Chandi Ki Hansuli

Chandi Ki Hansuli Novel The novel born through the pain of weaker section of our society, in frame of Chandi ki Hansuli (silver ornament).

In short we may say that this novel representing to the Aam aadmi (general people)

02/09/2024

कविता: सुनो..... सुनते हो।
सुनो,
तुम कहां सुनते हो जी ?
अपने मन के आगे किसी की,
अपने लिए भी अब जीया करो
खुल कर हस लिया करो
मौन को तुम अब अपने तोड़ा करो
सुन रहे हो जी,
तुमसे कह रहीं हूं ।

सुनो,
क्यों चिंता की गठरी छाती पर टांगे
ढो रहे हो जी, उठाकर दूर कहीं फेंक दो
बहुत हुईं चिंता -फिक्र
अब नहीं करो जी
सुनो..... सुन रहे हो ।

तुम से कह रही हूं
क्यों परिवार की चिंता अब
अपने पांव पर खड़े हैं
बेटी -बेटा,भाई-भतीजा सब
कर दिए बड़ा त्याग
क्या मिला ?

तुम्हें रिश्ते की डोर थामें रहने से
मतलबी छोड़ दिए
वक्त बदलते ही,यह तो होना ही था
तुम भी जानते थे,हम भी और दुनिया भी
सुन रहे हो ना तुमसे कह रही हूं
कर लिए अपनी कमाई से बहुत उपकार
नहीं सुनने वाले स्वार्थी गुहार ।

अपनी खुशी अपने स्वास्थ्य के लिए
कसरत,योग कभी-कभी,
आयुर्वेदिक मसाज भी लिया करो
पहले जो शौक नहीं पूरा कर पायें
अब किया करो।
अपनी खुशी के लिए दिल की सुना करो
लिखा करो,पढ़ा करो,
पढ़ाया-लिखाया भी करो ।

वक्त निकाल कर कभी कभार
अपनी बाल-विवाहिता प्रेमिका के साथ
यात्रा पर निकल जाया करो
ड्राइवर नहीं यात्री बनो अब
प्रेमिका के हाथ के बने,
बिना नून -तेल वाले व्यंजनों का लुत्फ लिया करो
हां मन करे तो बिना चीनी वाली
चाय काफी कभी-कभी, मौके बेमौके पीया करो
प्यारे मोहन हंस कर जीया करो।

समझ गये!
कुछ इशारे भी समझा करो
कविता, कहानी, उपन्यास के कथानकों के अपने
बूढ़ी हो रही बाल प्रेमिका पर मत अजमाया करो।
सुनो तुमसे कह रही हूं
प्रेमिका की अपनी अब तो सुनो ।

उपन्यास, कविता, कहानी नहीं
कुछ बातें बस इशारे में होती है
प्रेमिका के आत्मा की लघुकथा को समझा करो
चलो बांधो बोरिया बिस्तर
तैयार हो जाओ,
हो गई केरल बंगलौर की यात्रा पूरी
वक्त है नापने की दूरी।

सुनो,
आओ लौट चलें, अपने घोंसले
इंदौर की ओर
फिर सोचेंगे कहीं दूर की,
नई यात्रा पर चलने के लिए
जानने समझने के लिए
फिर से एक बार... ‌ बार
नई उड़ान के लिए, नई यात्रा के लिए
आओ लौट चलें,
सुनो..... सुनते हो।

नन्दलाल भारती
०२/०९/२०२४

29/08/2024

लघुकथा : गांव की माटी/नन्दलाल भारती
अरे वाह हरिमोहन तुमने तो तड़पते हुए दिल को फिर से गांव की माटी की याद दिला दिया। बताओ कैसे याद किया भाई ?
साल बीत गए गांव नहीं लौटे कैसी विवशता आ गई भइया हरिमोहन पूछे?
माता-पिता के साथ गांव का स्नेह,अपनापन और गांव का दुलार चला गया भाई देव मोहन बोले।
भइया बहुत दुखी हो क्या बात है ? आपका सजायी माता-पिता की विरासत है। आपके भाई-भतीजा की तरक्की आप और भाभी साहिबा के त्याग के बदौलत है।

