब परेशान परेशान हो गए। एक तरफ तो घर का काम एक तरफ खुद खाना बनाना। घर को व्यवस्थित रखना अपने आप अपना सब काम करना।

जो सब काम भी अपनी मां के ऊपर छोड़ दिया करते थे पत्नी पर छोड़ देते थे बहू पर छोड़ देते सब उनको खुद को करना पड़ रहा था। छठी का दूध याद आ गया।

पांचवे दिन सुबह रीना वापस घर आई।

सब लोग आ करके उसको घेर करके बैठ गए।

अरे कहां चली गई थी। हम से ऐसी क्या गलती हो गई कि हमको छोड़कर चली गई थी।

हमको सब समझ में आ गया है।

अब हम ध्यान रखेंगे तुम्हारा हाथ बटाएंगे तुमको पूरा सम्मान देंगे।

वास्तव में ‌ 24 घंटे तुम घर में रहकर काम करती हो कितना काम होता है।

और तुम हमसे थोड़ी मदद की और थोड़े मीठे बोल और क्या चाहती हो ,

वह भी हम नहीं करते हैं। हम कितने गए गुजरे हैं। उसको ऐसा लगा कि यह उनका वास्तविक पछतावा है। सब माफी मांग रहे थे तो उसने माफ कर दिया।

और तभी उसकी बेटी आती है उसको बोलती है मम्मा आप बैठो डाइनिंग टेबल पर बिठाकर चाय बनाकर नाश्ता बनाकर लेकर आती है।

वह उसको देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है।

कि जो लड़की एक गिलास पानी पीने पिलाने में मुश्किल करती थी देखो आज कैसे काम कर रही है उसकी आंखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं।

तभी उसकी सासू मां बोलती है बेटा अब हम तुम्हारा ध्यान रखेंगे,

और तुम भी अगर चाहो तो अपना मनपसंद कुछ काम चालू कर सकती हो उससे तुम्हारा दिन भी अच्छी तरह निकलेगा और दिल भी लगा रहेगा।

रीना बोलती है मैं इतनी परेशान हो गई थी।

बीमार थी आप लोगों ने बिल्कुल भी मेरा ध्यान नहीं रखा तो मैं क्या करती।

मुझे तो कुछ करना ही पड़ता ना अपना ध्यान भी रखना पड़ता।

इसीलिए मैं अपनी डॉक्टर दोस्त के यहां चली गई थी।

अपना पूरा चेकअप कराया और मेडिसिंस लिए थोड़ा ठीक लगा तब मैं वापस घर आ गई हूं।

मगर अब मैं चाहूंगी कि सब जने अपना अपना काम खुद करें ,

और मेरे को जितना काम करना होगा उतना ही मैं करूंगी।

मेरी तबीयत के हिसाब से जो बन पड़ेगा वह करूंगी। और मेरे ऊपर कोई हुक्म नहीं चलाएगा।

मुझे मेरे लिए भी थोड़ा टाइम चाहिए मैं मेरा मनपसंद काम भी करना चाहती हूं।

अगर आपको मंजूर है तो ठीक है नहीं तो मैं तो अब दूसरा घर देख रही हूं जहां मैं अकेली रह लूंगी।

जब बीमारी में भी आप लोग मेरा ध्यान नहीं रख सकते तो फिर मेरे किस काम का है परिवार।

मेरा बेटा मेरी बेटी मेरा पति सास ससुर सबको खाली अपनी ही पड़ी है।

1 दिन अगर खिचड़ी खा लेते तो क्या हो जाता या खुद बना लेते तो क्या हो जाता।

मैंने तो उस दिन कितनी मुश्किल से उठ करके बनाई थी। मेरा मेडिकल चेकअप कराना तो दूर रहा आपने तो मेरे को नाटक बाज कह दिया अब मुझे यह सब बर्दाश्त नहीं है।

सब एकदम नीची मुंडी करके उसकी बातें सुनते हैं।

और हाथ जोड़कर के माफी मांगने लगते हैं।

अभी हमको माफ कर दो अब आगे से कभी भी ऐसा नहीं होगा जब जागे तभी सवेरा।

उसको लगता है इन सब को एक चांस और दे देना चाहिए आगे कुछ होगा तो फिर और देख लूंगी।

अपने कमरे में जाती है।

उसका पति उसके सामने कान पकड़ करके खड़ा होता है।

बोलता है तुम इतना कैसे कर लेती हो 24 घंटे में भी पूरे काम नहीं हो पाते हैं। हम तो 5 दिन में ही थक गए तब जाकर एहसास हुआ कि तुम कितना काम करती थी।

और हम कहते तुम करती क्या हो हमने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है।

मेरे को माफ करना आगे से कभी भी ऐसी गलती नहीं होगी।

और वह उसके गले लग जाती है बोलती है अब माफी मांगना छोड़ो यह तो ट्रेलर था।

अगर आगे से मेरे साथ में ऐसा व्यवहार करा किसी ने भीतो वास्तव में मैं घर छोड़कर ही चली जाऊंगी। पतिबोलता है ना बाबा ना ना ना ऐसा ना करना और दोनों हंसने लगते हैं।

हमको पता लग गई है अब तुम्हारी अहमियत और घर तो घरवाली का ही होता है वही गृह लक्ष्मी और अन्नपूर्णा होती है।

उसके बिना घर घर नहीं लगता है।

जय हो गृह लक्ष्मी की साथ में सब बोलते हैं जय हो गृह लक्ष्मी की और सब हंसने लगते हैं।

काम करने वाली महिला को चुनते समय आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह घर नहीं संभाल सकती।यदि आपने एक गृहिणी को चुना है जो आपक...
24/09/2024

काम करने वाली महिला को चुनते समय आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह घर नहीं संभाल सकती।

यदि आपने एक गृहिणी को चुना है जो आपकी देखभाल कर सकती है और आपके घर का पूरा प्रबंधन कर सकती है, तो आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह पैसा नहीं कमा रही ।

यदि आप एक आज्ञाकारी महिला चुनते हैं, तो आपको यह स्वीकार करना चाहिए कि वह आप पर निर्भर है और आपको उसका जीवन सुनिश्चित करना है ।

यदि आप एक मजबूत महिला के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो आपको यह स्वीकार करना होगा कि उसकी अपनी राय है।

यदि आप सुंदर स्त्री को चुनते हो तो तुम्हें बड़े खर्चे उठाने पड़ेंगे।

यदि आप एक सफल महिला के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि उसके पास अपनी अलग जीवन शैली है और उसके अपने लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएं हैं।

परफेक्ट जैसी कोई चीज नहीं होती, हर किसी की अपनी अपनी ढब होती है, जो उसे अनोखा बनाती है !

