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इन दिनों पहाड़ झमाझम बारिश में भीग रहे हैं. हर तरह के पेड़-पौधे अपने सबसे सुंदर हरे रंग को ओढ़े हुए हैं. बादल आसमान से उतर ...
09/08/2025

इन दिनों पहाड़ झमाझम बारिश में भीग रहे हैं. हर तरह के पेड़-पौधे अपने सबसे सुंदर हरे रंग को ओढ़े हुए हैं. बादल आसमान से उतर कर खिड़कियों के रास्ते घर में घुसे आ रहे हैं. आप छोटे-छोटे खिड़की-दरवाजों वाले एक पुराने लेकिन आरामदायक घर के अंदर बैठे छत की पटाल (स्लेट) पर लगातार पड़ रही बूंदों की टापुर-टुपुर का आनंद ले रहे हों तो इस भीगे-भीगे से मौसम में खाने का ख्याल आना स्वाभाविक ही है. खाने की शौकीन होने के कारण मेरे लिए अच्छा मौसम भी एक बढ़िया बहाना है कुछ खाने का या कम से कम खाने को याद करने का. कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है की पहाड़ी खाना इतना विविधतापूर्ण, स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के बावजूद पहाड़ से बाहर लोकप्रिय होने में कामयाब क्यों नहीं रहा? शायद रंगरूप और नामों का खांटी भदेस होना इसकी एक वजह रही हो.

पहाड़ी खानों में भट्ट की चुड़कानी, जंबू, गन्दरायणी और धुंगार जैसे मसालों से छौंके आलू के गुटके, कापा, दालें पीस कर बना.....

द कुमाऊँनी वॉइसस्थानीय प्रतिभा का मंच, कुमाऊँ की आवाज़।द कुमाऊँनी वॉइस उत्तराखंड के दिल से जन्मी एक पहल है, जिसका उद्देश...
09/08/2025

द कुमाऊँनी वॉइस

स्थानीय प्रतिभा का मंच, कुमाऊँ की आवाज़।

द कुमाऊँनी वॉइस उत्तराखंड के दिल से जन्मी एक पहल है, जिसका उद्देश्य कुमाऊँ क्षेत्र की छुपी हुई प्रतिभाओं को मंच देना है। इसके संस्थापक, जो खुद उत्तराखंड के हैं और IIT व IIM के पूर्व छात्र हैं, अपने पेशेवर अनुभव और स्थानीय जड़ों को जोड़कर इस मंच को आगे बढ़ा रहे हैं।

हमारा विचार सरल है — कुमाऊँ के कस्बों और गाँवों में ओपन माइक का आयोजन करना, जहाँ कोई भी व्यक्ति, किसी भी उम्र का, अपनी कला प्रस्तुत कर सके। चाहे वह कविता हो, रैप, स्टैंड-अप कॉमेडी, गायन, कहानी सुनाना या प्रेरणादायक भाषण — यहाँ हर आवाज़ का स्वागत है।
हमारे उद्देश्य:

• स्थानीय प्रतिभा को बढ़ावा देना – कलाकारों को अपने ही क्षेत्र में पहचान और अवसर दिलाना।
• संस्कृति को संजोना – कुमाऊँ की भाषा, बोली और कहानियों को मंच पर लाना।
• समुदाय को जोड़ना – कला और रचनात्मकता के माध्यम से लोगों को करीब लाना।
द कुमाऊँनी वॉइस मानता है कि हर आवाज़ में एक कहानी है, और हर कहानी में किसी को प्रेरित करने की ताकत है। हम बस वह मंच दे रहे हैं, ताकि पहाड़ों की आवाज़ दूर-दूर तक गूंज सके।
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विजन (Vision)
कुमाऊँ को एक ऐसा रचनात्मक केंद्र बनाना, जहाँ स्थानीय आवाज़ें न केवल अपने क्षेत्र में बल्कि पूरे देश और दुनिया में पहचानी जाएँ।
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मिशन (Mission)
• कुमाऊँ में सभी तरह की कला के लिए समावेशी मंच तैयार करना।
• नियमित ओपन माइक आयोजनों के माध्यम से नई प्रतिभाओं को निखारना।
• स्थानीय संस्कृति, बोली और परंपरा को बढ़ावा देना।
• हर उम्र के कलाकारों को अपनी कहानियाँ और कला साझा करने का अवसर देना।


The Kumaoni Voice

Unleashing Local Talent. Celebrating Kumaoun.