हरिमोहन भाई कौन मानता है? ना मैंने कुछ किया है ना श्रीमती जी ने सब कुछ भतीजा साहब और उनकी मां के मायके वालों ने किया है, आकी-बाकी भतीजा साहब की शादी में एक लाख रुपए की मोटी रकम से हुआ है। विश्वास नहीं हो तो सुभौताजी से पूछ लेना कभी फुर्सत में, काला अक्षर भैंस बरोबर जैसी चालाक लोमड़ी सब समझा देगी।

सुभौता भौजाई के ब्याह में भूखे पेट बारात वापस आयी थी, उनके मायके वालों की बीस बारातियों को खाना खिलाने की औकात नहीं थी,आज भी याद है।कब से नगर सेठ बन गये। सुभौता भौजाई के आपरेशन में उनके भाई मास्टर साहब ने दो हजार रुपए दिए थे। महिने भर बाद मास्टर साहब ने अपने बाप को भेजकर मंगवा लिया था। अपनी बसायी दुनिया -माता-पिता की विरासत- गांव की माटी को बचा लो भइया हरिमोहन बोले।

भतीजी के ब्याह में मेरी जान जाते-जाते बची, बेटी- बेटा शहर इलाज के लिए शहर भागे थे । हवाई जहाज से शहर जाने- आने में दो लाख खर्च हो गए थे, अस्पताल के खर्च को छोड़कर। चार लाख से ज्यादा शादी में खर्च किया।
मेरी जान की किसी को कोई परवाह नहीं थी, सुभौताजी ने मेरी पत्नी को सरेआम बेइज्जत किया। वह कहती है कि अफसर बेटा की शादी एक लाख रुपए के दहेज से हुई, जबकि शादी कि खर्च मेरी छाती पर था। बेशर्म परिवार की बेटी सुभौताजी को कहते हुए शर्म भी नहीं आई कि बिटिया की शादी में जेठजी ने एक पैसा नहीं दिया।
अफसर बेटा के उपर चवन्नी कभी खर्च नहीं की होगी पैदा करके जिम्मेदारी मेरे उपर छोड़ दी । आज बेटवा पतोहू वाली हो गई है । नन्हे से भतीजे को पाला-पोसा,पढाया-लिखाया, अफसर बनाया। मां-बाप की तरह हम पति-पत्नी ने छोटे भाई और उसके परिवार का पालन-पोषण किया। समय क्या बदला सुभौताजी सरेआम बेइज्जत कर रही है ? वाह रे दिल में खंजर उतारने वाले लोग देव मोहन रुंधे गले से बोले।

भाई साहब आपको किसी के सहारे की क्या जरूरत है ? आपकी औलादें कंधे पर बिठा रही है। लोमड़ी जैसी हरकतें कर सुभौता भौजाई ने अच्छा नहीं किया है। पूरा गांव जान गया है।क्या सुभौता भौजाई जानती नहीं है नेकी के बदले दिल में खंजर उतारने वाले नमक के बर्तन की तरह गलते हैं।

हरिमोहन दिल दुखाने की बात तो ना करो, हां मानता हूं,सुभौताजी,उनकी बेटी,बेटा और उनकी बहू ने नेकी के उपर खंखार कर थूंक दिया है,दिल में खंजर उतारा है, मेरे भाई की भी गलती है । मैं याद कर आज भी छिप-छिप कर रो लेता हूं। भाई हरिमोहन गांव की माटी माता-पिता की विरासत को ना मैं और ना मेरे वारिस छोड़ सकते हैं। मैं जरुर गांव आऊंगा।
गांव की माटी पुकार रही है । आ जाओ गांव में अभिनंदन है भइया।

