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जाड़ों की अरड़ पट्ट को दूर करने के लिए इसके इंतज़ाम बारिश का मौसम खतम होते ही शुरू कर दिए जाते. कक्का जी वन विभाग में रे...
02/05/2025

जाड़ों की अरड़ पट्ट को दूर करने के लिए इसके इंतज़ाम बारिश का मौसम खतम होते ही शुरू कर दिए जाते. कक्का जी वन विभाग में रेंजर थे. लकड़ी कोयले की इफरात थी. रसोई के बगल में भंडार कक्ष भी था जिसमें दो अलमारियों की तो मुझे पक्की याद है. भीतर के कमरों से बाहर खूब सारी कांच लगी खिड़कियों से घिरा बरामदा था जिसमें दो बड़े कमरे और फिर बैठक थी. इसके बाहर निकल जाओ तो बाहर आँगन था खूब लम्बा पर उसकी चौड़ाई कुछ कम थी. उसके नीचे करीने से बनी क्यारियां थीं. उन पर निराई गुड़ाई करते दीनामणि सगटा जी मुझे बड़ा अच्छा मानते थे. अपनी खोद खाद करते हुए खूब बात करते. काथ सुनाते और पहाड़ी गाने भी गाने लग जाते. बताते कि पेड़ भी सब सुनते हैं चिताते हैं. बाहर बहुत सारे वृक्ष थे. कभी उनमें फूल आते. आड़ू और नाशपाती भी लगती. पत्तियाँ भी झड़ती रहती उन्हें किनारे बटोर हरलाल रोज उनमें आग लगाता. झिकड़े-मिकड़े बटोर उनमें आग लगाने की बप्पाजी को भी आदत थी. हम भी इस धम-धुकुड़ी से बड़े खुश होते और बदन तताते. जाड़ों में तो ऐसे खतड़ुए कितनी बार जला दिए जाते. असल खतडुआ घर के ऊपर के फील्ड में मनता. तब तक इन पेड़ों पर खूब ककड़ियाँ भी लदी दिखतीं.

सत्तरह का पहाड़ा भी वो हनुमान चालीसा की तरह खट्ट सुना देता था जबकि मुझे वो याद ही न होता था.पप्पू के साथ Memoir of DSB by Prof. Mrigesh Pa...

विवाह के बाद हेमवंती स्वास्थ्य की दुसवारियों से जुझते हुए दोनों गृहस्थ धर्म और सप्तपदी के साथ फेरों की मर्यादा निभाते है...
01/05/2025

विवाह के बाद हेमवंती स्वास्थ्य की दुसवारियों से जुझते हुए दोनों गृहस्थ धर्म और सप्तपदी के साथ फेरों की मर्यादा निभाते हैं. हेमवंती और उत्तम एक दूसरे के प्रति समर्पित हैं रील लाइफ में भी और रियल लाइफ में भी. जिन्दगी जटिल जरूर है पर दोनों का एक-दूसरे के प्रति समर्पण इसे चलने लायक भी बना दे रहा है.

फिल्म का कथानक और फिल्मांकन का सामंजस्य इतना सटीक बना है की वो पूरे सवा घंटे दर्शकों को बांधे रखने Hemvanti Short Film Review

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. सेना में रहते हुए उन...
10/04/2025

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. सेना में रहते हुए उन्होंने अनुशासन और खेल दोनों को आत्मसात किया. बॉस्केटबॉल, फुटबॉल जैसे खेलों से परिचय हुआ, लेकिन उनकी असली रुचि बास्केटबॉल में जगी. अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर उन्होंने जल्द ही सेना की टीम में जगह बना ली. सेना से शुरू हुआ यह सफ़र भारतीय बास्केटबाल टीम के कप्तान बनने के बाद भी नहीं रूका. सेना से लौटने के बाद पहले नैनीताल और फिर अपने जिले पिथौरागढ़ में हरि दत्त कापड़ी युवाओं के बीच ‘कापड़ी सर’ नाम से ख़ूब मशहूर रहे.

