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जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ
06/11/2025

जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ

साहित्यिक पारिवारिक मासिकी ‘सोच-विचार’ में लक्ष्मी घोष के कविता-संग्रह ‘ठीक समानांतर’ की समीक्षा प्रकाशित हुई है।संपादक ...
31/10/2025

साहित्यिक पारिवारिक मासिकी ‘सोच-विचार’ में लक्ष्मी घोष के कविता-संग्रह ‘ठीक समानांतर’ की समीक्षा प्रकाशित हुई है।

संपादक ‘सोच-विचार’ एवं समीक्षक, लेखक-कवि मुकेश पोपली के प्रति हार्दिक आभार।

लक्ष्मी घोष को हार्दिक बधाई!

ललित निबन्ध की विधा इन दिनों सोशल मीडिया की टिप्पणियों और समाचार-पत्रों के प्रकाशित आलेखों में क्षणिक रूप से उपस्थित होक...
31/10/2025

ललित निबन्ध की विधा इन दिनों सोशल मीडिया की टिप्पणियों और समाचार-पत्रों के प्रकाशित आलेखों में क्षणिक रूप से उपस्थित होकर साहित्य-परिदृश्य से शीघ्र ही ओझल हो जाती है। हिन्दी के ललित निबन्धों की वैभवशाली परम्परा में भारतीय सौन्दर्यबोध से ओत-प्रोत 'मन मति रंक' एक प्रशंसनीय कड़ी है जो समकाल में भारतबोध को सहेज लेती है। इस संग्रह में भारतीय सांस्कृतिक विरासत पर दृष्टिपात किया गया है, जिसे संगीतकर्मी, फ़िल्मकर्मी, अभिनेता, गायक और साहित्यकार जैसे कलाविदों के कर्मों के प्रतिफलन में समझा जा सकता है। यह एक सजग लेखक का साहित्य-मन्दिर में प्रथम पुष्प-अर्पण है। निश्चय ही पाठक इसके सौरभ से पूर्णता-बोध की ओर उन्मुख होंगे।

पंडित राधेश्याम कथावाचक का नाम बीसवीं शताब्दी के भारतीय रंगमंच के इतिहास में एक स्वर्णाक्षर की भाँति अंकित है। पारसी रंग...
25/10/2025

पंडित राधेश्याम कथावाचक का नाम बीसवीं शताब्दी के भारतीय रंगमंच के इतिहास में एक स्वर्णाक्षर की भाँति अंकित है। पारसी रंगमंच की जीवंत परंपरा में उन्होंने अपनी कथावाचन की अनुपम शैली से एक नवीन अध्याय जोड़ा, जहाँ पौराणिक कथाएँ सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय भावना के साथ गूँथी गईं। उनके नाटक न केवल मनोरंजन के साधन बने, अपितु स्वतंत्रता संग्राम की भावधारा को भी पुष्ट किया, तथा हिंदी नाट्य को एक नई दिशा प्रदान की।

यह संकलन, हरिशंकर शर्मा के कुशल संपादन में, पं. राधेश्याम कथावाचक के पारसी रंगमंचीय अवदान की बहुआयामी विवेचना प्रस्तुत करता है। गहन आलेखों के माध्यम से पुस्तक पारसी थिएटर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, कथावाचकजी की लेखन प्रक्रिया, उनके नाटकों में अंतर्निहित सामाजिक-राष्ट्रीय संदेश तथा हिन्दी रंगमंच पर उनके अमिट प्रभाव की पड़ताल करती है। शोधपूर्ण दृष्टि और साहित्यिक गहराई से युक्त यह पुस्तक नाट्य प्रेमियों, शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

पंडित राधेश्याम कथावाचक (1890-1963) हिन्दी साहित्य और रंगमंच के उस युग के प्रखर प्रतिनिधि थे, जहाँ पौराणिक कथाएँ सामाजिक...
25/10/2025

पंडित राधेश्याम कथावाचक (1890-1963) हिन्दी साहित्य और रंगमंच के उस युग के प्रखर प्रतिनिधि थे, जहाँ पौराणिक कथाएँ सामाजिक सुधार की धार बनकर बहती थीं। उनके रामायण, कृष्णायन, भ्रमरगीत और एकांकी नाटकों में निहित दृष्टि न केवल धार्मिक आस्था को पोषित करती है, अपितु राष्ट्रीय जागरण, स्त्री-शिक्षा, विधवा-विवाह, जाति-भेद उन्मूलन और स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला को भी प्रज्वलित करती है। यह पुस्तक उनकी रचनाओं के माध्यम से उस युग की सामाजिक-राजनीतिक चेतना का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

हरिशंकर शर्मा कथावाचकजी की डायरी, फ़िल्मों और नाटकों के उद्धरणों से प्रमाणित करते हैं कि कैसे उन्होंने सनातन मूल्यों को समकालीन चुनौतियों से जोड़ा। यह आलोचना न केवल ऐतिहासिक संदर्भों को उजागर करती है, अपितु आज के पाठक को प्रेरित करती है कि धार्मिक कथा सामाजिक क्रांति का माध्यम कैसे बन सकती है।

साहित्यकार हरि शंकर शर्मा की दो पुस्तकों—"पंडित राधेश्याम कथावाचक: पारसी रंगमंच" और "पंडित राधेश्याम कथावाचक की सामाजिक ...
22/10/2025

साहित्यकार हरि शंकर शर्मा की दो पुस्तकों—"पंडित राधेश्याम कथावाचक: पारसी रंगमंच" और "पंडित राधेश्याम कथावाचक की सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि"—का अनौपचारिक विमोचन आज जयपुर में प्रख्यात साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज के निवास पर सादगीपूर्ण, किंतु गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ।

इस अवसर पर डॉ. हेतु भारद्वाज, सुपरिचित कवि गोविंद माथुर और चर्चित लेखक-संपादक यशवंत व्यास ने पुस्तकों का विमोचन किया। दोनों पुस्तकों का प्रकाशन वेरा प्रकाशन द्वारा किया गया है।

रोशनी, खुशी और समृद्धि से भरा हो यह दीप पर्व! 🪔✨
20/10/2025

रोशनी, खुशी और समृद्धि से भरा हो यह दीप पर्व! 🪔✨

नई धारा पत्रिका के अक्टूबर-नवंबर 2025 अंक में कवि शहनशाह आलम के प्रेम कविता संग्रह "बारिश बाजा बजाती है" पर हिंदी और राज...
18/10/2025

नई धारा पत्रिका के अक्टूबर-नवंबर 2025 अंक में कवि शहनशाह आलम के प्रेम कविता संग्रह "बारिश बाजा बजाती है" पर हिंदी और राजस्थानी साहित्य के प्रख्यात आलोचक नीरज दइया की गहन और विचारोत्तेजक समीक्षा प्रकाशित हुई। यह समीक्षा संग्रह की संवेदनशीलता, काव्य की मौलिकता और प्रेम के विविध रंगों को उजागर करती है, जो पाठकों को कविताओं की भाव-भूमि और शिल्पगत उत्कृष्टता से साक्षात्कार कराती है।

कविता संग्रह 'तन पलाश, मन पारिजात' का विमोचन
16/10/2025

कविता संग्रह 'तन पलाश, मन पारिजात' का विमोचन

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