27/04/2024
आज किस्सा कहा जाएगा उस दौर का। जब इंटरनेट और सोशल मीडिया का तो लोग नाम भी नहीं जानते थे। और तो और, टीवी भी भारत के उन घरों में ही होते थे जो सभ्रांत माने जाते थे। जी हां, ये कहानी है 70 के दशक के मध्य की यानि मिड सैवनटीज़ के दौर की। और ये कहानी है लिरिल साबुन के उस एडवर्टाइज़मेंट की जिसने भारत में इस इंडस्ट्री का स्वरूप पूरी तरह से बदलकर रख दिया। लिरिल साबुन के विज्ञापन की कहानी इसके बनने से भी पहले शुरू होती है।
उन दिनों सपनों के शहर मुंबई में बारिश का मौसम था। कैलाश सुरेंद्रनाथ नाम का एक नौजवान अपनी कार से मुंबई के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात एक महिला से हुई जो टैक्सी का इंतज़ार कर रही थी। वो महिला लिंटास नाम की एडवरटाइज़िंग एजेंसी पहुंचना चाहती थी। चूंकि लिंटास कंपनी रास्ते में ही थी तो कैलाश ने उस महिला को लिफ्ट ऑफर की। वो महिला कैलाश की गाड़ी में बैठ गई।
रास्ते में बातचीत के दौरान सुरेंद्रनाथ ने उस महिला को बताया कि एडवर्टाइज़िंग इंडस्ट्री में उनका करियर हाल ही में शुरू हुआ है। उस महिला ने कैलाश से उनका पोर्टफोलियो दिखाने को कहा। दरअसल, वो महिला लिंटास कंपनी की फिल्म चीफ मुबी इस्माइल थी। ये वही दौर था जब HUL यानि हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड अपना एक नया साबुन बाज़ार में लॉन्च करने की प्लानिंग कर रहा था। उस साबुन का नाम था लिरिल।
जी हां वही लिरिल जिसे भारत का पहला लाइम सोप भी कहा जाता है। HUL इस साबुन को हर हाल में हिट कराना चाहता था। यही वजह है कि उन्होंने इस साबुन का विज्ञापन बनाने की ज़िम्मेदारी लिंटास कंपनी को दी। यूं तो लिंटास अपने फील्ड का स्थापित नाम थी। लेकिन लिरिल साबुन का विज्ञापन बनाना इस कंपनी के लिए भी एक चुनौतीपूर्ण काम था। HUL ने लिरिल साबुन की थीम रखी थी ताज़गी, तो ज़ाहिर है इसके विज्ञापन में ऐसे ही किसी चेहरे की ज़रूरत थी जिसे देखकर ताजगी का अहसास होता हो।
सो मुबी इस्माइल ने कैलाश सुरेंद्रनाथ को इस विज्ञापन को बनाने की ज़िम्मेदारी दी। यानि कैलाश सुरेंद्रनाथ को पता ही नहीं था कि उस दिन वो किसी अंजान महिला को नहीं बल्कि अपनी किस्मत को लिफ्ट दे रहे हैं। बहरहाल, जहां एक तरफ मुबी इस्माइल का ये ऑफर कैलाश सुरेंद्रनाथ के लिए एक शानदार ऑपोर्च्युनिटी था। तो वहीं एक बड़ी चुनौती भी था। लेकिन कैलाश सुरेंद्र नाथ ने इस चुनौती का सफलता के साथ सामना किया और इसे निपटाया भी। कैसे? चलिए जान लेते हैं।
कैलाश सुरेंद्रनाथ को लिंटास की तरफ से ज़िम्मेदारी दी गई थी कि उन्हें इस साबुन के लिए किसी बढ़िया से फेस को तलाशना है और एड को शूट करने के लिए एक खूबसूरत लोकेशन भी ढूंढनी है। उन्होंने तुरंत अपना काम शुरू कर दिया और ऑडिशन स्टार्ट कर दिए। कैलाश ने 25-30 लड़कियों को एक साथ जुहू बीच पर बुलाया और उनसे समुद्र की लहरों में अठखेलियां करने को कहा। उन्होंने उस पूरे इवेंट को शूट भी किया। लेकिन उन्हें किसी भी लड़की में वो स्पार्क नहीं दिखा जो उनकी नज़रें ढूंढ रही थी।
उसी दिन शाम को वो मुंबई के यूएस क्लब में गए थे। वहीं पर कैलाश सुरेंद्रनाथ की मुलाकात हुई करेन लुनेल से जो उस वक्त महज़ 18 साल की थी और डिप्पीज़ नाम के एक जूस ब्रांड के लिए मॉडलिंग कर चुकी थी। उस जूस ब्रांड के विज्ञापन में करेन लुनेल ने बिकनी पहनी थी। सुरेंद्रनाथ को लिरिल साबुन के एड के लिए करेन लुनेल एकदम पर्फेक्ट लगी। उन्होंने करेन लुनेल को लिरिल एड में काम करने का ऑफर दिया और करेन ने भी तुरंत कैलाश सुरेंद्रनाथ का ऑफर स्वीकार कर लिया।
