शंकर सन्देश

शंकर सन्देश धर्मस्य जयोस्तु

हिन्दू एकता देश के लिए जरूरी है ,क्यों ?

01. भारत को यदि पड़ोसी शत्रुओं के हाथ में जाने से बचाना है, इस्लामी जेहादी आतंकवादियों से देश की रक्षा करनी है, इस गृहयुद्ध से देश बचाना है, यदि भारत को अखण्ड और
एकात्म रखना है तो इसके लिए अत्यावश्यक है – हिन्दू एकता।

02. हिन्दू एकता भारत
की आत्मा को जाग्रत करेगी। भारत का स्वाभिमान, आध्यात्मिकता और ऋषियों का ज्ञान वापस आयेगा। परिणामस्वरूप देश से भ्रष्टाचा

र और अनैतिकता दूर होने के रास्ते खुलेंगे। भारत पुन: जगद्गुरु के रूप में विश्व का मार्गदर्शक बनेगा। हमारे शत्रु भी हमसे मित्रता करने के लिए हाथ
बढ़ायेंगे।

03. हिन्दू एकता के अभाव में ही देश में जेहादी आतंकवाद, तीन करोड़ विदेशियों की घुसपैठ, हिन्दुओं का धर्मान्तरण, गौहत्या, मठ-मंदिरों की सरकारी अधिग्रहण के माध्यम से लूट, हिन्दू संतों और देवताओं का अपमान, नारियों पर अत्याचार-बलात्कार, हिन्दुओं के साथ अंधाधुंध भेदभाव, अन्याय, अत्यन्त सहनशील हिन्दू समाज और महान् हिन्दू धर्म को नष्ट करने के षडयन्त्र बहुत तेजी से बढ़े। हिन्दू एकता से ये बुराईयाँ स्वयं नष्ट होने लगेंगी।

04. हिन्दू एकता का सबसे अधिक लाभ समाज की दौड़ में पिछड़े रह गए बन्धुओं को, गरीबों को और देश के बेरोजगार नवयुवकों को मिलेगा। हिन्दू विरोधी अपने को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने वाले राजनेताओं द्वारा भ्रष्टाचार
के माध्यम से गरीब जनता के परिश्रम का लाखों करोड़
रुपया जो विदेशी बैंकों में जमा है वह भारत वापस लाकर बेरोजगारी दूर करने
में और समाज में पिछड़े रह गए बन्धुओं की भलाई में खर्च किया जा सकेगा।
विदेशों में जमा कुल धन गाँव में बाँटने पर एक-एक गाँव के हिस्से में कई सौ करोड़ रुपया आयेगा।

05. हिन्दू एकता से ही विश्वशान्ति, विश्वसमृध्दि, विश्वसमन्वय और विश्वएकता संभव। हिन्दू एकता का किसी से विरोध नहीं है। यह सर्वेषां अविरोधेन् है। हिन्दू के लिए
सारा विश्व एक कुटुम्ब है। हिन्दू वसुधैव कुटुम्बकम् को मानता है।

06. यद्यपि भारत आज आजाद है; पर हिन्दू आजाद नहीं। हिन्दू की गुलामी को दूर करने के लिए हिन्दू
एकता आवश्यक; अत: सभी हिन्दुओं को अपनी जाति, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय व राजनीतिक दलों के भेदभाव को भूलकर हिन्दू के रूप में एक छत के नीचे
आना आवश्यक है तभी हम अपने देश को एक रख पायेंगे और देश की आजादी की रक्षा कर पायेंगे। आप अपने-अपने क्षेत्र में स्वयं अपनी ही रक्षा के लिए इस आन्दोलन से जुड़ें। नित्य पदयात्राओं के माध्यम से
हिन्दू को इकट्ठा करें, हिन्दू
एकता का भाव निर्माण करें
यही लोकतन्त्र व अहिंसा का मार्ग है।

।। जयतु संस्कृतम् , जयतु भारतम् ।।

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श्रीचक्रोपासक, त्याग एवं तपश्चर्य की प्रतिमूर्ति जैन मुनि श्री विद्यासागर जी का समाधि का समाचार प्राप्त हुआ।भगवती पद्माव...
18/02/2024

