निखिल की रिपोर्ट

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25 साल। पत्रकारिता। संजीदगी, सादगी और बेबाकी से।
ईटीवी राजस्थान, राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर की पाठशाला का पूर्व विद्यार्थी। अब सोशल मीडिया का विद्यार्थी। like, view और फॉलोवर्स के लिए बहुत कुछ
करना, लेकिन शब्द संजीदगी और पेशे के प्रति जिम्मेदार भी।

जय श्री कृष्णा।। राधे राधे।।  रहिमन ओछे नरन सो,बैर भली ना प्रीत।।काटे चाटे स्वान के,दोउ भाँति विपरीत॥
04/09/2025

जय श्री कृष्णा।। राधे राधे।।

रहिमन ओछे नरन सो,
बैर भली ना प्रीत।।
काटे चाटे स्वान के,
दोउ भाँति विपरीत॥

यादों में नेताजी। परसराम मदेरणा। In the series In Memory of Netaji। today! Rajasthan’s   of Politics.Remembering a leade...
02/09/2025

यादों में नेताजी। परसराम मदेरणा। In the series In Memory of Netaji। today!

Rajasthan’s of Politics.
Remembering a leader who stood for values over power.

*Early Life and Education ;*
Parasram Maderna was born on July 23, 1926, in Chadi village, Phalodi tehsil of Jodhpur district. Coming from the Maderna clan of the Jat community, he grew up in a modest household where hard work and simplicity were deeply valued.
After completing his primary schooling in his native village, Maderna continued his studies in Jodhpur before moving to Lucknow University, where he earned both a Master’s degree and a Bachelor of Laws (LLB). It was during these formative years that he developed a passion for politics and social service, inspired by the ideals of Mahatma Gandhi.

*A Voice for Farmers !*
Maderna’s political awakening coincided with India’s fight for independence. Post-Independence, he returned to Rajasthan and, alongside Baldev Ram Mirdha, strengthened the Marwar Kisan Sabha and Rajasthan Kisan Sabha.
From Village Sarpanch to Assembly Veteran
Maderna’s entry into politics was firmly rooted in grassroots leadership. In 1953, he was elected Sarpanch of Chadi village, marking the beginning of a public life defined by service.

In 1952, he contested his first assembly election from Osian but lost—a setback that only strengthened his resolve. He went on to win in 1957 and 1962, and from 1967 to 1985, he secured four consecutive victories from Bhopalgarh. Later, he was elected from Gudamalani in 1990 and 1993, and once again from Bhopalgarh in 1998.

*The Iron Man of Rajasthan Politics*
Maderna was widely regarded as the “Iron Man of Rajasthan Politics.” His simple attire, trademark Gandhi cap, and steadfast adherence to ethical politics set him apart.

He was deeply disciplined, punctual, and approachable, often communicating with farmers in their own dialects, earning their trust and respect. Despite opportunities to rise to higher positions, he never compromised on his beliefs.
A true leader is remembered not by the chair he occupies but by the values he stands for, colleagues often said of him—a sentiment Maderna embodied throughout his career.

*The End of an Era*
On February 16, 2014, Parasram Maderna passed away at SMS Hospital, Jaipur, after a prolonged illness. His death left Rajasthan mourning the loss of a leader who symbolized integrity and moral strength.
Farmers felt they had lost their Messiah, and many political observers called his passing “the end of an era of values and principles in politics.”
Even today, Maderna remains an enduring figure in Rajasthan’s political memory—a leader who never chased power but inspired generations through his unwavering commitment to justice, equality, and service.

यादों में नेताजी। परसराम मदेरणा।In the series In Memory of Netaji। today! ’s of Politics.Remembering a leader who stood for ...

किस्से कर्नल सोनाराम चौधरी से जुड़े। आज पंचतत्व में विलीन।सेना में कर्नल और राजनीति के सफल किरदार कर्नल सोनाराम चौधरी का...
02/09/2025

किस्से कर्नल सोनाराम चौधरी से जुड़े। आज पंचतत्व में विलीन।
सेना में कर्नल और राजनीति के सफल किरदार कर्नल सोनाराम चौधरी का 20 अगस्त 2025 में दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया।
कहते है उस दौर का सबसे खूबसूरत बायो डाटा किसी ने बनाया तो वो कर्नल सोनाराम चौधरी ने। एक ऐसा एल्बम जिसे देख तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव भी देखते रह गए।
आइए आज निखिल के ऑडियो पॉडकास्ट में कुछ खास किस्से सुनते है।

किस्से कर्नल सोनाराम चौधरी से जुड़े। आज पंचतत्व में विलीन।सेना में कर्नल और राजनीति के सफल किरदार कर्नल सोनाराम .....

