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प्रेस विज्ञप्तिधर्म स्थापना और गौ रक्षा पर बड़ा मंथन — 29 जुलाई को अभिनव थिएटर में संवाद, मूवमेंट कल्कि ने की अपीलजम्मू,...
27/07/2025

प्रेस विज्ञप्ति

धर्म स्थापना और गौ रक्षा पर बड़ा मंथन — 29 जुलाई को अभिनव थिएटर में संवाद, मूवमेंट कल्कि ने की अपील

जम्मू, जुलाई:
मूवमेंट कल्कि की ओर से आज एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई, जिसमें संगठन द्वारा आगामी संवाद कार्यक्रम की जानकारी साझा की गई। यह कार्यक्रम 29 जुलाई 2025 को दोपहर 12:00 बजे अभिनव थिएटर राइटर्स क्लब, जम्मू में आयोजित होगा।

मूवमेंट कल्कि पिछले लगातार 10 महीनों से संघर्ष के पथ पर चल रही है, और इसी कड़ी में यह संवाद आयोजित किया जा रहा है। इस प्रेस वार्ता को मूवमेंट कल्कि के सलाहकार श्री प्रीतम शर्मा जी ने संबोधित किया।

इस संवाद कार्यक्रम का उद्देश्य सनातन बोर्ड के गठन और गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने के लिए चलाए जा रहे अभियान पर विचार-विमर्श करना है। मूवमेंट कल्कि की ओर से जम्मू के सभी सामाजिक, धार्मिक संगठनों और साधु-संतों को आमंत्रित किया गया है ताकि एक मंच पर बैठकर इन मुद्दों पर ठोस रणनीति बनाई जा सके।

मूवमेंट कल्कि के पदाधिकारियों ने कहा कि धर्म स्थापना के कार्य को आगे बढ़ाने और सनातन परंपराओं की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि समाज एकजुट होकर सामने आए। उन्होंने सभी संगठनों से आग्रह किया कि वे इस संवाद में शामिल होकर अपना मत रखें कि क्या वे चाहते हैं कि सनातन बोर्ड का गठन हो और गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा मिले, या फिर गौ हत्या और सनातन परंपराओं के लुप्त होने को यूं ही देखते रहें।

मूवमेंट कल्कि ने स्पष्ट किया कि यह अभियान केवल एक संगठन का नहीं बल्कि पूरे समाज का है। उन्होंने सभी संगठनों और संत समाज से आग्रह किया कि वे 29 जुलाई को दोपहर 12:00 बजे अभिनव थिएटर पहुंचकर इस ऐतिहासिक संवाद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं और अपने विचार रखें।

इस प्रेस वार्ता में मूवमेंट कल्कि के सभी प्रमुख सदस्य मौजूद थे।

📰 प्रेस विज्ञप्ति📍 स्थान: अघोर आश्रम, जम्मू📅 दिनांक: [वर्तमान तिथि]🌿 “सांसें हो रही हैं कम, एक पौधा लगाएं हम” – मूवमेंट ...
19/07/2025

📰 प्रेस विज्ञप्ति
📍 स्थान: अघोर आश्रम, जम्मू
📅 दिनांक: [वर्तमान तिथि]

🌿 “सांसें हो रही हैं कम, एक पौधा लगाएं हम” – मूवमेंट कल्कि ने दिया पर्यावरण बचाने का संदेश

आज मूवमेंट कल्कि द्वारा पर्यावरण संरक्षण के प्रति जनजागरूकता फैलाने हेतु एक विशेष अभियान का आयोजन अघोर आश्रम में किया गया। इस अवसर पर संगठन ने एक प्रभावशाली नारा दिया –
"सांसें हो रही हैं कम, एक पौधा लगाएं हम",
जिसका उद्देश्य समाज को अधिक से अधिक वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना है।

