08/10/2025
*अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 10*
*विभाजन के समय कट्टरपंथियों ने कांग्रेसियों को भी मौत के घाट उतारा।*
*वाधुमल जी अमरकोट में कांग्रेस के अध्यक्ष थे, लेकिन बड़ी मुश्किल से जान बचाकर अजमेर आए। तब गांधी टोपी उतारकर संघ की काली टोपी पहनी।*
*किशन जी टेवानी को तीन बार गुरु गोलवलकर जी से मिलने का अवसर मिला। 84 वर्ष की उम्र में भी संघ का कार्य।*
*देश के विभाजन की घोषणा से पहले ही उन प्रांतों में हिंदुओं का कत्लेआम शुरू हो गया था जिस पर मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने पाकिस्तान का हक जताया था। तब कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद थी कि उनका कत्लेआम नहीं होगा। ऐसे कांग्रेसी नेताओं में वाधुमल जी भी शामिल थे। उस समय वाधुमल जी सिंध प्रांत के अमरकोट में कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनका सभी मुस्लिम परिवारों से बहुत भाईचारा था, लेकिन कट्टरपंथियों ने हिंदुओं के कत्लेआम में वाधुमल जी के परिवार को भी नहीं बख्शा। जो कट्टरपंथी कुछ दिनों पहले तक वाधुमल जी को अपना भाई मानते थे वे ही घर के बाहर आकर खड़े हो गए। इस कत्लेआम में वाधुमल जी को अपने परिवार के कई सदस्यों की जान गवानी पड़ी। वाधुमल जी बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर अजमेर आए। अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने उनकी भरपूर मदद की। उन्हें व परिवार के सदस्यों को आवास उपलब्ध करवाया तथा हकीमगिरी के लिए दुकान भी दिलवाई। तब वाधुमल जी की मदद के लिए न तो सरकार ने और न ही कांग्रेस ने कोई सहयोग किया। चूंकि अजमेर में सिंध प्रांत से सिंधी हिंदू बड़ी संख्या में विस्थापित हो कर आए थे, इसलिए संघ के कार्यकर्ता ही मदद के लिए आगे आए। इसका एक कारण यह भी है कि विस्थापितों में ऐसे सिंधी हिंदुओं की संख्या ज्यादा थी, जो सिंध में भी संघ से जुड़े हुए थे। शरणार्थियों के लिए संघ की भूमिका को देखते हुए ही वाधुमल जी ने अजमेर में गांधी टोपी उतारी और संघ की काली टोपी पहन ली। उनका कहना रहा कि संकट के इस समय संघ ने ही मदद की है। यदि संघ के कार्यकर्ता सिंध में विभाजन के समय मददगार नहीं बनते तो और अधिक सिंधी हिंदू मारे जाते। वाधुमल जी पर अजमेर में संघ का इतना प्रभाव पड़ा कि वह स्वयं अपने पुत्र किशन टेवानी को संघ की शाखा में ले गए। उस समय किशन जी की उम्र मात्र 13 वर्ष थी। आज किशन जी की उम्र 84 वर्ष है और वे अभी भी अजमेर के डिग्गी चौक स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मेडिकल विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद किशन जी ने वर्षों तक कार्यालय प्रभारी का काम किया। आपातकाल में किशन जी के जेल जाने की तैयारी थी, लेकिन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के सहयोग के कारण जेल जाने से बच गए। किशन जी इस बात को अपना सौभाग्य मानते हैं कि वह तीन बार गुरुजी माधव सदाशिव गोलवलकर से मुलाकात कर चुके हैं। किसी भी स्वयंसेवक के लिए यह महत्वपूर्ण बात है कि उसे तीन बार संघ प्रमुख से मिलने का अवसर मिले। पहली बार 1959 में जयपुर के मोती डूंगरी में संघ के शीतकालीन शिविर में गुरुजी से परिचय करने का अवसर मिला। दूसरी बार 1962 में जब अजमेर के डीएवी कॉलेज में संघ शिक्षा वर्ग में गुरुजी आए तो किशन जी को भी शिक्षा वर्ग में दायित्व मिला। अगले वर्ष 1963 में अजमेर के महाराष्ट्र मंडल में आयोजित एक कार्यक्रम में गुरुजी आए तब भी किशन जी को मुलाकात का अवसर मिला। किशन जी बताते हैं कि महाराष्ट्र मेंडल में जब परिचय में मेरा नंबर आया तो गुरुजी ने कहा कि किशन जी आप बैठ जाओ मैं आपको जानता हंू। असल में एक वर्ष पहले डीएवी कॉलेज के संघ शिक्षा वर्ग में किशन जी ने दंड का जो प्रदर्शन किया, उससे गुरुजी बहुत प्रभावित हुए। किशन जी के लिए यह बड़ी बात रही कि एक वर्ष बाद गुरुजी पहचान गए। संघ के कार्यालय प्रभारी का दायित्व संभालते हुए किशन जी के संपर्क में संघ के कई प्रचारक आए। प्रचारकों के प्रभाव के कारण ही किशन जी को वानप्रस्थ अपनाने की प्रेरणा मिली। विभाग प्रचारक ओम प्रकाश जी, प्रांत प्रचारक सुरेश जी की प्रेरणा से किशन जी वानप्रस्थी हो गए, जिसका पालन वे आज तक कर रहे है। वर्ष 2001 में मेडिकल विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद से ही किशन जी सारा समय संघ को ही दे रहे हैं। आज भी संघ कार्यालय में संचालित चिकित्सालय में निशुल्क सेवाएं देते हैं तथा कार्यालय के वस्तु भंडार का दायित्व भी संभाल रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद से ही यानी गत 24 वर्षों से किशनजी संघ कार्यालय में ही रहते हैं। इसके लिए किशन जी अपने परिवार का आभार भी जताते हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन में भी किशन जी ने सक्रिय भूमिका निभाई। किशन जी का मानना है कि देश की एकता, अखंडता के लिए संघ का मजबूत होना जरूरी है। संघ एकमात्र संगठन है जो हिंदुओं की रक्षार्थ समर्पित है। किशन जी के छोटे भाई भी विवेकानंद केंद्र में प्रचारक की भूमिका निभा रहे हैं। मोबाइल नंबर 9829168364 पर किशन जी टेवानी से संवाद किया जा सकता है। 84 वर्ष की उम्र में भी किशन जी को जीवन के सारे घटनाक्रम याद है।*
S.P.MITTAL BLOGGER (08-10-2025)