इंसान चला जाता है। यादों में यादगार बनकर उसके किए काम लोगों के दिलों में जिंदा रहते हैं~ अब्दुल हादी      एक ऐसा व्यक्ति...
02/09/2025

इंसान चला जाता है। यादों में यादगार बनकर उसके किए काम लोगों के दिलों में जिंदा रहते हैं~ अब्दुल हादी

एक ऐसा व्यक्तित्व जिसको चौहटन की जनता ने सात बार विधायकी सौंप दी।
आज हम उन्हीं को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव कुमार की रिपोर्ट पेश कर रहे है।

इंसान चला जाता है। यादों में यादगार बनकर उसके किए काम लोगों के दिलों में जिंदा रहते हैं~ अब्दुल हादी ...

      कच्ची पगडंडी से प्रदेश की शीर्ष पॉलिटिक्स तक। यादों में नेताजी। गंगाराम चौधरी। बाड़मेर। अब यादों में नेताजी! की कड...
02/09/2025


कच्ची पगडंडी से प्रदेश की शीर्ष पॉलिटिक्स तक। यादों में नेताजी। गंगाराम चौधरी। बाड़मेर।
अब यादों में नेताजी! की कड़ी में आज बात एक ऐसे किसान नेता की जो गांव की रेतीली पगडंडी से राजस्थान के राजस्व मंत्री तक बने और 8 बार विधायक चुने गए।
राजस्थान की राजनीति में और थार की किसान राजनीति का बड़ा हस्ताक्षर रहे गंगाराम चौधरी।
1 मार्च 1922 को बाड़मेर के खड़ीन गांव में जन्मे गंगाराम चौधरी 8 बार विधायक चुने गए। 26 मार्च 2014 में 92 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया।
आठ बार विधायक और तीन बार राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री (राजस्व) रहे। सार्वजनिक छवि किसान हितैषी, संगठनकर्ता और ज़मीनी नेता की रही।
विषम हालात में आपने बी.ए. और फिर मुंबई विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की। वकालत शुरू की लेकिन किसानों की आवाज बनना तय किया और राजनीति में आ गए।
1950 के दशक में सहकारी आंदोलन और ज़िला सहकार संघ, बाड़मेर से सक्रियता शुरू की; 1959 में धोरीमन्ना पंचायत समिति के प्रधान के रूप में प्रथम निर्वाचित दायित्व मिला—इसके साथ ही उनकी किसान-नेतृत्व की पहचान मजबूत हुई।
1962 में पहली बार गुड़ामालानी (Gudamalani) विधानसभा से जीते; इसके बाद लगभग चार दशकों में वे कुल आठ बार विधायक रहे (मुख्यतः गुड़ामालानी से 1962–1998 और फिर 2003–2008 में चौहटन/चोहटन से)।
मरुस्थलीय जिलों की सिंचाई, भूमि-राजस्व, सूखा-राहत और सहकार से जुड़े मुद्दों की केंद्रीय आवाज बना दिया।
वे तीन कार्यकाल में राजस्थान सरकार में राजस्व मंत्री रहे:
1. 5 सितम्बर 1967 — 9 जुलाई 1971
2. 25 नवम्बर 1990 — 14 दिसम्बर 1992
3. 13 दिसम्बर 1993 — 28 अगस्त 1998
इन कार्यकालों के दौरान बंदोबस्त/पट्टों, भू-अधिकार, सूखा-राहत और रेवन्यू प्रशासन के कई निर्णयों में उनकी सक्रिय भूमिका मानी जाती है।
शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से (1953 के आसपास) हुई; बाद में लोकदल और जनता दल से गुजरते हुए वे अंततः भारतीय जनता पार्टी में आए।
कई स्थानीय निकायों—ज़िला प्रमुख/प्रधान—आदि दायित्व भी सँभाले; उन्हें “किसानों का मसीहा” कहकर स्थानीय मीडिया/सामाजिक पोस्ट्स में याद किया जाता है।
परिवार व विरासत :~
उनकी पोती डॉ. प्रियंका चौधरी आज सक्रिय राजनीति में हैं; 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में वे बाड़मेर सीट से निर्वाचित हुईं।
“दादा का इतिहास दोहराने” के साथ पारिवारिक-राजनीतिक विरासत बाड़मेर की मुख्यधारा में अब भी प्रभावी है।
निधन और श्रद्धांजलि :
26 मार्च 2014 को जोधपुर में 92 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ; अगले दिन बाड़मेर में अन्त्येष्टि हुई जिसमें बड़ी संख्या में लोग—दलीय सीमाओं से परे—शामिल हुए। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सहित अनेक नेताओं ने श्रद्धांजलि दी।
मुख्य उपलब्धियाँ :
8 बार विधायक; 3 बार कैबिनेट मंत्री (राजस्व)।
गुड़ामालानी और चौहटन—दोनों मरुस्थलीय क्षेत्रों के दीर्घकालिक जनप्रतिनिधि।
सहकारी आंदोलन व किसान मुद्दों के सशक्त प्रवक्ता; “किसान नेता” के रूप में लोकप्रियता।