नन्दलाल भारती
२९/०८/२०२८

28/08/2024

कविता: लाचार आदमी / नन्दलाल भारती
कोई लाचार नहीं होता
कैसे हो सकता है?
चल सकता है, दौड़ सकता है
सांस भरने के लिए जी सकता है
टूटा हुआ आदमी लाचार हो सकता है ।
सच में आदमी लाचार नहीं हो सकता।

कुछ लोग लाचार बना देते हैं
लाठी छिन कर,आंख में धूल डालकर
लोग ऐसे ठग होते हैं
दूसरों को लाचार कर, सपने लूट लेते हैं
दुष्टरतन काले कारनामे वाले,
लाचार बना देते हैं
सच में आदमी लाचार नहीं हो सकता।

कुछ लोग आदतन लाचार होते हैं
कुछ स्वांग रचते हैं
भ्रमित कर जीवन की अमूल्य चीज
लूट लेते हैं।
कुछ लोग लाचार दिल से होते हैं
दिमाग से शातिर होते हैं
अपनी जहां में में बहुत से लोग हैं
निरापद आदमी को लाचार बना देते हैं।

कुछ अमानुष लाचार बना कर,
स्वार्थ साधना चाहते हैं
इतिहास गवाह है, कुछ राजाओं ने,
अपनी बहन-बेटियां उपहार में देकर
राजपाट का सुख साधा है, लाचार बन कर
आज भी ऐसे हैं, सात फेरों में फंसकर
जीवन लूट लेते हैं,
विहसते कुनबे को लाचार कर देते हैं।

लाचार बनाने वाले पेशेवर होते हैं
मौका कोई नहीं चूकते
लाचार बनाने के चक्रव्यूह रचते हैं
लूट लेते हैं, जिन्दगी की कमाई
अबोध की विहसती खुशियां
कर देते हैं अपाहिज लाचार बना कर
सच है साहब लाचार कोई नहीं होता
आदमी आज का आदमी को,
लाचार बना देता है।

लाचारी के आगे,विहसती जहां की,
उजली तस्वीर होती है
डूबते सूरज से उगने की उम्मीद होती
मौत के बाद नवजीवन जैसी
सर्व सक्षम होकर भी आदमी हार जाता है
अपनों के सामने, अपनों के लिए
परिवार की खुशी, अपने जीवन के लिए
आदमी लाचार खुद बन जाता है।
नन्दलाल भारती
२७/०८/२०२४

23/08/2024

कविता: वो स्त्री ?
वो कौन सी ?
सभ्य लिबास में लबालब स्त्री
बीच सड़क पर पसरी
बाप का परिचय चिल्ला चिल्ला कर दे रही है
कुलक्षणा बन बैठी, पागल सी स्त्री
वो कौन सी ?
मां की कोख की बदबू बिखेर रही है
सभ्य खानदान की विवाहिता लगती है
सरेआम वालिद कि,
परवरिश बिन कहे सुना रही है
मंगलसूत्र की आभा में,
पुतना बन भिखारन बन बैठी है
दोष नहीं लगता पति या
परमेश्वर का कोई
कुलक्षणा है कोई जो,
बहुतै नाच नचा रही है
मत मारो पत्थर कोई
सुन लो पति के दिल की हाल कोई
संस्कार के बोझ तले दबा
देखो उस कोई
लगता अमीर बाप का बेटा कोई
नन्हा देखो बालक प्यारा
राजकुंवर दुलारा
महाठग वालिद की वो बेटी
पूतना या आज की कैकेई कोई
मत मारो पत्थर कोई
वालिद कोई नरपिशाच होई
मारना है पत्थर तो मारो सरे-आम
ठग मां बाप है जो कोई
दोषी नहीं वो स्त्री
मां का गुर बाप की सीख
झर रही जुबां
वो स्त्री लूटेरे मां बाप की बेटी
मत मारो पत्थर
हाफ ब्लाइंड हाफ माइण्ड
वो स्त्री ?
गुनाहगार बाप की बेटी कोई
बिखर रहा सभ्य गृहस्थ जीवन
सिसक रहा अहक रहा
निरापद पति-परमेश्वर कोई
करो गुहार नारी उध्दार
मां-बाप की उत्पीड़ित-लूटी,
संस्कार-विहीन स्त्री कोई
मत करना बर्बाद परिवार कोई
मत .....मत, मत मारो पत्थर
अब, अब कोई।
नन्दलाल भारती
२३/०८/२०२४

