
02/08/2025
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# # # **"धूप की ओट में - एक पहाड़ी औरत की कहानी"**
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की पहाड़ियों के बीच बसा था एक छोटा-सा गांव — बुरांश खेड़ा। यहां की सुबहें कुहासे में लिपटी होतीं और शामें धूप के आखिरी टुकड़ों को सहेजतीं। इसी गांव में रहती थी **गीता**, एक साधारण-सी लेकिन असाधारण हिम्मत वाली औरत।
गीता बचपन से ही पहाड़ की कठिनाइयों में पली-बढ़ी थी। उसकी मां लकड़ी काटती और पिता खेतों में काम करते थे। जब वह सिर्फ़ 14 साल की थी, पिता का निधन हो गया, और परिवार की जिम्मेदारी अचानक उसके कंधों पर आ गई। स्कूल छूटा, लेकिन जीवन की पाठशाला शुरू हो गई।
गीता हर सुबह 4 बजे उठती। पहले जंगल से लकड़ियां लाती, फिर मीलों दूर जाकर पानी भरती, और इसके बाद खेतों में काम करती। गांव के लोग कहते — "इतनी मेहनत मत कर बेटी, तू औरत है, थोड़ा आराम भी कर।" मगर गीता की आंखों में जो आग थी, वह किसी भी पहाड़ी ढलान से ज़्यादा तीखी चढ़ाई थी।
एक दिन गांव में एक NGO की टीम आई, जो महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखा रही थी। गीता ने झिझकते हुए हिस्सा लिया। वहां से सीखी हुई चीज़ों को लेकर उसने एक छोटी-सी यूनिट शुरू की। पहले गांव की महिलाओं को जोड़ा, फिर बुनाई और सिलाई के सामान को पास के कस्बे में बेचना शुरू किया।
धीरे-धीरे उसका काम बढ़ता गया। अब गीता सिर्फ़ अपने लिए नहीं, गांव की 25 औरतों के लिए भी रौशनी बन गई थी। वह कहती —
> **"हम पहाड़ की बेटियां हैं, बोझ नहीं उठातीं, ज़िम्मेदारियां उठाती हैं।"**
अब गीता राज्य सरकार के महिला सशक्तिकरण प्रोग्राम की ब्रांड एंबेसडर है। उसके नाम पर एक "महिला हाट" खुला है, जहां पहाड़ की महिलाओं के बनाए उत्पाद बिकते हैं।
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**शिक्षा:**
गीता की कहानी हमें सिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादे मजबूत हों, तो रास्ते खुद बन जाते हैं।