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उपन्यास: "बदलती तस्वीर"गाँव का नाम सागरपुर था। यहाँ की मिट्टी में मेहनत की खुशबू बसी हुई थी, लेकिन हालात ने इसे चुप्पी म...
24/09/2024

उपन्यास: "बदलती तस्वीर"

गाँव का नाम सागरपुर था। यहाँ की मिट्टी में मेहनत की खुशबू बसी हुई थी, लेकिन हालात ने इसे चुप्पी में ढक लिया था। गाँव के लोग अपनी-अपनी दुनिया में खोए रहते थे, परंतु एक सच्चाई थी जो सबकी ज़िंदगी को प्रभावित कर रही थी—सामाजिक भेदभाव।

सारिका, एक शिक्षित युवा लड़की, गाँव में एक स्कूल खोलने का सपना देखती थी। उसका मानना था कि शिक्षा ही समाज की तस्वीर बदल सकती है। लेकिन उसके परिवार में इसकी कोई अहमियत नहीं थी। उसके पिता, रामनारायण, परंपरागत सोच वाले व्यक्ति थे और उन्होंने कहा, "लड़कियाँ घर संभालने के लिए होती हैं। पढ़ाई का क्या काम?"

सारिका ने हार नहीं मानी। उसने गाँव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, पर गाँव के बड़े-बुजुर्गों ने इसका विरोध किया। "ये लड़कियाँ पढ़कर क्या करेंगी?"—उनकी बातें सुनकर सारिका का मन और भी मजबूत हुआ। उसने ठान लिया कि वह अपनी बात साबित करके दिखाएगी।

सारिका ने धीरे-धीरे कुछ महिलाओं को भी अपनी ओर खींचा। उन्होंने मिलकर एक ग्रुप बनाया, जिसमें वे शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता पर चर्चा करने लगीं। यह देखकर कुछ पुरुषों ने भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किया।

फिर एक दिन, गाँव के एक रईस ने कहा, "ये क्या बला है? लड़कियाँ स्कूल जा रही हैं? इससे हमारी परंपराएँ टूटेंगी!" उसने एक सभा बुलाई और सारिका को सबके सामने अपमानित किया। लेकिन सारिका ने साहस नहीं छोड़ा। उसने अपनी बात को मजबूती से रखा और सबको बताया कि शिक्षा से ही समाज का विकास होगा।

धीरे-धीरे गाँव में बदलाव आने लगा। लोग समझने लगे कि शिक्षा सिर्फ लड़कों के लिए नहीं, बल्कि लड़कियों के लिए भी आवश्यक है। सारिका की मेहनत रंग लाई। गाँव में लड़कियों की संख्या स्कूल में बढ़ने लगी। अब गाँव की तस्वीर बदलने लगी थी।

कुछ सालों बाद, सारिका ने गाँव के पहले महिला प्रधान का चुनाव लड़ा और जीत गई। यह एक ऐतिहासिक पल था। सागरपुर में न केवल लड़कियों ने शिक्षा पाई, बल्कि उन्होंने समाज में अपनी एक पहचान भी बनाई।

इस कहानी में सारिका की संघर्ष की यात्रा ने यह साबित कर दिया कि समाज में बदलाव लाने के लिए साहस और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। हर व्यक्ति की ज़िंदगी में एक मौका होता है, जब वह अपने सपनों के लिए खड़ा होता है।

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कहानी: संघर्ष का सफरगांव में रहने वाला राजू एक गरीब किसान था। उसके पास केवल दो बीघा ज़मीन थी, जो बारिश पर निर्भर थी। हर ...
22/09/2024

कहानी: संघर्ष का सफर

गांव में रहने वाला राजू एक गरीब किसान था। उसके पास केवल दो बीघा ज़मीन थी, जो बारिश पर निर्भर थी। हर साल, जब बारिश होती, राजू की फसलें अच्छी होतीं, लेकिन सूखे के मौसम में उसकी मेहनत बेकार हो जाती।

राजू की पत्नी, सुमित्रा, उसे हमेशा प्रोत्साहित करती। वह कहती, "राजू, हमें हार नहीं माननी चाहिए। मेहनत का फल मीठा होता है।" लेकिन राजू की आंखों में हमेशा चिंता होती। उनके तीन छोटे बच्चे थे, और वह सोचता, "अगर कुछ नहीं हुआ, तो बच्चों का क्या होगा?"

एक दिन, गांव में एक मेले का आयोजन हुआ। राजू ने सोचा, "अगर मैं कुछ सामान बेचूं, तो शायद पैसे जुटा सकूं।" उसने अपनी कुछ पुरानी चीजें बेचने का निश्चय किया। मेले में जाकर, उसने अपने सामान को बेचकर कुछ पैसे कमाए। यह उसके लिए एक छोटी सी जीत थी।

लेकिन जब बारिश का मौसम आया, तो फिर से सूखा पड़ गया। राजू ने सोचा कि अब उसे कुछ और करना होगा। उसने अपने गांव के पास एक छोटे से तालाब को देखने का निर्णय लिया। तालाब का पानी सूख गया था, और वहां बहुत सारी मिट्टी थी। राजू ने गांव के लोगों से कहा, "हम मिलकर इस तालाब को गहरा कर सकते हैं। इससे बारिश का पानी इकट्ठा होगा।"

