ध्यान एक जीवित मृत्यु

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“चैतन्य महाप्रभु नाचते थे, और उनके नाच में परमात्मा की गूंज थी।”“वे हमें यह सिखाने आए थे कि ईश्वर कोई गंभीर किताबों में ...
28/09/2025

“चैतन्य महाप्रभु नाचते थे, और उनके नाच में परमात्मा की गूंज थी।”

“वे हमें यह सिखाने आए थे कि ईश्वर कोई गंभीर किताबों में छिपा सत्य नहीं है।
वह तो हृदय की मासूम धड़कन है, जो गीत और कीर्तन में प्रकट हो जाती है।”

“जब चैतन्य महाप्रभु कीर्तन करते थे, तब साधक नहीं बचता था—सिर्फ़ भक्ति रह जाती थी।
उनका जीवन यह घोषणा था कि प्रेम ही प्रार्थना है, और नृत्य ही ध्यान।
जहाँ हृदय खुला है, वहाँ भगवान पहले से ही उपस्थित है। ✨”

*“मनुष्य बाहर की दुनिया जीतने में लगा है, लेकिन असली जीत भीतर की होती है।धन, पद और शोहरत से केवल अहंकार बढ़ता है,लेकिन म...
27/09/2025

*“मनुष्य बाहर की दुनिया जीतने में लगा है, लेकिन असली जीत भीतर की होती है।

धन, पद और शोहरत से केवल अहंकार बढ़ता है,
लेकिन मौन और ध्यान से आत्मा खिल उठती है।

जब तुम भीतर उतरते हो तो पाते हो
कि तुम्हारे प्रश्नों के सारे उत्तर
पहले से ही तुम्हारे अस्तित्व में छिपे हैं।

बाहर दौड़ने वाले थक जाते हैं,
भीतर जाने वाला अमृत को पा लेता है।”**

“मनुष्य बाहर देवताओं की खोज करता है, और भीतर के देवत्व को भूल जाता है।जब तक तुम्हारी आँखें मूर्तियों पर टिकी रहेंगी, तब ...
27/09/2025

“मनुष्य बाहर देवताओं की खोज करता है, और भीतर के देवत्व को भूल जाता है।
जब तक तुम्हारी आँखें मूर्तियों पर टिकी रहेंगी, तब तक तुम्हारा हृदय खाली रहेगा।

ध्यान वही क्षण है, जब तुम बाहर की दौड़ को छोड़कर भीतर की शांति में ठहर जाते हो।
यही ठहराव, यही मौन, तुम्हारा असली मंदिर है।

सत्य कहीं दूर नहीं है — वह तुम्हारी ही धड़कनों में गूंज रहा है।
बस सुनने की कला सीखो, और तुम पाओगे कि तुम स्वयं ही देवता हो।” 🌸

🔹 योग साधना के मुख्य आयाम (पतंजलि योगसूत्र के अनुसार):1. यम (आचार – जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय)2. नियम (अनुशासन – जैसे शौ...
27/09/2025

🔹 योग साधना के मुख्य आयाम (पतंजलि योगसूत्र के अनुसार):

1. यम (आचार – जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय)

2. नियम (अनुशासन – जैसे शौच, संतोष, तप)

3. आसन (शरीर को स्थिर और स्वस्थ रखने के लिए मुद्राएँ)

4. प्राणायाम (श्वास का नियंत्रण, जीवन ऊर्जा का संतुलन)

5. प्रत्याहार (इंद्रियों को भीतर की ओर मोड़ना)

6. धारणा (एकाग्रता)

7. ध्यान (ध्यानाभ्यास, गहन चित्तवृत्ति का स्थिर होना)

8. समाधि (पूर्ण एकत्व, आत्मा और परमात्मा का मिलन)

“सत्य कोई लक्ष्य नहीं है, सत्य कोई वस्तु नहीं है।सत्य को कहीं बाहर खोजा नहीं जा सकता।सत्य तो वही है जो तुम हो,जो तुम्हार...
27/09/2025

“सत्य कोई लक्ष्य नहीं है, सत्य कोई वस्तु नहीं है।
सत्य को कहीं बाहर खोजा नहीं जा सकता।
सत्य तो वही है जो तुम हो,
जो तुम्हारे भीतर शाश्वत रूप से विद्यमान है।”

सत्य को पाने के लिए यात्रा नहीं करनी पड़ती,
बस अपने भीतर लौटने की कला सीखनी होती है।

तुम जितना भीतर जाओगे, उतना पाओगे कि
तुम्हारा अस्तित्व ही सत्य की ज्योति से प्रकाशित है।