The Kumaoni Voice is a platform born in the heart of Uttarakhand, with a mission to spotlight the rich, diverse, and untapped talent of the Kumaoun region. Founded by proud sons and daughters of the soil—alumni of IIT and IIM—this startup blends world-class vision with deep-rooted cultural connection.
Our idea is simple yet powerful: organize open mic events across nearby towns and villages of Kumaoun, where anyone—regardless of age—can take the stage and share their art. From poetry and rap to stand-up comedy, singing, storytelling, and motivational talks, The Kumaoni Voice welcomes all forms of self-expression.
By creating these stages, we aim to:
• Promote Local Talent – Give artists a platform to be seen and heard in their own community.
• Build Cultural Pride – Showcase the unique voices, dialects, and stories of Kumaoun.
• Foster Connection – Bring together diverse audiences and performers in celebration of creativity.
With no age limit and no barriers, The Kumaoni Voice is about breaking stereotypes, nurturing confidence, and giving the people of Kumaoun the spotlight they deserve. We believe that every hidden talent is a story waiting to inspire—and we’re here to make sure it’s told.
The Kumaoni Voice — Because every voice from the mountains deserves to echo far and wide.

Vision & Mission
Vision:
To make Kumaoun a recognized hub of grassroots creativity, where local voices inspire global audiences.
Mission:
• Create inclusive platforms for all forms of self-expression in Kumaoun.
• Nurture emerging talent through regular open mic events.
• Build cultural pride and unity within local communities.
• Empower artists of all ages to share their stories and inspire others.

जिम कॉर्बेट की उससे पहली मुलाक़ात इत्तफाक से हुई. कड़ी सर्दी वाले एक दिन जिम और उनकी एक दोस्त किसी परिचित के घर गए हुए थ...
25/07/2025

जिम कॉर्बेट की उससे पहली मुलाक़ात इत्तफाक से हुई. कड़ी सर्दी वाले एक दिन जिम और उनकी एक दोस्त किसी परिचित के घर गए हुए थे जिसकी पालतू कुतिया ने तीन माह पहले सात बच्चे जने थे. जिम की दोस्त को दिखाने के लिए उस ढंकी हुई मैली सी टोकरी को उघाड़ा गया जिसमें ये बच्चे सोये हुए थे.

उन सात बच्चों में से जो सबसे कमज़ोर था वह किसी तरह टोकरी से बाहर निकल आया और जिम के पैरों के बीच में गुड़ीमुड़ी होकर लेट गया. उसे कांपता हुआ देख जिम ने उसे उठा लिया और अपने कोट के भीतर रख लिया. जिम की इस सहानुभूति का बदला बच्चे ने उनका मुंह चाट कर दिया. इस मोहब्बत के एवज में जिम ने उसकी देह से निकल रही दुर्गन्ध को अनदेखा किया.

जिम के बचपन में उनके घर इसी नाम का एक कुत्ता हुआ करता था जिसने एक दफा छह साल के जिम और चार साल के Corbett's faithful hunting companion Robin

विरोध स्वरूप लोगों ने इलाके का दौरा कर रहे अफसरों को ईंधन, घास और दूध की आपूर्ति करने पर रोक लगा दी. कालाढूंगी में न तो ...
25/07/2025

विरोध स्वरूप लोगों ने इलाके का दौरा कर रहे अफसरों को ईंधन, घास और दूध की आपूर्ति करने पर रोक लगा दी. कालाढूंगी में न तो कोई कोर्ट-कचहरी थी न कोई स्कूल जिनका बहिष्कार किया जा सकता. हालांकि वहां किसी तरह का अंदोलन तो नहीं था अलबत्ता शोर खूब होता था. मैंने पाया कि बिलकुल सादे अपढ़ ग्रामीण भी राज के विरुद्ध थे. मुझे इस असंतोष का स्वाद चखने को मिला जब मुझे बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू के एक सदस्य मिस्टर डार्लिंग के दौरे के लिए व्यवस्थाएं करनी पडीं. उनके कैम्प के लिए हमेशा की तरह दिए जाने वाले पांच रुपयों के बदले मुझे जलाने की लकड़ी और घास के लिए पच्चीस रुपये खर्च करने पड़े. इतना ही खर्च अगले कैम्प यानी कोटाबाग में भी हुआ. मैंने दस रुपये का बिल बनाकर भेजा जिसे पास कर दिया गया. मुझे लगा कि अगर मैंने अधिक पैसा माँगा तो मुझे दुरुपयोग का दोषी पाया जाएगा. इस बात पर कोई भी याकें अन्हीन नहीं करता कि मैंने पचास रूपये खर्च किये थे. कुछ दिनों के बाद डिप्टी कमिश्नर मिस्टर ममफोर्ड निरीक्षण पर कालाढूँगी आये और उन्होंने मुझसे मिस्टर डार्लिंग के दौरे की बाबत पूछा. मैंने बताया कि वे शिकार तो कुछ नहीं कर सके अलबत्ता वे अपनी सेवा से बहुत संतुष्ट थे.