22/08/2024

लघुकथा: नाना की जेल/नन्दलाल भारती
लाल साहब तुम्हारा पौत्र स्कूल जाता है?
जी नन्देश्वर जी, केजी -टू में है।
लाल साहब संस्कार तो बिल्कुल पारिवारिक है,कमाल के लक्षण दिखाई दे रहें हैं।दादा का नाम रोशन करेगा।
नन्देश्वर -दोस्त तुम्हारे कुलभूषण कैसे हैं ? मुलाकात हुई थी?
हां लाल साहब जेलर साहिबा ने बाप बेटे को कुछ देर की मोहलत सात साल के बाद दी तो थी। बीटिया के घर राखी हंसी- खुशी मन गई,भले ही कुछ घंटे की मोहलत थी पर सात साल के बिछुड़न के बाद भाई-बहन के बीच स्नेह की बयार तो चल पड़ी, भगवान करें दुश्मन अंगुलीमाल की तरह बदल जायें।
बधाई नन्देश्वर?
मेरा कुलभूषण नहीं जाना चाह रहा था जाते समय तो रोने लगा पर बाप के सामने मजबूरी थी, पुलिस आ धमकती । बाप-बेटे रोते हुए चले गए, पत्नी पीड़ित मजबूर था,नन्देश्वर बोले।
यह भी बड़ी खुशी है। सात साल से सूनी कलाई पर बहन की राखी तो सजी ? लाल साहब बोले।
अद्भुत सुख लाल साहब। कनपुरिया नाना-नानी ने जो लूट का चक्रव्यूह रचा है वह टूटेगा मेरा कुलभूषण कंस नाना और डायन मां का घमंड चूर चूर करेगा।
बिल्कुल करेगा, अपने बाप की कमाई के पैसे-पैसे की लूट का हिसाब ठग नाना-नानी की जेल तोड़कर बात -बात पर लात मारने वाली जेलर मां से मुक्त होगा लाल साहब माथा ठोकते हुए बोले,तुम अपने कमासूत बेटे का बिना दहेज के ब्याह क्या कर लिये रिश्ते के दुश्मन तुम्हारी किडनी ही नोंच-नोंच कर उखाड़ लिए।
बाप, बाप के सपनों में रंग तो नहीं भर पाया, उम्मीद है पोता सपनों के लूटेरे कनपुरिया नाना की जेल तोड़कर कर दादा-दादी के सपनों में रंग जरुर भरेगा।
बधाई नन्देश्वर, तुम्हारा परिवार पूरी तरह संगठित होकर तरक्की के पथ पर पुनः दौड़ पड़े मंगलकामनाएं दोस्त!
नन्दलाल भारती
२०/०८/२०२४

