21/08/2024
भाजपा कांग्रेस या आप हर राष्ट्रीय दल की बागी पर नजर
गैरों पे सितम अपनो पे कर्म
हांसी:
प्रदेश में मुख्य रूप से सभी 90 सीट पर लड़ने का तीन राष्ट्रीय दल दम भर रहे है, जिसमे मुख्य रूप से देश प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और सबसे तेजी से राष्ट्रीय पार्टी का तमगा हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी है
परंतु धरातल को देखे तो हर राष्ट्रीय दल में एक चीज सामान्य नजर आ रही है वह यह कि हर दल अपने नेता कार्यकर्ता को छोड़ बागियों पर नजर बनाए हुए है
बात करें हांसी की तो यहां भाजपा से विधायक विनोद भ्याना है जो दूसरी बार चुने गए है परंतु आज भी वह अपनी टिकट को लेकर आश्वस्त नहीं है और बाजारों में चर्चा है कि उनकी टिकट कट सकती है परंतु उनके अलावा कौन यह एक बड़ा प्रश्न है क्योंकि उनके कद का भाजपा में आज कोई नेता नजर भी नही आता पर यह भी सत्य है कि उनके साथ संगठन खड़ा भी नजर नहीं आता क्योंकि वह भी पूर्व कांग्रेसी ही रहे है और बीते चुनाव में अंत में आकर बाजी मार गए थे
इसके बाद बात करें कांग्रेस की जो आज दल के रूप में तो मजबूत आ रही है हरियाणा में पर जिस तरह पूरे हरियाणा में कांग्रेस की टिकट पाने को दावेदारों में होड़ मची है कहीं यही होड़ भीतरघात का कारण न बन जाए, हांसी में लगभग 44 लोगो ने कांग्रेस की टिकट के लिए आवेदन किया है जिसमे भी हाल ही पार्टी में शामिल हुए राहुल मक्कड़ का दावा मजबूत नजर आ रहा है परंतु कमाल तो यह है कि साढ़े चार साल सत्ता भोग कर अब कांग्रेस के पुराने नेताओं को क्या मजा चखा पाएंगे राहुल, पिछले चुनाव की बात करें तब भी कांग्रेस ने अपने स्थानीय नेताओं को भुला कर ओम प्रकाश पंघाल को टिकट दिया था जिसके बाद पार्टी हांसी में हाशिए पर चली गई थी, एक और बात आज भी दूसरे दलों से आए नेताओ के बजाय उनके खुद के नेता ही पार्टी के लिए मेहनत करते नजर आ रहे है चाहे बात करे सुमन शर्मा की, योगिंदर योगी या तेलु राम जांगड़ा की
अंत में बात करें अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी की तो आम आदमी पार्टी का हांसी में इतिहास बड़ा ही दयनीय रहा है पार्टी ने अब तक 2019 विधानसभा हो या 2022 नगर परिषद चुनाव, सदा बाहरी पर भरोसा किया है और हर बार मुंह की खानी पड़ी है, 2019 में मनोज राठी को महज 1400 और 2022 में यशपाल सैनी को 1050 के करीब वोट मिले, पर मजे की बात यह है कि आज भी लोगो में चर्चा यह है कि इस बार भी वह अपने नेताओं को छोड़ बाहरी पर नजर लगाए है जिससे कि संगठन में बेहद निराशा है फिलहाल शुरुवात से लगे नेताओ मे केवल सचिन जैन है जो आज भी संघर्ष के इस दौर पर पार्टी के लिए लगे हुए है, पर क्या पार्टी अपनी पुरानी गलती से सीख अपने नेता को तरजीह देगी या नए आए लोगो को
कुल मिलकर नतीजा यही है कि हर दल को अपने से ज्यादा दूसरो पर भरोसा है