कच्ची पगडंडी से प्रदेश की शीर्ष पॉलिटिक्स तक। यादों में नेताजी। गंगाराम चौधरी। बाड़मेर। अब यादो.....

यादों में नेताजी। स्वाभिमानी जसवंत सिंह जसोल। Desert Times। Pics Politico। निखिल व्यास।वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव कुमार की...
02/09/2025

यादों में नेताजी। स्वाभिमानी जसवंत सिंह जसोल। Desert Times। Pics Politico। निखिल व्यास।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव कुमार की जुबानी जसवंत सिंह जसोल की सैनिक एवं राजनीतिक यात्रा।

यादों में नेताजी। स्वाभिमानी जसवंत सिंह जसोल। Desert Times। Pics Politico। निखिल व्यास।वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव कुमार की जुबानी ...

यादों में नेताजी। पूज्य तनसिंह। एक आदर्श जीवन की कहानी। Desert Times। Pics Politico।
02/09/2025

यादों में नेताजी। पूज्य तनसिंह। एक आदर्श जीवन की कहानी। Desert Times। Pics Politico।

यादों में नेताजी। पूज्य तनसिंह। एक आदर्श जीवन की कहानी। Desert Times। Pics Politico।

यादों में नेताजी!  सोशल मीडिया मंचों पर हम लेखन, पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार के जुड़े मुद्दों पर सक्रिय हैं।हां, हम LIKE,...
02/09/2025

यादों में नेताजी!

सोशल मीडिया मंचों पर हम लेखन, पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार के जुड़े मुद्दों पर सक्रिय हैं।
हां, हम LIKE, VIEWS और FILLOWERS की दौड़ का हिस्सा नहीं है।
हमारी अवधारणा में पत्रकारिता अपने मूल्यों के साथ जन गण मन री बात और आपकी आवाज सर्वोपरि है।

यादों में नेताजी की कड़ी में आज बात "जीजी" की।
सूर्यकांता व्यास (जीजी)
जीवन परिचय और राजनीतिक यात्रा :~
जन्म 23 फ़रवरी 1938 को जोधपुर में हुआ था।
उनके पति का नाम उमा शंकर व्यास था, जो एक सप्लाई इंस्पेक्टर थे, और पिता फतेहराज कल्ला राजस्थान पुलिस में इंस्पेक्टर थे।

राजनीतिक पथ
उन्होंने 1963 में जनसंघ से राजनीति में प्रवेश किया और 1969 में जोधपुर में इसकी महिला इकाई की उपाध्यक्ष बनी।
1972 में नगर परिषद (पार्षद) के रूप में राजनीतिक सफ़र की शुरुआत की ।
1977 में जनता पार्टी में उनका नाम जोधपुर जिला अध्यक्ष के रूप में आया, और 1980 में भाजपा की महिला मोर्चा का कार्यभार संभाला। पहले ज़िला अध्यक्ष, फिर प्रदेश अध्यक्ष (1983–1990)।