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. Obituary to Hari Datt Kapri

आखिर शाम ढलने के बाद ही वह अपने गाँव पहुँच सकी. अन्दर दाखिल होते ही उसने देखा माता-पिता दरवाजे की ओर टकटकी लगाये बैठे है...
09/04/2025

आखिर शाम ढलने के बाद ही वह अपने गाँव पहुँच सकी. अन्दर दाखिल होते ही उसने देखा माता-पिता दरवाजे की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं. पलंग पर लेटी बीमार माँ की आंखें तो द्वार पर टंगी ही हैं उसके सिरहाने बैठे पिता भी जैसे उसी की राह तक रहे हों. दोनों बहुत कमजोर और असक्त दिखाई दे रहे थे. बेटी आयी तो थी अपने दिल का बोझ उतरने लेकिन माता-पिता की हालत देख वह अपना दुःख भूल गयी. उसने माता-पिता की कुशल जानने के लिए सवालों की झड़ी लगा दी.

लाल बुरांश, उत्तराखण्ड की लोककथा है Laal Buransh Uttarakhand Folklore यह मायके में अपने माता-पिता से भेंट न कर सकने वाली एक बेटी की दुःख भ...

बसंत के शुरुआत से ही बुरांश के पेड़ पर मध्यम आकार के लाल-सुर्ख बुरांश खिलने शुरू हो जाते हैं. इसके भीतरी हिस्से में छोटे-...
09/04/2025

बसंत के शुरुआत से ही बुरांश के पेड़ पर मध्यम आकार के लाल-सुर्ख बुरांश खिलने शुरू हो जाते हैं. इसके भीतरी हिस्से में छोटे-छोटे काले धब्बे इसकी खूबसूरती में और ज्यादा निखार ले आते हैं. बुरांश के फूल लाल रंग के अलावा गुलाबी और सफ़ेद रंग के भी हुआ करते हैं. यह भी देखा जा सकता है कि अलग-अलग ऊँचाइयों पर बुरांश लाल से बैंगनी, सफ़ेद रंग तक के बीच की कई रंगतें लिया होता है. 1500 मीटर से लेकर ट्री लाइन तक पनपने वाले इसके पेड़ में इस बदली हुई रंगत को साफ़ देखा जा सकता है. यह अम्लीय मिट्टी में छायादार स्थानों पर पनपने वाला पेड़ है. इसकी मोटी मध्यम आकार की चमकीली पत्तियां गाढ़े हरे रंग की होती हैं. पत्तियों की पिछली सतह चांदी के रंग की होती हैं जिनमें भूरे रोयें चिपके रहते हैं.

बुरांश उत्तराखण्ड का राज्य पुष्प है Uttarakhand State Flower Buransh यह हिमाचल और नागालैंड का राज्य पुष्प होने के साथ ही नेपाल का राष्.....

आजादी से पहले ब्रिटिश शासकों के बच्चों के पढ़ने का एक स्कूल था वेलेजली गर्ल्स स्कूल. मालदार दान सिंह बिष्ट पहाड़ में उच्...
07/04/2025

आजादी से पहले ब्रिटिश शासकों के बच्चों के पढ़ने का एक स्कूल था वेलेजली गर्ल्स स्कूल. मालदार दान सिंह बिष्ट पहाड़ में उच्च शिक्षा का संस्थान स्थापित करना चाहते थे. 24 अक्टूबर 1949 से वह अपनी माता के नाम से ‘श्रीमती सरस्वती बिष्ट छात्रवृति ट्रस्ट’ पिथौरागढ़ में बना चुके थे. सोर घाटी की सौन पट्टी के बीच कमलेश्वर में आठ सौ नाली भूमि का दान कर उन्होंने अपने दादा राय सिंह बिष्ट के नाम का हाईस्कूल भी बनवाया. अपने पिता देव सिंह के घी व ठेकेदारी का काम देखते दान सिंह बारह वर्ष की आयु में ही लकड़ी का व्यापार करने वाले ब्रिटिश व्यापारी के साथ म्यांमार (बर्मा) चले गए थे. व्यापार में उनकी सूझबूझ से बाद में वह ‘टिम्बर किंग ऑफ़ इंडिया’ कहलाए. चौकोड़ी और बेरीनाग में उन्होंने जेम्स जॉर्ज स्टीवैन्स की चाय कंपनी खरीदी और उसका कुशल प्रबंध कर पहाड़ की चाय को विश्वप्रसिद्ध कर दिया. देखते ही देखते उनकी कंपनी ‘डी. एस. बिष्ट एंड संस’ देश में व्यापार का बेहतरीन प्रतिष्ठान बन गया जिसने लोक कल्याण के लिए चिकित्सालय, खेल के मैदान और विद्यालयों में भी भारी विनियोग किया.

