ध्यान एक जीवित मृत्यु

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ध्यान  एक जीवित मृत्यु इस पेज पर ध्यान साधना और आध्यात्मिक उन्नति से सम्बंधित विषय उपलब्ध हैं !

04/08/2025
शांत रहो।  किसी भी चीज़ से डरो मत.
04/08/2025

शांत रहो। किसी भी चीज़ से डरो मत.

"राम केवल एक पुरुष नहीं हैं, वे आदर्श पुरुष हैं।वे तुम्हारे भीतर के संतुलन का प्रतीक हैं। राम को देखो —वे राजा हैं, परन्...
04/08/2025

"राम केवल एक पुरुष नहीं हैं, वे आदर्श पुरुष हैं।
वे तुम्हारे भीतर के संतुलन का प्रतीक हैं। राम को देखो —
वे राजा हैं, परन्तु उनमें अहंकार नहीं है। वे पति हैं, परन्तु आसक्ति नहीं है। वे योद्धा हैं, परन्तु हिंसा नहीं है।

राम की कहानी कोई इतिहास नहीं है,
वह तुम्हारे भीतर की यात्रा है। 🌸

जब तुम्हारे भीतर भी अहंकार गिर जाता है,
जब प्रेम में भी अधिकार मिट जाता है,
जब शक्ति में भी करुणा आ जाती है —
तब तुम्हारे भीतर राम जन्म लेते हैं।

राम बाहर मत खोजो।
राम कोई मूर्ति नहीं, कोई व्यक्ति नहीं।
राम वह शांति है, जो भीतर तब उतरती है जब मन मौन हो जाता है।

राम का अर्थ है —
संतुलन में जीना, सहज में जीना, और करुणा में जीना। ✨

जब तुम अपने भीतर उस संतुलन को पा लोगे,
तो न अयोध्या खोजनी होगी, न राम।
फिर जहाँ तुम हो, वही अयोध्या है,
वही तुम्हारा रामराज्य है।" 🕊️

तोतापुरी ने रामकृष्ण से कहा:"मुक्ति चाहिए तो अब मां काली को भी छोड़ दो।"रामकृष्ण पहले तो रो पड़े:"मां काली मेरी आत्मा है...
04/08/2025

तोतापुरी ने रामकृष्ण से कहा:
"मुक्ति चाहिए तो अब मां काली को भी छोड़ दो।"

रामकृष्ण पहले तो रो पड़े:
"मां काली मेरी आत्मा हैं, मैं उन्हें कैसे छोड़ दूं?"

तोतापुरी ने तलवार उठाई और कहा:

"यह तलवार तुम्हारे मोह को काटने के लिए है।"

✨ निर्विकल्प समाधि

रामकृष्ण ने भीतर मां काली के रूप को देखा और मन में तलवार से उस रूप को भी काट दिया।
और उसी क्षण वे निर्विकल्प समाधि में प्रवेश कर गए—

वहां कोई काली नहीं थी।

कोई रूप नहीं था।

केवल शुद्ध, अनंत चेतना थी।

आज्ञा चक्र (Ajna Chakra) जिसे Third Eye Chakra (तीसरी आंख) कहा जाता है, यह कुंडलिनी योग में छठा ऊर्जा केंद्र है। यह भौहो...
04/08/2025

आज्ञा चक्र (Ajna Chakra) जिसे Third Eye Chakra (तीसरी आंख) कहा जाता है, यह कुंडलिनी योग में छठा ऊर्जा केंद्र है। यह भौहों के बीच, मध्य मस्तिष्क में स्थित होता है। इसका सीधा संबंध अंतर्ज्ञान (Intuition), विवेक (Wisdom), चेतना (Awareness) और आत्मज्ञान (Self-Realization) से है।
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📍 स्थान :

भौहों के बीच का स्थान, जिसे "त्रिकूटि" या "भ्रूमध्य" कहते हैं।

इसका संबंध पीनियल ग्रंथि (Pineal Gland) से है।
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🌟 प्रतीक :

इसका रंग गहरा नीला या इंडिगो (Indigo) है।

इसमें दो पंखुड़ियों वाला कमल दर्शाया जाता है।

इसका बीज मंत्र है "ॐ (AUM)"।
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✨ विशेषताएं :

1. अंतर्ज्ञान शक्ति (Intuition): जब यह चक्र संतुलित होता है तो व्यक्ति को बिना तर्क के भी चीजों का सही ज्ञान होने लगता है।

2. आध्यात्मिक दृष्टि (Spiritual Vision): व्यक्ति भौतिक से परे चीजों को देखना शुरू करता है।

