21/10/2025
ये साल 1954-55 के दौरान का किस्सा है। जयपुर में ऑल इंडिया रेडियो का स्टेशन तब शुरू ही हुआ था। उन दिनों असरानी साहब स्कूल में थे। बच्चों के एक प्रोग्राम की शुरुआत होनी थी जिसके लिए दिल्ली से #ऑलइंडिया रेडियो की एक टीम #जयपुर आई थी। असरानी को भी वहां जाने का मौका मिला। असरानी साहब भी बच्चों के उस प्रोग्राम के लिए ऑडिशन देने पहुंचे थे। लेकिन दिल्ली की टीम ने #असरानी साहब को देखते ही रिजेक्ट कर दिया। और जानते हैं क्यों रिजेक्ट किया था? क्योंकि उस वक्त असरानी जी के नाखून काफी बढ़े हुए थे।
असरानी साहब को हैरत हुई। उन्हें समझ में नहीं आया कि बिना उनसे कुछ बुलवाए, बिना कुछ पढ़वाए ही उन्हें रिजेक्ट कर दिया। और वजह बता रहे हैं कि नाखून बढ़ रहे हैं। असरानी साहब से अगले दिन नाखून काटकर आने को कहा गया। घर पहुंचकर ये यही सोचते रहे कि नाखून बढ़ने की वजह से उन्हें क्यों रिजेक्ट किया गया? खैर, अगले दिन नाखून काटकर, जूतों को पॉलिश करके और स्कूल ड्रैस को बढ़िया से इस्त्री कराकर असरानी साहब फिर से ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन पहुंचे। उन्हें देखते ही ऑडिशन लेने वाली टीम खुश हो गई।
और तब उन्हें बताया कि 'स्टूडियो में जो बच्चे जाएंगे उन्हें खुद को प्रोपर तरीके से साफ रखना होता है।' फिर वक्त आया असरानी साहब के ऑडिशन का। असरानी से पूछा गया कि तुम क्या-क्या करते हो? गाना गाते हो या डांस करते हो। या एक्टिंग करते हो। असरानी ने जवाब दिया कि मैं तो सब करता हूं। तब इनसे गाना सुनाने को कहा। उस ज़माने में नागिन (1954) फिल्म के गीत बड़े लोकप्रिय हो रहे थे। खासतौर पर वो गीत जिसके बोल थे 'मन डोले मेरा तन डोले।' असरानी साहब ने जब वो गाना गाया तो इनसे कहा गया कि गाना तो तुम रहने दो। गाने में तो तुम्हारी आवाज़ नहीं जमेगी।
तब असरानी साहब ने उन्हें एक पैसेज पढ़कर सुनाया। और इनके पढ़ने का अंदाज़ उन्हें यूनीक लगा। इन्हें सिलेक्ट कर लिया गया। बच्चों का एक नाटक शुरू हुआ जिसमें असरानी साहब को एक बड़ा ही अनोखा किरदार दिया गया। उस किरदार का नाम था चोंच। एक ऐसा बच्चा जो हर मामले में अपनी चोंच घुसाता था। असरानी साहब आवाज़ पतली करके अपने डायलॉग्स बोला करते थे। वो किरदार बहुत लोकप्रिय हुआ। इतना लोकप्रिय की आकाशवाणी जयपुर ने उस नाटक को लाइव आयोजित भी किया। और चोंच का किरदार उसमें विशेष तौर पर रखा गया। यानि वास्तव में वहां से असरानी साहब का अभिनय सफर शुरु हुआ था।
असरानी साहब को उस वक्त आकाशवाणी जयपुर की तरफ से कुछ पैसे भी मिला करते थे। शुरुआती अमाउंट था पांच रुपए। जो ठीक-ठाक था उस वक्त। असरानी साहब बताते हैं कि उस दौर में इनकी स्कूल फीस एक रुपए महीना थी। ऐसे में ये चार रुपए बचा लिया करते थे। बकौल असरानी, रेडियो स्टेशन ने उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया। वक्त गुज़रा और असरानी बच्चों के नाटकों के बाद बड़े नाटकों में भी अपनी आवाज़ देने लगे। समय के साथ असरानी साहब का मेहनताना भी बढ़ा। और अपने मेहनताने से उन्होंने जो सेविंग्स की थी उससे ही उन्होंने फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में दाखिला लिया था।
असरानी साहब आज चले गए साथियों। 20 अक्टूबर 2025 को दिवाली के दिन असरानी जी का देहांत हो गया। ईश्वर असरानी जी को अपने सदचरणों में स्थान दें। असरानी जी को किस्सा टीवी का नमन। शत शत नमन।