कुछ लोगों ने उसकी बात मान ली, लेकिन कई ने उसे बेकार की सोच कहा। फिर भी, राजू ने हार नहीं मानी। उसने अकेले ही काम शुरू किया। दिन-रात मेहनत करके, उसने तालाब को गहरा करना शुरू किया। धीरे-धीरे, लोग उसकी मेहनत देखकर प्रभावित हुए और उसका साथ देने लगे।

कुछ महीनों बाद, जब बारिश हुई, तालाब भर गया। अब राजू की फसलें भी अच्छी हुईं। उसकी मेहनत रंग लाई थी। गांव के लोग राजू की तारीफ करने लगे और उसके प्रयास को सराहा।

राजू ने अपने संघर्ष से न केवल अपनी फसलें उगाईं, बल्कि गांव के लोगों को भी एकजुट किया। उसने सीखा कि मेहनत और धैर्य से कुछ भी संभव है। उसकी कहानी ने पूरे गांव को प्रेरित किया कि एकता में ताकत होती है।

इस तरह, राजू ने अपने संघर्ष से एक नया रास्ता बनाया। उसकी मेहनत ने न केवल उसके परिवार का जीवन बदला, बल्कि पूरे गांव को एक नई दिशा दिखाई

 # शीर्षक: *मायके की लक्ष्मी*सुमन, एक नई-नवेली दुल्हन, जब अपने ससुराल आई तो उसने अपने आप को उम्मीदों के बंधन में पाया। श...
18/09/2024

# शीर्षक: *मायके की लक्ष्मी*

सुमन, एक नई-नवेली दुल्हन, जब अपने ससुराल आई तो उसने अपने आप को उम्मीदों के बंधन में पाया। शादी का भव्य आयोजन बीत चुका था, लेकिन उसके बाद की असल ज़िन्दगी पूरी तरह से अलग थी। रिवाज, परंपराएँ, और उसके ससुराल के अनलिखे नियम धीरे-धीरे उसके सामने आने लगे।

सुमन का ससुराल में आगमन एक बड़ा उत्सव था। घर में रिश्तेदारों की चहल-पहल थी और हर जगह गेंदे के फूलों और धूप की महक फैली हुई थी। जैसे ही सुमन ने घर में कदम रखा, उसकी सास, शारदा, ने पारंपरिक आरती उतारी। एक के बाद एक, कई रस्में निभाई गईं, हर एक रस्म पहले से अधिक जटिल थी। लेकिन इस सब के बीच, सुमन ने शारदा की आँखों में एक ठंडापन महसूस किया, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।

दिन हफ्तों में बदल गए, और सुमन ने अपने नए घर की वास्तविकता को समझना शुरू किया। उसका पति, रोहन, एक दयालु व्यक्ति था, लेकिन अक्सर मौन रहता था। वह लंबे समय तक काम करता और सुमन को उसके विचारों और घरेलू कामों के साथ अकेला छोड़ देता। दूसरी ओर, शारदा एक सख्त महिला थी, जो घर की पूरी बागडोर अपने हाथों में रखती थी। घर के संचालन का उनका अपना तरीका था, और उनकी विधियों में कोई भी बदलाव सख्त आलोचना के साथ मिलता।

एक शाम, जब सुमन रसोई में खाना बना रही थी, उसने शारदा और उनकी पड़ोसनों के बीच हो रही बातचीत सुनी। वे परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में चर्चा कर रही थीं। शारदा गर्व से बता रही थी कि कैसे उन्होंने हमेशा कठिन समय में भी घर को कुशलतापूर्वक संभाला है। बातचीत फिर सुमन की तरफ मुड़ी, जहाँ शारदा ने बड़ी चालाकी से संकेत दिया कि सुमन के मायके से कितना दहेज आया था और कैसे उसने हाल ही में किए गए घर के नवीनीकरण में मदद की थी।

सुमन को एहसास हुआ कि उसकी शादी सिर्फ दो आत्माओं का मिलन नहीं थी, बल्कि उसके ससुराल वालों के लिए एक व्यापारिक लेन-देन भी था। ससुराल की स्थिति को बनाए रखने की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी। हर बार जब कोई नया खर्च आता, उसकी सास इशारों-इशारों में कह देतीं कि पैसा सुमन के मायके से आना चाहिए।

एक दिन, शारदा ने सुमन को आने वाले पारिवारिक समारोह के लिए जरूरी सामान की एक सूची थमा दी। सूची लंबी और महंगी थी। सुमन जानती थी कि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, जितनी उसके ससुराल वाले मानते थे। भारी मन से, उसने अपनी माँ को फोन किया और पैसे मांगे।

सुमन की माँ, जो स्थिति को समझ रही थी, ने पैसे भेजने के लिए सहमति तो दी, लेकिन सुमन ने उनकी आवाज़ में उदासी को महसूस किया। उनकी माँ हमेशा चाहती थीं कि उनकी बेटी खुश रहे, लेकिन सुमन के ससुराल वालों की माँगें उनके परिवार की वित्तीय स्थिति पर भारी पड़ रही थीं।

लगातार माँगों ने सुमन पर गहरा असर डाला। वह अपने ही घर में एक बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस करने लगी, जहाँ उसकी क़ीमत सिर्फ पैसे जुटाने की क्षमता से मापी जा रही थी। उसके और रोहन के बीच की दूरी बढ़ने लगी। रोहन अपने परिवार की इन मांगों से अनजान था। सुमन खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही थी, और इस बात का डर था कि अगर उसने कुछ कहा तो घर का संतुलन बिगड़ जाएगा।

एक शाम, जब उसकी सास ने फिर से पैसे की माँग की, सुमन ने अपनी हद पार कर ली। उसने रोहन का सामना करने का फैसला किया।

"रोहन, क्या तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे परिवार की माँगें मुझ पर कितना दबाव डाल रही हैं? जब भी कोई ज़रूरत होती है, बोझ मेरे मायके पर डाल दिया जाता है। ये कब तक चलेगा? मेरे माता-पिता तुम्हारे परिवार के खर्चों के लिए कोई बैंक नहीं हैं," सुमन की आवाज़ में भावनाओं का बवंडर था।