सत्याग्रह, संघर्ष, राम मंदिर आंदोलन और लाल चौक में तिरंगा फहराने वाली "जीजी" की कहानी उपरोक्त सभी सोशल मीडिया मंचों पर आप देख सुन पाएंगे।
जीजी के सफर को बयां कर रहे है ;
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव कुमार।
#बीजेपी4राजस्थान
नीचे दिए लिंक पर क्लिक करे और सुनिए जीजी यात्रा।
https://youtube.com/?si=FyFBkoVdvBfMys2v

In the Memories of Netaji!
Today’s topic: “Ji Ji.”
Suryakanta Vyas (Ji Ji)
Biography and Political Journey:

She was born on 23 February 1938 in Jodhpur.
Her husband’s name was Uma Shankar Vyas, who worked as a Supply Inspector, and her father Fatehraj Kalla was an Inspector in the Rajasthan Police.

Political Career
She entered politics in 1963 with the Jana Sangh and became the Vice President of its Women’s Wing in Jodhpur in 1969.
In 1972, she began her political journey as a Municipal Councillor.
In 1977, she became the District President of Jodhpur for the Janata Party, and in 1980, she took charge of the BJP Mahila Morcha. She first served as District President, and later as State President (1983–1990).

The story of “JiJi” — her Satyagraha, struggles, participation in the Ram Mandir movement, and the historic hoisting of the Tricolor at Lal Chowk — can be found and heard across all social media platforms.
https://youtu.be/tAWHEaIK-Ek

यादों में नेताजी! Pics politicoDesert Times और निखिल की रिपोर्ट जैसे सोशल मीडिया मंचों पर हम लेखन, पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार...

यादों में नेताजी! वृद्धिचंद जैन का जन्म 4 जुलाई 1920 को राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के चोहटन कस्बे में हुआ था। वे एक बोहरा...
02/09/2025

यादों में नेताजी!
वृद्धिचंद जैन का जन्म 4 जुलाई 1920 को राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के चोहटन कस्बे में हुआ था। वे एक बोहरा जैन परिवार से थे और उनके पिता का नाम श्री रावत मल जैन था।
"Vridhi Chand Jain was born on July 4, 1920, in Chohtan town of Barmer district, Rajasthan. He belonged to a Bohra Jain family, and his father’s name was Shri Rawat Mal Jain."
परिवार धार्मिक और सामाजिक मूल्यों से जुड़ा हुआ था, जिसने बचपन से ही उनके भीतर सेवा और समाज के लिए कुछ करने की भावना जगाई। उनका विवाह श्रीमती मूली देवी से हुआ और उनके तीन पुत्र हुए—शंकर लाल जैन, मोहन लाल जैन और सूरज मल जैन।
"The family was deeply rooted in religious and social values, which instilled in him from childhood a sense of service and a desire to contribute to society. He was married to Smt. Mooli Devi, and they had three sons—Shankar Lal Jain, Mohan Lal Jain, and Suraj Mal Jain."
परिवार में कुल 9 पोते–पोतियाँ हुए जिनमें मनीष जैन, सुधीर जैन और राजीव जैन “तीन जादूगर भाइयों” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
राजनीति में उनकी लोकप्रियता तब और बढ़ी जब वे 1972 में बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए। इसके बाद 1977 में भी विधायक बने। कुछ स्रोतों के अनुसार वे 1998 से 2003 तक भी विधायक रहे। इस तरह वे तीन बार बाड़मेर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके थे।
"His popularity in politics grew further when, in 1972, he was elected as an MLA from the Barmer constituency on a Congress Party ticket. He was again elected as an MLA in 1977. According to some sources, he also served as an MLA from 1998 to 2003. In this way, he represented the Barmer Assembly constituency three times."






वृद्धिचंद जैन का जन्म 4 जुलाई 1920 को राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के चोहटन कस्बे में हुआ था। वे एक बोहरा जैन परिवार से थे ...

यादों में नेताजी। रावत उम्मेद सिंह जी: जीवन और योगदान!!रावत उम्मेद सिंह जी बाड़मेर के प्रतिष्ठित राजा, जनप्रिय नेता, समा...
02/09/2025

यादों में नेताजी।
रावत उम्मेद सिंह जी: जीवन और योगदान!!
रावत उम्मेद सिंह जी बाड़मेर के प्रतिष्ठित राजा, जनप्रिय नेता, समाजसेवी और एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व रहे हैं। उन्होंने अपने राजनैतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में सदैव अपने क्षेत्र और समाज के उत्थान के लिए कार्य किया।
"Rawat Umed Singh Ji:
Life and Contributions
Rawat Umed Singh Ji was a distinguished king of Barmer, a popular leader, a social worker, and an inspiring personality. Throughout his political, social, and personal life, he consistently worked for the progress and upliftment of his region and society."

