06/09/2023
चण्डीगढ़ / नज़रिया : अगर-मगर की सियासत में कहीं संकरी ना हो जाए हरियाणा कांग्रेस की डगर
सियासत में अपने वजूद के खो जाने का डर हर एक नेता को रहता है। शायद इसीलिए वे आए दिन अपने बयानबाजी व गतिविधियों को लेकर चर्चा में बने रहना चाहते हैं। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि पार्टियां भले ही राष्ट्रीय स्तर पर नेताओं को बहुत कुछ दे देती हों लेकिन जब तक वे अपने गृहराज्य में अपनी धमक ना दिखाएं तब तक उनकी राजनिति अधूरी रहती है। पर्दे के पीछे गुटबाजी सभी दलों में रहती है, लेकिन जब वो सड़क पर आ जाए तो उस विशेष पार्टी की हालत गले में फंसी उस गुड़ भरी हंसिए की तरह हो जाती है जिसे ना तो निगलते बनता है और ना ही उगलते। ऐसा ही कुछ नज़ारा आजकल हरियाणा कांग्रेस में देखने को मिल रहा है। नेता भले ही कांग्रेस में अंदरूनी लोकतंत्र होने की बात करें, लेकिन अब ये जगजाहिर हो चुका है कि यहां वर्चस्व की लड़ाई में पार्टी के वसूलों को सरेआम रौंदा जा रहा है।
बहुत जल्द हो सकता है बड़ा धमाका
एक तरफ 2024 में नरेंद्र मोदी को हराने के लिए कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियों ने 'इंडिया' नाम का गठबंधन बनाकर देश फतह करने के सपने संजोए हैं, तो वहीं दूसरी तरफ हरियाणा कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट को फ्रंटलाइन से पीछे धकेलने के लिए रणदीप सुरजेवाला, कुमारी सैलजा व किरण चौधरी एक साथ मिलकर जद्दोजहद कर रहे हैं। देखा जाए तो लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनाव की स्थिति एक जैसी ही है, फर्क बस इतना है कि लोकसभा के लिए अलग-अलग दल साथ मिलकर मोदी के खिलाफ आए हैं और हरियाणा में अपनी ही पार्टी के नेता कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी करने में लगे हुए हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि पार्टी हाईकमान को पहले से इस बात का इल्म ना हो। उनकी अगर-मगर की सियासत का ही ये नतीजा है कि आज विवाद इतना बढ़ गया है, जिसपर पहले ही लगाम लगाया जा सकता था। सत्तारूढ़ पार्टी से ऊबकर कांग्रेस को विकल्प के तौर पर देखने वाले मतदाताओं पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जो आगमी चुनाव में पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। हरियाणा की राजनीति को बेहद करीब से समझने वाले विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि बहुत जल्द हरियाणा कुछ बड़ा धमाका हो सकता है।
सभी गुटों के नेताओं की नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर
बीते कुछ दिनों से पार्टी के भीतर जो खींचतान चल रही है, उससे साफ ज़ाहिर है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसबार विपक्षियों से ज़्यादा अपनी ही पार्टी के नेताओं के रडार पर रहने वाले हैं। प्रदेश में कांग्रेस अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए हर जिले में पर्यवेक्षक भेज रही है। जिससे कार्यकर्ताओं की रायशुमारी लेकर पार्टी में पदाधिकारी बनाए जा सकें। लेकिन मौके पर पहुंचते ही उन्हें SRK (सैलजा, सुरजेवाला व किरण) गुट का विरोध झेलना पड़ रहा है। नौबत तो मारपीट तक पहुंच जा रही है और उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं का साफ कहना है कि अब हम बापू-बेटे यानि हुड्डा पिता-पुत्र की कतई नहीं चलने देंगे। ज़ाहिर सी बात है कि हर जिले में एक ही साथ इस तरह की गतिविधियां कार्यकर्ता बिना अपने नेता की इजाज़त के नहीं करेंगें। ज़रूर इसकी तैयारी पहले से रही होगी। हरियाणा कांग्रेस में इस वक्त चार गुट हैं और सभी गुटों के नेताओं की नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। हालंकि जानकार ये भी मानते हैं कि मौजूदा वक्त में कांग्रेस के अंदर अगर सबसे ज़्यादा जनाधार किसी नेता के पास है तो उस फेहरिस्त में सबसे पहला नाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का आता है। शायद इसी विवाद को ही देखते हुऐ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने बाकी सभी गुटों के नेताओं को दूसरे राज्यों में जिम्मेदारियां देकर उनको हरियाणा से दूर रहने के संकेत दिए हैं। रणदीप सुरजेवाला को पार्टी ने कर्नाटक के साथ-साथ मधयप्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया, सैलजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया और किरण चौधरी को राजस्थान चुनाव समन्वयक नियुक्त कर उनका राजनीतिक कद बढ़ाया। ये तीनों ही नेता हुड्डा के धुर विरोधी माने जाते हैं।
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