25/10/2025
* सासु माँ अब क्या आप अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ लेंगी *
सुबह से घर में खामोशी पसरी हुई थी। घर में सब लोग उठ चुके थे लेकिन किसी ने किसी से कोई बात तक नहीं की। सब चुप थे। आखिर बोले तो बोले क्या? कल रात जो कुछ हुआ सब उसी के सदमे में थे।
रोज सुबह सुबह तानों के बगैर जिसकी शुरुआत नहीं होती वो सासू मां रजनी जी आज खामोशी से अपनी पूजा पाठ कर रही थी। और रोज मां की हां में हां मिलाने वाला बेटा प्रवीण अखबार में आंख गड़ाए बैठा हुआ था।
और शालिनी, हाँ उसकी जीवनचर्या में कोई फर्क ही नहीं था। वो रोज इस समय रसोई में सबके लिए नाश्ता तैयार कर रही होती थी और आज भी रसोई में सबके लिए नाश्ता तैयार कर रही थी।
पर नाश्ता बनाते बनाते हाथ तेजी से चल रहे थे, पर उससे भी ज्यादा तेजी से उसका दिमाग चल रहा था। आज उसके काम की तेजी देखकर उसका पति और सासु माँ दोनों हैरान थे। एक दो बार दोनों ने एक दूसरे की देखा भी। और इशारों ही इशारों में पूछा भी कि आखिर बात क्या है, करने क्या वाली है ये? पर दोनों को ही नहीं पता था, इसलिए चुप थे।
शालिनी ने फटाफट नाश्ता बनाया और टेबल पर परोस दिया। पर किसी से कुछ कहा नहीं और अपने कमरे में चली गई। नाश्ता देखकर सासू मां अपनी पूजा समाप्त कर नाश्ता करने बैठ गई। प्रवीण को भी सासु माँ ने इशारे से ही कहा कि वह भी आकर नाश्ता कर ले। तो प्रवीण भी अपनी मां के पास ही आकर बैठ गया और नाश्ता करने लगा।
इधर शालिनी अपने कमरे में जाकर बैठ गई। बैठे-बैठे ही उसे वो दिन याद हो आया जब शादी के पंद्रह दिन बाद उसके माता-पिता उससे मिलने के लिए उसके ससुराल आए थे। उस समय शालिनी अपने कमरे में अलमारी में अपना सामान जमा रही थी। साथ ही उसमें अपने सोने के गहने भी पलंग पर ही रख रखे थे ये सोच कर कि इन्हें सासू मां को संभालने के लिए दे देगी।
लेकिन जैसे ही उसने सुना कि उसके माता-पिता उससे मिलने आए हैं तो अपना सामान वैसा ही छोड़ कर बाहर दौड़ी चली आई। कुछ देर बाद उसकी ननद की बेटी जो कि पाँच साल की थी वो खेलते खेलते उसके कमरे में आई। और वहां रखे सामान से खेलने लगी। आखिर बच्ची ही तो थी, खेलते खेलते ही उसने हार उठा लिया और उसे बाहर लेकर आ गई। उसे ननद ने देख लिया और उसकी नियत उस हार पर खराब हो गई। उसने फटाफट उससे हार लेकर अपने आंचल में छुपा लिया।
थोड़ी देर बाद शालिनी अपनी मम्मी को लेकर अपने कमरे में आई तो उसकी मम्मी ने टोका,
" शालिनी तुमने गहने ऐसे कैसे रख रखे है। बेटा ऐसे सामान खुल्ला नहीं छोड़ते। इन्हें संभाल कर रखो"
" जी मम्मी, आप बैठो तो सही"
कहते कहते शालिनी गहने उठाने लगी तो हैरान रह गई। उसका हार गायब था। वो फटाफट अपना हार ढूँढने लगी तो उसकी मम्मी ने कहा,
" क्या ढूंढ रही है बेटा"
" मम्मी, मेरा सोने का हार नहीं मिल रहा वो जो आपने दिया था। यहीं पर तो रखा था"
ये बात अंदर आती हुई सासु मां ने सुन ली और उन्होंने एक पल नहीं लगाया हंगामा करने में। कमरे में आते ही चिल्लाते हुए बोली,
" तुमने ऐसे कैसे हार गुमा दिया बहू। तुम इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हो"
उनकी आवाज सुनकर शालिनी एकदम चुप हो गई तो उसकी मम्मी बोली,
" समधन जी थोड़ी शांति रखिए। यहीं कहीं रखा होगा"
" माफ करना समधन जी। आपने अपनी बेटी को कुछ भी नहीं सिखाया है। उसे ये तक नहीं पता कि अपने सोने के गहनों को इस तरह लापरवाही से नहीं रखते"
रजनी जी इतनी जोर से चिल्ला रही थी कि उनकी आवाज सुनकर शालिनी के पापा और प्रवीण भी कमरे में आ गए। शालिनी की मम्मी ने हिम्मत कर रजनी जी से कहा,
" अभी थोड़ी देर पहले इस कमरे में से बच्ची खेलते हुए बाहर आई है। क्या पता उसने कहीं....."