रोहन चौंक गया। उसने हमेशा यही समझा था कि वित्तीय व्यवस्थाएँ आपसी सहमति से की गई थीं और सुमन का परिवार खुशी से योगदान दे रहा था। लेकिन सुमन की आँखों में दर्द देखकर उसे एहसास हुआ कि वह उसकी परेशानियों से अनजान रहा है।

अगले दिन, रोहन ने अपनी माँ से बात की। उसने उन्हें बताया कि सुमन किस दबाव में है और यह उनके रिश्ते को कैसे प्रभावित कर रहा है। शारदा पहले तो रक्षात्मक हो गईं, लेकिन जब उन्होंने स्थिति की गंभीरता देखी, तो उन्हें महसूस हुआ कि वह गलत थीं।

सुमन ने रोहन के समर्थन के साथ स्थिति को नियंत्रित करने का फैसला किया। उसने अपनी माँ को फोन किया और कहा कि अब से उसके ससुराल से कोई भी माँग नहीं आएगी। सुमन की माँ ने राहत की सांस ली और अपनी बेटी पर गर्व महसूस किया कि उसने सही कदम उठाया है।

समय के साथ, सुमन और शारदा के रिश्ते में सुधार हुआ। शारदा ने सुमन को एक आय के स्रोत के रूप में नहीं, बल्कि एक बेटी के रूप में देखना शुरू किया। घर के माहौल में भी बदलाव आया, और सभी में एक-दूसरे के लिए अधिक समझ और सम्मान था।

सुमन की कहानी उन कई महिलाओं का प्रतिबिंब है जो चुपचाप अपने ससुराल की वित्तीय जिम्मेदारी उठाती हैं। लेकिन यह एक सशक्तिकरण की कहानी भी है, जहाँ एक निर्णायक कदम जीवन की दिशा बदल सकता है।

सुमन की यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन यह आवश्यक थी। उसने सीखा कि परंपराओं और रिवाजों का महत्व होता है, लेकिन आत्म-सम्मान और अपने परिवार की भलाई सबसे ऊपर है। अंततः, वह एक पत्नी और बहू के रूप में ही नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यक्ति के रूप में उभरी जिसने अपने और अपने परिवार के लिए आवाज़ उठाई

💐 #कमाने_वाली_बहू💐मां, तू हमारे साथ मुंबई चल। बाबूजी थे तब बात अलग थी, अब गांव में अकेले कैसे रहोगी? बेटा सुबोध ने कहा। ...
17/09/2024

💐 #कमाने_वाली_बहू💐

मां, तू हमारे साथ मुंबई चल। बाबूजी थे तब बात अलग थी, अब गांव में अकेले कैसे रहोगी? बेटा सुबोध ने कहा।

"मैं सोच में पड़ गई।" दिल का दौरा आने से पति की अचानक मृत्यु हो गई थी। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन तेरहवीं के बाद सब लोग चले गए।

बेटा सुबोध और बहू शिफाली दोनों इंजीनियर थे।
एक सहेली ने कहा कि कमाने वाली बहू को वृद्ध मां की कोई चिंता नहीं होती; वे तुम्हें परेशान कर सकती हैं और तुम्हारा जीवन मुश्किल बना सकती हैं। जिंदा रहते हुए, बाबूजी ने अपनी सारी प्रॉपर्टी बेटे के नाम कर दी थी, जिससे बेटा और बहू मकान बेच सकते हैं और पैसे भी ले सकते हैं।

65 साल की उम्र में, घुटनों के दर्द की वजह से राशन की दुकान चलाना भी मुश्किल हो रहा था। तेरहवीं का पूरा खर्च बेटे ने उठाया, लेकिन छोटे-मोटे खर्चों के लिए हाथ फैलाना पसंद नहीं था। बचाए हुए थोड़े पैसे भी खर्च हो गए थे, और अब मेरे पास ₹50 भी नहीं थे। इसलिए सुबोध को कोई उत्तर नहीं दे सकी।

इतने में शिफाली ने कहा, “मां, कौन सी साड़ी रखनी है? मैं आपका बैग पैक कर रही हूँ।” शिफाली की बात सुनकर मैंने चुपचाप उनके साथ मुंबई जाने का निर्णय लिया।

मुंबई में, सुबोध और शिफाली ने मेरा बहुत ख्याल रखा। हम सब मिलकर खाना खाते थे और बाहर घूमने जाते थे। शिफाली और सुबोध ने मुझे खुश रखने का पूरा प्रयास किया। मैंने महसूस किया कि आजकल के लोग बेवजह कह देते हैं कि लड़के और लड़कियां वृद्ध माता-पिता की देखभाल नहीं करते, खासकर अगर बहू कमाने वाली हो तो। लेकिन मैंने देखा कि हर बहू एक जैसी नहीं होती।

एक दिन, हम सब मॉल में गए। वहां घूमते समय, सुबोध और शिफाली एक दुकान पर कुछ खरीदने के लिए रुके। मैं और आर्यन थोड़े आगे गए। आइसक्रीम की दुकान देख कर आर्यन ने कहा, “दादी, मुझे आइसक्रीम चाहिए।” मेरे पास पैसे नहीं थे। इतने दिन में कभी पैसों की जरूरत नहीं पड़ी, लेकिन अब पैसे की कमी हो गई थी।

"बेटा, मैं पर्स घर में भूल गई," मेरे ऐसा बोलते ही आर्यन मेरी तरफ एक अलग नजरों से देखने लगा। उसे लगा कि आइसक्रीम दिलानी नहीं है, इसलिए दादी बहाने बना रही है। पर मैं क्या कर सकती थी? मुझे तो खुद पर ही शर्म आ रही थी कि मैं कैसी दादी हूं जो अपने पोते को आइसक्रीम नहीं दिला सकती। हमने बाहर ही खाना खाया। शेफाली ने मेरी पसंद की काजू मसाले की सब्जी भी ऑर्डर की थी, पर मुझे वह अच्छी नहीं लग रही थी।

घर आने के बाद सबने थोड़ा टीवी देखा। सुबोध सोने चला गया और आर्यन को क्या चाहिए और क्या नहीं, यह देखने के लिए शेफाली उसके कमरे में गई। मैं भी अपने कमरे में सोने जा रही थी, तभी मुझे आर्यन की आवाज सुनाई दी। "मम्मी, दादी बहुत कंजूस हैं।"

"तू ऐसा क्यों बोल रहा है?" शेफाली ने पूछा।

"हां मम्मी, जब हम मॉल में घूम रहे थे, तब मैंने दादी से आइसक्रीम मांगी थी। लेकिन नहीं दिलाई। यह अच्छा है क्या?"

