14/08/2024
शोध यात्रा की प्राप्तियाँ
शोध यात्रा विचार की खोज प्रोफेसर अनिल गुप्ता जी और हनी भी नेटवर्क के साथियों ने की थी और मुझे पहली बार कच्छ भुज की शोध यात्रा में साल 2001 में भाग लेने का अवसर मिला।
तब मुझे पहली बार एहसास हुआ की पैदल चलने से दुनिया अलग नज़र आती है और दुनिया का हरेक आदमी समझदार और ज्ञानवान है।
दुनिया में बड़ी समस्याओं के हल बेहद साधारण युक्तियों से ही निकले हैं और हनी बी नेटवर्क मर्यादाओं को मानता है
शोध यात्रा के टूल को मैंने धीरे धीरे सीखना शुरु किया है और यह पाया है कि शोध यात्रा जीने का एक अच्छा नजरिया विकसित करने का टूल है।
15वीं शोध यात्रा की उपलब्धियां
#नम्बर_एक
राजस्थान की जल संस्कृति
मैंने 16 जुलाई को जयपुर से यात्रा शुरू की तो बहरोड तक मैंने देखा कि हरेक दुकान के बाहर एक वॉटर जग या मटका उसके उपर रखा एक गिलास।
जिस दुकान पर पानी की बोतलें भी पड़ी हैं बिकने के लिए वहाँ भी पानी मुफ्त में उपलब्ध है।
मैंने लोगों से बात की तो मुझे लोगों ने बताया कि वो बोतल बंद पानी की सोच के खिलाफ़ जंग लड़ने लग रहे हैं।
कोई पानी लेने आता है तो हम उसको कहते हैं RO वॉटर फ्री में उपलब्ध है भर लो या पी लो। फिर भी कोई बोतल मांगता है तो हम उसे बोतल बेचते हैं।
मैं जब तक राजस्थान में चला मुझे बोतल बंद पानी खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी।
#नम्बर_दो
पशु पक्षियों के लिए संवेदना
राजस्थान में सफर के दौरान मैंने यह देखा कि पेडों पर जगह जगह पानी डालने के मिट्टी के बर्तन रस्सियों से बाँध कर लटकाये गए हैं। उनके दाना डालने की भी समुचित व्यवस्था बनाई गयी है। पंजाब हरियाणा और जम्मू में ऐसी सामूहिक मानवीय संवेदना और चेतना कहीं दिखाई नहीं पड़ी।
#नम्बर_तीन
शाहपुरा के बंदरों का अनुशासन
शाहपुरा बाई पर पर एक छोटा सा वन क्षेत्र है (संजय वन नहीं) जहाँ कोई दो ढाई सौ छोटे बड़े बंदर और बंदरिया बैठे थे और बस एक मात्र छोटा सा फ्रूट का खोखा था जो पूरी तरह से केलों और आमों से ठुका हुआ था।
उसके बीच में एक बोदा सा दुकानदार बैठा हुआ था और कपड़े से खुद को हवा दे रहा था।
बंदर बस वहीं बड़े आराम से शांत बैठे थे और थोड़ी बहुत उछल कूद कर रहे थे।
बंदर चाहते तो वो उस खोखे को एक मिनट में लूट सकते थे।
लेकिन उन्हें पता था कि ये सारा माल उन्ही के लिए है बस एक तरीका है जिससे ये सब इज्जत से खाने को मिलेगा और हमेशा मिलता रहेगा।
लोग आते हैं वहाँ और विक्रेता को पैसे देकर उससे फल लेते हैं और बंदरों को बाँट देते हैं।
बंदरों की समझ युक्ति और अनुशासन देख कर दंग था।
#नम्बर_चार
जैव विविधता
दक्षिण हरियाणा में जो मन्दिर हैं वो बायोडाईवर्सिटी हॉट स्पॉट्स हैं खूब सारे पेड़ पक्षी कीट पतंगे ज़ीरो प्रदूषण और सात्विक ऊर्जा से भरपूर हैं।