🌧️ बरसात के मौसम को ध्यान में रखते हुए इस अभियान की शुरुआत की गई, क्योंकि इस समय लगाए गए पौधों के जीवित रहने की संभावना अत्यधिक होती है। इस मौके पर योग गुरु श्री श्री 1008 विजय कृष्ण पराशर जी महाराज, मूवमेंट कल्कि के सलाहकार प्रीतम शर्मा जी एवं पर्यावरण इंचार्ज अनिल अरोड़ा जी विशेष रूप से उपस्थित रहे। इनके साथ मूवमेंट कल्कि के अन्य सदस्यों ने भी सामूहिक रूप से पौधारोपण किया और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।

🗣️ योग गुरु विजय कृष्ण पराशर जी ने कहा:

> "आज का इंसान केवल धन के पीछे भाग रहा है जबकि उसका शरीर पंचतत्वों से बना है। अगर जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश जैसे तत्व समाप्त हो जाएंगे तो जीवन भी समाप्त हो जाएगा। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और जीव हत्या के कारण आज प्रकृति असंतुलन की ओर बढ़ रही है, जिससे भूकंप, बाढ़, और भूस्खलन जैसी आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं।"

🗣️ प्रीतम शर्मा जी ने कहा:

> "बरसात के मौसम में लगाया गया पौधा कभी सूखता नहीं है, इसलिए यह सबसे उपयुक्त समय है पौधारोपण के लिए। लोगों को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।"

🗣️ अनिल अरोड़ा (पर्यावरण इंचार्ज, मूवमेंट कल्कि) ने कहा:

> "पर्यावरण है तो जीवन है। हमें पेड़ लगाने चाहिए और जीव हत्या से बचना चाहिए। ‘सांसें हो रही हैं कम, एक पौधा लगाएं हम’ केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। मूवमेंट कल्कि ने जो दायित्व मुझे सौंपा है, उसे मैं पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाऊंगा।"

इस अभियान के माध्यम से मूवमेंट कल्कि ने समाज को यह स्पष्ट संदेश दिया कि पर्यावरण की रक्षा केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि हमारी वर्तमान और भविष्य की आवश्यकता है।

📢 मूवमेंट कल्कि सभी नागरिकों से अपील करता है कि वे कम से कम एक पौधा अवश्य लगाएं और अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ, सुरक्षित और हरा-भरा वातावरण उपहार में दें।

19/07/2025

Aam Aadmi Party took out a rally today against the upcoming Toll plaza.

गुरु पूर्णिमा पर Movement Kalki द्वारा भव्य सत्संग का आयोजन, योग गुरु विजय कृष्ण पराशर जी ने बताया गुरु का महत्वगुरु पूर...
11/07/2025

गुरु पूर्णिमा पर Movement Kalki द्वारा भव्य सत्संग का आयोजन, योग गुरु विजय कृष्ण पराशर जी ने बताया गुरु का महत्व

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर Movement Kalki के तत्वावधान में भागवत योग धाम आश्रम, रूप नगर में एक विशेष सत्संग समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता Movement Kalki के सम्माननीय सलाहकार योग गुरु श्री श्री 1008 विजय कृष्ण पराशर जी महाराज ने की।

अपने अमृत वचनों द्वारा श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए गुरुजी ने कहा:

> "एक समय था जब शिष्य गुरु के वचन को ईश्वर का आदेश मानते थे। आज लोग गुरु की बात सुनते तो हैं, पर उन्हें जीवन में उतारने के लिए तैयार नहीं हैं।"

उन्होंने एक प्रेरणादायक प्रसंग साझा किया, जिसमें एक शिष्य ने गुरु के कहने पर जल में जाकर लेट जाने की बात को शिरोधार्य किया। जब गुरु ने उससे इसका कारण पूछा, तो उसने कहा:

> "आपका वचन मेरे लिए प्रभु की वाणी है। उसका उल्लंघन करना मेरे लिए संभव नहीं।"

गुरुजी ने इस प्रसंग के माध्यम से बताया कि गुरु-शिष्य परंपरा की सच्ची आत्मा विश्वास, समर्पण और आचरण में है, जो आज लुप्त होती जा रही है। उन्होंने समाज से आग्रह किया कि वह फिर से गुरु के मार्गदर्शन को जीवन का केंद्र बनाए।