मम्मी: "क्या बोल रहे हो? दादी के बारे में ऐसा कहने से पहले तुमने सोचा नहीं क्या? तुम्हारी दादी इस वक्त कितनी दुखी हैं, यह तुम समझ नहीं सकते। दादा जी के बिना तुम्हारी दादी कैसे रहती होंगी? सोच, अचानक तेरे मम्मी-पापा तुझसे बहुत दूर चले जाएं, इतने दूर कि वे कभी वापस नहीं आएं, तब तुझे बड़ा दुख नहीं होगा क्या?"

"नहीं मम्मी, मैं तुम दोनों के बिना नहीं रह सकता," आर्यन ने बोला।

"बेटा, फिर सोच कि दादाजी के बिना तेरी दादी कैसे रहती होंगी? ऐसी स्थिति में हो सकता है कि वे अपना पर्स घर भूल गई होंगी। तूने उन्हें कंजूस कहा, उनका प्यार तुझे दिखाई नहीं दिया क्या? जब भी तुझे स्कूल से आने में 5 या 10 मिनट भी देर हो जाती है, तब वे बरामदे में खड़ी रहकर तेरा इंतजार करती हैं। उनके घुटने दर्द करते हैं, फिर भी। बेटा, किसी के बारे में राय बनाने से पहले उसके दृष्टिकोण से सोचना चाहिए।"

ये बातें सुनकर मुझे मेरी बहू पर बहुत गर्व हुआ। अगर मैं उसकी जगह होती, तो कभी भी अपने बेटे को इतने अच्छे से समझा नहीं पाती। अगले दिन सुबह-सुबह सुबोध ऑफिस गया और आर्यन स्कूल। शेफाली भी ऑफिस जाने लगी, जाते-जाते उसने मेरे हाथ में कुछ पैसे देने की कोशिश की।

"यह क्या बेटा, मुझे पैसों की क्या जरूरत है?" मैंने कहा।

"मां, किसे कब पैसों की जरूरत पड़ जाए, कह नहीं सकते। आप मंदिर जाती हैं, कभी दान पेटी में डाल देना। कभी आर्यन कोई चीज के लिए ज़िद करे तो आप उसे वह चीज दिला देना।"

"पर बेटा , समझा करो मैं नहीं ले सकती"

मां जी! अगर यही पैसे सुबोध ने आपको दिए होते तो क्या आपने मना किया होता? नहीं ना। तो आपकी बहू भी कमाती है, तो आप अपनी बहू से पैसे क्यों नहीं ले सकतीं?"

शेफाली की बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। जो मेरा बेटा नहीं समझा सका, वह मेरी बहू ने समझा दिया।
मेरी बहू जैसी बहू सबको मिले। मैंने भगवान से प्रार्थना की कि ऐसी बहू मुझे हर जन्म में मिले। लोग बिना किसी कारण नौकरी करने वाली बहू का दुर्व्यवहार देखकर सब नौकरी वाली बहुओं को दोष देते हैं। कुछ शेफाली जैसी समझदार और बड़ों का आदर करने वाली होती हैं।

मेरा नाम रीना है. मेरी शादी एक बड़े घर में हुई है. मेरी पति राजीव कीं फैमिली का अच्छा बिज़नेस है. राजीव एक लौते है.सांस सस...
17/09/2024

मेरा नाम रीना है. मेरी शादी एक बड़े घर में हुई है. मेरी पति राजीव कीं फैमिली का अच्छा बिज़नेस है. राजीव एक लौते है.

सांस ससुर, में और राजीव हम चार लोगों का ही परिवार है. राजीव और पापा जी सारा बिज़नेस सँभालते है.

इसलिये काम से वापस आने का कोई समय नहीं होता है. राजीव अब एक नया काम शुरू करने वाले है नयी जगह पर.वहाँ पर हमारा एक फार्म हॉउस भी है.

इसलिये हम दोनों कुछ दिन वही जाकर रहेंगे. फार्म हाउस में समय बिताने के साथ राजीव अपना काम भी करते रहेंगे. सुबह जल्दी ही हम लोग फार्म हाउस में पहुंच गये.

फार्म हाउस कीं देख रेख के लिये एक नौकर था. वो वही पास एक रूम में रहता था. हम जैसे ही पहुँचे दूर से किशोर दौड़ता आया हमारी कार के पास.

आकर उसने ही कार का दरवाजा खोला. नमस्ते मालकिन हॅसते हुऐ मुझे बोला. राजीव नें कहां यह किशोर है हमारे फार्म कीं देखभाल करता है.

में अंदर जाकर बैठी. थोड़ी देर बाद राजीव अपने काम में बिजी हो गये. उन्होंने किशोर को कहां कीं मैडम को फार्म दिखा दो. किशोर बोला ठीक है साहब.

वो मुझे फार्म दिखाने लें गया. फार्म में हम घूम रहें थे तब गेट के बाहर से एक लगभग 6- 7 साल कीं लड़की नें किशोर को आवाज लगाई,

वो स्कूल से वापस जा रही थी. किशोर बोला मैडम में आता हूं. वो गेट पर खड़ा उस लड़की से बात करने लगा. मेरी नजर पड़ी तो वो लड़की मेरी तरफ ही देखें जा रही थी.