जयपुर दिल्ली रोड पर रेवाडी मोड़ पर पहला गाँव जो आता है उसका नाम है गूगल कोटा। यहाँ एक मन्दिर पर मैं रुका और देखा कि मन्दिर का पूरा क्षेत्र समस्त जीवों, पेड़ पौधों, कीट पतंगों, पक्षियों के लिए अभ्यारणय हैं।
यहाँ का प्रबंधन कमोबेश महिलाओं के हाथ में ही है। जो सुबह सुबह यहाँ आना शुरू कर देती हैं और यहाँ विभिन्न गतिविधियों को करती हैं। यहाँ प्रकृति और संस्कृति को बचाए रखने पर पूरा जोर है।
जब मैंने इस इलाके को विजिट किया तो सावन की शुरुआत थी सुबह छेह बजे ही महिलाओं की टोली बैठ कर कर सावन के गीत गाने लग रही थी जिसमें वृद्ध महिलाओं के साथ साथ सभी आयुवर्ग की महिलाएं भी शामिल थी।
मंदिरों में जो भूमि उपलब्ध है उसपर इलाके कें कीट पतंगों , पक्षियों पौधों , पशुओं का पूरा अधिकार है।
यह नयन सुख मुझे सिर्फ दक्षिण हरियाणा में ही देखने को मिला।
#नम्बर_पांच
चींटियों के लिए एक बाल्टी आटा
जिला झज्झर के गाँव सिलाना को पार करते समय मुझे एक महिला दिखाई दी जो अपने घर से एक बाल्टी आटा लेकर चींटियों को डालने के लिए आई हुई थी और सभी बिलों पर आवश्यकता अनुसार डाल रही थी ।
मैंने आज तक कटोरी थैली वाले महारथी तो बहुत देखे थे लेकिन एक बाल्टी वाली महाबली के दर्शन पहली बार हो रहे थे मैंने तत्काल फोटो खींची और मातृ शक्ति से बात की और पूछा कि एक बाल्टी आटा ? किसलिए तब उन्होंने बताया कि पूरे सावन यहाँ आसपास के पूरे इलाके में रिवाज है कि चींटियों और छोटे जीवों को सभी अपने अपने पास उपलब्ध संसाधनों के मुताबिक़ चून डालते हैं।
इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि डॉ. शिव दर्शन मलिक जी की बात सही साबित हो गयी कि हमारे यहाँ संस्कारों में भूख की मेमोरीज नहीं हैं जो ये कहा जाता है कि हमारे यहाँ अकाल पड़ा करते थे और खाने को कुछ नहीं था यदि यह बात सत्य होती तो चींटियों के लिए इतने हाथ ना खुले होते हमारे लोगों के
# नम्बर_छह
क्लाईमेट चेंज और वर्षा का समय पर ना होना
पिछले कुछ वर्षों से क्लाईमेट चेंज और वर्षा का समय पर ना होना एक बड़ा मसला बना कर उभारा जा रहा है जिसकी वजह मेरी समझ में ठीक से बैठ नहीं रही थी
इस बार शोधयात्रा में नरवाना गवर्नमेंट कालेज में कार्यरत रसायन विज्ञान के प्रोफेसर डॉ जयपाल देशवाल जी से मुलाकात हुई जो इस इलाके में पर्यावरण के मुद्दे पर न सिर्फ शोध करते हैं अपितु जमीनी स्तर पर उतर कर भी काम करते हैं।
डॉ जयपाल जी ने बताया कि वर्षा का समय पर ना होना यह हमारी गलतियों का परिणाम है।
पिछले कुछ वर्षों से 15 जून की तारीख जीरी लगाने के लिए फिक्स की गयी है और इस समय लू चल रही होती है और तीस जून तक धरती आसमान सब तपने चाहियें क्यूंकि इनके तपने से ही वायु हलकी होगी और वैक्यूम जैसा कुछ क्रिएट होगा और उसे भरने के लिए मानसून तेजी से आएगा और वर्षा होगी।