जो है उसे देखना है और उससे पार चले जाना है.बस इस सिलसिले में खुशी मिलनी चाहिये. क्यों हरीश बाबू? DSB Memoir by Prof. Mrigesh Pande

आजादी से पहले ब्रिटिश शासकों के बच्चों के पढ़ने का एक स्कूल था वेलेजली गर्ल्स स्कूल. मालदार दान सिंह बिष्ट पहाड़ में उच्...
07/04/2025

आजादी से पहले ब्रिटिश शासकों के बच्चों के पढ़ने का एक स्कूल था वेलेजली गर्ल्स स्कूल. मालदार दान सिंह बिष्ट पहाड़ में उच्च शिक्षा का संस्थान स्थापित करना चाहते थे. 24 अक्टूबर 1949 से वह अपनी माता के नाम से ‘श्रीमती सरस्वती बिष्ट छात्रवृति ट्रस्ट’ पिथौरागढ़ में बना चुके थे. सोर घाटी की सौन पट्टी के बीच कमलेश्वर में आठ सौ नाली भूमि का दान कर उन्होंने अपने दादा राय सिंह बिष्ट के नाम का हाईस्कूल भी बनवाया. अपने पिता देव सिंह के घी व ठेकेदारी का काम देखते दान सिंह बारह वर्ष की आयु में ही लकड़ी का व्यापार करने वाले ब्रिटिश व्यापारी के साथ म्यांमार (बर्मा) चले गए थे. व्यापार में उनकी सूझबूझ से बाद में वह ‘टिम्बर किंग ऑफ़ इंडिया’ कहलाए. चौकोड़ी और बेरीनाग में उन्होंने जेम्स जॉर्ज स्टीवैन्स की चाय कंपनी खरीदी और उसका कुशल प्रबंध कर पहाड़ की चाय को विश्वप्रसिद्ध कर दिया. देखते ही देखते उनकी कंपनी ‘डी. एस. बिष्ट एंड संस’ देश में व्यापार का बेहतरीन प्रतिष्ठान बन गया जिसने लोक कल्याण के लिए चिकित्सालय, खेल के मैदान और विद्यालयों में भी भारी विनियोग किया.

जो है उसे देखना है और उससे पार चले जाना है.बस इस सिलसिले में खुशी मिलनी चाहिये. क्यों हरीश बाबू? DSB Memoir by Prof. Mrigesh Pande

उत्तराखंड में कोट की माई भ्रामरी आदि शक्ति नंदा का ही एक रूप है. कत्यूर घाटी क्षेत्र में मां शक्ति भ्रामरी विशेष रूप से ...
06/04/2025

उत्तराखंड में कोट की माई भ्रामरी आदि शक्ति नंदा का ही एक रूप है. कत्यूर घाटी क्षेत्र में मां शक्ति भ्रामरी विशेष रूप से पूजी जाती है. कोट की माई भ्रामरी की जागर में एक कथा बतायी जाती है कि क्यों उन्हें भ्रामरी देवी कहा जाता है.

कत्यूर घाटी क्षेत्र में मां शक्ति भ्रामरी विशेष रूप से पूजी जाती है. कोट की माई भ्रामरी देवी को भ्रामरी क्यों कहते ....