कार्यक्रम में उपस्थित Movement Kalki के वरिष्ठ सदस्य:

प्रीतम शर्मा (सलाहकार)

कर्नैल चंद (संगठन मंत्री)

अनिल अरोड़ा (पर्यावरण प्रमुख)

अनुराधा योगी जी

पवन शर्मा (नशा मुक्त भारत प्रमुख)

सपना हिंदू जी (हिंदू बोर्ड सदस्य)

तथा संस्थापक दीपक सिंह जी

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए Movement Kalki के संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार दीपक सिंह ने कहा:

> "Movement Kalki धर्म स्थापन, सनातन शिक्षा प्रणाली की पुनर्स्थापना और समाज के आध्यात्मिक उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन को पवित्र बनाने की प्रक्रिया है। आज समाज मोह, पाप और भटकाव की दिशा में जा रहा है, जिसे रोकना आवश्यक है।"

उन्होंने कहा कि गुरुकुलों की पुनर्स्थापना, वेद आधारित शिक्षा और सनातन मूल्यों की रक्षा ही Movement Kalki का मूल उद्देश्य है।

यह कार्यक्रम लोगों के लिए न केवल आध्यात्मिक जागरण का माध्यम बना, बल्कि समाज में धर्म और संस्कृति के पुनर्जागरण का संदेश भी लेकर आया।

🚩🚩प्रेस विज्ञप्ति🚩🚩गुरुपूर्णिमा पर विशेष  *आध्यात्मिक पूर्णता एवं बौद्धिक चिन्तन का महापर्व है गुरु पूर्णिमा।* सनातन संस...
11/07/2025

🚩🚩प्रेस विज्ञप्ति🚩🚩
गुरुपूर्णिमा पर विशेष

*आध्यात्मिक पूर्णता एवं बौद्धिक चिन्तन का महापर्व है गुरु पूर्णिमा।*

सनातन संस्कृति में अथाह सागर जैसा है हमारे यहां मनाएं जाने वाले पर्व, त्यौहार, व्रत एवं उत्सव। इसकी सीमा पाना बहुत ही कठिन है हमारे परम साधक सन्त ऋषियों ने अपने दिव्य साधना, भक्ति एवं ज्ञान बल से इस उपहार को भारतभूमि को विरासत में दिया। भगवान की कृपा से प्रत्येक जीवात्मा का जन्म मां की कोख से होता है, लेकिन उसे जीवन की आध्यात्मिक ज्ञान गुरु की चरण-शरण से प्राप्त होती है। शास्त्र गुरुभक्ति के प्रताप की महिमा बताते हुए कहते हैं कि क्षण मात्र गुरु सान्निध्य और गुरु गौरवगान से जीवात्मा को सद्गति का योग सहज बन जाता है। स्वयं भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं गुरु सम्पूर्ण जप, पूजा, उपासना, ध्यान आदि का मूल है-
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोःपदम्।
मंत्रमूलं गेरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोःकृपा।।
अर्थात् गुरुमूर्ति ध्यान का मूल है, गुरुचरण पूजा का मूल है, गुरुवाक्य कल्याणकारक मूलमंत्र है और गुरुदेव की कृपा साक्षात् मोक्ष का मूल है। अर्थात् हर शिष्य के लिए गुरु ही उसके जीवन, ज्ञान, तप, संकल्प,सेवा के मूल आधार होते हैं, उसी से मनुष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ने की ऊर्जा मिलती है। इस दृष्टि से गुरु और शिष्य का सम्बन्ध चेतना के उच्च धरातल का सम्बन्ध माना गया है।आध्यात्मिक विकास और व्यक्तिगत ज्ञान के क्षेत्र में, गुरुपूर्णिमा प्रेरणा का प्रतीक और गहन चिन्तन विस्तार का पर्व है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व आध्यात्मिक विकास और आंतरिक यात्रा के लिए अत्यधिक महत्व रखता है।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि भारतीय परंपरा में, प्रत्येक त्यौहार खगोलीय घटनाओं से सम्बन्धित है। ये घटनाएँ सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और तारों से जुड़ी खगोलीय घटनाओं को संदर्भित करती हैं। इन घटनाओं के समय होने वाले परिवर्तन रहस्यमय ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह वह रहस्यमय ऊर्जा है जिसका हम अधिकतम क्षमता में उपयोग करने का प्रयास करते हैं। यही कारण है कि हम पृथ्वी पर त्यौहार मनाते हैं, ताकि हम इस गहन ऊर्जा का उपयोग कर सकें। गुरुपूर्णिमा में गुरु और पूर्णिमा दोनों शब्द शामिल हैं, जो दर्शाता है कि यह त्यौहार पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने मास में पूर्णिमा होती है, लेकिन आषाढ़ मास में पड़ने वाली पूर्णिमा में कुछ खास बात होती है। उस दिन चंद्रमा बृहस्पति द्वारा शासित धनु राशि में होता है। इस बीच, सूर्य मिथुन राशि के विपरीत 180 डिग्री पर स्थित होता है; इसलिए उस दिन गुरु की ऊर्जा अपने चरम पर होती है। इन अनोखी ब्रह्मांडीय घटनाओं का लाभ उठाने के लिए हम गुरुपूर्णिमा मनाते हैं।
शास्त्र में इस शब्द पर बहुत ही गहनता से विचार किया गया है इसकी व्युत्पत्ति की बात करे तो 'गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ अंधकार और 'रु' का अर्थ अंधकार का उन्मूलन है। एक बहुत प्रसिद्ध श्लोक है-
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्थिते उच्यते।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥
गुरु केवल एक शिक्षक नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक, एक प्रबुद्ध आत्मा है जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करता है और शिष्यों को आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाता है।