फिर वापस आकर बोला मैडम आप आराम करिये में आता हूं. ऐसा बोलकर वो चला गया. अगले दिन सुबह फिर राजीव अपने काम से जल्दी चले गये.

में सुबह सो कर उठी. मेरे उठते ही मुझे दरवाजे पर किशोर दिखाई दिया. मैंने पूछा क्या कर रहें हो यहाँ पर. बोला मैडम अभी आया हूं चाय लेकर.

मैंने बोला ठीक है यहाँ टेबल पर रख कर चले जाओ. में नहा कर किचन में गई. किशोर वही था. अपना कुछ काम कर रहा था. फिर वो मुझसे बाते करने लगा.

में उस तरह कीं लड़की नहीं हूं कीं कोई एकदम से मुझ से बात करें और में भी उससे करने लगू इसलिये मैंने उसकी बातो पर कोई जवाब नहीं दिया.

यहाँ का पुराना नौकर था. इसलिये मै उसकी बाते सुन भी रही थी. अगर ऐसा नहीं होता तो शायद में उसे डांट देती. अभी मुझे यहाँ आये 2-3 दिन हो गये थे.

मैंने यह नोटिस किया कीं वो मुझसे बात करने कीं कोशिश लगातार करता ही रहता था. एक दोपहर में कमरे में अकेली बैठी थी.

अचानक से किशोर कमरे में आता है. बोलता है मैडम मुझे कुछ पूछना है मैंने बोला क्या. बोला मैडम आप बुरा मत मानना.

मैंने बोला पूछो बोला मैडम में आपकी एक फोटो लें सकता हूं. मेरे मुँह से निकला क्या. बाहर निकलो अभी कमरे से.

किशोर बोला मैडम आप गलत समझ रहें है मेरी बात तो सुनिए. मुझे पता नहीं क्यों गुस्सा आ गया मैंने बोला बाहर निकलो या अभी तुम्हारे साहब को फोन करू.

इतना बड़ा घर और मेरे लिये तो अनजान ही था.ऊपर से वो इस तरह कीं बाते कर रहा था. मुझे कुछ अजीब लगा.

मैंने सोचा शाम को राजीव आएंगे तो सबसे पहले इसकी छुट्टी करवाउंगी.शाम को राजीव आये तो मैंने उनको सब बताया.

राजीव मानने को तैयार ही नहीं थे बोले यह कई सालो से है.उसकी एक बच्ची भी है तुम कुछ गलत समझ रही हो. उसकी बच्ची के बारे में मुझे पता नहीं था.

मैंने बोला कई सालो से यहाँ कोई लड़की भी नहीं आई थी. राजीव नें बोला रुको अभी बुलाकर बात करते है. राजीव नें किशोर को आवाज लगाई.

किशोर आया तो राजीव नें बोला क्या हुआ किशोर तुम्हारी मैडम कुछ कंप्लेंट कर रही है. साहब मैंने सिर्फ फोटो लेने को कहां था.

राजीव नें पूछा क्यों चाहिये तुम्हे फोटो. किशोर बोला साहब आप तो जानते है मेरी 7 साल कीं एक बच्ची है. उसकी माँ उसके पैदा होते ही चल बसी थी.

और जब वो 2 साल कीं तब हमारे घर में आग ला गई थी भगवान कीं कृपा हम तो बच गये लेकिन उसकी माँ कीं सारी निशानियां ख़त्म हो गई.

बिना माँ कीं बच्ची को संभालना बड़ा मुश्किल होता है साहब. मैडम उस दिन जब में आपका फार्म दिखा रहा था तब स्कूल से घर वापस जाते वक्त उसने हमें देख लिया.

मेरा घर यही थोड़ी दूर पर है उसकी दादी उसे संभालती है. हमेशा मुझसे पूछती रहती थी कीं पापा मेरी कैसी दिखती थी कैसी चलती थी कैसे बातें करती थी.

में उसे कहता था वो बहुत सुन्दर थी. यहाँ गाँव में उसके जैसा कोई नहीं है. आपको जब देखा तो उस दिन मुझे उसने यही पूछा क्या पापा मम्मी ऐसी थी

मैंने उसे कहां हां ऐसी ही थी. तब से जिद पर अड़ गई कीं मुझे मैडम से मिलना है. वो मेरी मम्मी जैसी है.स्कूल नहीं जा रही.

में इसलिये आपसे बात कर रहा था कीं आपको यह सब बता सकूँ. लेकिन आपका स्वभाव अलग है. फिर उसने आज सुबह से कुछ खाया नहीं.

बोल रही है फोटो लाना में मेरे स्कूल वाले दोस्तों को दिखाउंगी कीं मेरी मम्मी ऐसी थी, तो मैंने बोला कीं में तुझे फोटो लेकर दिखा दूंगा.

वो बोली पक्के से लाना. इतना कहकर किशोर फूट फूट कर रोने लगा. रोते हुऐ ही बोला बच्ची है मैडम उसका नसीब ही ऐसा है.

पैदा होते ही माँ मर गई और बाप मुझ जैसा मिला.मैडम हम साहब से कुछ भी बोल देते थे. साहब का कभी मुझे डर नहीं लगा यही आदत मुझे पड़ गई और मैंने आपको भी अपना समझ कर बोल दिया.

आप मुझे बताने देती तो में आपको भी बता देता. किशोर कीं बाते सुनकर मुझे अपने आप पर गुस्सा आया. राजीव नें किशोर को चूप कराया और कहां कीं कीं बच्ची को वहाँ क्यों रखते हो उसे यही रखो इतना बड़ा फार्म हाउस है.

कल बच्ची को लेकर आओ. सुबह वो बच्ची को लेकर आया बच्ची को दूर से ही मुझे दिखा रहा था शायद अब भी झिझक रहा था.

में खुद बच्ची के पास गई. बोला अरे हम यहाँ 4 दिन से है और आप अब आ रही है.मेरे ऐसा कहने पर बच्ची के चहरे पर जो मुस्कान आयी वो अनमोल थी.