गढ़वाल मूल के गोविन्द राम काला के ब्रिटिश काल के अनुभव (Memoirs of British Raj) उस समय की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को समझने में मद.....

एक अच्छी सी दूरबीन लेकर आप मेरे साथ चलिये चीना पहाड़ी की चोटी पर. आपको इस जगह से नैनीताल के आसपास की जगह ऐसी दिखेंगी जैसे...
25/07/2025

एक अच्छी सी दूरबीन लेकर आप मेरे साथ चलिये चीना पहाड़ी की चोटी पर. आपको इस जगह से नैनीताल के आसपास की जगह ऐसी दिखेंगी जैसे कि आप किसी उड़ते हुए परिन्दे की नजर से इसे देख रहे हों. ये सड़क बिल्कुल खड़ी चड़ाई वाली है पर यदि आप चिड़ियां, पेड़ों और फूलों का शौक रखते हैं तो ये तीन मील की चढ़ाई आपको उबाऊ नहीं लगेगी. यदि ऊपर पहुंच कर आप भी त्रिऋषी की तरह प्यासे हो जायें तो मैं आपको स्फिटिक पत्थर की तरह साफ और शीतल पानी का सोता दिखाऊंगा जिसमें आप अपनी प्यास बुझा सकते हैं. थोड़ा आराम करने और अपना खाना खा लेने के बाद हम उत्तर दिशा की ओर मुड़ते हैं. यहां से नीचे देखने पर जो घने पेड़ों वाली घाटी दिखती है वह कोसी नदी तक फैली है. पहाड़ियों की चोटियां नदी के साथ चलती हैं जिन में कई गांव बसे हैं. इन्हीं पहाड़ों की एक चोटी में अल्मोड़ा शहर है और तो दूसरी पर रानीखेत की छावनी. इन चोटियों के पीछे और भी चोटियां हैं जिन में सबसे ऊंची चोटी डूंगर बुकाल है लेकिन 14200 फीट ऊंची है ये पहाड़ी भी हिमालय पर्वत के सामने बौनी लगने लगती है. यदि कौवे की उड़ने के तरीके से देखें तो आप के उत्तर में 60 मील दूर त्रिशूल है. 23 हजार 406 फीट ऊंची चोटी के पूर्व और पश्चिम में बर्फ के पहाड़ों की सैकड़ों मील लम्बी अनगिनत लकीरें हैं. त्रिशूल के पश्चिम में जिस जगह से बर्फ दिखनी बंद हो जाती है वहां सबसे आगे गंगोत्री के पहाड़ हैं और इसके ऊपर केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे पवित्र स्थल हैं और साथ ही स्मिथ की वजह से मशहूर माउंट कामेट पर्वत भी है.

चीना पहाड़ी पर जिस जगह आप बैठे हैं वहाँ से कालाढूंगी तक की पहाड़ियों में साल के घने जंगल हैं. Jim Corbett My India on Nainital Hindi Translation

मेरे साथ सामान ढोने के लिए कुल 6 लोग थे. मैंने देखा कि सामान की 5 पोटलियां बांधी जा रही थीं और बाला सिंह कंधे और सर तक क...
25/07/2025

मेरे साथ सामान ढोने के लिए कुल 6 लोग थे. मैंने देखा कि सामान की 5 पोटलियां बांधी जा रही थीं और बाला सिंह कंधे और सर तक कम्बल ढंके अलाव के पास ही अलग बैठा था. नाश्ता करने के बाद मैं बाला सिंह के पास गया. मैंने पाया कि सभी आदमियों ने काम करना बंद कर दिया है और वे मुझे गौर से देख रहे हैं. बाला सिंह ने मुझे आते देखकर भी मेरा अभिवादन करने की कोशिश नहीं की जो कतई स्वाभाविक नहीं था. मेरे सभी सवालों का उसने सिर्फ यही जवाब दिया कि वह बीमार नहीं है. उस दिन 2 मील की यह यात्रा हमने ख़ामोशी से पूरी की. इस दौरान बाला सिंह सबसे पीछे इस तरह चलता रहा जैसे वह नींद में या फिर नशे में हो.

