06/07/2025
"जॉन एलिया और राहत इंदौरी की एक वाइन बार में मुलाक़ात"
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जगह:
बंबई की एक छोटी सी बार — "साक़ी रेस्टोरेन्ट"
दीवारें गीली, छत से पंखा झूलता हुआ, और कोने में एक उधड़ा सा सोफ़ा।
वक़्त:
रात के दो बज रहे थे।
बार वाला झपकी ले रहा था… और दो आदमी — नज़्म ओ ग़ज़ल से मेज़ सजाए बैठे थे।
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राहत:
(गिलास में पैग डालते हुए)
"भाई जौन… ये जो तुम मोहब्बत को इतनी तकलीफ़ में डालते हो,
कभी उसे ख़ुश भी होने दो…"
जॉन:
(बीड़ी सुलगाते हुए)
"ख़ुशी एक बहुत सतही चीज़ है, राहत…
मैं जब मुस्कुराता हूँ, तो शेर मर जाते हैं…"
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राहत:
(हँसकर)
"तो फिर ताज्जुब नहीं, तुम्हारे सारे शेर यतीम लगते हैं!"
जॉन:
(घूँट भरते हुए)
"और तुम्हारे सारे शेर जलूस लगते हैं —
हर शेर में लाऊडस्पीकर क्यों होता है?"
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राहत:
"क्योंकि मैं मुशायरे में पढ़ता हूँ, मयख़ाने में नहीं!"
जॉन:
"मयख़ाने में जो शेर पके, वो ही तो मुशायरे में चढ़ते हैं…
तुम्हारे लफ़्ज़ ज़रा कम नशे में हैं, राहत —
कुछ पेग उन्हें भी पिला दो।"
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बार वाला बोतल बदल लाया।
बातें अब ग़ज़ल से ज़्यादा, तल्ख़ होने लगीं।
राहत:
"तुम हर शेर में क्यूँ टूटते हो?"
जॉन:
"क्योंकि जुड़ने वाले शायर, बस पोस्टर बनते हैं,
और मैं — 'ग़ैर-शायरों का सबसे बड़ा शायर' हूँ।"
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राहत:
(बीड़ी बुझाते हुए)
"लफ़्ज़ मेरी जेब में छुरी की तरह रहते हैं…
मगर इस्तेमाल मैं तब करता हूँ जब दिल टांका नहीं जाता।"
जॉन:
(थोड़ी देर ख़ामोश रहकर)
"दिल की मर'ह'मत से पहले,
मैं उसे जला देता हूँ — ताकि फिर शेरों से धुआँ निकले।"
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कुछ देर खामोशी रही।
फिर जॉन ने पूछा:
"तुम्हें भी कोई छोड़ कर गई थी?"
राहत:
(धीरे से)
"नहीं…
मैंने उसे छोड़ दिया था —
लेकिन अपने हर शेर में वापस बुला लिया।"
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रात और गहरी हो गई।
गिलास ख़ाली हो चुके थे।
जॉन:
अगर मैं मर जाऊँ... तो मेरी किताबें संभाल के रखना —
कहीं कोई मिसरा तुम्हें ख़ुद से बात करता हुआ मिल जाए।
राहत:
"अगर मैं मर जाऊँ —
तो मेरी शायरी को ग़ौर से पढ़ना
क्योंकि उसमें सियासत नहीं इश्क़ की आग है, जो मुर्दा दिल को ज़िंदा करती है।"
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और फिर —
दोनों उठे, ग़ज़ल की राख समेटी,
बीड़ी की महक को सलाम किया,
और बार से बाहर निकल गए…
जैसे कोई नज़्म अधूरी छोड़ दी गई हो।
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अगली सुबह,
बार वाले ने देखा —
मेज़ पर दो चिट्ठियाँ पड़ी थीं।
एक पर लिखा था:
"मैं जॉन एलिया हूँ, और मुझे हर रिश्ता तोड़ना आता है…"
दूसरी पर:
"मैं राहत इंदौरी हूँ — और मुझे हर तल्ख़ लफ़्ज़ में ताली सुनाई देती है।"
मोहसिन आफ़ताब
शायरों के मनगढंत क़िस्से ...
Satlaj Rahat Indori