वो मुझसे लिपट गई. जब तक में वहाँ रही में उसके साथ खेलती और हॅसती रही. एक अलग ख़ुशी मिल रही थी. अब वो एक वजह बन गई थी मेरे वहाँ बार बार जानें कीं.
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सपना एक छोटे से गांव की रहने वाली थी। उसका परिवार बेहद गरीब था, और जीवनयापन के लिए उसे और उसकी मां को दूसरों के घरों में...
17/09/2024

सपना एक छोटे से गांव की रहने वाली थी। उसका परिवार बेहद गरीब था, और जीवनयापन के लिए उसे और उसकी मां को दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था। सपना की उम्र मात्र 14 साल थी, लेकिन उसकी जिम्मेदारियां बहुत बड़ी थीं। उसके पिता का निधन हो चुका था, और उसकी मां बीमार रहती थी। इसलिए, सपना को ही घर का खर्च उठाना पड़ता था।

सपना का सपना था कि वह पढ़े और कुछ बड़ा करे, लेकिन गरीबी ने उसके सपनों को सीमित कर दिया था। गांव के स्कूल में उसे पढ़ने का अवसर मिला, लेकिन घर की स्थिति को देखते हुए उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी और काम करने के लिए शहर जाना पड़ा।

शहर पहुंचने के बाद, सपना को एक बड़े घर में नौकरानी की नौकरी मिल गई। यह घर एक अमीर परिवार का था, जिसमें पति-पत्नी और उनके दो बच्चे रहते थे। सपना का काम था घर की सफाई करना, खाना बनाना, और बच्चों की देखभाल करना। उसका दिन सुबह से शुरू होकर रात तक खत्म होता था। कभी-कभी तो उसे रात में भी काम करना पड़ता था जब घर में कोई पार्टी या महफिल होती थी।

सपना को इस नए जीवन में बहुत कुछ सहना पड़ता था। मालिक और मालकिन का व्यवहार उसके प्रति कठोर था। छोटी-छोटी गलतियों पर उसे डांट पड़ती थी और कभी-कभी तो मार भी पड़ जाती थी। उसे खाने के लिए भी बहुत कम दिया जाता था, और वह अक्सर भूखी रहती थी। लेकिन सपना के पास कोई और विकल्प नहीं था। उसने यह जीवन स्वीकार कर लिया था, क्योंकि वह जानती थी कि उसके परिवार की ज़िम्मेदारी उसी के कंधों पर है।

सपना के काम करने का ढंग बहुत ही सलीकेदार था। वह हर काम बड़ी निपुणता से करती थी। धीरे-धीरे, बच्चों से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई। वे उसे बहुत पसंद करते थे और उसका सम्मान करते थे। लेकिन घर के बाकी लोग उसके साथ वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा नौकरों के साथ आमतौर पर किया जाता है।

एक दिन, जब सपना घर के कामों में व्यस्त थी, उसने देखा कि घर की मालकिन बहुत परेशान थी। पूछने पर पता चला कि उनके गहने कहीं खो गए हैं। सपना ने भी उन गहनों को ढूंढने में मदद की, लेकिन वे नहीं मिले। अचानक, मालकिन को शक हुआ कि सपना ने ही गहने चुराए हैं। बिना सोचे-समझे, उन्होंने सपना को दोषी ठहराया और उसे घर से निकालने की धमकी दी। सपना ने बहुत समझाया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया, लेकिन उसकी एक न सुनी गई।

सपना को बहुत अपमानित महसूस हुआ। उसके आंसू रुक नहीं रहे थे। वह सोचने लगी कि इतने सालों से वह इस घर के लिए क्या-क्या नहीं कर रही है, और आज उसके साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है। लेकिन वह चुप रही और अपना सामान समेटकर घर छोड़ने लगी। तभी, छोटे बच्चे दौड़ते हुए आए और रोते हुए सपना को रोकने लगे। उन्होंने अपनी मां से कहा कि सपना को जाने न दें, वह निर्दोष है। बच्चों की बातें सुनकर मालकिन का दिल पिघल गया। उन्होंने सपना से माफी मांगी और उसे घर में रहने के लिए कहा।

कुछ दिनों बाद, गहने घर के किसी कोने में मिल गए, जिससे यह साबित हो गया कि सपना निर्दोष थी। अब घर के सभी लोग उससे अच्छा व्यवहार करने लगे। मालिक ने उसे उसकी ईमानदारी के लिए पुरस्कृत भी किया। धीरे-धीरे, सपना की स्थिति में सुधार हुआ। उसे अब पहले से ज्यादा इज्जत और सम्मान मिलने लगा। उसने अपनी मां के इलाज के लिए भी पैसे जमा कर लिए थे।

सपना ने तय किया कि वह इस काम को करते हुए भी अपनी पढ़ाई जारी रखेगी। उसने बच्चों की किताबों से पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे वह पढ़ने में भी निपुण हो गई। उसने रात में पढ़ाई करने की आदत बना ली। उसकी मेहनत रंग लाई और उसने शहर के एक स्कूल में दाखिला ले लिया।

अब सपना का जीवन बदल गया था। वह अब सिर्फ नौकरानी नहीं रही, बल्कि एक छात्रा भी बन गई थी। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक छोटे से नर्सिंग कोर्स में दाखिला ले लिया। कुछ सालों बाद, उसने नर्स की नौकरी भी पा ली।

उसने अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत किया और अपनी मां का इलाज करवाया। सपना के इस सफर ने उसे एक नई पहचान दिलाई और उसे यह सिखाया कि मेहनत और ईमानदारी से सबकुछ संभव है।

इस तरह, सपना ने न केवल अपने लिए, बल्कि अपने परिवार के लिए भी एक नई राह बनाई। वह आज भी उन संघर्षों को नहीं भूल पाई है जो उसने एक नौकरानी के रूप में झेले थे, लेकिन वह अपने आत्मविश्वास और साहस के कारण एक नई दिशा में आगे बढ़ी। सपना की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर हौसला और मेहनत हो, तो हर चुनौती को पार किया जा सकता
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यह कहानी एक वृद्ध पिता, रामनारायण जी की है, जो जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। उनकी पत्नी का देहांत वर्षों पहले हो चुका है, ...
15/09/2024