जिम कॉर्बेट के किताब ‘द टैम्पल टाइगर एंड मोर मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊँ’ का एक अंश... The Temple Tiger and More Man-eaters of Kumaon jim corbett

जिम कॉर्बेट के शिकार के कई किस्से किंवदंती बन चुके हैं. पवलगढ़ टाइगर की बात हो या चौगरथ शेरनी की, कई कुख्यात आदमखोर बाघ-...
25/07/2025

जिम कॉर्बेट के शिकार के कई किस्से किंवदंती बन चुके हैं. पवलगढ़ टाइगर की बात हो या चौगरथ शेरनी की, कई कुख्यात आदमखोर बाघ-बाघिनों के शिकार का श्रेय कॉर्बेट के खाते में गया और शिकारी के रूप में उनकी कीर्ति की वजह बना. कुछ किताबों में इस तरह का ज़िक्र मिलता है कि कॉर्बेट एक या दो सहयोगियों और एक बंदूक के साथ जंगल में घुस जाते थे फिर आदमखोर के शिकार के लिए लंबा इंतज़ार करते थे. कई सहयोगी और स्थानीय लोग उनके इस जोखिम के कायल हुए बगैर नहीं रह पाते थे. यह भी दिलचस्प है कि कॉर्बेट अक्सर लोगों की जान बचाने के लिए शिकार करते थे और कोई रकम नहीं लेते थे. उन्हें सड़क से संसद तक धन्यवाद दिया जाता था.

शिकारी होने के साथ ही कॉर्बेट ने बाघों पर उस समय जो अध्ययन किया था, वह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी बहुत नया था. मसलन, चंपावत टाइगर के शिकार के बाद कॉर्बेट ने मुआयना कर यह जानना चा​हा कि वो शेरनी आदमखोर क्यों हो गई थी. तब उन्होंने पाया कि कुछ साल पहले किसी ने उसके मुंह में गोली मारी थी, जिसकी वजह से उसके दांत क्षत-विक्षत हो चुके थे इस वजह से वह जंगल में सामान्य रूप से जीवों का शिकार नहीं कर पा रही थी.

केन्या जाने से पहले कॉर्बेट जो बंदूक दे गए थे, वह अब भी शेर सिंह के वारिसों के पास सुरक्षित है. Edward James Corbett

नवीन जी ने राजकमल पेपरबैक्स से प्रकाशित अपने इस नए उपन्यास ‘भूतगांव’ में पहाड़ की नब्ज टटोलते हुए पलायन के कारणों और उसक...
23/07/2025

नवीन जी ने राजकमल पेपरबैक्स से प्रकाशित अपने इस नए उपन्यास ‘भूतगांव’ में पहाड़ की नब्ज टटोलते हुए पलायन के कारणों और उसकी गहन पीड़ा को बांचते हैं. पलायन के कारणों को स्पर्श करती, मन को बांधती पहाड़ की मार्मिक व्यथा-कथा कहता है यह उपन्यास. मैंने इसे पढ़ना शुरू किया और पढ़ता ही रहा. उपन्यास की पंक्ति-पंक्ति पढ़ना, पढ़ते-पढ़ते सोच में डूब जाना, वर्णित दृश्यों की मन में कल्पना करना और फिर नींद में वही सब कुछ किसी फिल्म की तरह देखना वक्त लेता ही है. इसका एक अंश मैं पहले ‘बाघैन’ कहानी के रूप में पढ़ चुका था जिसके कारण उपन्यास में पूरी कथा पढ़ने का सम्मोहन भी बना हुआ था.

पत्रकार -उपन्यासकार नवीन जोशी के उपन्यास पढ़ना, पहाड़ की नब्ज पकड़ कर शिद्दत से उसके हाल-Bhootgaon Book Review

बिमला दीदी की वापसी एक ऐसी यात्रा है जो ऊंचे पदों से नहीं, गहरे रिश्तों से जुड़ी है. यह कहानी है उन जड़ों की, जिनसे अलग ...
07/07/2025

बिमला दीदी की वापसी एक ऐसी यात्रा है जो ऊंचे पदों से नहीं, गहरे रिश्तों से जुड़ी है. यह कहानी है उन जड़ों की, जिनसे अलग होकर भी कुछ लोग कभी सचमुच अलग नहीं होते. जो जहां भी जाते हैं, अपनी मिट्टी की खुशबू साथ ले जाते हैं. और जब वो लौटते हैं, तो केवल व्यक्ति नहीं लौटते, उम्मीदें लौटती हैं, दिशा लौटती है, और सबसे बड़ी बात, एक गांव का आत्मविश्वास लौट आता है.