एड के डायरेक्शन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई उस दौर के नामी एड फिल्म डायरेक्टर एलीक पदमसी को, जो कि उस वक्त लिंटास के सीईओ भी थे। एलीक पदमसी तो समुद्र किनारे ही एड को शूट करना चाहते थे। पर चूंकि लिरिल साबुन की थीम थी ताज़गी और समुद्र का पानी ताज़ा नहीं होता तो कैलाश सुरेंद्रनाथ ने आइडिया दिया कि क्यों ना किसी झरने के नीचे एड को शूट किया जाए। कैलाश का आइडिया एलीक पदमसी को भी पसंद आया। लेकिन अब चुनौती थी किसी ऐसे झरने की तलाश करना जहां बिना किसी परेशानी के एड को शूट किया जा सके।
कैलाश सुरेंद्रनाथ अपनी टीम के साथ भारत भ्रमण पर निकल पड़े। उन्होंने देश के कई झरनों का मुआयना किया। और फाइनली उनकी तलाश खत्म हुई तमिलनाड्डू के कोडाईकनाल इलाके में मौजूद पम्बर फॉल्स पर जिसे लोग टाइगर फॉल्स के नाम से भी जानते हैं। पहली नज़र में ही कैलाश सुरेंद्रनाथ को ये लोकेशन पसंद आ गई और उन्होंने इसे फाइनल कर दिया। लेकिन इस जगह की कुछ दिक्कतें भी थी। एक तो ये कि ये झरना केवल दिसंबर और जनवरी के मौसम में चलता है। और दूसरे ये कि यहां सूरज भी सिर्फ दो तीन घंटे के लिए ही नज़र आता है। यानि बढि़या ठंड।
कोडाइकनाल के पम्बर फॉल पर जिस वक्त लिरिल के एड की शूटिंग की गई थी उस वक्त वहां काफी ठंड थी। करेन लुनेल के लिए उस मौसम में शूट करना बिल्कुल भी आसान नहीं था। वो ठंड में बिकनी पहनकर झरने के नीचे दो तीन टेक देती और फिर बाहर निकलकर ठंड के मारे कंपकंपाने लगती। यूनिट के मेंबर्स उन्हें तुरंत कंबल ओढ़ाते और थोड़ी सी ब्रांडी पीने के लिए दे देते। कई सारे टेक्स करने की वजह से करेन को काफी ब्रांडी पीनी पड़ी और वो बढ़िया नशे में हो गई।
और केवल ठंड ही नहीं, सांप और कीड़ों-मकोड़ों का डर भी उस पानी में था। सांप देखकर तो कई दफा करेन लुनेल की हिम्मत ने जवाब दिया। लेकिन प्रोड्यूसर कैलाश सुरेंद्रनाथ और डायरेक्टर एलीक पदमसी ऐसे वक्त पर करेन की हौंसलाअफज़ाई करते थे। किसी तरह एक ही दिन में इस एड की सारी शूटिंग कंप्लीट कर ली गई। एड का म्यूज़िक तैयार किया वनराज भाटिया ने और जिंगल गाया प्रीति सागर ने।
फिर फाइनल एडिटिंग के बाद लिरिल साबुन का ये एड दिखाया जाने लगा सिनेमाघरों में। उस वक्त फिल्म शुरू होने से पहले और इंटरवल के दौरान लिरिल का ये एड दिखाया जाता था। ये वो ज़माना था जब भारत में हर किसी के घर में टीवी नहीं था। लिरिल का ये एड दर्शकों पर भी गहरा प्रभाव छोड़ने लगा। इंटरवल में लोग इस एड को पूरा देखकर ही वॉशरूम या पॉपकॉर्न लेने जाते थे। और इस तरह लिरिल के इस एड ने इतिहास रच दिया।
तो साथियों ये तो थी लिरिल साबुन के उस क्लासिक एड के बनने की कहानी। लिरिल का ये एड इतना पॉप्युलर हुआ कि HUL ने सालों तक इस एड को कन्टीन्यू किया और करेन लुनेल के बाद इसमें और भी कई चेहरे नज़र आए। हालांकि जो पॉप्युलैरिटी करेन लुनेल को मिली थी वो फिर कभी किसी और को नहीं मिल सकी। लेकिन बहुत से लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि करेन लुनेल लिरिल के इस एड के बाद कहां चली गई? क्या सच में उनकी मौत हो गई थी या वो सिर्फ एक अफवाह थी? इस सीरीज़ की अगली कढ़ी में हम करेन लुनेल के बारे में ही बात करेंगे। इसलिए किस्सा टीवी पर अगर पहली दफा आए हैं तो इसे फॉलो कर लीजिए। और इस पोस्ट को लाइक-शेयर भी कीजिए। यहां आपको ऐसी बहुत सी पोस्ट्स पढ़ने के लिए मिलती रहेंगी।