21/07/2025
संघ- मतलब "द लास्ट वर्ड"
आरक्षण था, है और रहेगा - संघ
संघ की केंद्र व राज्य सरकारों का स्वरूप प्रत्यक्ष प्रमाण
सचिन देव, नई दिल्ली
देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में किसी भी मुद्दे खासकर आरक्षण जैसे संवेदनशील मसले पर ना भाजपा, ना कांग्रेस ,ना अन्य किसी राजनीतिक दल, अगर किसी का रुख मायने रखता है तो सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय स्वयं संघ (संघ) का।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के शिल्पकार, संघ प्रचारक, विमर्शक और विचारक मुकुल कानिटकर ने पहली बार खुलकर आम जन की समझ के मुताबिक सहज शब्दो मे आरक्षण पर संघ का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, "आरक्षण था, है और रहेगा"। जो लोग आरक्षण का विरोध करते है, उनकी मंशा पर सवाल है।
आरक्षण के मसले पर संघ और कानिटकर रुख में भविष्य में भी किसी प्रकार के बदलाव की गुंजाइश ना के बराबर है, क्योकि संघ जैसे अनिशासित संगठन में राजनीतिक दलों की तरह किसी वरिष्ठ प्रचारक के बयान को उनकी निजी राय बताए जाने के प्रसंग मेरी नजर में अब तक नही आए।
दरअसल कानिटकर - अपने गठन का सौ वर्ष पूर्ण करने जा रहे संघ ने शताब्दी वर्ष को मनाए जाने के लिए 'पंच परिवर्तन" (प्रण) का सूत्र अपने स्वयं सेवकों को जीवन और जमीनी स्तर पर उतारने के संकल्प पर पर प्रकाश डाल रहे थे।
राजनीतिक विश्लेषक के नजरिए से देखा जाए तो संघ के पंच परिवर्तन के संकल्प में बड़े ही सार्थक अंदाज में पहले जन मानस के समक्ष साबित किया और कार्ययोजना पेश की।
मसलन पंच परिवर्तन के पहले बिंदू में कुटुंब प्रबोधन में प्रथम शंकराचार्य के काशी में चांडाल प्रसंग के आधार पर एकात्म मानवता वाद का सिध्दांत। संघ जात-पात में नही मानता, भारत वर्ष में सनातनियो की एक ही पहचान "हिन्दू"। कोई वर्ण भेद नहीं। कुटुबं प्रबोधन से संघ ने समय -समय पर अपने ऊपर एक वर्ग विशेष से सम्बद्ध रहने के आरोपो को निरर्थक साबित कर दिया। खासकर विपक्ष द्वारा निर्णायक संवैधानिक पदों पर एक वर्ग विशेष के प्रभुत्व के आरोप निरर्थक साबित होते है। जब हम संघ की केंद्र और राज्य सरकारों के वास्तविक स्वरूप को देखते है। मसलन राष्ट्रपति अनुसूचित जनजाति, प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से, केंद्रीय गृह मंत्री अल्पसंख्यक वर्ग (जैन), मुख्य न्यायाधीश अनुसूचित जाति, उपराष्ट्रपति पिछड़ा वर्ग और कानून मंत्री अनुसूचित जाति वर्ग से है। हालात यह है कि पिछड़े राज्य मध्यप्रदेश में बावीस वर्षों से भाजपा का मुख्यमंत्री पद पिछड़े वर्ग के नेता के लिए ही आरक्षित है।
संघ की कथनी और करनी में कोई भेद ना होना विपक्ष के खोखला साबित करता है। मसलन संविधान खतरे में है, संवैधानिक संस्थाएं ध्वस्त हो रही है। एक वर्ग विशेष का अधिपत्य जैसे मुद्दे गौण साबित होते जा रहे है और टीशर्ट पर लाल डायरी का कॉम्बिनेशन लुप्त।
