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10/10/2025

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करवाचौथ व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को — शुभ मुहूर्त में करें पूजन : महंत रोहित शास्त्री, ज्योतिषाचार्यइस वर्ष करवाचौथ व्र...
09/10/2025

करवाचौथ व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को — शुभ मुहूर्त में करें पूजन : महंत रोहित शास्त्री, ज्योतिषाचार्य

इस वर्ष करवाचौथ व्रत का उद्यापन (मोख) भी किया जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर: करवाचौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) ने बताया कि सनातन धर्म में व्रतों, पर्वों और त्योहारों की अत्यंत महत्वपूर्ण मान्यता है।

इस वर्ष करवाचौथ व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। यह उपवास सुहागन स्त्रियों के लिए अत्यंत विशेष महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना करते हुए निर्जल व्रत करती हैं।

यह पर्व पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है, विशेषकर उत्तर भारत — जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में इसकी अद्भुत रौनक देखने को मिलती है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। कुंवारी कन्याएं भी इस दिन व्रत रखती हैं, विशेषकर वे जिनकी सगाई हो चुकी होती है।

महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा और पति की लंबी आयु हेतु उपवास रखती हैं। चांद के दर्शन के पश्चात वे अपने पति के हाथों से निवाला लेकर व्रत खोलती हैं।

व्रत प्रातः सूर्योदय से पूर्व, लगभग 4 बजे के बाद आरंभ किया जाता है और रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और चंद्रदेव की पूजा की जाती है, साथ ही करवाचौथ व्रत कथा भी सुनी जाती है।

🔶 करवाचौथ पूजन का शुभ मुहूर्त :

पंचांगानुसार, इस वर्ष कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि

प्रारंभ: 9 अक्टूबर, गुरुवार रात्रि 10:55 बजे

समाप्त: 10 अक्टूबर, शुक्रवार शाम 7:39 बजे

पूजन का शुभ समय :
10 अक्टूबर (शुक्रवार) को शाम 6:05 से 7:05 बजे तक।
इस अवधि में पूजन करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

🔶 चंद्र दर्शन का समय (जम्मू):

रात्रि 8:20 बजे (अन्य राज्यों में समय अलग-अलग रहेगा)

🔶 व्रत की शुरुआत कैसे करें:

व्रती स्त्री प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर, स्वच्छ आसन पर बैठकर यह संकल्प लें:

"मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।"

🔶 सरगी का महत्व:

सुबह उषाकाल में सरगी खाई जाती है।
जम्मू-कश्मीर में सरगी में प्रचलित वस्तुएं: फैनी, कतलमे, नारियल, दूध, रबड़ी, मीठी कचौरी आदि।
यह मिश्रण दिनभर निर्जल व्रत में सहायक होता है।

🔶 करवाचौथ पूजन विधि:

10 अक्टूबर, शुक्रवार — शाम 6:05 से 7:05 बजे तक:

दीवार पर गेरू से फलक बनाकर, पिसे चावल के घोल से करवा चित्रित करें (चित्र बाजार से भी मिलते हैं)

आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, मीठा एवं विविध पकवान तैयार करें

लकड़ी के आसन पर गौरी माता की स्थापना कर सोलह श्रृंगार करें

करवे में गेहूं और ढक्कन में बूरा (शक्कर) भरें

करवे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं

श्रीगणेश, शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रदेव और करवे का पूजन करें

पति की दीर्घायु की कामना हेतु मंत्र जाप करें:

"ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥"

अन्य पूजन मंत्र:

“ॐ शिवायै नमः” – पार्वती के लिए

“ॐ नमः शिवाय” – शिव के लिए

“ॐ षण्मुखाय नमः” – स्वामी कार्तिकेय

“ॐ गणेशाय नमः” – गणेश जी

“ॐ सोमाय नमः” – चंद्र देव

🔶 कथा एवं व्रत पारण:

करवे पर 13 बिंदी लगाएं, 13 गेहूं/चावल के दाने हाथ में लें

करवाचौथ व्रत कथा स्वयं पढ़ें या सुनें

कथा के बाद करवे को घुमाकर सास-ससुर व बड़ों का आशीर्वाद लें

रात को छलनी से चांद के दर्शन करें, उन्हें अर्घ्य (जल) अर्पित करें

पति के चरण स्पर्श कर उनके हाथ से जल पिएं व भोजन करें

स्वयं भोजन कर व्रत का विधिपूर्वक पारण करें

🔶 पूजन सामग्री:

करवा (मिट्टी/चांदी/पीतल), ढक्कन

दीपक, रुई, गेहूं, बूरा

हल्दी, कुमकुम, शहद, महावर

बिंदी, कंघा, चुनरी, चूड़ियाँ

बिछुआ, पायल, गजरा, धूप-अगरबत्ती

दूध, दही, घी, शक्कर, नारियल

मिठाई, चंदन, चावल, सिंदूर

पीली मिट्टी (गौरी के लिए), लकड़ी का आसन

अठावरी (आठ पूरियाँ), फूलमाला

छलनी, गंगाजल

दान के लिए दक्षिणा

🔶 सोलह श्रृंगार:

1. सिंदूर

2. बिंदी

3. मांगटीका

4. मंगलसूत्र

5. काजल

6. नथनी

7. कर्णफूल

8. चूड़ियाँ

9. मेंहदी

10. लाल चुनरी

11. बिछुआ

12. पायल

13. अंगूठी

14. कमरबंद

15. बाजूबंद

16. गजरा

🔶 उद्यापन (मोख) समय:

इस वर्ष करवाचौथ व्रत का उद्यापन लिए पूरा दिन शुभ है

यह व्रत आमतौर पर 12 या 16 वर्षों तक रखा जाता है।
अवधि पूर्ण होने पर इसका विधिवत उद्यापन/उपसंहार किया जाता है।
इच्छुक महिलाएं इसे जीवनभर भी रख सकती हैं।

🔶 करवाचौथ व्रत कथा (संक्षेप):

करवाचौथ व्रत कथा :

करवाचौथ व्रत की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को विजय प्राप्त हुई और द्रौपदी का सौभाग्य सुरक्षित रहा।

कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या के लिए गए थे। उस समय द्रौपदी चिंतित थीं, क्योंकि जंगल में अनेक विघ्न-बाधाएं और जीव-जंतु रहते थे। संकट की घड़ी में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और उनसे कष्ट निवारण का उपाय पूछा।

तब श्रीकृष्ण ने उन्हें करवाचौथ व्रत की विधि और महिमा बताई। श्रीकृष्ण ने कहा कि इस व्रत को करने से पति की रक्षा होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। द्रौपदी ने उस व्रत को विधिपूर्वक किया और फलस्वरूप उन्हें मानसिक शांति मिली तथा पांडवों को सफलता प्राप्त हुई।

करवाचौथ व्रत की और भी लोकप्रिय पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें इसकी महत्ता को विस्तारपूर्वक बताया गया है।

महिलाओं के लिए स्वास्थ्य-संबंधी सावधानी :

जो महिलाएं पहले से ही हृदय रोग, मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च रक्तचाप (बीपी) या अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं, उन्हें यह व्रत डॉक्टर की सलाह लेकर ही करना चाहिए। यदि बिना चिकित्सकीय सलाह के व्रत रखा जाए, तो यह स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।

महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य)
अध्यक्ष, श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत)
रायपुर, ठठर, बनतलाब, जम्मू — पिन कोड: 181123

📞 संपर्क सूत्र:
📱 9858293195, 7006711011, 9796293195
✉️ Email: [email protected]

08/10/2025

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07/10/2025

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With Profound Grief and Sorrow, We inform the Sad demise of our beloved Sh Behari Lal Choudhary R/O R.S Pura Ward no.5 Who expired on 07-10-2025. Cremation will be performed at 08-10-2025 R.S Pura Cremation Ground at 1.00 Pm.

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