बिमला दीदी की तरह ही अब इन घाटियों में बसे दर्जनों गांवों के वाशिंदों से ये उम्मीद है कि, जब वो लौटेगें IPS Vimla Gunjiyal Gunji Village

जाड़ों की अरड़ पट्ट को दूर करने के लिए इसके इंतज़ाम बारिश का मौसम खतम होते ही शुरू कर दिए जाते. कक्का जी वन विभाग में रे...
02/05/2025

जाड़ों की अरड़ पट्ट को दूर करने के लिए इसके इंतज़ाम बारिश का मौसम खतम होते ही शुरू कर दिए जाते. कक्का जी वन विभाग में रेंजर थे. लकड़ी कोयले की इफरात थी. रसोई के बगल में भंडार कक्ष भी था जिसमें दो अलमारियों की तो मुझे पक्की याद है. भीतर के कमरों से बाहर खूब सारी कांच लगी खिड़कियों से घिरा बरामदा था जिसमें दो बड़े कमरे और फिर बैठक थी. इसके बाहर निकल जाओ तो बाहर आँगन था खूब लम्बा पर उसकी चौड़ाई कुछ कम थी. उसके नीचे करीने से बनी क्यारियां थीं. उन पर निराई गुड़ाई करते दीनामणि सगटा जी मुझे बड़ा अच्छा मानते थे. अपनी खोद खाद करते हुए खूब बात करते. काथ सुनाते और पहाड़ी गाने भी गाने लग जाते. बताते कि पेड़ भी सब सुनते हैं चिताते हैं. बाहर बहुत सारे वृक्ष थे. कभी उनमें फूल आते. आड़ू और नाशपाती भी लगती. पत्तियाँ भी झड़ती रहती उन्हें किनारे बटोर हरलाल रोज उनमें आग लगाता. झिकड़े-मिकड़े बटोर उनमें आग लगाने की बप्पाजी को भी आदत थी. हम भी इस धम-धुकुड़ी से बड़े खुश होते और बदन तताते. जाड़ों में तो ऐसे खतड़ुए कितनी बार जला दिए जाते. असल खतडुआ घर के ऊपर के फील्ड में मनता. तब तक इन पेड़ों पर खूब ककड़ियाँ भी लदी दिखतीं.

सत्तरह का पहाड़ा भी वो हनुमान चालीसा की तरह खट्ट सुना देता था जबकि मुझे वो याद ही न होता था.पप्पू के साथ Memoir of DSB by Prof. Mrigesh Pa...

विवाह के बाद हेमवंती स्वास्थ्य की दुसवारियों से जुझते हुए दोनों गृहस्थ धर्म और सप्तपदी के साथ फेरों की मर्यादा निभाते है...
01/05/2025

विवाह के बाद हेमवंती स्वास्थ्य की दुसवारियों से जुझते हुए दोनों गृहस्थ धर्म और सप्तपदी के साथ फेरों की मर्यादा निभाते हैं. हेमवंती और उत्तम एक दूसरे के प्रति समर्पित हैं रील लाइफ में भी और रियल लाइफ में भी. जिन्दगी जटिल जरूर है पर दोनों का एक-दूसरे के प्रति समर्पण इसे चलने लायक भी बना दे रहा है.

फिल्म का कथानक और फिल्मांकन का सामंजस्य इतना सटीक बना है की वो पूरे सवा घंटे दर्शकों को बांधे रखने Hemvanti Short Film Review

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. सेना में रहते हुए उन...
10/04/2025

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. सेना में रहते हुए उन्होंने अनुशासन और खेल दोनों को आत्मसात किया. बॉस्केटबॉल, फुटबॉल जैसे खेलों से परिचय हुआ, लेकिन उनकी असली रुचि बास्केटबॉल में जगी. अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर उन्होंने जल्द ही सेना की टीम में जगह बना ली. सेना से शुरू हुआ यह सफ़र भारतीय बास्केटबाल टीम के कप्तान बनने के बाद भी नहीं रूका. सेना से लौटने के बाद पहले नैनीताल और फिर अपने जिले पिथौरागढ़ में हरि दत्त कापड़ी युवाओं के बीच ‘कापड़ी सर’ नाम से ख़ूब मशहूर रहे.

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. Obituary to Hari Datt Kapri

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