15/08/2024

कविता: आओ तिरंगा फहरायें।

आओ तिरंगा फहरायें,
हे नवजवान और जवान होते
देश की बागडोर सम्हालने वाले
तुमने तो पढ़ा ही होगा,
सुना भी दादा-दादी से
अगर तुम सौभाग्यशाली हो
पढ़ा तो होगा जरुर से
याद भी है कि नहीं?
देश भारत १५ अगस्त १९४७ को
हर भारतवासी ने तिरंगा झण्डा फहराया
आजादी को उसी अब तुम्हें संवारना है
आजादी ये किसी उपहार में नहीं मिली
मूलनिवासी भारतवासी, गाजर मूली तरह कटे
इतिहासकारों को उन गांव और
गांववासियों के हाशिए के लोगों
कि याद तक नहीं
तुम्हें खंगालना और टटोलना होगा प्यारे
देश हवाले तुम्हारे
कटे खूब गुलामी की जंजीरों में जकड़ने वालों को गाजर मूली की तरह,काल के माथे मढ़ा है
अशिक्षित वर्णिक चौथे दर्जे वालों ने काटा
तवायफों और मलिन पेशे में छोंकी
महिलाओं ने भी वेष बदल-बदलकर
गोरों को खूब मज़ा चखाया
रखना आजादी अमर हमारी
सच...अमर शहीदों के कंधे पर
चढ़कर देश ने आजादी है पाई
कटे थे अंग-भंग हुए थे
मरे थे शहीद हुए थे
ना जातिभेद ना धर्मभेद था
ना स्त्री ना पुरुष का भेद था
कटे थे, अंग-भंग शहीद हुए थे
मकसद था सच्चा हर कीमत पर आजादी
अफसोस ;
जाति भेद -धर्मवाद,नारी अस्मिता पर,
शोले बरस रहे आज भी
पूरी तरह लागू नहीं हुआ संविधान भी
शोषण-अत्याचार,नारी उत्पीड़न पर
पूर्ण विराम लगाना होगा तुम्हें
आजादी की रक्षा संविधान की रक्षा
करना होगा तुम्हें
ना जातिवाद ना अब धर्मवाद का जाप बंद होगा
आजादी के रक्षा की शपथ,
सच्ची लेना होगा तुम्हें
समरसता-समानता का राज लाना होगा तुम्हें
देश गुलामी, विभाजन और वर्णवाद का
अभिशाप झेल चुका है बहुत प्यारे
बहुत हुआ और अब नहीं
वर्णवाद-धर्मवाद , अधिकार हनन से मुक्त,
समानता का राज लाना होगा तुम्हें
देश की बागडोर ईमानदारी से थामना होगा
आओ देशवासियों बूढ़े बच्चे नवजवानों
अमर शहीदों का जय जयकार करे
जय हिन्द,जय भारत,जय संविधान का
उद्घोष करें गगनभेदी,भारत देश महान
देश का गौरव,जन-जन का स्वाभिमान
अपनी आजादी की शान,
समय के आर-पार पहुंचाये,
संविधान को माथे लगायें
आओ तिरंगा फहरायें...... तिरंगा फहराये ।

