03/10/2023
थोड़ा लंबा है लेकिन पूरा लेख पढ़ने से पहले एक तारीख मार्क कर लें जो है 10 अक्टूबर 2023....
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हम आज तक सिर्फ यह पढ़ते आए हैं और पढ़ाई की उम्मीद मात्र इतनी रही है कि इसके बेसिस पर हमें कोई नौकरी मिल जाए. एक वक्त था जब मां-बाप यह कहा करते कि मैट्रिक पास कर जाओ नौकरी मिल जाएगी और यह सब सिर्फ बातें नहीं थी बल्कि उस भले वक्त में दसवीं पास कोई विरला ही गांव या शहर में ऐसा रहा होगा जिसे नौकरी न मिली हो.
बदलते समय के साथ यह योग्यता मैट्रिक से 10+2 हो गई, फिर ग्रेजुएशन को लेकर कयास लगाए जाने लगे... उसके बाद MA और B.Ed का बोलबाला रहा. कहा जाता था कि अगर बच्चे ने एमए और बीएड कर ली तो नौकरी मिल ही जाएगी, दसवीं-बाहरवीं पास तो दुनिया घूम रही है. फिर NET को लेकर खूब सारी मारामारी रही और उसके बाद कुछ गिने चुने लोग PHD तक के सफर को तय करते-करते 25 से 30 साल की उम्र के पायदान में कूदते रहे और उन्हें लगता था की एचडी और नेट करने से वो प्रोफेसर बन सकते हैं.
यह भागते वक्त का तकाजा ही था कि इस अंधी दौड़ में लोगों ने अपनी सुविधानुसार और उम्मीद से कुछ विषयों का चयन भी किया. कुछ को लगता था कि मैथ अगर आपके पास है तो आप इस में कामयाब हो सकते हैं वहीं कुछ लोग अपने बच्चों को किसी अन्य सब्जेक्ट की दौड़ में दौड़ा रहे थे.
यह दौड़ यही नहीं रुकी बल्कि कुछ प्रोफेशनल और टेक्निकल कोर्सेज भी इस रेस में कूदे. पहले वोकेशनल ट्रेनिंग आई, साथ में आईटीआई भी एक हुनरमंद बच्चों की प्लेसमेंट का सबसे बड़ा सेक्टर हुआ करता था. उसके बाद पॉलिटेक्निक का एक दौर आया और पॉलिटेक्निक में डिप्लोमा के लिए सैकड़ो की संख्या में हर राज्य में डिप्लोमा के इंस्टीटूट रूपी दुकान खुली जहां इस कोर्स में दाखिला की बोलियां लगा करती थी. फिर जमाना थोड़ा आगे बढ़ा तो इसकी जगह बीटेक ने ले ली.
इस कहानी का सार यह है कि इन तमाम एफर्ट का रिजल्ट आज जीरो है क्योंकि नौकरियां है ही नहीं. नौकरियां क्यों नहीं है उसका सीधा सा जवाब है कि सरकारी नौकरियां लगभग खत्म हो चुकी है और प्राइवेट सेक्टर को लेकर हमने डिग्रियां तो प्राइवेट संस्थानों मोटी फीस के साथ हासिल की लेकिन हम महंगी फीस देते देते वहां से हुनर लेना भूल गए. प्राइवेट इंडस्ट्री आप में योग्यता और प्रमाण पत्र दोनों मांगती हैं लेकिन हमारे पास सिर्फ सर्टिफिकेट हैं.
पूर्व में हम जिसके हिस्सा थे और वर्तमान में जो हमारा पड़ोसी सूबा है जिसको हम पंजाब कहते है. वहां से होते-होते एक नया रोजगार का माध्यम हम लोगों तक इस आधुनिक जमाने में थोड़ा लेट पहुंचा है जिसे हम विदेश में पढ़ाई के नाम पर जाकर नौकरियां करना कहते है लेकिन एक कड़वा सच है कि हमारे 99.99 प्रतिशत बच्चे नहीं जानते कि विदेश में जाकर रोजगार कैसे पाया जाए या फिर किस तरीके का रोजगार उन्हें वहां मिलेगा.
हमारे बच्चे सिर्फ सुनी सुनाई बातों का अनुसरण करते हुए अपने मां-बाप की जमीनों तक को बेचकर विदेश में जाने की जिद लगाते हुए बर्बाद हो रहे हैं. उन्हें यह जानकारी ही नहीं है कि वह जिस देश में जा रहे हैं वहां की असल स्थिति क्या है. वो सिर्फ अपने यार दोस्तों से इस बारे में सुनकर आए हुए होते हैं या फिर गांव गुहांड से अगर कोई बच्चा विदेश गया है तो उसकी इंस्टाग्राम पर रील को देखकर आनंदित व उत्साहित होकर अपने मां-बाप को ब्लैकमेल कर रहे होते हैं कि मुझे तो वही जाना है.
