23/05/2024
मेरे नोकरीपेशा साथियो को समर्पित ...
कार खरीदना जेब पर कितना भारी पड़ता है, इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैने अपने एक मित्र की कार पर हो रहे खर्चे पर सोचा और उसके कुल खर्चे का हिसाब लगाया।
उसने कार तीन साल पहले खरीदी। टिपिकल मध्यम वर्गीय नौकरीपेशा है तो जाहिर है उसने लोन लेकर ही कार खरीदी है। कार पड़ी 16 लाख की। छह लाख का भुगतान किया और दस लाख बैंक से लोन लिया जो लगभग सात साल में पूरा होगा। हर महीने 15 हजार ईएमआई जा रही है। तो साल भर के हुए 1.8 लाख। वो तीन साल में अब तक 5.4 लाख बैंक को दे चुका है। हर साल गाड़ी की सर्विस और इंश्योरेंस पर लगभग 30 हजार खर्च होते हैं। तो उसको पड़े लगभग 60 हजार (पहले साल फ्री है)। गाड़ी अबतक 30 हजार किलोमीटर चल चुकी है। 15 का औसत माइलेज है तो पेट्रोल लगा 2000 लीटर, जिसकी कीमत हुई 2 लाख।
कुल मिलाकर ईएमआई, सर्विस, ईंधन, इंश्योरेंस वगैरह मिलाकर वो अबतक 8 लाख खर्च कर चुका है। 6 लाख तो डाउन पेमेंट अलग है। इसके ऊपर टोल टैक्स, पार्किंग, गाड़ी की वाशिंग, परफ्यूम और बाकी छोटे मोटे खर्चे तो जोड़े ही नहीं। इस तरह तीन साल में उसके 14 लाख से ज्यादा जेब से निकल चुके हैं। गाड़ी सात साल बाद उसकी अपनी हो जायेगी जिसे वो अगले आठ साल और चला पाएगा।
मित्र को net income जो मिलती है वो साल भर में कुल 10 लाख होती है। इसपर उसे कई तरह के टैक्स भी देना है और अपने बाकी खर्चे भी निकालने हैं। तीन साल में उसको कुल 30 लाख की कमाई हुई जिसमें से उसने 14 लाख तो गाड़ी पर ही खर्च कर दिए। ये उसकी कुल कमाई का लगभग 50 परसेंट है। ओहो! उसकी आधी कमाई तो उसकी गाड़ी ही खा चुकी है।
कुल मिलाकर नई गाड़ी खरीदना एक बहुत ही महंगा सौदा है। मिडिल क्लास इसीलिए आज के समय में परेशान है। सबसे बड़ा खर्चा तो उसकी गाड़ी करवा रही है। कमाई का बड़ा हिस्सा खा जा रही है।