गुरु पूर्णिमा की जड़ें प्राचीन काल में देखी जा सकती हैं, जब महर्षि व्यास के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें दिव्य बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक के रूप में देखे तो अपनी तीक्ष्ण बुद्धि एवं मेघाशक्ति के बल पर वेदों और पुराणों सहित प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों को व्यवस्थित करने, संपादित करने और वर्गीकृत करने का महत्वपूर्ण देन महर्षि वेदव्यास जी का है। उनके अलौकिक कार्य ने पीढ़ियों में ज्ञान के संरक्षण और प्रसार में क्रांति ला दी। उनके विषय में एक श्लोक प्रसिद्ध है-
नमोस्तुते व्यास विशाल बुद्धे, फुल्लरविन्दायत पत्र उत्सव।
येनत्वया भारत तैलपूर्ण: प्रज्ज्वलितो ज्ञानमय प्रदीप:।।
हे व्यास, आपकी विशाल बुद्धि को नमस्कार है, जिनकी आंखें खिले हुए कमल की पंखुड़ियों के समान हैं।
आपके द्वारा, ज्ञान के तेल से भरे दीपक से, भरत वंश को प्रकाशित किया गया है।
हमारे पारंपरिक शास्त्रों में, साधक की आध्यात्मिक यात्रा में गुरु की आवश्यक भूमिका पर ज़ोर देने वाले गहन संदर्भ हैं। उदाहरण के लिए, संस्कृत में रचित एक प्रतिष्ठित ग्रंथ भगवदगीता, गुरु-शिष्य सम्बन्ध के महत्व पर ज़ोर देती है। भगवान कृष्ण अपने शिष्य अर्जुन से कहते हैं :
"तद्विद्धि प्रणिपतेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्षयन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः। "
अर्थात आप एक आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर सत्य जानने की कोशिश करना चाहिए। उनसे विनम्र भाव से अपनी जिज्ञासा करें और उनकी सेवा भी करें। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त आत्माएँ आपको ज्ञान दे सकती हैं क्योंकि उन्होंने सत्य का साक्षात्कार किया है।गुरुपूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेकर और उन्हें कृतज्ञता के प्रतीक भेंट करके उनके प्रति अपनी कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करते हैं। ये भेंटें, अक्सर किताबों या शास्त्रों के रूप में, शिष्यों की आजीवन सीखने और ज्ञान की खोज के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं।