इस सब का कारण ये है कि विदेश में बैठा गांव-गुहाण्ड का बच्चा शो ऑफ के लिए किसी महंगी गाड़ियों में बैकग्राउंड में बज रहे म्यूजिक के साथ रील डाल रहा होता है जिसे देखकर आपका बच्चा कहता है कि दो-चार-पांच महीने में ही भाई ने तो अपनी कमाई से लाखों-करोड़ों रुपए की गाड़ी ले ली है. यकीन मानिए यह किसी विज्ञापन को देखकर किसी प्रोडक्ट को खरीदने जैसा है. यह ठीक वैसा ही है की कोई सुप्रसिद्ध अभिनेत्री किसी साबुन से नहाते हुए टीवी पर प्रचार तो कर रही है लेकिन असल मायने में वह उसे यूज़ नहीं करती है.
ऊपर लिखी लंबी-चौड़ी बातों का सार आपको कोई आध्यात्मिक संदेश देने का बिल्कुल भी नहीं है बल्कि यह है कि आप या आपका अपना कोई बच्चा विदेश में या अपने देश मे पढ़ाई करने का सपना देख रहा है तो उसे उस क्षेत्र में पूरी खोजबीन करके ही डालें, उसे नौकरी की संभावना का सपना ना दिखाएं बल्कि पहले उसे नौकरी मिले और फिर उसे नौकरी के लिए आप या आपके बच्चे स्किल पैदा करें यही मौजूदा हालात में कामयाबी का एकमात्र सार है.
वैसे तो विदेश के काफी देश में बहुत सारी संभावनाएं हैं लेकिन जिन देशों के बारे में आप जानते हैं वहां बहुत ज्यादा भीड़ हो चुकी है क्योंकि विदेश जाने का यह ट्रेंड आप तक काफी लेट पहुंचा है. फिर भी काफी रिसर्च के बाद हम लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दुनिया के तमाम देशों में सबसे ज्यादा स्किल्ड प्रोफेशनल की शॉर्टेज को झेल रहा एक देश है जर्मनी... यह देश एक बूढ़ा देश कहलाता है क्योंकि यहां के लोगों की जनसंख्या में सर्वाधिक लोग 57 साल के है. हम सब जानते हैं कि युवा शक्ति के बगैर किसी का काम नही चल सकता और इस देश में युवाओं की सबसे ज्यादा कमी है.
हम सब इस कमी का फायदा उठा सकते हैं क्योंकि इन्होंने इसके अकॉर्डिंग ही अपनी पॉलिसीज डिजाइन की है. किसी भी बच्चों की अगर 18 से 28 साल के बीच में उम्र है और वह 10+2 पास है तो वो इस देश में सिर्फ जर्मन भाषा सीख कर यहां मूव हो सकता है. जर्मनी में जाने से पहले आपको नौकरी ऑफर की जाती है, फ्री ऑफ कॉस्ट एजुकेशन ऑफर की जाती है, रहने-खाने-पीने के लिए लाखों रुपए स्कॉलरशिप ऑफर की जाती है. उसके बाद वहां परमानेंट रेजिडेंसी पाना भी बेहद ही आसान है और बहुत कम समय में उसे पाया जा सकता है.
ऐसा माना जाता है कि यूरोप में जर्मनी का पासपोर्ट सबसे ज्यादा मजबूत है. ये लोग पहले आपको नौकरी देते हैं, उसके बाद फ्री में पढ़ाई करवाते हैं, रहने-खाने का खर्च देते हैं और PR भी देते हैं. मेरा यह सब लिखने का मकसद मात्र इतना है कि आप 20-30-40-50 लाख रुपए खर्च करके विदेश में अंधेरे में तीर ना मारे. अगर आप वहां जाने में कामयाब हो भी गए तो जाकर करनी मजदूरी ही पड़ती है. जर्मनी आपको Nursing, Hotel Management, Veterinary, Logistic, Retails and Sales, Agronomy जैसे बेहद सम्मानित प्रोफेशन में इनवाइट कर रहा है.
पूरे प्रदेश में लाखों बच्चे 12वीं पास करके गलियों में घूम रहे हैं, उन्हें सिर्फ एक भाषा सीखने की जरूरत है. जिसको सीखने में मात्र 6 महीने का वक्त लगता है और यह बहुत मुश्किल नहीं है. अगर आप या आपका कोई अपना इन तमाम पैरामीटर को पूरा करता है और जर्मनी में सेटल होना चाहता है तो हमारे कैंपस को विजिट कर सकता है.
जर्मनी में सेटल होने के लिए किसी भी कोर्स को चूज कर आप खुद को इनरोल कर सकते हैं और सितंबर 2024 इंटेक के लिए आखिरी तारीख 10 अक्टूबर 2023 है. वर्तमान वेकेंट पोजीशन का अगर सही आकलन करें तो अनुमान है कि इसके बाद आए हुए बच्चे जनवरी 2025 इंटेक में ही इनरोल हो पाएंगे.
- Rajesh Kundu
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