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'नक़्शे की दुनिया सभी ने देखी है....पर दुनिया ने उसे ही देखा है....जिसने पूरी दुनिया देखी है'।

“Take only memories, leave only footprints.”

“The world is a book, and those who do not travel only read a page.”

27/07/2025

" India," it evokes the stunning landscapes, culture, and rich history of India.
in , particularly the procession, is a vibrant cultural event centered around Tripolia Bazaar. The festival, which celebrates the monsoon season and the reunion of Lord Shiva and Parvati, involves a grand procession of (Goddess Teej) on July 27th and 28th, 2025. The procession starts from Tripolia Gate, passes through , and continues to other parts of the old city.

26/07/2025

Panday And Padda’s ‘ ’ Becomes Second Biggest Hit ...

Vaibhav sooryavanshi     .....Best batting..
28/04/2025

Vaibhav sooryavanshi .....Best batting..

30/03/2025

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09/03/2025

... Morning vibe.....

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26/02/2025

हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को #महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस साल ये खास तिथि आज यानी 26 फरवरी को पड़ रही है, ऐसे में आज पूरे देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, #फाल्गुन माह की चतुर्दशी को भगवान #शिव और माता #पार्वती का विवाह हुआ था, जिसके बाद से ही इस खास तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त सच्ची निष्ठा के साथ भोलेनाथ के नाम का उपवास रखते हैं, श्रद्धा भाव के साथ #शंकर-पार्वती की पूजा-अर्चना कर दान-आदि करते हैं। इन सब से अलावा भक्त एक-दूसरे को महाशिवरात्रि के महापर्व की ढेरों शुभकामनाएं भी देते हैं।

23/02/2025

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वृंदावन को पृथ्वी का अति उत्तम और परम गुप्त भाग कहा गया है.
पद्म पुराण में इसे भगवान का साक्षात शरीर, पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का स्थान और सुख का आश्रय बताया गया है.
वृंदावन के आस-पास के क्षेत्र को ब्रज मंडल, 'ब्रज का घेरा' कहा जाता है.
वृंदा का अर्थ है तुलसी का वन.
ब्रह्म पुराण में बताया गया है कि वृंदा राजा केदार की पुत्री थीं.
उन्‍होंने इस वनस्‍थली में कठोर तप किया था.
वृंदा अर्थात राधा रानी अपने प्रियतम श्री कृष्‍ण से मिलने की तमन्‍ना लिए इस वन में निवास करती हैं.

श्रीमद् भागवत में वृन्दावन का उल्लेख नन्दादिगोपों द्वारा श्रीकृष्ण सहित गोकुल को छोड़कर वृन्दावन गमन करने के समय आता है जहाँ कि श्रीकृष्ण द्वारा अनेकानेक अद्भुत लीलाएँ की गई थीं। श्रीकृष्ण जी के प्रपौत्र ने समस्त लीला स्थलियों को प्रतिष्ठापित किया तथा अनेक मन्दिर, कुण्ड एवं सरोवरों आदि की स्थापना की थी। सन् १५१५ ई. में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन पधारे। इसके अतिरिक्त स्वामी हरिदासजी, श्री हित हरिवंश, श्री निम्बार्काचार्य, श्रीलोकनाथ, श्री अद्वेताचार्यपाद, श्रीमान्नित्यानन्दपाद आदि अनन्य अनेकों संत-महात्माओं ने वृन्दावन में निवास किया था। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंश में कुबेर के चौत्ररथ नामक उद्यान से वृन्दावन की तुलना की हैं। १४वीं शताब्दी में वृन्दावन की विद्यमानता का उल्लेख अनेक जैन-ग्रन्थों में भी मिलता है।

इस पावन स्थली का वृन्दावन नामकरण कैसे हुआ? इस संबंध में अनेक मत हैं। 'वृन्दा' तुलसी को कहते हैं। यहाँ तुलसी के पौधे अधिक थे। इसलिए इसे वृन्दावन कहा गया। वन्दावन की अधिष्ठात्री देवी वृन्दा हैं। कहते हैं कि वृन्दा देवी का मन्दिर सेवा कुंज वाले स्थान पर था। यहाँ आज भी छोटे-छोटे सघन कुंज हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वृन्दा राजा केदार की पुत्री थी। उसने इन वन स्थली में घोर तप किया था। अत: इस वन का नाम वृन्दावन हुआ। कालान्तर में यह वन धीरे-धीरे बस्ती के रुप में विकसित होकर आबाद हुआ। इसी पुराण में कहा गया है कि श्रीराधा के सोलह नामों में से एक नाम वृन्दा भी है। वृन्दा अर्थात् राधा अपने प्रिय श्रीकृष्ण से मिलने की आकांक्षा लिए इस वन में निवास करती है और इस स्थान के कण-कण को पावन तथा रसमय करती हैं।

आदि वृन्दावन इतिहास के पृष्ठों में

कुछ विद्वानों के अनुसार यह वह वृन्दावन नहीं है, जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाओं के द्वारा प्रेम एवं भक्ति का साम्राज्य स्थापित किया था। ये लोग पौराणिक वर्णन के आधार लेकर कहते हैं कि वृन्दावन के समीप गोवर्धन पर्वत की विद्यमानता बताई है जबकि वह यहाँ से पर्याप्त दूरी पर है। कुछ लोग राधाकुण्ड को तो कुछ लोग कामा को वृन्दावन सिद्ध करते हैं। उस काल में यमुना वहीं होकर बहती थी। धीरे-धीरे यमुना का प्रवाह बदलता रहा। प्राचीन वृन्दावन के लुप्त प्राय: हो जाने से नवीन स्थल पर वृन्दावन बसाया गया। वृन्दावन कहीं भी रहा हो यह बात खोजी तथा तार्किकों के लिए छोड़ देना चाहिए। इन बातों से वृन्दावन की महिमा में कोई कमी नहीं आती।

पंद्रहवीं-सोलहवी शताब्दी में मदन-मोहनजी, गोविन्द देवजी, गोपीनाथजी, राधाबल्लभजी आदि मन्दिरों का निर्माण हो चुका था। औरंगजेब के शासन के समय जब वृन्दावन ही नहीं, ब्रज मण्डल के अनेक मन्दिरों को नष्ट किया जा रहा था तब वृन्दावन के अनेक श्रीविग्रहों के जयपुर आदि अन्यान्य स्थानों को भेज दिया गया था। वृन्दावन का नाम मोमिनाबाद रखने का प्रयत्न किया जो प्रचलित नहीं हो सका और सरकारी कागजातों तक ही सीमित रहा।

सन् १७१८ ई. से सन् १८०३ ई. तक तो ब्रजमण्डल में जाट राजाओं का आधिपत्य रहा, लेकिन सन् १७५७ ई. में अहमदशाह ने ब्रज मण्डल के मथुरा, महावन आदि तीर्थ स्थलों के साथ वृन्दावन में भी लूटपाट की थीं। सन् १८०१ ई. के अन्तिम काल में ब्रज मण्डल के अनेक क्षेत्रों पर पुन: जाट राजाओं का फिर से हुकूमत हो गई। उसके बाद ही वृन्दावन को पुन: प्रतिष्ठित होने का अवसर मिला।

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30/01/2025

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