" खबरदार समधन जी। अपनी चोरी का इल्जाम मेरी नातिन पर लगाया तो। आप जैसे लोग खुद अपनी बेटी के घर में आकर चोरी करते हैं और इल्जाम दूसरों पर लगाते हैं"
" मम्मी जी आप ऐसे कैसे मेरी मम्मी पापा पर चोरी का इल्जाम लगा सकती है"
शालिनी के इतना कहते ही रजनी जी ने जोर-जोर से चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया। लेकिन मजाल कि उसकी ननद ने एक बार भी अपना मुंह खोला हो। यहां तक कि जब वो छोटी सी बच्ची आगे बढ़कर कुछ बोलने लगी तो उसे खींचकर दूसरे कमरे में ले गई। यह कहते हुए कि छोटी बच्ची पर इन सब बातों का गलत असर होता है।
बात बढ़ती देखकर शालिनी के माता-पिता ने हाथ जोड़ लिए और वहां से रवाना हो गए। जब शालिनी उनके साथ जाने को हुई तो उन लोगों ने उसे समझा कर अपनी कसम देकर वही रोक दिया। उस दिन के बाद से उसने मायके की शक्ल तक नहीं देखी। क्योंकि सासू मां ने सारे रिश्ते खत्म कर दिए। प्रवीण अपनी मां की बात कभी काटता नहीं था। तो उसने भी कुछ नहीं कहा।
लेकिन कल रात.....
रजनी जी के न्यौते पर ननद नंदोई जी घर पर खाना खाने आए हुए थे। वो सब लोग बैठ कर खाना खा रहे थे और शालिनी सबको खाना परोस रही थी। जबकि ननद की बेटी खाना खाकर अपनी मम्मी के मोबाइल पर गेम खेल रही थी। उसी समय नंदोई जी ने शालिनी के बनाए हुए खाने की तारीफ की। तो पता नहीं रजनी जी को क्या सूझी जो वो उस समय भी शालिनी को ताने मारने से बाज नहीं आई,
" खाना बनाना तो मैंने इसे सिखाया है। नही तो आता ही क्या था? आखिर चोरों के खानदान से जो ठहरी। इसके मम्मी पापा को तो अपनी ही बेटी के ससुराल में आकर बेटी का हार चुराते शर्म भी नहीं आई"
यह बात ननद की बेटी भी सुन रही थी जो उस समय मोबाइल पर गेम खेल रही थी। फिर पता नहीं उसे क्या सुझी, मोबाइल खेलते खेलते ही वह शालिनी से बोली,
" मामी, आपके मम्मी पापा चोर है क्या?"