श्रीचक्रोपासक, त्याग एवं तपश्चर्य की प्रतिमूर्ति जैन मुनि श्री विद्यासागर जी का समाधि का समाचार प्राप्त हुआ।
भगवती पद्मावती आपको उत्तम गति प्रदान करें।

गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दजी महाराज द्वारा विरचित गणित का वह अद्भुत ग्रन्थ ...
15/02/2024

गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु
शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दजी महाराज
द्वारा विरचित गणित का वह अद्भुत ग्रन्थ प्राप्त हुआ।

इस पर ऑक्सफोर्ड , कैंब्रिज , उत्तर कोरिया , दक्षिण कोरिया , सहित विश्व के 104 देश शोध कर रहे हैं ।
भारत के दुर्भाग्य कि पराकाष्ठा यह है कि
अभी उसका ध्यान इधर नहीं ।
हालाॅंकि उसके लिए इस पर शोध करना कहीं
संप्रदायिक ना कहा जाए
क्योंकि गुरुदेव सनातन हिंदू धर्म के सर्वोच्च शङ्कराचार्य पद पर आसीन जो हैं ।
विदित हो कि इसी ग्रंथ पर ऑक्सफोर्ड के एक गणितजथा कि
" अगर पूरे विश्व में गणित 1 % है तो गोवर्धन मठ पुरी में 99% गणित है।"
उल्लेखनीय है कि गोवर्धन मठ पुरी के 143 में शंकराचार्य भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने ही दुनिया को वैदिक मैथमेटिक्स ( Wonders of Mathematics लगभग 5000 पृष्ठ में अंग्रेजी में लिखा था। ) दिया था।
जिस पर आज विज्ञान का चमत्कारिक अविष्कार आधुनिक कंप्यूटर और मोबाइल आधारित है। ( 0 --- 1 ; Binary Numbers )

जय जय शंकर
हर हर शंकर

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सनातन धर्मरक्षक शंकराचार्यो का इतिहास एवं योगदानभाग-1 आदि शंकराचार्य का वास्तविक काल एवं आचार्य परम्परा का प्रादुर्भाव।व...
29/01/2024

सनातन धर्मरक्षक शंकराचार्यो का इतिहास एवं योगदान

भाग-1

आदि शंकराचार्य का वास्तविक काल एवं आचार्य परम्परा का प्रादुर्भाव।

विधर्मी इतिहासकारों द्वारा फैलाये गए झूठ का खंडन।

मित्रो सनातन धर्म को पुन:व्यवस्थित करके आदिकाल से चली आ रही शास्त्र रक्षक ऋषि धारा को पुनर्जीवित करने का श्रेय आदि शंकराचार्य को ही जाता है उनका जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को हुआ था।

वर्तमान इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में। मतलब वह 32 साल जीए।
वास्तव मे इतिहासकारों का यह मत तथ्यों से मैच नहीं करता है अत: उनका मत असिद्ध हैं।
दरअसल, 788 ईस्वी में एक अभिनव शंकर हुए जिनकी वेशभूषा और उनका जीवन भी लगभग शंकराचार्य की तरह ही था। वे भी मठ के ही आचार्य थे। उन्होंने चिदंबरमवासी श्रीविश्व जी के घर जन्म लिया था।

उनको इतिहाकारों ने आदि शंकराचार्य का नाम दे दिया।
पीछे का षड्यंत्र यही था कि सनातन परंपरा को इस्लामियत ईसाइयत के बाद का दिखाया जाए।
जबकि ये अभिनव आचार्य जी कैलाश में एक गुफा में चले गए थे और 45 वर्ष तक जीए थे।

वहीं आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां हुआ था और वे 32 वर्ष तक ही जीए थे।

दुसरे देशों की किंवदन्ती को भी इतिहास मान कर हमारे इतिहास, सभ्यता के काल को ईसा के आस पास ही समेटा जा रहा है काल गणना इतनी गडबड की गई है आधुनिक इतिहासकारों और वामपंथीयों द्वारा की अच्छे - अच्छों का सर चकरा जाये।
सबसे बड़ी गडबड शंकराचार्य के काल निर्धारण में हुई है, इल्लु एजेंट इतिहासकारो ने शंकराचार्य का काल ईसा के बाद 788 ईसा बाद दिया है अर्थात् ईसा मसीह से लगभग 700 वर्ष बाद शंकराचार्य का जन्म हुआ।
ये कपोल कल्पना मनगढंत काल निर्धारण प्रमाणों के बिल्कुल विरुद्ध है।