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रावत उम्मेद सिंह जी का जन्म 5 अक्टूबर 1936 को बाड़मेर ठिकाने के तत्कालीन राजा रावत रतन सिंह जी के यहाँ हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बाड़मेर के दरबार हाई स्कूल में हुई। तत्पश्चात उन्होंने जोधपुर के जसवंत कॉलेज से स्नातक और फिर लखनऊ से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की थी।
"Early Life and Education
Rawat Umed Singh Ji was born on October 5, 1936, to the then ruler of Barmer estate, Rawat Ratan Singh Ji. He received his early education at Darbar High School in Barmer. Later, he completed his graduation from Jaswant College in Jodhpur and went on to earn an LL.B. degree from Lucknow."

राजतंत्र और लोकतंत्र का अनुभव
1945 में पिता के स्वर्गवास के उपरांत केवल नौ वर्ष की आयु में उन्होंने बाड़मेर की रियासत का कार्यभार संभाला। वर्ष 1947 में स्वतंत्र भारत के गठन के समय वे बाड़मेर के रावत के रूप में विराजमान थे और मात्र 25 वर्ष और 4 महीने की आयु में, 1962 में, वे बाड़मेर विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए। 1985 में वे शिव विधान सभा क्षेत्र से भी विधायक चुने गए, जिससे उनकी क्षेत्रीय लोकप्रियता और जनसेवा का दायरा और भी विस्तृत हुआ।
रावत उम्मेद सिंह जी ने राजतंत्र और लोकतंत्र दोनों में सक्रिय रहते हुए सर्वसाधारण की सेवा की।

संघ से संबंध
रावत उमेद सिंह जी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा जुड़ाव था। बाड़मेर में पहली आरएसएस शाखा उन्हीं के निजी मैदान में लगती थी, जो आज भी अनवरत जारी है। इस मैदान ने संघ निर्माण व राष्ट्रनिर्माण की अनेक पीढ़ियाँ तैयार की हैं।

समाज सेवा में योगदान
रावत उम्मेद सिंह जी आजीवन कई सामाजिक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे, जिनमें प्रमुख रहे जोगमाया गढ़ मंदिर, नागनेची माता मंदिर और रावल मल्लीनाथ छात्रावास। वे समाज के हर वर्ग के लिए उपलब्ध, स्पष्टवादी और सर्वसमावेशी विचारों वाले नेता थे।

जनप्रियता और सम्मान
रावत उम्मेद सिंह जी की सबसे बड़ी विशेषता थी, हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर मात्र अपने लोगों और क्षेत्र की सेवा करना। देश के अनेक प्रमुख नेताओं से उनके मधुर संबंध रहे व इस का पूर्ण फ़ायदा बाड़मेर को दिलवाया। उनका संपूर्ण जीवन स्पष्टवादिता, मिलनसारिता और समर्पित सामाजिक सेवा का अनुपम उदाहरण रहा।

अंतिम यात्रा और स्मृति
उन्होंने 29 सितम्बर 2006 को अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार में 70-80 हजार लोगों की उपस्थिति ने यह सिद्ध कर दिया कि बाड़मेर की जनता ने अपने सच्चे नेता को कैसी ऐतिहासिक विदाई दी।
रावत उम्मेद सिंह जी का जीवन और कार्य आज भी बाड़मेर व राजस्थान के सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी विरासत सदैव जनसेवा, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के रूप में याद की जाती रहेगी।

नगर परिषद का सम्मान
बाड़मेर नगर परिषद ने रावत उम्मेद सिंह जी के अमिट योगदान के सम्मान में, गडरा रोड से सोन नाड़ी तक जाने वाली सड़क का नाम ‘रावत उम्मेद सिंह मार्ग’ रखा, जिससे उनकी स्मृति और योगदान शहर की पहचान में सदा के लिए अंकित हो गया है।





रावत उम्मेद सिंह जी: जीवन और योगदानरावत उम्मेद सिंह जी बाड़मेर के प्रतिष्ठित राजा, जनप्रिय नेता, समाजसेवी और एक प्.....

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