3. मन का नियंत्रण (Mind Control): मन स्थिर और स्पष्ट हो जाता है।

4. निर्णय क्षमता (Decision Making): भ्रम खत्म होकर सही दिशा में सोच विकसित होती है।

5. साक्षी भाव (Witnessing State): व्यक्ति "द्रष्टा" बन जाता है।
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🚩 जब आज्ञा चक्र जागृत नहीं हो:

भ्रम, अस्थिरता और डर बढ़ जाते हैं।

ज्यादा सोचने की आदत (Overthinking)।

निर्णय लेने में कठिनाई।

आध्यात्मिकता में रुचि ना होना।

पीनियल ग्रंथि निष्क्रिय हो जाती है, जिससे नींद की गड़बड़ी या थकान बनी रहती है।
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🔥 जागृत होने के लक्षण (Signs of Awakening):

1. माथे के बीच हल्की गर्मी या कंपन महसूस होना।

2. सपनों की स्पष्टता बढ़ जाना।

3. ध्यान में गहरी शांति और साक्षी भाव का अनुभव।

4. अंतर्ज्ञान प्रबल होना (बिना बोले बातें समझ आना)।

5. कभी-कभी रंगीन रोशनी, नीला प्रकाश या ज्योति दिखना।
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🕉 कैसे जागृत करें :

1. ध्यान (Meditation): भौहों के बीच ध्यान केंद्रित करके "ॐ" का जाप करें।

2. श्वास साधना (Breathing): "अनुलोम-विलोम" और धीमी, लंबी सांसें लेना।

3. त्राटक (Trataka): दीपक की लौ को बिना पलक झपकाए देखना।

4. Visualization: ध्यान में नीले रंग की रोशनी की कल्पना करें।

5. शुद्ध आहार: सात्विक भोजन लें, विशेषकर फल और हरी सब्जियां।

6. पीनियल ग्रंथि को सक्रिय करें: सूर्यास्त/सूर्योदय के समय सूर्य की कोमल किरणों को देखें।
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🕯 जागरण के बाद:

जब आज्ञा चक्र पूर्ण रूप से जागृत होता है, तो व्यक्ति को "अद्वैत अनुभव" मिलता है — यानी वह स्वयं को शरीर और मन से परे, शुद्ध चेतना के रूप में अनुभव करता है।

*"तुम्हें स्वयं ही इसे खोजना होगा... 🌱क्योंकि सत्य न किसी पुस्तक में है 📚...न किसी शास्त्र में...न किसी गुरु के शब्दों म...
04/08/2025

*"तुम्हें स्वयं ही इसे खोजना होगा... 🌱
क्योंकि सत्य न किसी पुस्तक में है 📚...
न किसी शास्त्र में...
न किसी गुरु के शब्दों में।

गुरु केवल द्वार दिखा सकता है 🚪,
पर उस द्वार से गुजरना तुम्हें स्वयं होगा।

किसी के अनुभव को मत अपनाओ,
क्योंकि वह तुम्हारा नहीं है।
वह ऐसा ही है जैसे कोई और भोजन करे 🍽️,
और तुम तृप्त हो जाओ –
यह संभव नहीं है।

सत्य का स्वाद व्यक्तिगत है। 🌼
तुम्हें अपने भीतर उतरना होगा।
देखो... 👁️
निरीक्षण करो...
और जो भी उठता है—
विचार, भावनाएँ, संवेदनाएँ—
उन्हें बिना छुए,
बिना जज किए,
केवल देखो।

धीरे-धीरे देखने वाला ही बचता है... 🌌
और उसी साक्षी में
सत्य प्रकट होता है। ✨

याद रखो...
उधार का ज्ञान बोझ है 📖।
तुम्हारे अपने अनुभव से जन्मा ज्ञान ही मुक्ति है।

और जब यह मुक्ति घटती है,
तो कोई कहने वाला नहीं बचता—
केवल मौन रह जाता है। 🕊️"*

प्रेम मांगता नहीं, प्रेम देता है।जहां मांग है, वहां प्रेम नहीं है।प्रेम का अर्थ है—तुम इतने भरपूर हो गए हो कि बांटे बिना...
03/08/2025

प्रेम मांगता नहीं, प्रेम देता है।
जहां मांग है, वहां प्रेम नहीं है।
प्रेम का अर्थ है—
तुम इतने भरपूर हो गए हो कि बांटे बिना रह नहीं सकते।
तुम्हारे भीतर से प्रेम झरने की तरह बहने लगता है,
तुम्हें सामने वाला कौन है, इसकी भी परवाह नहीं रहती।
तुम्हारा प्रेम तुम्हारी संपत्ति नहीं है, वह तुम्हारा स्वभाव है।"

03/08/2025
श्लोक (भगवद गीता 2.47):"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥".......कृष्ण कह र...
03/08/2025

श्लोक (भगवद गीता 2.47):

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥".......

