25/05/2025
फ़िरदौस आलम उर्फ़ असजद बाबू, एक नौजवान, एक सपनों का मालिक, जिसने सिर्फ़ सात महीने पहले अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत की थी। बिहार के कोचाधामन से हरियाणा के पानीपत तक, रोज़गार की तलाश में गए थे, मगर किसे पता था कि उनकी टोपी, उनकी पहचान, किसी की नफ़रत का निशाना बन जाएगी?
24 मई की शाम, जब असजद अपने दोस्त से मिलने निकले, तो एक दरिंदे, शिशु लाला ने, उनकी टोपी ज़बरदस्ती गिरा दी। और फिर, जब असजद उसे उठाने झुके, उस ज़ालिम ने डंडे से उनके सिर पर वार कर दिया। असजद बेसुध होकर गिर पड़े। रोहतक के अस्पताल में ज़िंदगी की जंग लड़ी, मगर आज सुबह वो हम सबको अलविदा कह गए।
ये कोई आम वाक़िया नहीं, ये नफ़रत की आग है, जो मासूमों की ज़िंदगियाँ जला रही है। आख़िर टोपी पहनना, अपनी पहचान को ज़िंदा रखना, इतना बड़ा गुनाह कैसे हो गया? क्यों एक मुसलमान की सूरत कुछ लोगों को इतनी खटकने लगी कि वो क़त्ल तक उतर आएं?
हमारी पुकार है, हमारी मांग है:
इस हादसे को आतंकी वारदात माना जाए!
आरोपी पर UAPA जैसी सख़्त धाराएँ लगें!
सरकार और प्रशासन ख़ामोश न रहे, इंसाफ़ की आवाज़ उठाए!
ये मुल्क सबका है, नफ़रत के सौदागरों का नहीं। अगर आज हम चुप रहे, तो कल और असजद जैसे मासूमों के घर उजड़ जाएँगे। आओ, मिलकर नफ़रत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ। असजद के लिए इंसाफ़ माँगें।
इंसाफ़ की जंग में शामिल हो, अपनी आवाज़ बुलंद करो! 🖤