यह कहानी एक वृद्ध पिता, रामनारायण जी की है, जो जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। उनकी पत्नी का देहांत वर्षों पहले हो चुका है, और अब वह अपने तीन बच्चों पर आश्रित हैं। उनके तीन बेटे हैं—सबसे बड़े, रवि; मंझले, मोहन; और सबसे छोटे, सुमित। सभी बच्चे अपने-अपने परिवारों और करियर में व्यस्त हैं, लेकिन पिता की देखभाल का जिम्मा तीनों के ऊपर समान रूप से है।

रामनारायण जी अपने बचपन और युवावस्था की यादों में खोए रहते हैं। वे याद करते हैं कि कैसे उन्होंने कठिन परिश्रम करके अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष किया। वे अपने बच्चों को संस्कार और जिम्मेदारियों का महत्व सिखाते थे। लेकिन अब, जब उनकी उम्र ढल गई है, उन्हें एहसास होता है कि वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है।

रवि, जो सबसे बड़ा है, एक सफल व्यापारी बन गया है। उसका परिवार बड़ा और व्यस्त है। मोहन एक सरकारी अधिकारी है और अपने काम में पूरी तरह से लिप्त है। सुमित, सबसे छोटा, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और विदेश में रहता है। तीनों बेटे अपनी-अपनी ज़िंदगियों में मसरूफ हैं, और रामनारायण जी को अक्सर महसूस होता है कि वे उनकी जिम्मेदारियों को भूल चुके हैं।

रामनारायण जी अब बीमार रहने लगे हैं। उन्हें अपने बेटों पर आश्रित होना पड़ता है, लेकिन यह आश्रितता उनके लिए एक नई चुनौती बन जाती है। बेटों के बीच इस बात पर बहस होती है कि पिता की देखभाल कौन करेगा और कितनी जिम्मेदारी कौन उठाएगा। रवि को लगता है कि उसके पास पहले से ही बहुत जिम्मेदारियाँ हैं और वह पिता को संभालने के लिए तैयार नहीं है। मोहन को लगता है कि वह सरकारी नौकरी के साथ पिता की देखभाल नहीं कर सकता, और सुमित, जो विदेश में है, कहता है कि वह शारीरिक रूप से उपलब्ध नहीं हो सकता।

तीनों भाईयों के बीच वाद-विवाद बढ़ता जाता है, और रामनारायण जी यह सब चुपचाप देखते रहते हैं। उन्हें दुख होता है कि उनके बच्चों में अब वह प्रेम और एकता नहीं रही, जिसे उन्होंने अपने जीवन में हर कदम पर प्राथमिकता दी थी।

एक दिन, रामनारायण जी अचानक से बीमार पड़ जाते हैं। उनके स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट आ रही है, और डॉक्टर उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की सलाह देते हैं। इस स्थिति में, रवि, मोहन, और सुमित एक साथ बैठते हैं और पिता के स्वास्थ्य पर चर्चा करते हैं। लेकिन वे फिर से आपस में बहस करने लगते हैं कि कौन उनके अस्पताल में रहने की व्यवस्था करेगा और कौन उनके साथ रहेगा।

इस समय, रामनारायण जी के भीतर गहरी भावनाएं उमड़ती हैं। वह खुद को अत्यधिक असहाय महसूस करते हैं, क्योंकि जिन बच्चों को उन्होंने अपने जीवन का सर्वस्व अर्पित किया, वे आज उनके लिए वक्त निकालने में असमर्थ हैं। वे अपने बच्चों से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कि उन्हें उनकी जरूरत है, लेकिन भीतर से वे टूट चुके होते हैं।

रामनारायण जी की हालत और भी गंभीर हो जाती है, और डॉक्टर उन्हें घर पर आराम देने की सलाह देते हैं। यह स्थिति देखकर रवि, मोहन और सुमित के बीच सच्चाई का सामना करने का समय आता है। वे समझ जाते हैं कि उनकी आपसी कलह और अहंकार ने उनके पिता को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर कर दिया है।

सुमित, जो अब तक विदेश में था, अपने पिता की स्थिति को समझता है और तुरंत घर लौट आता है। तीनों भाई एक साथ बैठते हैं और अपने पिता के प्रति किए गए कर्तव्यों की अनदेखी पर शर्मिंदा होते हैं। वे यह निर्णय लेते हैं कि अब वे मिलकर अपने पिता की देखभाल करेंगे और उन्हें किसी भी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने देंगे।

तीनों भाई अब मिलकर अपने पिता की सेवा में जुट जाते हैं। वे अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके पिता ने अपने जीवन के हर क्षण में उनके लिए क्या-क्या नहीं किया। वे अब उनके साथ अधिक समय बिताने लगते हैं, उनकी देखभाल करते हैं और उनसे जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सीखते हैं।

रामनारायण जी के लिए यह समय सबसे सुखद होता है। उन्हें इस बात की संतुष्टि होती है कि उनके बच्चों में अभी भी वह प्रेम और एकता है, जिसे उन्होंने अपने जीवन में संजोया था। वे अपने अंतिम दिनों में सुकून से रहते हैं, इस विश्वास के साथ कि उनके बच्चों ने उनके सिखाए हुए मूल्यों को समझ लिया है।

रामनारायण जी का निधन होता है, लेकिन वह संतोष के साथ विदा होते हैं। उनके बच्चों ने मिलकर उनकी अंतिम यात्रा का प्रबंध किया और उनके जीवन की शिक्षाओं को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। वे समझ चुके होते हैं कि अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक आशीर्वाद है।

कहानी का अंत इस संदेश के साथ होता है कि परिवार में एकता और प्रेम ही सबसे बड़ी शक्ति होती है, और माता-पिता के प्रति कर्तव्य पालन हर संतान का नैतिक दायित्व है।

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