Jitendra Jagraj Singh Yadav

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07/06/2025

ईद मुबारक!

11/05/2025

संजय शर्मा का युट्यूब चैनल 4 PM पुनः बहाल हुआ,
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P P बाजपाई अपने युट्यूब चैनल पर 5 दिनों के बाद लौटे, अज्ञात कारणों से अचानक बंद हुआ चैनल फिर से शुरू हुआ.. हालांकि *बाजपाई* ने नहीं बताया कि चैनल बंद होने के बाद उनके सामने नहीं आने कि वजह क्या थी...
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उधर संजय शर्मा ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार द्वारा उनका चैनल राष्ट्र के लिये खतरा बताकर बंद किया था..
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उक्त एक पक्षीय फैसले को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी..
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सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस किया...
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केंद्र ने जवाब दाखिल करने कि मियाद से ठीक दो दिन पहले ही चैनल फिर से शुरू करने कि दिशा में कदम उठाए और वे फिर तीखे तेवरों के साथ लौट आए है...
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इस बीच उनके 4PM यूपी के चैनल में दर्शकों की संख्या में ऐतिहासिक वृद्धि भी दर्ज कि गई है...
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The wire की वेबसाईट पर लगा प्रतिबंध जारी है, the wire भी इस अचानक बंदी के फैसले को विधिसम्मत चुनौती देने की तैयारी कर रहा है...
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Save Journalism
Save Journalism Foundation...
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निष्ठा का बोझ: क्या देशभक्ति को साबित करना जरूरी है?जितेंद्र सिंह यादववरिष्ठ पत्रकारदेशभक्ति वह पवित्र भावना है जो प्रत्...
05/05/2025

निष्ठा का बोझ: क्या देशभक्ति को साबित करना जरूरी है?

जितेंद्र सिंह यादव
वरिष्ठ पत्रकार

देशभक्ति वह पवित्र भावना है जो प्रत्येक नागरिक के हृदय में स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है। यह वह अनुभूति है जो व्यक्ति को अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, निष्ठा और समर्पण से जोड़ती है। यह भावना न केवल व्यक्तिगत होती है, बल्कि सामूहिक रूप से समाज को एकजुट करने का भी काम करती है। फिर भी, आधुनिक भारत में यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या देशभक्ति को सड़कों पर प्रदर्शन, नारेबाजी या पुतला दहन के माध्यम से साबित करना आवश्यक है? विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर मुस्लिम समाज, पर बार-बार अपनी देशभक्ति को साबित करने का दबाव क्यों बन रहा है? हाल के वर्षों में आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ उनके सार्वजनिक प्रदर्शनों ने इस बहस को और गहरा कर दिया है। यह लेख इस जटिल मुद्दे की पड़ताल करता है कि अल्पसंख्यक समुदाय को आतंकवाद के खिलाफ सड़कों पर उतरने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है और क्या यह दबाव सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक संदर्भों का परिणाम है।
आतंकवाद और अल्पसंख्यक समुदाय का रुख : हाल के वर्षों में भारत ने कई आतंकवादी हमलों का सामना किया है, जिनमें 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ हमला विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस हमले में निर्दोष हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया गया, जिसने पूरे देश में आक्रोश और दुख की लहर पैदा की। इस घटना के जवाब में अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से मुस्लिम समाज, ने भोपाल, जयपुर, बांसवाड़ा और अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। इन प्रदर्शनों में पाकिस्तान के पुतले जलाए गए, आतंकवाद की कड़े शब्दों में निंदा की गई और राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया गया। भोपाल में वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सनोवर पटेल ने कहा, “पहलगाम का हमला केवल कश्मीर तक सीमित नहीं, बल्कि यह पूरे देश के खिलाफ हमला है। मुस्लिम समाज इसकी कठोर निंदा करता है और भारत की एकता के साथ मजबूती से खड़ा है।” इसी तरह, जयपुर में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के हमीद खान मेवाती ने इसे हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बताया, जो आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी ताकत है।ये प्रदर्शन केवल आतंकवाद के खिलाफ गुस्से का इजहार नहीं थे, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से यह स्पष्ट संदेश भी थे कि वे भारत की संप्रभुता और एकता के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन प्रदर्शनों की आवश्यकता केवल आतंकवाद के खिलाफ रुख प्रदर्शित करने के लिए थी, या इसके पीछे गहरे सामाजिक और राजनीतिक दबाव भी काम कर रहे थे?

सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ : भारत में कुछ कट्टरवादी समूह और राजनीतिक ताकतें अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से मुसलमानों, को आतंकवाद या पाकिस्तान से जोड़ने की कोशिश करती रही हैं। यह एक खतरनाक नैरेटिव है, जो न केवल सामाजिक एकता को कमजोर करता है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय पर अपनी देशभक्ति को बार-बार साबित करने का अनुचित दबाव भी डालता है। मीडिया और सोशल मीडिया पर फैलाए जाने वाले नकारात्मक चित्रण इस दबाव को और बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, आतंकवादी हमलों के बाद सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसी टिप्पणियां देखने को मिलती हैं जो पूरे मुस्लिम समुदाय को संदेह के घेरे में लाने की कोशिश करती हैं। यह सामान्यीकरण न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करता है।ऐतिहासिक रूप से, 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से ही मुस्लिम समुदाय को अपनी निष्ठा पर सवालों का सामना करना पड़ा है। विभाजन के समय की राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल ने एक ऐसी धारणा को जन्म दिया, जो आज भी कुछ हद तक कायम है। इस ऐतिहासिक बोझ के कारण अल्पसंख्यक समुदाय को बार-बार सार्वजनिक रूप से अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह एक दुखद विडंबना है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण और समावेशी देश में, जहां संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, कुछ समुदायों को अपनी निष्ठा को बार-बार साबित करना पड़ता है।

देशभक्ति का स्वरूप और प्रदर्शन : देशभक्ति एक गहरी व्यक्तिगत और सामूहिक भावना है, जो किसी बाहरी प्रदर्शन की मोहताज नहीं होनी चाहिए। यह वह भावना है जो नागरिकों को अपने देश के लिए कार्य करने, समाज की बेहतरी में योगदान देने और एकता को मजबूत करने के लिए प्रेरित करती है। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन निश्चित रूप से उनकी राष्ट्रीय एकता और आतंकवाद के प्रति घृणा को दर्शाते हैं। लेकिन यह भी विचारणीय है कि क्या समाज और राजनीतिक व्यवस्था उनकी स्वाभाविक देशभक्ति को स्वीकार करने में विफल रही है?देशभक्ति को किसी समुदाय विशेष की निष्ठा के पैमाने पर तौलना न केवल अनुचित है, बल्कि यह सामाजिक एकता को भी कमजोर करता है। भारत का इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां मुस्लिम समुदाय ने देश के लिए अपार बलिदान दिए हैं। स्वतंत्रता संग्राम में मौलाना अबुल कलाम आजाद, रफी अहमद किदवई और अन्य मुस्लिम नेताओं की भूमिका हो, या फिर कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन हनीफ उद्दीन का बलिदान—ये सभी उदाहरण इस बात का प्रमाण हैं कि देशभक्ति किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है। फिर भी, बार-बार प्रदर्शन की आवश्यकता इस बात की ओर इशारा करती है कि समाज में आपसी विश्वास की कमी कहीं न कहीं मौजूद है।

आगे की राह : अल्पसंख्यक समुदाय के प्रदर्शन आतंकवाद के खिलाफ उनके स्पष्ट रुख और राष्ट्रीय एकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। लेकिन यह जरूरी है कि समाज और सरकार ऐसी परिस्थितियां बनाएं जहां किसी भी समुदाय को अपनी देशभक्ति को साबित करने की आवश्यकता न पड़े। इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। पहला, मीडिया और सोशल मीडिया पर नकारात्मक नैरेटिव को नियंत्रित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं। दूसरा, शिक्षा प्रणाली में ऐसी सामग्री शामिल की जाए जो भारत की विविधता और सभी समुदायों के योगदान को रेखांकित करे। तीसरा, राजनीतिक नेतृत्व को ऐसी बयानबाजी से बचना चाहिए जो किसी समुदाय को अलग-थलग करने का काम करे।