अब यहां हम कुछ प्रमाण देंगे, जिनसे सिद्ध होगा कि शंकराचार्य जी ईसा से भी लगभग 500 वर्ष पूर्व हुए थे।

1. गोवर्धन मठ की शंकराचार्यो की परम्परा में अभी के शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती 145 वे शंकराचार्य हैं। यदि ओसतन एक शंकराचार्य का काल 15 वर्ष भी माने तो 145×15 = 2175 बैठता है जो की ईसा से पूर्व ही जाता है।

पोस्ट में नीचे पुरी गोवर्धनपीठ की आचार्य परम्परा की लिस्ट है।

2. शारदापीठ की वंशावली के अनुसार शंकराचार्य का जन्म 2631 युद्धिष्ठिर् संवत लिखा है अर्थात विक्रम से लगभग 450 वर्ष पूर्व और ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व।

3. कांचीकामकोटि पीठ की वंशावली के अनुसार शंकराचार्य जी का जन्म 2493 कलि संवत लिखा है अर्थात वही विक्रम से लगभग 450 और ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व |

4. चित्सुखाचार्य ने शंकराचार्य के प्रादुर्भाव में कुछ श्लोक लिखे है जो युद्धिष्ठिर् मीमांसक जी ने अपने शास्त्रावतार मीमांसा में दिए है -

श्लोक

"तत: सा दशमे मासे सम्पूर्णशुभलक्षणे।
षटत्रिशे शतके श्रीमद युद्धिष्ठिरशकस्य वे।।
एकत्रिशे वर्षे तु हायने नन्देने शुभे।
मेघराशि गते सूर्ये वैशाखे मासि शोभने।।
शुक्लपक्षे च पंचम्या तिथ्या भास्करवासरे।
प्रासूत तनय साध्वी गिरिजेव षडाननम्।।

इस श्लोक के अनुसार शंकराचार्य का जन्म युधिष्ठिर संवत 2631 अर्थात ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व के वैशाख के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि रविवार को बैठता है।

5. एबी सेंट अपनी पुस्तक "रिलिजन ऑफ़ बुद्धा " के पेज 146 में लिखते है - " गौतम बुद्ध की म्रत्यु के लगभग 60 वर्ष पश्चात शंकराचार्य जी हुए।
ध्यान देने वाली बात है कि पश्चिमी इतिहासकार बुद्ध का काल भ्रम अनुसार ईसा से ५५० वर्ष पूर्व मानते है जिसके अनुसार शंकराचार्य का काल ईसा से लगभग 480-500 वर्ष पूर्व ही बैठता है।

6. हरिस्वामी जो कि राजा विक्रमादित्य के राज्य में भूपति के धर्माध्यक्ष पद पर थे, इन्होने अपने शतपथ ब्राह्मण के भाष्य में कुमारिल भट के शिष्य प्रभाकर के अनुयायियो का उल्लेख किया है - “ अथवा सूत्रांणि यथाविध्यूद्देश इति प्राभाकरा: अप: प्रणयतीति “
इनके गुरु स्कन्द स्वामी थे जो निरुक्त के टीकाकार थे, उनके इसी टीका के सहयोगी महेश्वर ने निरुक्त 8/2 की टीका में कुमारिल के श्लोक वार्तिक अर्थोत्पति परिच्छेद का 51 वा श्लोक उद्दृत किया है। कुमारिल भट शंकराचार्य के समकालीन थे, इससे शंकराचार्य का काल विक्रम से पूर्व और ईसा से भी लगभग 500 वर्ष पूर्व ही स्पष्ट होता है।

इन प्रमाणों से सिद्ध है कि विकिपीडिया और आधुनिक इतिहासकारो द्वारा दी हुई शंकराचार्य का प्रादुर्भाव काल निश्चित ही गलत और कपोलकल्पित है।

मठों में आदि शंकराचार्य से अब तक के जितने भी गुरु और उनके शिष्य हुए हैं उनकी गुरु-शिष्य परंपरा का इतिहास संरक्षित है।
जो भी गुरु या गुरु का शिष्य समाधि लेता था उनकी तिथि वहां के इतिहास में दर्ज होती थी। फिर जो गुरु शंकराचार्य की पदवी ग्रहण करता और समाधि लेता था उसकी भी तिथि आदि दर्ज होती है। उक्त तिथियों को श्लोकों में लिखे जाने की परंपरा रही है जिसे गुरु-शिष्य की परंपरा के अनुसार कंठस्थ किए जाने का प्रचलन रहा है।

