Pandey Pradeep

Pandey Pradeep खुशमिजाजी मशहूर हैं हमारी,सदगी भी कमाल हैं,
हम शरारती भी इंतेहा के हैं और तन्हा भी बेमिसाल हैं....!.

21/09/2025

भारत मे दंगो का इतिहास उतना ही पुराना है जितना भारत मे इस्लाम। आजादी से पहले भी हिन्दू मुसलमान के बीच दरार थी, आजादी के बाद भी थी। 2014 से पहले भी थी, 2014 के बाद भी है। पहले शोभायात्राएं नहीं निकलती थी, तब पत्थरबाजी नहीं होती थी। अब शोभायात्राएं निकलती है तो पत्थरबाजी होती है। 2014 से पहले भी मस्जिद बने हिन्दू मंदिरों के केस अदालतों में दायर होते थे, 2014 के बाद भी दायर हो रहे हैं।

2014 से पहले मुसलमान रोजे रखते थे, नमाज पढ़ते थे, सड़को पर मुहर्रम के जुलूस निकाले जाते थे, ताजिया निकलते थे, 2014 के बाद भी निकल रहे हैं। 2014 से पहले भी मुसलमान बड़े भाई का कुर्ता और छोटे भाई का पजामा पहनते थे, 2014 के बाद भी पहन रहे हैं। 2014 से पहले भी अपराधी, माफिया होते थे, 2014 के बाद भी है। बस पहले वो चुनाव जीत कर नेता बन जाते थे, अब गाँव मे गोली पड़ जाती है।

तो फिर बदला क्या है 2014 के बाद? 2014 के बाद बस सड़कों पर नमाज नही होने दी जा रही है, बाकी सारे मजहबी कार्य करने की स्वतंत्रता वैसी ही है जैसी दूसरी सरकारों में थी। अब जबरन धर्मांतरण नही करने दिया जा रहा है हिंदुओं का। अब अवैध मस्जिदें नही बन पा रही हैं, LJ पर मुकदमा दर्ज हो जा रहा है। अब 2014 के बाद आया ये परिवर्तन कट्टर मुसलमानों के लिए चिंता की बात तो है, नो डाउट।

महंगाई बढ़ी है, लेकिन उसी अनुपात में इनकम भी बढ़ी है। आटा साढ़े चार रुपए किलो था तो दिहाड़ी साठ रुपए थी, आज आटा 40 रुपए किलो है तो दिहाड़ी 500 रुपए है। पहले सड़के नही थी, अब एक्सप्रेस वे हैं। पहले लोग खेत मैदान में हगते थे, अब शौचालय हैं। पहले एक रुपए में से 15 पैसे जनता तक पहुँचते थे, अब जनधन के जरिये डायरेक्ट ट्रांसफर है, पूरा एक रुपया मिलता है।
पहले हर होली दीवाली 'लावारिस वस्तुओं को न छुएं' की चेतावनी सुनते थे, अब नहीं सुनते।

वैश्विक स्तर पर भारत का कद बढ़ा है, अब भारत की छवि दब्बू देश की नहीं है। अब हम दुश्मन को घुस कर मारते हैं। बहुत कुछ जो 2014 से पहले बाहर से खरीदते थे, वो हम खुद बनाने लगे हैं। विकसित देशों से हम अपनी शर्तों से व्यापार करते हैं। और भी बहुत कुछ है लिखने को मगर वो फिर कभी। कुछ समस्याएं भी है, जो इन उप्लब्धियों के सामने शून्य हैं। नौकरी की समस्या सबसे बड़ी है क्योंकि नौकरी देने में भाजपा का रिकार्ड बहुत खराब है।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पुरानी सरकारों के समय सब कलक्टर बन जाते थे। पुरानी सरकारों में जमीन कब्जा करना, छोटे भ्र्ष्टाचार, वसूली, अपहरण और दो नम्बर के कामों जैसे कई छोटे मोटे व्यापार फल फूल रहे थे तो तब लोगो को नौकरी की जरूरत महसूस नही होती थी, अब होती है क्योंकि वो वाले व्यापार बन्द हो गए है। कुल मिलाकर मुसलमानों की जन्मजात समस्याओं को छोड़ दे तो देश मे कोई बहुत बडी विपत्ति नही आई 2014 के बाद से।

मुसलमान सरकार बदलना चाहते हैं, ये तो समझ आता है, कॉंग्रेसी सरकार बदलना चाहते है समझ आता है, विपक्ष समर्थक सरकार बदलना चाहते है समझ आता है, लेकिन ऐसे लोग जो खुद को राष्ट्रवादी कहते है, सेकुलर कहते है, लिबरल-बुद्धिजीवी कहते हैं, खुद को निष्पक्ष कहते हैं और किसी पार्टी के समर्थक न होने का दावा भी करते हैं वो क्यों सरकार बदलना चाहते हैं? इसका मतलब आप निष्पक्ष नही हो, राष्ट्रवादी नहीं हो, लिबरल नहीं हो, आप चम्मच हो। Accept it.

21/08/2025

Facebook पर नया था, तो बताने के लिए तमाम जीवनानुभव थे. तमाम बातें थी, तमाम किस्से थे.
हर व्यक्ति यूनिक होता है. उसके जीवनानुभव, उसका नजरिया, उसका विश्लेषण और उसकी संवेदनाएं, सब दूसरों के लिए नई होती हैं. उन्हें पढ़ने में आनंद आता है.
हम सभी चाहते हैं कि जीवन को दूसरे के नजरिए से देखें. दूसरा व्यक्ति क्या सोचता है, चीजों को किस नजरिए से देखता है, भावनाओं को कैसे अनुभूत करता है, इसके प्रति हमारी सहज जिज्ञासा होती है. इसीलिए हर नया व्यक्ति इंटरेस्टिंग और महत्वपूर्ण होता है.