अब 15 जून को पूरा पंजाब और हरियाणा का चावल की खेती का इलाका रातों रात मोटरें चला कर झील में बदल दिया जाता है और जहाँ ऊपर से लू चल रही होती है और खेत पानी से लबालब भरा होता है और फिर सापेक्षिक आद्रता बढ़ जाती है।
पानी वाष्प बन कर उड़ता है जो दबाव बनना चाहिए था जिससे मानसून आये वो बन नहीं पाता है इसीलिए जिन इलाकों में यह पानी की झील नहीं होती है वहां वर्षा समय पर होती है जैसे दिल्ली और राजस्थान।
इधर मौसम विभाग वाले भविष्यवाणी करते रहते हैं उधर वर्षा होती नहीं है। इसे क्लाईमेट चेंज का नाम देकर अब वैज्ञानिक बीजों के साथ छेड़छाड़ करके समस्या को और अधिक जटिल बनाने में लगे हुए हैं।
#नम्बर_सात
1320 फुट का पानी का बोर
गाँव बड़ोदा की तरफ़ बढ़ते समय हमें दो ट्यूबवेल चलते हुए दिखाई दिए तो नहाने का मन स्वत: ही कर गया। जैसे ही मैंने पानी की खाल में पैर डाला तो मेरे पैर जल गए पानी इतना गरम था।
मैं भयंकर रूप से कन्फ्यूज हो गया कि इतना गर्म पानी कैसे ? जबकि दुसरे ट्यूबवेल का पानी ठंडा था।
थोड़ी देर मे वहां किसान आ गया और हमने उससे पूछा तो उसने बताया कि यह गरम पानी वाला बोर 1320 फुट पर हुआ है पानी इतना गरम है कि सीधे तौर पर फसलों को नहीं दे सकते हैं ठन्डे पानी से मिक्स करके के भी हमें लम्बा चैनल बना कर पानी को घूमाना पड़ता है तब जाकर फसलों को दे सकते हैं।
जब यह बात मैंने नरवाना में डॉ जयपाल देशवाल जी को बताई तो उन्होंने बताया कि जींद जिले में ऐसे चार बोर हो चुके हैं और किसानी का भविष्य अन्धकारमय है।
#नम्बर_आठ
नरवाना के देसा हलवाई की 67 साल पुरानी चाय की दूकान के सख्त नियम
नरवाना में देसा हलवाई सबसे ज्यादा फेमोस हैं अपनी क्वालिटी और अपने सख्त नियम के लिए।
67 पहले जब पंडित देशराज उर्फ़ देसा हलवाई ने चाय की दुकान बनाई तो सबसे पहला नियम बनाया शुद्धता का और दूसरा नियम बनाया कि जो चाय पिएगा अपना गिलास खुद धोएगा और हम किसी को चाय देने नहीं जायेंगे जिसको पीनी होगी यहीं आकर पिएगा।
ऐसे नियम सुनकर 67 पहले के दौर के लोगों ने मज़ाक बनाया और कहा कि चल ली दूकान।
स्वर्गीय पंडित देशराज के लगभग बुजुर्ग हो चले बेटे बताते हैं कि सुबह चार बजे जब वो आते थे दूकान पर पर तो चार किलो दूध चाय का लग चुका होता था।
बाकी हमने पीतल के अलावा कभी कोई दूसरा बर्तन नहीं बरता और सरसों के तेल में सारे मट्ठी पकौड़े तलते हैं रिफाइंड को कभी अपने दूकान की तरफ देखने क्या झाँकने तक नहीं दिया।
आजभी किसी को चाय देंने नहीं जाते।
मुख्यमंत्री तक हमारे पास चाय पीकर गए हैं नेताओं की तो बात ही छोड़ दो हमने कभी किसी का गिलास नहीं धोया।
यह सब देख समझ कर एक ही बात पल्ले पड़ती है कि यदि प्रोडक्ट में क्वालिटी है तो शर्ते आप रख सकते हैं।
अपने क्वालिटी और सत्यवादिता के लिये एक फ़ूड इंस्पेक्टर ने पंडित देस राज को डेढ़ वर्ष कैद कटवा दी थी जज ने सलाह दी कि आप भैंस के दूध को गाय का दूध बता दो आप छूट जायेंगे