कृष्ण कह रहे हैं — "तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है, फल पर नहीं।"

देखो, ज़िंदगी का खेल बड़ा अद्भुत है। तुम जो भी करो, अगर फल की चिंता जोड़ लोगे तो तुम गुलाम हो जाओगे। गुलामी हमेशा भविष्य से जुड़ी है, और आज़ादी सिर्फ वर्तमान में है। 🌸

जब तुम बिना फल की चिंता किए काम करते हो, तब काम ध्यान बन जाता है।

और जब तुम फल की ओर देखते हो तो वर्तमान खो जाता है, और तुम्हारा मन भविष्य की तस्वीरें बुनने लगता है। यही चिंता, यही तनाव है।

कृष्ण यह नहीं कह रहे कि फल मत मिलेगा।
फल तो आएगा ही, लेकिन तुम्हारे लिए वह गौण हो जाए।

कर्म करो, जैसे एक बांसुरी बजती है —
वह बांसुरी इस सोच में नहीं रहती कि लोग ताली बजाएँगे या नहीं।
वह बस बहती हवा में धुन बनती है। 🍃

कृष्ण चाहते हैं कि तुम भी वैसा बहो।

कर्म करो, क्योंकि करना ही आनंद है।
फल अपने आप आएगा, पर तब तक वह तुम्हें बाँध नहीं पाएगा।

🌸 "भीतर जो अंधा हुआ, वही खोजे रस्ता…"अगर भीतर अंधकार है,तो तुम बाहर रास्ता ढूँढते रहो,हज़ारों गुरु के पास जाओ,नेताओं के ...
03/08/2025

🌸 "भीतर जो अंधा हुआ, वही खोजे रस्ता…"
अगर भीतर अंधकार है,
तो तुम बाहर रास्ता ढूँढते रहो,
हज़ारों गुरु के पास जाओ,
नेताओं के पीछे भागो, पंडितों की शरण लो—
फिर भी तुम भटकते ही रहोगे।

"नेता, गुरु, पंडित बने, सब अंधा का बस्ता…"
जो खुद अंधे हैं,
वो तुम्हारे मार्गदर्शक बन जाते हैं।
अंधा अंधे को क्या मार्ग देगा?
दोनों ही खड्ड में गिरेंगे।

✨ प्रकाश भीतर जलाना है।
जब तक भीतर दीपक नहीं जलता,
तुम बाहर के दीपकों पर निर्भर रहोगे।
गुरु, पंडित, नेता—ये सब तुम्हारे सहारे बनेंगे,
पर वे भी अंधे हैं।
वो भी अपने भीतर का द्वार नहीं खोले।

असली गुरु बाहर नहीं है,
वो तुम्हारे भीतर छिपा है।
जो भीतर देख लेता है,
उसे किसी बाहरी रास्ते की ज़रूरत नहीं।

🌞 भीतर देखो।
ध्यान में उतर जाओ।
जब भीतर की आँख खुल जाती है
तो कोई और तुम्हें रास्ता दिखाने की ज़रूरत नहीं रहती।

"स्वतंत्रता वहीं है जहाँ भय समाप्त हो जाता है।"भय गुलामी है। भय तुम्हें अदृश्य जंजीरों में बाँध देता है। जब तक भय है, तु...
02/08/2025

"स्वतंत्रता वहीं है जहाँ भय समाप्त हो जाता है।"

भय गुलामी है। भय तुम्हें अदृश्य जंजीरों में बाँध देता है। जब तक भय है, तुम्हारी हर क्रिया बाधित है, तुम्हारा हर निर्णय सीमित है।

भय का अंत साहस से नहीं होता।
भय का अंत केवल समझ से होता है।
जैसे ही तुम भय को पूरी सजगता से देखते हो, उसकी जड़ अपने आप नष्ट हो जाती है।

जब भय गिरता है, तब एक नया आकाश खुलता है।
तुम हल्के हो जाते हो, जैसे कोई बोझ उतर गया हो।
तुम्हारे भीतर मौन फैल जाता है, और उसी मौन में स्वतंत्रता खिलती है।

स्वतंत्रता का अर्थ है कि अब कोई भी तुम्हें भीतर से कैद नहीं कर सकता—
न समाज, न धर्म, न तुम्हारा अपना मन।

स्वतंत्रता बाहर से नहीं आती।
वह भीतर जन्म लेती है।
जहाँ भय नहीं, वहीं तुम्हारा असली अस्तित्व है।

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