मैंने नई ID तो नई बना ली, लेकिन मेरे पास नया कुछ है नहीं. सभी बातें वही हैं जिन्हें मैं दर्जनों बार दोहरा चुका हूं, बता चुका हूं. महत्वपूर्ण यह है कि मैं नया क्या सीख रहा हूं! नया क्या अनुभव कर कर रहा हूं!! और नई चीजों को देखने के प्रति मेरा नजरिया क्या है!!!

यह ID कुछ चुनिंदा मित्रों Facebook मित्रों के साथ चलेगी. इसमें कुछ नई बातें जो मैं अनुभव कर रहा हूं, वह आपके सामने रखूंगा. भीड़ ज्यादा नहीं होगी.

एक बात जान लीजिए क्रांति की कोई कीमत नहीं होती. हर व्यक्ति अपने जीवन का नायक है, हर व्यक्ति अपने जीवन का क्रांतिकारी है, हर व्यक्ति अपनी फिल्म का हीरो है.
तो भरोसा रखिए कि यहां क्रांति नहीं होगी, यहां परिवर्तन की बात नहीं होगी, यहां राजनीति नहीं होगी.
मैं जानता हूं कि आपको, यानि इन चुने हुए मित्रों को, मुझ से प्रेम है. इसलिए यहां बात मेरी होगी, मेरी जीवन दृष्टि की होगी, मेरे जीवन में होने वाली उन चीजों के बारे में होगी, जिनके बारे में समय नहीं मिला और मैं आपको बता नहीं पाया.

धन्यवाद.

14/08/2025
15/06/2025

नेहा सिंह राठौर जी से मुलाकात हुई....
उन्होंने पूछा....,"फैन हो?"

मैंने कहा...."नहीं, हेटर हूँ....."

तो कहती हैं...."वो तो मेरे विचारों को सुनकर आप हेटर बने होंगे...
वैसे मैं एक गायक भी हूँ.... मेरी गायिकी भी देखिये कभी...."

मैंने उन्हें बताया...,"आपकी गायिकी देखने के बाद ही हेटर बना हूँ....
वरना आपके विचारों से मुझे लांर कोई मतलब है...."

10/06/2025

फेसबुकिया पत्रकार सोनम की पल पल की ख़बर देकर भले ही टीवी न्यूज चैनलों की बराबरी करने का प्रयास कर लें लेकिन उसके जेल जाने के बाद उसके खाने पीने की ख़बर सिर्फ़ टीवी न्यूज चैनल वाले ही दे पाएंगे ।

10/06/2025

मैने जिंदगी में सब कुछ देख लिया...
लेकिन ठ वाला ठठेरा और ष वाली षटकोण नहीं देखी... 😂😂

28/04/2025

Neha Singh Rathore जी से मुलाकात हुई....
उन्होंने पूछा....,"फैन हो?"

मैंने कहा...."नहीं, हेटर हूँ....."

तो कहती हैं...."वो तो मेरे विचारों को सुनकर आप हेटर बने होंगे...
वैसे मैं एक गायक भी हूँ.... मेरी गायिकी भी देखिये कभी...."

मैंने उन्हें बताया...,"आपकी गायिकी देखने के बाद ही हेटर बना हूँ....
वरना आपके विचारों से मुझे घंटा कोई मतलब है...."

कुछ अमीर लोग झूठ मूठ में सब्जियों की महंगाई का रोना रो रहे है।अखबार से आलू,प्याज टमाटर के रेट उठाकर लोगो के बीच भ्रम फैल...
11/10/2024

कुछ अमीर लोग झूठ मूठ में सब्जियों की महंगाई का रोना रो रहे है।
अखबार से आलू,प्याज टमाटर के रेट उठाकर लोगो के बीच भ्रम फैला रहे कि प्याज120 रुपए, टमाटर 100 रुपए और आलू 50 रुपए किलो बिक रहा जबकि हमारे यहां सब्जी मंडी(पेठिया) में टमाटर 12 रुपए, प्याज 10 रुपए और आलू 5 रुपए का 100 ग्राम मिल रहा है।
~🐈‍⬛

30/09/2024

Science और technology का समाज के साथ ही साहित्य और काव्य पर भी गहरा असर पड़ता है।
पाकीज़ा 1972 में रिलीज हुई थी लेकिन बनना शुरू हुई थी 1959 में।
उसमें एक गाना था - चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो।
ऐसा लगता है कि गीतकार चांद को कोई आभासी या गैसीय पिंड समझता रहा है।
सोच रहा है चांद के बीच से घुसकर महबूबा को पार करा दूंगा। जैसे चांद कोई रुई या गैस का बना हो!

ज़ख्मी रिलीज हुई थी 1975 में।
तबतक अमेरिका नील आर्मस्ट्रांग को चांद पर उतार चुका था। यहां गीतकार कहता है - आओ तुम्हे चांद पर ले जाएं... छोटा सा एक घर बनाएं!
कवि की कल्पना में अब चांद एक ठोस पिंड के रूप में स्टैबलिश हो चुका है।
अब वह प्रेमी युगल को चांद पर प्रॉपर्टी बनाने की तैयारी करता दिखा रहा है।

26/09/2024

ोरंजन

15/09/2024

हे प्रभु, मुझे इतना पढ़ा-लिखा मत बनाना कि अकेले में भी छींक आने पर Sorry बोलने लगूं।
😂😂😂😂😂
#भांति_भांति_के_लोग

15/09/2024


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