नन्दलाल भारती
१५/०८/२०२४

13/08/2024

लघुकथा:गलती की सजा/नन्दलाल भारती

दोस्त तुम लोगों और कुरीतियों पर कलम की तलवार चलाने की कोशिश कर रहे हो?अच्छी कोशिश है।
जी....सच कह रहे दोस्त पंडित कुमार ।
तुमने गलती नहीं किया है क्या?
बिल्कुल किया हूं एक नहीं कई पर खास दो।
तुमने क्या-क्या खास दो गलती किये थे?
पहली गलती झूठ और दूसरी दो रूपए की चोरी।
वाह दोस्त झूठ और चोर भी और क्यों बताओगे क्या?
क्यों नहीं दोस्त सुनो!
ठाकुर मानसिंह छठवीं कक्षा में अंग्रेजी विषय पढ़ाते थे।वे अंग्रेजी के अध्यापक मेरे गांव से कुछ ही दूर गांव के थे,स्कूल और गुरुजी का गांव मेरे घर से सीधा और साफ-साफ दिखाई पड़ता था। यही गुरुजी अंग्रेजी में में स्पेलिंग को सुधारे थे।
कैसे?
इज की स्पैलिंग मैंने लिखा था आईजे गुरु जी ने आईएस बताया था, गुरु द्रोणाचार्य की तरह नहीं सच्चे गुरु की तरह। इन्हीं गुरु से जातीय बाभन छात्र के साथ लिखित अपनी ग़लती को छिपाया था हालांकि राइटिंग से पकड़ा गया था। इसके बदले सजा में गुरुजी ने मेरी हथेली उल्टी -सीधी कर डण्डें बरसाये थे।
मैं रोया भी था। कुछ सवर्ण साथियों ने विरोध और मुझे उकसाया भी था। मैंने गलती दिल से मान कर प्रायश्चित भी लिया।
वाह दोस्त गजब का सुधार तुमने कर लिया। दूसरी गलती क्या थी ?
देखो दोस्त बचपन में गलतियां तो बहुत हुईं होगी पर दूसरी जीवन सुधारने वाली दो रुपए की चोरी तनिक याद है। मेरे पिताजी को गांजा पीने का बुरा शौक था खैर और नशाओं से परहेज़ तो नहीं था। मैंने दो रुपए उनकी जेब सू चुरा लिए थे, परुवा पाने कर बहाना छिपाने की कोशिश भी किया था। प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई का आरंभ ही था । पिताजी को पता तो चल गया था पर सजा के तौर पर वे मुस्करा भर दिये थे। यही मेरी दूसरी यादगार गलती हैं।
वाह दोस्त तुमने कितना क्रांतिकारी परिवर्तन खुद में कर लिया । अब गुरु बन गये सजा की दूरगामी अनूभूति कर । वाह रे कर्म से पण्डित बने गैर उच्च वर्णिक दोस्त देव कुमार ।

नन्दलाल भारती
१३/०८/२०२४

Terrace Garden Brinjal Harvesting & Growing Tips | Hindi
04/08/2024

Terrace Garden Brinjal Harvesting & Growing Tips | Hindi

27/07/2024

कविता: तुम किताब हो/नन्दलाल भारती

प्यास नहीं बुझती
मुहब्बत मेरी तुम हो तुम हो
बार हजार बार तुम्हें बांचूं
आस नहीं भरती,
प्यास नहीं बुझती प्राण तुम
बंजर की आस हो....

सीमित दिमाग में, तुम असीमित
असीम चाह तुमसे प्रिये दिग्दर्शनीय
तुम्हारी अथाहता को,निहारता हूं
अपने घर में समा ना सका तुम्हें
तुम कितनी सुन्दर हो,धवल
मन रोके भी नहीं रुक पाता
बांचता रहता हूं तुम्हें
पहली मुहब्बत मेरी तुम हो तुम हो
प्यास नहीं बुझती, बांचते,निहारते
आस नहीं भरती तुमसे ......आस नहीं भरती.

प्यासा रहता हूं तुम्हें बांचने को
जी भर बांचने की कोशिश करता हूं
जी भर जाता है जैसे कई बार
खाली रह जाता है हर बार
कभी नहीं भरती प्यास
खाली रहता है उर का कोना
लगता है जीवन भर नहीं भरेगा कोना-कोना
लगता है लेना होगा जन्म हजार
रह जाती है अधूरी प्यास
कब होगी बुझेगी अपनी प्यास
चाह नहीं बुझती हर बार....

सांस हर सांस में ज्योति हर्षित
अपनी जहां की चाह तू हो तू हो
बिन तुम मेरा जीवन कैसा ?
तुम हो तो सब कुछ है प्रिये
ज्ञान -विज्ञान तू स्वाभिमान मेरे
प्यास नहीं बुझती प्रिये
चाह नहीं भरती ..........