देशभक्ति प्रदर्शन का विषय नहीं, बल्कि प्रत्येक भारतीय के हृदय में स्वाभाविक रूप से बसी भावना है। यह वह शक्ति है जो भारत को एक सूत्र में बांधती है। हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना चाहिए जहां सभी नागरिकों की निष्ठा पर सवाल न उठाए जाएं, बल्कि उनकी एकता को देश की सबसे बड़ी ताकत माना जाए। जब तक हम इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं करेंगे, तब तक देशभक्ति जैसे पवित्र भाव को प्रदर्शन के दायरे में सीमित करने की प्रवृत्ति बनी रहेगी। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहां देशभक्ति किसी समुदाय की पहचान का पैमाना न हो, बल्कि वह हर भारतीय की साझा विरासत हो।

आज इंदौर शहर सामाजिक तनाव और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है... !जितेंद्र सिंह यादव।  वरिष्ठ पत्रकार इंदौर, जो अपनी सांस्...
04/05/2025

आज इंदौर शहर सामाजिक तनाव और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है... !

जितेंद्र सिंह यादव। वरिष्ठ पत्रकार

इंदौर, जो अपनी सांस्कृतिक समृद्धि और सामाजिक सौहार्द के लिए जाना जाता था, आज विवादों के भंवर में फंसकर अस्मिता पर हो रहे हमले का दंश झेल रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ शहर में जगह-जगह लगे जहरीले पोस्टर, एक पुलिस अधिकारी की शर्मनाक टिप्पणी, और कानून व्यवस्था की रहस्यमयी चुप्पी—ये सब मिलकर न सिर्फ सामाजिक एकता को तार-तार कर रहे हैं, बल्कि पुलिस और प्रशासन की नीयत पर भी गहरे सवाल खड़े कर रहे हैं। क्या यह कानून का राज है, या सामाजिक सद्भाव को कुचलने की साजिश? यह सवाल हर इंदौरी के मन में गूंज रहा है।

विवाद की जड़ एक प्रदर्शन में है, जहां आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ पुतला दहन के दौरान कुछ उत्साही युवकों ने गलती से 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगा दिया। संदर्भ स्पष्ट है—'हिंदुस्तान जिंदाबाद' और 'पाकिस्तान मुर्दाबाद' के नारे गूंज रहे थे, और यह महज एक भूल थी, कोई सुनियोजित कृत्य नहीं। प्रदर्शन का आयोजन कांग्रेस पार्षद अनवर कादरी ने किया था, और पुतला दहन का मकसद आतंकवाद की निंदा था। फिर भी, भाजपा विधायक गोलू शुक्ला ने इस घटना को हथियार बनाकर एफआईआर दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने पार्षद अनवर कादरी सहित दो लोगों को हिरासत में ले लिया। लेकिन असली आग तब भड़की जब सदर बाजार थाने के टीआई ने विधायक के सामने एक अन्य भाजपा पार्षद से उलझते हुए बेहूदा सवाल किया—'क्या मेरी रगों में मुस्लिम खून बह रहा है?' यह टिप्पणी न सिर्फ आपत्तिजनक है, बल्कि एक पुलिस अधिकारी की संवेदनहीनता और सामुदायिक तनाव को भड़काने की क्षमता को उजागर करती है।

क्या यही वह निष्पक्षता है, जिसका दावा कानून के रखवाले करते हैं? क्या एक मानवीय भूल को तूल देकर सामुदायिक भावनाओं को आहत करना पुलिस का कर्तव्य है? इंदौर में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ पोस्टरों की बाढ़ और पुलिस की खामोशी क्या महज संयोग है? ये सवाल न सिर्फ प्रशासन की कार्यशैली पर, बल्कि उसकी मंशा पर भी उंगली उठाते हैं। एक शहर, जो अपनी गंगा-जमुनी तहजीब पर गर्व करता था, आज सामाजिक तनाव और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है।