पंडित देशराज जी कहा कि आपने स्टैण्डर्ड गलत बनाये हुए हैं ये भैंस का दूध ही है इसमें इतनी फैट आती नहीं है जितनी आपने अपनी किताबों में लिखी हुई है तो जज ने मजबूर होकर पंडित जी को जेल भेज दिया।
पीछे से बच्चों और छोटे भाई ने दूकान संभाल ली और जब पंडित जी जेल काट कर वापिस आये तो दूकान का बिजनेस पहले से ज्यादा बढ़ चुका था।
# नंबर_नौ
नरवाना के मातृ शक्ति मंडल
नरवाना में शोधयात्रा के स्थानीय नायक भाई आर्य मोहन कौशिक जी की बाईक के पीछे बैठ कर मैंने जब नरवाना टाउन का चक्कर लगाया तो मुझे एक बात सबसे अलग दिखाई दी वो थी जगह जगह बैठी महिलाओं की गीत गाती टोलियाँ जिसमें हरेक जाति वर्ग की महिलाएं साथ बैठ कर गीत गा रही थी।
मैं जहाँ रात को रुका वहां मुझे रात को साढे दस बजे महिला मंडल ने बुलाया और मेरे से शोधयात्रा के उद्देश्यों की बारे में चर्चा की।
सभी महिलाओं ने बताया कि रात साढ़े नौ बजे के बाद सभी महिलाएं अपने घर के काम से फ्री होकर एक बार एक साथ बैठती हैं और ऋतु अनुसार गीत गाती हैं।
मुझे महिलाओं ने ही बताया कि वे तो बड़ा ग्रुप बना कर तीर्थ यात्रा में भी निकल जाती हैं।
कोई समाज शास्त्र में शोध करने का इच्छुक हो तो रियल में हप्पिनेस इंडेक्स पर काम करना चाहता हो तो नरवाना की महिला शक्ति पर शोध किया जा सकता है।
# नंबर_दस
पंजाब का नया सिंचाई मॉडल
पंजाब में प्रवेश करते ही हमने खेतों में सिंचाई का एक नया प्रयोग देखा जिसमें ट्यूब वेल का पानी सीधे पाईप्स के माध्यम से खेतों के कोने कोने में पहुँचाया जा रहा है।
जल संरक्षण की दृष्टि से तो बेहतरीन कार्य है लेकिन खेत में मौजूद अन्य जीवों पशु पक्षियों और मेरे जैसे भटक रहे मानवों के लिए जल उपलब्ध नहीं था।
यह स्थिति मुझे खनौरी से लेकर पठानकोट तक पूरे इलाके में नज़र आई।
#नंबर_ग्यारह
खेती विरासत मिशन के दो दशक
पंजाब में कृषि संस्कृति को बचाने के लिए खेती विरासत मिशन पिछले दो दशकों से सक्रिय है और इस यात्रा के दौरान मुझे खेती विरासत मिशन के खेती और किसानी को बचाने के लिए शुरू किये गए विभिन्न प्रकल्पों के स्थानीय नायकों से मिलने का अवसर मिला।
वो चाहे संगरूर के किसान संजीव शर्मा हों या होशियारपुर के तरसेम सिंह फिर चाहे सुनील महाजन हों या जम्मू के विक्रम सिंह।
दो दशकों में विचार को हज़ारों मनों में ट्रांसलेट करके लोगों को अपनी उर्जा और संसाधनों से कृषि से जुड़े असली शोध में लगा पाना आज खेती विरासत मिशन के सफल होने का इंडिकेटर है।
मैं जितने भी किसानों और उद्यमियों से मिला सभी लोग अब अपने दम पर खुद को सफल बनाने में जुटे हैं और एक दूसरे की भरपूर मदद भी कर रहे हैं।
अब वो बीज बचाने का काम हो या जैविक उत्पादों की मार्केटिंग का या फिर उपभोक्ताओं का मंच बनाने की कवायद हो मैंने इन सभी से जुड़े प्रकल्पों में शामिल स्थानीय नायकों से बातचीत की और उनसे सीखा।