तुम ज्ञान-विज्ञान की ज्योति
तुम मेरी मुहब्बत किताब हो प्रिये
किताब हो, बिन तुम्हारे क्या औकात?
तुम किताब.....मेरी असली चाह हो
प्यास नहीं बुझती आस नहीं भरती
कोई और नहीं मेरी मुहब्बत हो
तुम मेरी ही नहीं, दुनिया को,
तुम कोई दूसरी नहीं
मैं जानता हूं मैं सूरज बन सकता
तुम मेरी मुहब्बत हो, तुमने दीया बना दिया।
तुम ज्योतिर्पुंज अनमोल ज्ञान की भण्डार
मेरे जीवन की आस-प्यास हो तुम
सच में मेरे जीवन की तुम खिताब हो
मेरी पहली और आखिरी मुहब्बत
मुझे ही नहीं दुनिया के हर
सृजनकार को जीवन के साथ
जीवन के बाद जिन्दा रखने वाली
किताब हो....... तुम किताब हो।

नन्दलाल भारती
२७/०७/२०२४

26/07/2024

कविता: उठा लो कैंची/नन्दलाल भारती

नाखुशी से परहेज़ नहीं करता
आजकल दोस्त
खुशी का पीछा भी नहीं करता
सकारात्मक सोच का आदमी हूं
सकारात्मक रहने का हर सम्भव प्रयास करता हूं
कई बार फेल भी हो जाता हूं
हां....सम्मान करता हूं,हर खुशी का
छोटी हो या बड़ी
खुशी तो खुशी होती है दोस्त
नाखुशी के ना पर
चला देता हूं कैंची खटाक से
हिस्से आ जाती है, खुशी दोस्त खुशी!
शब्द बीज बोता हूं, मानसिक पटल पर
खोज सकूं शब्द, मान देने वाली खुशी को
नाखुशी के ना पर चला देता हूं
खटाक से कैंची,
डरावनी बातों पर सिसकता नहीं
ढूंढता है तो खुशी खुलकर,
ध्यान रखता हूं उनका
और अपना भी,
डायबिटीज़ को खुश रहने को कहता हूं
रहता भी हूं,
मैं भी तो हूं, मानता नहीं दोस्त
डर तो अब दूर की बात है !
मैं तो कहता हूं डरो नहीं ,जीओ खुशी से
सामना करिए और स्वागत भी
दोस्त यह तो तुम्हारी ही आमन्त्रित हैं
खुद ने ही तो आमन्त्रित किया है
कोई जानकर कोई अनजाने में
खाने और आराम के लिए
पसीना तो बहाये नहीं
या बहा पाये नहीं फुर्सत नहीं मिली दोस्त।
स्वागत तो कर चुके अब
सुरक्षित रहने के उपाय पर चल पड़ो
कसरत और योग पर
खर्च करो अब थोड़ा वक्त,
दवाईयां लीजिए पर दवाई नहीं
तन्दुरूस्ती की टानिक समझकर दोस्त!
जल्दी नहीं किए तो
जैसे-जैसे बढ़ेगा,सिर पर नंगा नाच करेगा
डरना तो दूर की बात होनी चाहिए
तुम नाखुशी के गोद में रहने लगोगे
उठा लो कैंची
काट दो नाखुशी का ना खटाक से दोस्त
कर दो खुशी का विस्तार और अधिक विस्तार
छोड़ दो आराम और आराम से अधिक इश्क़,
शुरु कर दो मेहनत
पसीना बहाने के लिए कसरत के लिए
हां हो सके तो ध्यान
और
योग भी कर लेना तनिक
पूछोगे नहीं क्यों दोस्त पूछो
सुनो दोस्त
दुश्मन अर्थात डायबिटीज से सुरक्षा
और अच्छी तन्दुरूस्ती के लिए
उठा लो कैंची,
नाखुशी का ना खटाक से काटने के लिए दोस्त
पूर्ण विराम लग जाए दुश्मन के विस्तार पर
हो जाये दोस्त अपनी खुशी का विस्तार,
घबराओ नहीं कस लो कमर
दे दो चुनौती खुशी पाने के लिए
आसमान छूने के सपने को
पूरा करने के लिए समझे दोस्त
अब देर किस बात की ?
उठा लो कैंची .......नाखुशी का ना, खटाक से
काटने के लिए
खुशी पाने के लिए दोस्त!