दूसरा बिंदु सामाजिक समरसता "शोषण मुक्त और समता युक्त समाज का निर्माण। संविधान का अक्षरशः पालन करते हुए "आरक्षण" को आत्मसात करने का ज्वलन्त उदाहरण संघ की केंद्र और राज्य सरकारों और भाजपा के पार्टी संगठन के साफ नजर आ ही रहा है।
शोषण मुक्त और समता युक्त समाज के निर्माण की दिशा में भी अपनी और से लागू कर दिया है। जिसके कई उदाहरण भाजपा की सरकारों में प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित भी हो रहे है। जैसे ही किसी नेता के दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे पड़े या चरित्र पर दाग लगे (पद पर रहते हुए या रसूख के दम पर शोषण के मामले) सीधे घर वापसी का टिकट। पद पर रहते हुए अपने प्रभुत्व के दम पर उपकृत लॉन्ड्रीयो में व्यक्तिगत स्तर पर ड्राई क्लीनिंग कराते रहो। लेकिन इसके बाद ना पार्टी में कोई आवाज ना अपनी ही सरकारों में कोई सुनवाई। राजनीतिक जगत में किसी जमाने के कद्दावरो के अवसाद ग्रस्त बयान गाहे बगाहे सुर्खिया बटोरते रहते है।
खैर पंच (प्रण) परिवर्तन का तीसरा संकल्प राष्ट्रीय कर्तव्य जो संघ की मूल भावना राष्ट्रीयता ही है, हालांकि संविधान में उल्लेखित "नागरिक कर्तव्य" के समान ही है।
चौथा - पर्यावरण संरक्षण जो संघ के समर्थन से चल रहे स्वयं सेवी संगठनों द्वारा वरक्षारोपण की मुहिम को हर सामाजिक भव्य आयोजनों में भाजपा शासित केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों की सक्रिय भागीदारी से प्रमाणित है। हालांकि इसमें प्रकृति पूजा सनातनी परंपरा और ग्लोबल वार्मिग दोनों दोनों उद्देश्यों की आपूर्ति होती नजर आ रही है।
कुल मिलाकर संघ के साधे हुए पंच परिवर्तन के संकल्प पिछले कई वर्षों से संचालन में है, लेकिन दशहरे से शताब्दी वर्ष के पूर्ण होंने से जब संघ अपने सहज अंदाज में इसको मनाएगा तो भव्यता से ज्यादा जमीनी स्तर पर अमल ज्यादा दिखाई देगा।
अपने गठन के शताब्दी वर्ष पूरे करने जा रहा संघ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व तमाम आयामो में सर्वगुण सम्पन्न संगठन के रूप में उभरा है। इसकी अपनी अनुशासनात्मक सधी हुई कार्यशैली के चलते "द लास्ट वर्ड" मतलब पूर्ण विराम की सिद्धि ही इस संघठन की ताकत है। अन्य राजनीतिक दल खासकर प्रमुख विपक्षी दल पिछले चार दशकों से अपनी डेढ़ सौ साल पुरानी डिक्शनरी में "द लास्ट वर्ड" शब्द की खोज में दिन रात एक किए हुए है। लेकिन अफसोस फिलहाल यह शब्द संघ की डिक्शनरी में शिफ्ट हो चुका है, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, भाजपा अध्यक्ष केंन्द्र या राज्य जवाब "संघ चाहता है...... पूर्ण विराम।
कारण सिर्फ इतना है, संघ कोई कोई व्यक्ति विशेष ना होकर राष्ट्रीयता, सामाजिक समेकित विकास की सोच के साथ आगे बढ़ने वाली सोच का समूह। जबकि भाजपा हो या अन्य कोई दल किसी एक नेता या कुछ नेताओं की पसंद ना पसंद तक सीमित और संचालित। आज की स्थिति में संघ मतलब "द लास्ट वर्ड" पूर्ण विराम...........
बस आज के लिए इतना ही। 🙏
नोट-वीडियो में आरक्षण पर सहज सरल शब्दों में संघ का पहली बार स्पष्ट करते कानिटकर 👇
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