02/09/2025
✨ “कभी-कभी एक चादर सिर्फ़ कपड़ा नहीं होती, वह समाज की बेड़ियों, रिश्तों की जटिलताओं और स्त्री के संघर्ष की पूरी दास्तान होती है…” ✨
पढ़िए राजिंदर सिंह बेदी के साहित्य और सिनेमा से जुड़े रोचक किस्से, और उनकी कालजयी कृति “एक चादर मैली सी” की फ़िल्मी यात्रा। 🎬📖
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✍️ राजिंदर सिंह बेदी: साहित्य से सिनेमा तक का अनोखा सफ़र
राजिंदर सिंह बेदी सिर्फ़ एक महान कहानीकार ही नहीं, बल्कि हिंदी सिनेमा के यादगार संवादों के रचयिता भी थे। 1940 में उनका पहला कहानी संग्रह “दान-ओ-दाम” आया, जिसमें मशहूर कहानी “गरम कोट” शामिल थी। बंटवारे के बाद वे बंबई आए और फ़िल्मों के लिए डायलॉग लिखने लगे।
“बड़ी बहन” (1949) उनकी पहली फ़िल्म थी। इसके बाद “दाग़” (1952), “मधुमती”, “अनुपमा”, “सत्यकाम”, “अनुराधा”, “अभिमान” जैसी क्लासिक फ़िल्मों के संवाद उनकी कलम से निकले।
उनका इकलौता उपन्यास “एक चादर मैली सी” 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुआ। बेदी इसे फ़िल्म बनाना चाहते थे। 1964 में गीता बाली और धर्मेंद्र को लेकर “रानो” की शूटिंग शुरू भी की गई। मगर अचानक गीता बाली के निधन ने न सिर्फ़ फ़िल्म को अधूरा छोड़ दिया, बल्कि बेदी का एक बड़ा सपना भी छीन लिया।
बहुत साल बाद 1986 में सुखवंत ढड्ढा ने इस उपन्यास पर “एक चादर मैली सी” फ़िल्म बनाई। हेमा मालिनी (रानो) और ऋषि कपूर (मंगल) ने इसमें समाज की परंपरा, स्त्री की विवशता और रिश्तों की जटिलता को अद्भुत रूप से जीवंत किया। यह फ़िल्म आज भी संवेदनशील सिनेमा की मिसाल मानी जाती है।
बेदी ने निर्देशन भी किया और 1970 में उनकी फ़िल्म “दस्तक” को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। दिलचस्प तथ्य यह है कि “एक चादर मैली सी” पर पाकिस्तान में भी “एक मुट्ठी चावल” नामक फ़िल्म बनी थी।
राजिंदर सिंह बेदी की कहानियाँ साबित करती हैं कि इंसानी रिश्तों की सच्चाई जितनी साहित्य में झलकती है, उतनी ही परदे पर भी असर करती है।
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“एक चादर मैली सी” सिर्फ़ कहानी नहीं, बल्कि समाज और स्त्री संघर्ष का आइना है।
-डॉ. मनोज कुमार
#गरमकोट