बाहरी साधनों से जो मिलता है वह क्षणिक है,
पर भीतर की खोज से जो प्रकट होता है वह शाश्वत है।

सत्य कोई उपलब्धि नहीं,
सत्य तो तुम्हारे होने की गहराई का अनुभव है।

26/09/2025
"मीरा का प्रेम किसी व्यक्ति कृष्ण से नहीं था,वह तो स्वयं अस्तित्व के सार से था।""उसके भजन कविता नहीं थे,वे शुद्ध प्रार्थ...
26/09/2025

"मीरा का प्रेम किसी व्यक्ति कृष्ण से नहीं था,
वह तो स्वयं अस्तित्व के सार से था।"

"उसके भजन कविता नहीं थे,
वे शुद्ध प्रार्थना थे।
उसके आँसुओं की हर बूँद भक्ति का मोती थी,
उसके शब्द समर्पण की ज्वाला थे।"

"मीरा को समझना है तो यह समझना है कि प्रेम अधिकार नहीं है,
बल्कि विसर्जन है।
उसकी पागलपन में स्वतंत्रता थी,
उसके समर्पण में दिव्यता थी।"

“सत्य कहीं बाहर नहीं है।वह तुम्हारे अपने भीतर छिपा है।”“ध्यान कोई अभ्यास नहीं है।यह बस स्वयं में लौट आने की कला है।”“जीव...
26/09/2025

“सत्य कहीं बाहर नहीं है।
वह तुम्हारे अपने भीतर छिपा है।”

“ध्यान कोई अभ्यास नहीं है।
यह बस स्वयं में लौट आने की कला है।”

“जीवन को मत पकड़ो।
उसे बहने दो, जैसे नदी सागर में बहती है।”

“प्रेम तुम्हें कैद नहीं करता।
प्रेम तुम्हें मुक्त करता है।”

“जिस क्षण तुम मौन में उतरते हो,
उसी क्षण अस्तित्व से संवाद शुरू होता है।”

“आनंद कोई वस्तु नहीं है।
आनंद तुम्हारा स्वभाव है।”

“मृत्यु अंत नहीं है।
यह एक नए द्वार की शुरुआत है।”

“तुम वही हो, जिसे तुम खोजते रहे हो।
सारा ब्रह्मांड तुम्हारे भीतर ही है।”

जीवन कोई समस्या नहीं है जिसे सुलझाना है।यह एक रहस्य है जिसे जीना है।मन हमेशा सवाल करता है।हृदय हमेशा मौन में उतरता है।वह...
26/09/2025

जीवन कोई समस्या नहीं है जिसे सुलझाना है।
यह एक रहस्य है जिसे जीना है।

मन हमेशा सवाल करता है।
हृदय हमेशा मौन में उतरता है।
वहीं से उत्तर प्रकट होते हैं।

प्रेम तुम्हें बाँधता नहीं है।
प्रेम तुम्हें स्वतंत्र करता है।

ध्यान कोई साधना नहीं है।
यह सहज रूप से अपने भीतर लौटना है।
जैसे नदी सागर में मिल जाती है।

सत्य बाहर नहीं है।
वह भीतर छिपा है।

जिस क्षण तुम रुक जाते हो,
वही क्षण शांति का द्वार खुलता है।

जीवन को मत पकड़ो।
उसे बहने दो।
उसे जीने दो।

तुम वही हो जिसे तुम खोज रहे हो।
सारा ब्रह्मांड तुम्हारे भीतर है।

"मन भूत और भविष्य की यात्राएँ करता रहता है,लेकिन जीवन की सुगंध केवल वर्तमान क्षण में है।""सत्य कहीं बाहर नहीं है,वह तो त...
25/09/2025

"मन भूत और भविष्य की यात्राएँ करता रहता है,
लेकिन जीवन की सुगंध केवल वर्तमान क्षण में है।"

"सत्य कहीं बाहर नहीं है,
वह तो तुम्हारे भीतर ही छुपा बैठा है।"

"जब चाहतें समाप्त होती हैं,
तभी मौन खिलने लगता है।
और मौन में ही सच्चा आनंद जन्म लेता है।"

"ध्यान कोई साधना नहीं,
यह तो सहजता है।"

"जहाँ तुम जीवन को जैसा है वैसा स्वीकार कर लेते हो,
वहीं से यात्रा आरंभ होती है।"

"समर्पण अंत नहीं है,
समर्पण ही पहला कदम है।
उसके बाद सब कुछ स्वाभाविक रूप से घटता है।"

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