12/10/2025
मनमोहन की सरकार में आया
सूचना का अधिकार अधिनियम..
ग्वालियर। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और श्रीमती सोनिया गांधी के दरदू र्शी नेतृत्व में 12 अक्टूबर 2005 को ऐतिहासिक सूचना का अधिकार अधिनियम अस्तित्व मेंआया।
यह यूपीए सरकार के अधिकार-आधारित एजेंडा की पहली कड़ी थी, जिसमेंमनरेगा (2005), वन अधिकार अधिनियम (2006), शिक्षा का अधिकार (2009), भमिू अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा का अधिकार अधिनियम (2013) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) शामिल थे।
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों के पास मौजूद जानकारी तक पहुँच प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना था, ताकि शासन व्यवस्था अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बन सके। आरटीआई समाज के सबसे हाशिए पर बसे लोगों के लिए जीवनरेखा साबित हुई है। इसने नागरिकों को उनके हक़ जसै राशन, समय पर पेंशन, बकाया मज़दूरी और छात्रवत्तिृ आदि लाने में मदद की है।
इसने सुनिश्चित किया कि सबसे ग़रीब व्यक्ति को जीवन की बुनियादी ज़रूरतों से वंचित न किया जाए ।
2014 के बाद से त्ज्प् लगातार कमज़ोर की जा रही है, जिससे हमारे देश की पारदर्शिर्ता और लोकतांत्रिक ढांचे पर आघात हुआ है।
1. काननू पर हमले(सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005)
● 2019 के संशोधनों नेस्वतंत्रता को कमज़ोर किया और कार्यपा र्य लिका का प्रभाव बढ़ाया।
2019 के संशोधन ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर दिया। पहले, आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष का तय था और उनकी सेवा शर्तें सुरक्षित थीं। संशोधन के बाद केंद्र सरकार को कार्यकाल र्य और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार दे दिया गया, जिससे स्वतंत्रता प्रभावित हुई और कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ा।
● 2023 - डिजिटल पर्सनलर्स डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम और धारा 44(3)
डिजिटल पर्सनलर्स डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम ने आरटीआई की धारा 8(1)(र) में संशोधन किया, जिससे “व्यक्तिगत जानकारी” की परिभाषा का दायरा बहुत बढ़ा दिया गया। पहले, “व्यक्तिगत जानकारी” जनहित में होने पर उजागर की जा सकती थी, लेकिन अब संशोधित प्रावधान कहता है “कोई भी ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित हो, प्रकट नहीं की जाएगी।इसका अर्थ है कि व्यक्तिगत जानकारी को पूर्णतः अपवाद बना दिया गया है। इससे सार्वर्जनिक कर्तव्यों या सार्वजर्वनिक धन के उपयोग से संबंधित जानकारी का खुलासा भी रोका जा सकता है, जो आरटीआई के पारदर्शिता सिद्धांत के विरुद्ध है।
महत्वपर्णूण सार्वजर्वनिक को “निजी” मानकर यह संशोधन मतदाता सूची, व्यय विवरण या अन्य जनहित से जड़ुी सूचनाओ के प्रकटीकरण से इनकार का रास्ता खोल देता है। इससे सार्वजर्वनिक निगरानी की प्रक्रिया पर सीधा असर पड़ता है यही प्रक्रिया थी जिसके ज़रिए एमपीएलएडी फंड के दुरुपयोग, मनरेगा में फर्जी लाभार्थिर्यों और अस्पष्ट राजनीतिक फंडिगं जैसीै अनेक गड़बड़ियाँ उजागर हुई थीं।
2. केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों पर हमले
● रिक्तियाँ
केंद्रीय सूचना आयोग आज अपनी अब तक की सबसेकमज़ोर स्थिति में है 11 स्वीकृत पदों के मुकाबलू केवल दो आयक्तु कार्यरतर्य हैं, और सितंबर 2025 के बाद मख्यु आयुंक्त का पद भी रिक्त है। इस तरह की स्थिति यूपीए शासन के दौरान कभी नहीं रही।
सामाजिक कार्यकर्यर्ताओ ंजैसै अजंलि भारद्वाज की याचिका उंपर कार्यवाही करते हुए सर्वाेच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को नियुक्तियों की समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने का निर्देश दिया था। फिर भी, बार-बार के न्यायिक आदेशों के बावजूद कई पद महीनों तक रिक्त पड़े हैं। सतर्क नागरिक संगठन (ैंजंता छंहतपा ैंदहंजींद) की ‘रिपोर्ट कार्ड ऑफ इन्फ़ॉर्मेशन कमिशन्स (2023दृ24)’, जो अक्टूबर 2024 में जारी हुई, के अनुसार 29 में से 7 राज्य सूचना आयोग विभिन्न अवधियों के दौरान निष्क्रिय रहे।
● लंबित मामले और डेटा की अनउपलब्धता
जनू 2024 तक देशभर के 29 आयोगों में लगभग 4,05,000 अपीलें और शिकायतें लंबित थीं जो 2019 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। नवंबर 2024 तक केवल केंद्रीय सूचना आयोग में ही लगभग 23,000 लंबित मामले हैं।