शंकराचार्य ने पश्‍चिम दिशा में युधिष्ठिर संवत 2648 में जो शारदामठ बनाया गया था उसके इतिहास की किताबों में एक श्लोक लिखा है जिसकी हमने चर्चा की है :

श्लोक

"युधिष्ठिरशके २६३१ वैशाखशुक्लापंचमी श्री मच्छशंकरावतार:।
तदुन २६६३ कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां श्रीमच्छंशंकराभगवत्।
पूज्यपाद निजदेहेनैव निजधाम प्रविशन्निति।"

आदि शंकराचार्य 2631 युधिष्ठिर संवत् को जन्म हुआ था और आज 9156 युधिष्ठिर संवत् चल रहा है, तदनुसार 9156-2631 =2527 वर्ष।

ई. के लिए 2527-2024 = 503 ईसा पूर्व

अर्थात 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। मतलब आज 5158 युधिष्ठिर संवत चल रहा है। अब यदि 2631 में से 5158 घटाकर उनकी जन्म तिथि निकालते हैं तो 2527 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसको यदि हम अंग्रेजी या ईसाई संवत से निकालते हैं तो 2527 में से हम 2024 घटा दे तो आदि शंकराचार्य का जन्म 503 ईसा पूर्व हुआ था इसी तरह मृत्यु का सन् निकालें तो 474 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हुई थी।

तो मित्रो आदि शंकराचार्य जी का जन्म 503 ईसा पूर्व में हुआ था और आज इतिहासकार कहते हैं कि 688 ईसा पश्चात जन्म हुआ था।
इससे बड़ा झूठ छलावा षड्यंत्र और क्या हो सकता है जबकि सभी तिथि क्रम एक समान आ रहे हैं अंग्रेजी इतिहासकारों ने हमारे लगभग 1296 बरस खा लिए।

इस वक्त 2024 ईसाई वर्ष चल रहा है विक्रम संवत इससे 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था वर्तमान में विक्रम संवत 2080 चल रहा है। इस वक्त कलि संवत 5124 चल रहा है। युधिष्ठिर संवत कलि संवत से 38 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था मतलब इस वक्त युधिष्ठिर संवत 5163 चल रहा है।

तो मित्रो आदि शंकराचार्य कब हुवे और आचार्य परम्परा कितनी प्राचीन है इन दोनों किविदन्ति को आज इन तथ्यों द्वारा समाप्त किया जा चुका है अगली पोस्ट में और अन्य प्रमाण भी दिए जाएंगे।

ये कितने गर्व की बात है कि हमारे सामने साक्षात हमारे सनातन का इतना प्राचीन इतिहास लिए आज भी संसार के सबसे विद्वान और प्राचीन आचार्य परम्परा के वाहक उपस्थित हैं।

हम शंकराचार्यो को दोष देते रहते हैं लेकिन क्या वास्तव में हमने उनके बारे में 10 प्रतिशत भी जानकारी जुटाई?

आखिर मीडिया उन्हें अधिक महत्व क्यो नही देता?

इंटरनेट पर सनातन का 90% इतिहास एवं जानकारी झूठी है फिर आप इन आचार्यो की जानकारी कैसे प्राप्त करेंगे एकबार दिमाग पर जोर दीजिये आखिर नेट पर दी गई जानकारी एवं प्रादुर्भाव गलत क्यो डाला गया?
आखिर क्या कारण था?

संज्ञानात्मक

जय श्री राम
⚔️🦁🚩

✍️सूर्य वर्धन सिंह✍️

29/01/2024

कौन हैं शंकराचार्य?

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाणता उपर सुल्तान है,मत चूको चौहान।।वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान जी की पुण्यतिथि पर उन्हे...
13/03/2023

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण
ता उपर सुल्तान है,मत चूको चौहान।।

वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान जी की पुण्यतिथि पर उन्हे कोटि-कोटि नमन!

03/03/2023
आप सभी का धन्यवाद.......
29/01/2023

आप सभी का धन्यवाद.......

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