13/09/2025
चिड़िया का प्रेम
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हर पेड़ के जीवन में
कभी-न-कभी ज़रूर आता है पतझड़।
झड़ते रहते हैं पत्ते,
कभी हवा के झूले से टकराकर
तो कभी झींगुरों के आर्त प्रलाप से।
शिराओं का रक्त
मेंढकों के रक्त की तरह हो जाता है ठंडा,
पेड़ चला जाता है किसी लम्बी शीत निद्रा में।
चिड़िया कातर दृष्टि से देखती है इस कायाकल्प को।
चिड़िया जानती है जीवन को ठहरना नहीं चाहिए
उसे बहना चाहिए चाहे किसी प्रौढ़ा नदी की तरह ही।
पेड़ की अधखुली आँखों में झाँकते हुए
उसे प्रतीक्षा रहती है वसंत की।
इस बार पेड़ सोता ही रहा।
लकड़हारा निर्ममता से छीलता रहा
उसकी छाल, काटता रहा टहनियाँ।
कितने ही घरों में चूल्हों की आग
धधकती रही उसके सूखे पत्तों से।
बहेलियों के परिवार होते रहे आश्वस्त
कि अब कैसे छुपेगी चिड़िया
इस पत्र-विहीन पेड़ की झोली में।
चिड़िया सचमुच उदास हो गई।
उसने कहा—
जागो पेड़, तुम्हारी निद्रा के मोह का परिणाम
भुगतेगी हरी घास, जल जाएगी सूरज की गर्मी से।
जागो पेड़, तुम सोते रहे तो ग्रीष्म की लपटें
भस्म कर देंगी चींटियों और तिलचट्टों के घरोंदे।
जागो पेड़, तुम सोते रहे तो
हमारे सिर पर पल भर भी नहीं रुकेंगे जल भरे बादल।
जागो पेड़, तुम सोते रहे तो
नदी की प्रतीक्षा में
और अधिक खारा हो जाएगा समुद्र का जल।
पेड़ चिंता निमग्न सोता ही रहा।
चिड़िया ने सबसे पहले
तिनका-तिनका कर डाला अपना घोंसला।
गिलहरी से कहा—
बहन, टूट गया है मेरा भ्रम,
प्रेम ज़रूरी नहीं सदा सबको जीवन ही दे।
मृत्यु दे तो भी उसे स्वीकार करना ही चाहिए।
कल सुबह मैं उड़ जाऊँगी
थार के रेगिस्तान के रास्ते पर;
जब पंख नहीं देंगे साथ,
विलीन हो जाऊँगी
स्वर्ण से दीप्त रेत के अग्नि-कणों में।
पेड़! तुम सोते रहना शताब्दियों तक
मानवता के प्रति भूल कर अपना दायित्व।
भूल जाना तुमसे प्यार किया था किसी चिड़िया ने।
बहुत लम्बी थी वह रात।
चिड़िया रोती रही और उसके आँसू
टपकते रहे पेड़ के हृदय पर।
करवटें बदलता रहा अधसोया पेड़।
उसकी आँखों के सामने ग्रीष्म का जलता रेत था
और उस पर तड़पती नन्हीं-सी चिड़िया थी।
नहीं— हड़बड़ा कर जाग गया पेड़।
उसने आसमान में निराश भिक्षु से
झाँकते चंद्रमा से कहा— पेड़ जीएगा।
चिड़िया के लिए जीएगा।
नदी के लिए जीएगा।
घास और तिलचट्टों के लिए जीएगा।
थोड़ा-सा
लकड़हारे और बहेलिए के लिए भी जीएगा।
सुबह, प्रयाण-यात्रा पर निकलने से पहले
चिड़िया ने पेड़ की परिक्रमा की।
पूरा पेड़ हरी-हरी कोपलों से भरा था।
गिलहरी प्राणायाम कर रही थी
और कोयल कोई प्रेम-गीत गुनगुना रही थी।
चिड़िया मानिनी होकर फिर से
नया घोंसला बनाने में लग गई।
सुनेत्रा,
चिड़िया का प्रेम उस अमृत के समान है
जो किसी भी मृत्यु-कामी पेड़ को
पल भर में हरा कर सकता है।
प्रिये, तुम मेरी चिड़िया बनो न?
("प्रजातंत्र में कबूतर" से)