छोटी सी बच्ची के बात शालिनी के दिल में तीर की तरह चुभी पर सासू मां हंसते हुए बोली,
" और नहीं तो क्या? इसके मम्मी पापा चोर ही तो है जो बेटी का सोने का हार चुरा ले गए। लोग बेटियों को हार देते हैं और इसके माता-पिता बेटियों का हार चुराते हैं"
कहते-कहते वो हंसने लगी। पर यहाँ ननद की बेटी कुछ सोचते सोचते अपनी मम्मी की फोटो मोबाइल गैलरी से निकाल कर शालिनी के पास आकर बोली,
" पर मामी, मेरी नानी ने तो कितना सुंदर हार दिया है मेरी मम्मी को। देखो तो"
कहते हुए उसने मोबाइल शालिनी के सामने कर दिया। उस फोटो में ननद के गले में जो हार था उसे देखकर शालिनी चौक गई। ये तो उसका ही हार था।
उसने गुस्से से ननद की तरफ देखा तो उसके मुंह का निवाला मुंह में ही अटक कर रह गया। समझ गई कि बेटी ने वो फोटो ही दिखाई हैं जिसमें उसने शालिनी का हार पहन रखा है। उसने मोबाइल लेकर अपनी सासू मां को दिखते हुए कहा,
" ये हार जीजी के पास कैसे आया सासु माँ? यह तो मेरा हार है"
उस हार को देखते ही सासू मां की भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। सच में वो शालिनी का ही हार था। उन्होंने निगाह उठाकर अपनी बेटी की तरफ देखा। लेकिन उससे पहले नंदोई जी ने मोबाइल लेकर उस फोटो को देखा तो कहा,
" अरे मम्मी जी ये तो आपने प्रवीण की शादी के तोहफे के तौर पर उसे दिया था ना"
" माफ करना नंदोई जी, ये मेरा हार है। और ये वही हार हैं जिसके पीछे मेरे माता-पिता को चोर साबित किया गया "
सुनकर सब की बोलती बंद हो गई। ननद निगाह उठाकर देख भी नहीं पाई। आज किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था। सब चुप थे। अपने दामाद के सामने आखिर कहते तो कहते क्या? लेकिन शालिनी ने जमकर अपनी नदद को सुनाया। और इसी बात पर कल रात से सासू मां गुस्से में है।
कुछ सोचकर शालिनी उठी और अलमारी में से अपने कपड़े निकालने लगी। इधर अभी दोनों माँ बेटे अपना नाश्ता करके उठे ही थे कि शालिनी अपने कमरे में से आई। कपड़े चेंज कर लिए थे और हाथ में एक बैग था। शायद कहीं जा रही थी। उसे देखकर प्रवीण ने पूछा,
" कहां जा रही हो तुम?"
उसकी बात सुनकर शालिनी ने एक नजर प्रवीण की तरफ देखा। बैग साइड में रखा और नाश्ते की टेबल पर आकर बैठ गई। एक प्लेट में खुद के लिए नाश्ता लिया और नाश्ता करने लगी। सासू मां ने फिर इशारे से प्रवीण को पूछने के लिए कहा।
कल रात के हादसे के बाद से ही सासू मां शालिनी से बात नहीं कर रही थी क्योंकि शालिनी ने उनकी बेटी को अच्छा खासा सुना दिया था। शायद अच्छा खासा नहीं, सच कह दिया था। और सच हमेशा कड़वा होता है, जो लोगों को पचता नहीं है। बस रजनी जी को भी सच पचा नहीं।
आखिर अपनी मां का इशारा पाकर प्रवीण ने दोबारा शालिनी से पूछा,
" मैंने तुमसे कुछ पूछा है। कहां जा रही हो?"
नाश्ता करते करते ही शालिनी ने बिना नजर उठाए कहा,
" मैं अपने मायके जा रही हूं। आखिर दो साल होने को आए मुझे अपने मम्मी पापा से मिले हुए"
उसकी बात सुनकर रजनी जी तिलमिला गई। सुबह से बात ना करने वाली सासू मां बोली,
"अच्छा! उनसे तो हमने सारे रिश्ते खत्म कर लिए।फिर क्यों जा रही है? "
" रिश्ता आपने खत्म किया है, मैंने नहीं। उन्होंने मुझे जन्म दिया है। पाल पोस कर बड़ा किया है। मैं अपने माता-पिता के घर जरूर जाऊंगी"
आज शालिनी ने पहली बार रजनी जी का विरोध किया था, जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर पाई और वो गुस्से में आ गयी। शालिनी के ठीक सामने जाकर खड़ी होकर चिल्लाते हुए बोली,
" आज बड़ा प्यार आ रहा है अपने मां-बाप पर। उनके लिए हम से लड़ने को तैयार हो गई। भूल मत तुझे पूरी जिंदगी इस घर में बितानी है। और याद रखना अगर तुम गई उन चोरों के घर पर तो फिर लौट कर मत आना"
अपने माता-पिता के लिए चोर शब्द सुनते ही शालिनी के तन बदन में आग सी लग गई। नाश्ता करते करते ही टेबल पर हाथ जोर से मारते हुए खड़ी हुई और रजनी जी के बराबर चिल्लाते हुए बोली,
" चिल्लाइए मत। आपके बराबर चिल्लाना मुझे भी आता है। आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे माता-पिता के बारे में इस तरह की बात करने की। चोर वो नहीं है, चोर आपकी बेटी है"
" खबरदार बहू! अगर तूने मेरी बेटी के लिए कुछ कहा तो। वो इस घर की बेटी है, उसका इस घर पर बराबरी का हक है। क्या हुआ अगर उसने वो हार सेट ले लिया तो? इस घर के सामान पर उसका भी हक है। उस पर इतना हंगामा क्यों कर रही है?"