नन्दलाल भारती
गुरुवार,२५ जुलाई २०२४
(यह कविता जैन राष्ट्र सन्त ललितप्रभ जी के प्रवचन से प्रभावित होकर लिखने का प्रयास किया हूं)

19/07/2024

लघुकथा-मझली बहू/नन्दलाल भारती
भाई साहब रिटायरमेंट के बाद से तो बहुत उदास रहने लगे हो, जैसे लगता है, जीने का मक़सद किसी ने छिन लिया है।सेवादास की खामोशी को तोड़ने की कोशिश करते हुए देवचरन आंखें नीची कर पूछे।
बड़ी बहू का पवरा क्या पड़ा परिवार पर तूफान आ गया,अब मंझली बहू ने परिवार में सुनामी लाकर रख दिया है, परिवार बिखर गया है, मेरी और माधुरी की तपस्या कलंकित हो गई है, भाई देवचरन जीने की इच्छा खत्म होती जा रही है। जीने का मक़सद सच लूट गया है भाई।

अपने ही गांव-मोहल्ले में क्या ? आसपास के गांवों में आपके भय्यपन की कसमें खायी जाती है,भईया आप और भौजाई के तप का ही तो प्रतिफल है कि आपका परिवार गांव में शिक्षित, सम्पन्न और संगठित परिवार है,सच आपने तो खुद के परिवार के साथ भाई वैद्यदास के परिवार को फर्श से अर्श तक ले गये। आप दो भाईयों के दो बेटी तीन बेटों के सुखी परिवार में ये कैसी विपत्ति ? वैद्यदास और लाजवंती मंझली बहू के सुनामी को कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं।बहू के बहकावे और पुत्र मोह में वैद्यदास और लाजवंती भौजाई तो दुर्योधन और गांधारी बने बैठे हैं।

यहां तक भी तो ठीक था हम लोगों को मंझली बहू ने तो दुश्मन बना दिया है। पिता-पुत्र जैसे भय्यपन और मां-बड़ी बेटी जैसे जेठानी-देवरानी के पावन रिश्ते को उच्च शिक्षित कौवे जैसी चालाक मंझली बहू मीतू ने दूषित कर दिया है,जो लज्जा की बात है देवचरन भाई।

ये तो सेवादास भईया आप पति-पत्नी छाती पर पत्थर नहीं पूरा पहाड़ लिए जी रहे हैं? जिस भाई और उसके बच्चों को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिए वही उपकार के बदले अपनी मंझली बहू के चक्रव्यूह में फंसकर इतना बड़ा दण्ड दे रहे हैं।

देवचरन भाई यहां तक भी तो बढ़िया था, हमारे लिए तो और दुःख की बात है कि परिवार में महाभारत खड़ा कर वैद्यदास और लाजवंती को निराश्रित छोड़कर, मीतू बिग बॉस पति मंगरुरदास के साथ बच्चा लेकर शहर फ़ुर्र हो गई। मेरे जीवन का तो बड़ा दुःख यही हो गया है । हाय रे मझली बहू।

सुनो सेवादास भईया आपको तो समझाने की मेरी औकात नहीं है,सब्र करो। अच्छे लोगों के दिन अच्छे ही रहते हैं। मेरी शिक्षित घर को मंदिर, परिवार के सदस्यों को देवता मानने वाली बहू का फोन है,लंच के लिए बुला रही है। भईया सेवादास याद रखना -वे दिन बीत गए,यह भी बीत जायेगा।
नन्दलाल भारती
१९/०७/२०२४

Nand Lal Bharati साहित्यकार एवं साफ्टस्किल ट्रेनर   (Developmental,Behavioural, Personality Developmental Training) Medi...
27/06/2024

Nand Lal Bharati
साहित्यकार एवं साफ्टस्किल ट्रेनर
(Developmental,Behavioural, Personality Developmental Training) Medium of Training -Hindi & English only.

Address

Indore

Website

http://www.hindisahityasarovar.blogspot.com/

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