इस मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच अब समय की मांग है। गलत नारेबाजी को उसके संदर्भ में देखा जाना चाहिए, न कि उसे सियासी हथियार बनाया जाए। पुलिस अधिकारियों को संवेदनशीलता का कड़ा प्रशिक्षण देना होगा, ताकि ऐसी शर्मनाक टिप्पणियां भविष्य में न हों। विवादित पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित हो। इंदौर की शांति और साख दांव पर है। प्रशासन, पुलिस और समाज को मिलकर इस शहर की आत्मा को बचाना होगा। सवाल गलती का नहीं, सवाल उस मंशा का है जो इस गलती का फायदा उठाकर सामाजिक एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है। इंदौर को फिर से अपनी तहजीब और गौरव अतित की ओर लोटना होगा !

11/03/2025

🔴 सियासी ज़हर से लहूलुहान समाज! 🏴‍☠️

"बटेंगे तो कटेंगे, एक हैं तो सेफ हैं" जैसे नफरत भरे नारे क्या हमारे देश की पहचान बन जाएंगे?
🏳️‍🌈 होली-जुम्मा संयोग, चैंपियंस ट्रॉफी के बाद हिंसा और नेताओं के भड़काऊ बयान – क्या सियासत हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब को खत्म कर रही है?

📰 लेखक: जितेंद्र सिंह यादव
📌 प्रकाशन: न्यूज़O2

संपादकीय लेख की लिंक कमेंट बॉक्स में...

👉 अब समय है सवाल पूछने का! क्या हम नफरत की राजनीति को स्वीकार करेंगे ? 🏛️✊

क्या मोदी सरकार को कार्टून से डर लगता है?-  "वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह यादव का धारदार लेख: क्या भारत में अब प्रधानमंत...
21/02/2025

क्या मोदी सरकार को कार्टून से डर लगता है?
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"वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह यादव का धारदार लेख: क्या भारत में अब प्रधानमंत्री की आलोचना अपराध? विकटन.कॉम प्रतिबंध की पूरी कहानी

क्या भारत में अब प्रधानमंत्री की आलोचना करना अपराध है? जानिए विकटन.कॉम पर लगे प्रतिबंध के पीछे की पूरी कहानी!"

मध्यप्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2007-2024: निवेश और रोजगार की वास्तविकता-
21/02/2025

मध्यप्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2007-2024: निवेश और रोजगार की वास्तविकता
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MP में 2007-2024 के बीच 7 इन्वेस्टर्स समिट में 33.19 लाख करोड़ के प्रस्ताव, लेकिन सिर्फ 2.55 लाख करोड़ धरातल पर। जानें निवेश की सच.....

मोह सदैव दुःख देता है!
24/11/2024

मोह सदैव दुःख देता है!

।। ॐ भैरवाय नम:।।भगवान श्री काल भैरव अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। #काल_भैरव_अष्टमी
23/11/2024

।। ॐ भैरवाय नम:।।

भगवान श्री काल भैरव अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

#काल_भैरव_अष्टमी

"हीरो ऑफ द डे: स्ट्रीट डॉग!10 साल की बच्ची को अगवा होने से बचाया। घर से बाहर निकलते ही हमलावर ने मुंह दबाया, लेकिन स्ट्र...
06/11/2024

"हीरो ऑफ द डे: स्ट्रीट डॉग!

10 साल की बच्ची को अगवा होने से बचाया। घर से बाहर निकलते ही हमलावर ने मुंह दबाया, लेकिन स्ट्रीट डॉग ने समय पर पहुँचकर बचा लिया।

स्ट्रीट डॉग! तुम्हारी बहादुरी को सलाम!

#स्ट्रीटडॉग #हीरो #बचाव

बीते रिश्ते तलाश करती है,ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है! #शुभ
22/01/2024

बीते रिश्ते तलाश करती है,
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है!
#शुभ

24/10/2023

नसीहत वह सच्चाई है, जिसे हम कभी गौर से नहीं सुनते और तारीफ़ वह धोखा है, जिसे हम पूरे ध्यान से सुनते है..!
शुभ #विजयदशमी..।

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