जब आरटीआई के माध्यम से प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए करोड़ों रुपयेके खर्च कोविड महामारी के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की वास्तविक संख्या या पीएम केयर्स फंड के उपयोग से जुड़ी जानकारी मांगी गई, तो कोई जवाब नहीं दिया गया। इलेक्टोरल बॉन्ड्स मामले में एसबीआई ने आरटीआई के तहत डेटा देने से इनकार किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा। केवल तब जाकर राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदों का डेटो सार्वजर्वनिक हुआ।
3. व्यक्तियों पर हमले
भोपाल की कार्यकर्ता और पर्यावरणविद शहला मसूद, जो अवैध खनन को उजागर करती थीं, की उनके ही घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले की सीबीआई जांच में पाया गया कि आरोपियों में एक इंटीरियर डिज़ाइनर भी शामिल था। सतीश शेट्टी, जो भूमि घोटालों को उजागर करने के लिए जाने जाते थे, उन पर सुबह की सेर के दौरान धारदार हथियारों से हमला कर हत्या कर दी गई। सीबीआई जांच में इस मेंरियल एस्टेट माफिया की संलिप्तता सामने आई।
ऐसे मामले इस बात की भयावह याद दिलाते हैं कि आरटीआई कार्यकर्यर्ताओं को कितने ख़तरों का सामना करना पड़ता है। अनेक कार्यकर्यर्ता और नागरिक जो आरटीआई का उपयोग करते हैं, उन्हें उत्पीड़न, धमकियों और हमलों का शिकार होना पड़ा है। इससे लोगों के भीतर भय का माहौल बना है और नागरिक आरटीआई का निर्भयता से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
● व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट पारित हुआ, पर लागू नहीं हुआ
व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम, किसने पारित किया जा चुका है, अब तक लागू नहीं हुआ है और इसके नियम अधिसूचित नहीं किए गए हैं। यह विधेयक यूपीए सरकार द्वारा पेश किया गया था और संसद के दोनों सदनों से पारित भी हुआ था, लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल (2014 के बाद) में न तो काननू लागू किया गया और न ही नियम बनाए गए।
सुरक्षात्मक तंत्र के अभाव में प्रशासनिक अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्यक्ति धमकियों, उत्पीड़न और हिसकं हमलों के प्रति असुरक्षित बने हुए हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना था जो भ्रष्टाचार या गलत कार्यों का खुलासा करते हैं, लेकिन इसके लागून होने से ये सभी सुरक्षा उपाय अर्थहीन हो गए हैं। अमेरिका या यूरोपीय संघ जैसै लोकतंत्रों ने माना है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा आवश्यक है, जबकि भारत एक ऐसा अपवाद है जहाँ काननू होते हुए भी सरकार ने इसे लागू करने से परहेज़ किया है। सूचना का अधिकार अधिनियम की 20वीं वर्षगांठ पर हम दोहराते हैं कि सूचना का अधिकार केवल एक कानून नहीं, बल्कि भारत के नागरिकों के संवैधानिक और सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस निम्नलिखित माँगें रखती है
1. 2019 के संशोधनों को निरस्त कर सूचना आयोगों की स्वतंत्रता बहाल की जाए और आयुक्तों के लिए 5 वर्ष का निश्चित कार्यकाल व सुरक्षित सेवा शर्तें सुनिश्चित की जाएँ।
2. डीपीडीपी अधिनियम की उन धाराओं(धारा 44(3)) की समीक्षा व संशोधन किया जाए जो आरटीआई के जनहित उद्देश्य को कमज़ोर करती हैं।
3. केंद्र और राज्य आयोगों में सभी भर्तियां पारदर्शी व समयबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से तुरंत भरी जाएँ।
4. आयोगों के लिए कार्य निष्पादन मानक तय किए जाएँ और निपटान दर की सार्वजर्वनिक रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
5. व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू कर आरटीआई उपयोगकर्ताओं और व्हिसल ब्लोअर को सशक्त सुरक्षा प्रदान की जाए।
6. आयोगों में विविधता सुनिश्चित की जाए पत्रकारों, कार्यकर्ताओं,ं शिक्षाविदों और महिला प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
7. आरटीआई आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्णर्ण लोकतांत्रिक सुधारों में से एक है। इसकी कमज़ोरी, लोकतंत्र की कमज़ोरी है। आरटीआई की 20वीं वर्षगांठ पर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस कानून की सुरक्षा और सशक्तिकरण के अपने संकल्प को दोहराया है, ताकि हर नागरिक निडर होकर सवाल पूछ सके और समयबद्ध व प्रभावी उत्तर प्राप्त कर सके।
पत्रकार वार्ता मंे प्रदेश महासचिव सुनील शर्मा पूर्व जीडीए उपाध्यक्ष एवं जिला संगठन प्रभारी महाराज सिंह पटेल, प्रवक्ता राम पांडे, पीयूष जेन,, आदि उपस्थित थे।
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