सासु मां अभी भी अपनी बेटी की तरफदारी कर रही थी। जिसे देखकर शालिनी ने भी कहा,
" बिल्कुल सासु मां। आपके घर के सामान पर आपकी बेटी का हक है। यहां तक कि आपके घर पर भी आपकी बेटी का बराबर का हक है। पर आप भूल रही है कि उसने जो हार चुराया था, वो आपकी बहू का था। और आपकी बहू के मायके से आये हुए सामान पर उसका कोई हक नहीं था।
फिर भी उसने इतनी आसानी उसे इस तरह चुरा लिया।
और इतना बड़ा तमाशा हो जाने के बावजूद भी बेशर्म की तरह चुपचाप बैठी तमाशा देखती रही। और क्या कह रही है आप? क्या हुआ जो उसने मेरा हार सेट ले लिया। तो उस हार सेट के पीछे आपने मेरा मायके से रिश्ता तोड़ दिया। मेरे माता-पिता को कितना कुछ सुनाया। वो कहते रहे कि समधन जी हमने कुछ नहीं किया लेकिन आप तो सुनने का नाम ही नहीं ले रही थी।
मैं तो उसी दिन ये रिश्ता भी तोड़ चुकी होती लेकिन मेरे मां-बाप ने अपनी कसम देकर मुझे चुप करा दिया। ये कह कर कि हमारे पीछे अपना रिश्ता मत खराब कर।
उस दिन तो बड़ा हंगामा कर रही थी आप। आज क्या हो गया सासु माँ। आपने तो बड़े डंके की चोट पर सीना ठोक कर कहा था कि हम किसी चोर के साथ रिश्ता नहीं रखते तो आज क्या हो गया? आज आपकी बेटी चोर साबित हो चुकी है। तो अब उससे कब रिश्ता तोड़ेंगे आप?"
अबकी बार रजनी जी थोड़ा ठंडा पड़ते हुए बोली,
" बहु वो मेरी बेटी है और खून के रिश्ते ऐसे नहीं तोड़े जाते"
" खून के रिश्ते? मेरा भी मेरे माता-पिता के साथ खून का ही रिश्ता है। अब तो तब और अब मैं बहुत फर्क आ गया सासु माँ। तब मेरे मायके वाले थे और अब आपकी बेटी है? खुद की बेटी से रिश्ते तोड़ते नहीं बन रहे और बहू के मायके वालों से रिश्ता तोड़ने में एक पल नहीं लगाया आपने।
बस अब और नहीं। मुझे रोकने की कोशिश भी मत करना। जिस दिन अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ लो उस दिन बोलना"
कहकर शालिनी अपने बैग की तरफ बढ़ी और अपना बैग लेकर घर के बाहर रवाना हो गई। रजनी जी ने गुस्से से मोबाइल उठा कर बोली,
" इसके माता-पिता को ही फोन करने दो। जब दो-चार खरी-खोटी सुनेगे ना तो अपने आप ही अपनी बेटी को अपने घर आने से रोक देंगे"
कहती कहती उन्होंने प्रवीण की तरफ देखा तो प्रवीण ने भी हाथ जोड़ लिए,
"माफ करो मां। मैं उस दिन भी कुछ नहीं बोला था, आज भी कुछ नहीं बोलूंगा। यहाँ शालिनी गलत नहीं है। आप अपनी बेटी के बारे में सुन नहीं पा रही हो जबकि असल में चोरी उसने की थी। तो शालिनी से कैसे उम्मीद करें कि अपने माता-पिता का अपमान सहकर वो चुप रह जाएगी। मां, भगवान के लिए अपना बुढ़ापा मत खराब करो"
कहकर प्रवीण जी अपने कमरे में चला गया। रजनी जी से कुछ कहते हैं ना बना क्योंकि आज पहली बार बेटे ने भी पलट कर जवाब दिया था। और रजनी जी के पास मोबाइल अब एक तरफ रखने के अलावा कोई चारा नहीं था।