हिमाचल प्रदेश की सुरम्य पहाड़ियों में कांगड़ा जिले में स्थित है ज्वालामुखी का पवित्र तीर्थ जहां पठानकोट से लगभग तीन घंटे...
06/04/2025

हिमाचल प्रदेश की सुरम्य पहाड़ियों में कांगड़ा जिले में स्थित है ज्वालामुखी का पवित्र तीर्थ जहां पठानकोट से लगभग तीन घंटे और कांगड़ा से दो घंटे की बस यात्रा कर पहुंचा जाता है. पंजाब से जिला होशियार पुर से चल गगरेट भरवाई तथा चिंता पूर्णी होते गोपीपुरा डेरा नामक स्थान पड़ता है जिससे तीन घंटे की दूरी पर ज्वालामुखी देवी पहुंचा जाता है. ज्वालामुखी तीर्थ में ज्योति दर्शन की महिमा है.

ज्वालामुखी में किये हवन-पूजन होम का सर्वाधिक महत्व है. अन्य स्थानों में लक्षाहुति होम करने से जो फल प्राप्त Jwala Mai Mandir H...

साल में मुश्किल से एक दो बार खेत जुताई का मौका होता इसलिए न अपने हल-बैल होते और न कोई स्थाई हलिया. जब जरूरत पड़ती गांव क...
05/04/2025

साल में मुश्किल से एक दो बार खेत जुताई का मौका होता इसलिए न अपने हल-बैल होते और न कोई स्थाई हलिया. जब जरूरत पड़ती गांव के ही किसी व्यक्ति को हल जोतने के लिए मना लिया जाता. यह काम भी कोई आसान नहीं था. कई मिन्नतों के बाद कोई हल जोतेने को राजी होता. ऐसा व्यक्ति जो स्थाई हलिया नहीं होता, उसे हलिया कहना भी एक तरह से वह अपना अपमान समझता.

जिनका कोई तर्कसंगत उत्तर हमारे पास नहीं है फिर भी खुद को श्रेष्ठ साबित करने की ललक हमें इन परम्पराओं को Old Tradition in Kumaon

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो जाते हैं. यद्यपि वे पेशेवर मछुआरे नही...
05/04/2025

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो जाते हैं. यद्यपि वे पेशेवर मछुआरे नहीं होते बल्कि शौकिया तथा शाम की सब्जी के जुगाड़ में मछली पकड़ने की तरह-तरह की जुगत करते हैं. इनमें वे लोग भी शामिल होते हैं, जो बाजार से मछली खरीदकर खाने की सामथ्र्य नहीं रखते अथवा खेतों में इस समय सब्जी न होने से वैकल्पिक रूप में मछली का ’झोव’ बनाकर किसी तरह गुजर बसर कर रहे होते हैं.

गधेरे में जहां पर पानी के ठहराव से तालाब बन जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में खाव कहा जाता है, वहां मछलियां Fishing Angling in Uttarakhand

समाज में झाड़-फूंक, टोना-टोटका तथा परम्परागत अपनाये गये नुस्खे ही रोगोपचार के लिए एकमात्र विकल्प थे. जैसे छोटे बच्चों को...
05/04/2025

समाज में झाड़-फूंक, टोना-टोटका तथा परम्परागत अपनाये गये नुस्खे ही रोगोपचार के लिए एकमात्र विकल्प थे. जैसे छोटे बच्चों को जुक लगने पर राख से पेट को अभिमंत्रित करना, दांत दर्द में घुन्ते के मंत्र से झाडना, सिरदर्द, पेटदर्द अथवा गले के टांसिल में त्रिमुखी लोहे के तार (ताव्) को आंग में लाल कर दर्द वाली जगह पर डामना (गरम किये गये लाल तार से शरीर के हिस्से को दागना) आदि-आदि. इसी तरह एक उपचार विधि पहाड़ों पर काफी प्रचलित थी – लङण.

लङण उपचार विधि मुख्यरूप से टाइफाइड जैसी बीमारियों के उपचार में अमल में लायी जाती रही है. Article by Bhuwan Chandra Pant

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