इस दृष्टि से प्रति वर्ष आने वाली गुरुपूर्णिमा गुरु-शिष्य की आध्यात्मिक पूर्णता की अनुभूति का महोत्सव कह सकते हैं। ऐसे तो हमारी भारतीय परम्परा में गुरु-शिष्य का सम्बन्ध जन्म-जन्मांतर का है। गुरु-शिष्य का सम्बंध इसी जन्म का नहीं होता, अपितु अनेक जन्मों का, जन्म-जन्मांतर का होता है। शिष्य व गुरु के जन्म अवश्य बदल सकते हैं, पर दोनों के बीच जुड़ी प्रगाढ़ डोर अनन्तकाल तक के लिए जुड़ी रहती है ऐसी शास्त्रीय मान्यता है। गुरु-शिष्य के बीच यह तारतम्यता सभी धर्मों में समान है। गुरुपूर्णिमा प्रतिवर्ष हम सबके जीवन में गुरु को पहचानने और शिष्य भाव को परिपक्व करके गुरुधारण करने योग्य दुर्लभ दृष्टि जगाने का अवसर लेकर आती है, जो परिपक्व हो चुके हैं, उनको गुरुवरण करने और शिष्य बनने का सौभाग्य मिलता है, उन्हें गुरुपूर्णिमा पूर्णता का वरदान देती है। जिन साधकों में गुरुधारण करने की परिपक्वता जग जाती है, उन्हें सद्गुरु अपना लेते हैं। शिष्य भाव जागते ही गुरु की विद्याएं और क्षमताएं शिष्य की हो जाती हैं और शिष्य गुरु भाव से भर उठता है। इस प्रकार इस विशेष अवसर पर प्राप्त गुरुमंत्र सद्गुरु का शिष्य के लिए दिव्य आशीष बन जाता है, गुरुपर्व उस आशीष की अभिव्यक्ति भी है। कहते हैं शिष्यों को हर पूर्णिमा तिथि पर गुरुदर्शन करने से सोलह कलाओं से युक्त पूर्णचन्द्र का आशीर्वाद मिलता है। जबकि गुरुपूर्णिमा पर शिष्य द्वारा गुरु दर्शन-पादपूजन से उसके जीवन पर सूक्ष्म जगत के संतों-ऋषियों एवं भगवान सभी की कृपा बरसती है। शिष्य के सौभाग्य का उदय होता है। इस दृष्टि से इसे हम आध्यात्मिक सम्पूर्णता का महापर्व भी कह सकते है।
इसीलिए इस खास दिवस गुरुपूर्णिमा पर प्रत्येक शिष्य अपने गुरुधाम पहुंचकर गुरु के दर्शन-पादपूजन, गुरुदक्षिणा देने, गुरु-चरणों में बैठने का लाभ अवश्य लेना चाहता है, भले उसका गुरु सात समंदर पार ही क्यों न बसता हो। इससे शिष्य के जीवन में पूर्व जन्म के संस्कारों का पुण्य फलित होता है, पविार में सुख, शांति, समृद्धि की वर्षा होती है। वास्तव मेंं विविध अवसरों पर सद्गुरुओं, सच्चे संतों का आदर सम्मान, गुरु पूजा करना, गुरुदक्षिणा देना किसी व्यक्ति के आदर तक ही सीमित नहीं रहता, अपितु वह साक्षात् सच्चिदानन्द परमेश्वर का आदर बन जाता है। इस पर्व पर गुरु को किया गया दान-पुण्य, गुरुकार्यों में किसी भी तरह का सहयोग अनंत फलदायी होता है। गुरु कृपा से उसकी झोली सुख-समृद्धि से आजीवन भरी रहती है। आइये हम सब अपने एक-एक पल का सदुपयोग करते हुए आनन्द, शक्ति, शांति के साथ गुरुधाम पधारने, गुरु संगत-सानिध्य में रहने का अवसर खोजे, सम्भव है हमारा शिष्य भाव परिपक्व होकर हमारे भी जीवन में गुरु घटित हो पडे़ और गुरु-शिष्य के अनुपम योग का सौभाग्य मिल जाये।
गुरुपूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व भी है वैसे तो वर्ष भर में 12 पूर्णिमा आती हैं। जिसमें से कुछ पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है उसमें मुख्यरूप से शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा आते है, लेकिन आषाढ़ पूर्णिमा भक्ति व ज्ञान के पथ पर चल रहे साधकों के लिए एक विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन आकाश में अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (पराबैंगनी विकिरण) फैल जाती हैं। इस कारण व्यक्ति का शरीर व मन एक विशेष स्थिति में आ जाता है। उसमें भूख, नींद व मन का बिखराव कम हो जाता है। यह स्थिति साधक के लिए बहुत लाभदायक है। आधुनिकता के नाम पर भारत को पश्चिमी सभ्यता का नकलची बना डालें। पर मेरा विश्वास है,भावी भारत ऐसा अजेय होकर उभरेगा जो दुनिया में अज्ञानता के असुर का वध करेगा। और सम्पूर्ण विश्व को करुणा, दया और शांति से तृप्त करेगा। गुरुपूर्णिमा ज्ञान की खोज की निरंतर यात्रा, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास में गुरुओं के अमूल्य मार्गदर्शन का प्रतीक है। हम इस गहन परम्परा का हिस्सा बनने के लिए बहुत आभारी हैं जो जीवन भर सीखने, विनम्रता और प्रबुद्ध आत्माओं के मार्गदर्शन के माध्यम से ज्ञान की खेती के सार को रेखांकित करती है।
अंत में, गुरुपूर्णिमा एक विशिष्ट त्यौहार है जो गुरुओं द्वारा आध्यात्मिक तथा बौद्धिक उन्नति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता है। इस उत्सव के माध्यम से, भक्त अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं, आशीर्वाद मांगते हैं और कृतज्ञता दिखाते हैं। यदि हम गुरु शिष्य की गौरवशाली अनुभव की बात करें तो गुरु के शरीर में नीचे के भाग अर्थात काम से पुत्र की उत्पत्ति होती है लेकिन शिष्य तो उर्ध अर्थात ज्ञान मार्ग से उत्पन्न होता है। हमारे समाज में आज भी यह परम्परा कुछ विकृतियों की संकीर्णता में भी जीवित है। जिसका आदर्श स्वरूप आज भी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर दृष्टिगोचर है। इसीलिए अपनी गुरु परम्परा का सम्मान करते हुए स्वयं और अपने परिवार सहित समाज को इस व्यवस्था से जोड़े रखे ताकि कोई विकृति न आ जाए।

लेखक - डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय, श्री श्री 1008 श्री मौनी बाबा चैरिटेबल ट्रस्ट न्यास तथा मन्दिर एवं गुरुकुल योजना सेवा प्रमुख जम्मू कश्मीर प्रान्त।

PRESS  RELEASE Eminent Social Reformer Rtn Dr. Navneet Kaur Brings Laurels to J&K, India, by Representing the Nation at ...
02/07/2025

PRESS RELEASE

Eminent Social Reformer Rtn Dr. Navneet Kaur Brings Laurels to J&K, India, by Representing the Nation at the United Nations in New York

Jammu & Kashmir, India – The All India Sustainable Development Council (AISDC) is proud to announce the distinguished participation of Rtn Dr. Navneet Kaur ,Vice Chairperson of AISDC, at the Interactive Multi-Stakeholder Hearing as part of the preparatory process for the United Nations General Assembly High-level Meeting on the Appraisal of the Global Plan of Action to Combat Trafficking in Persons.
A renowned social reformer and advocate for human rights Rtn Dr. Navneet Kaur represented India on this prestigious global platform, highlighting the nation’s progressive legal frameworks and policy initiatives in alignment with the United Nations Office on Drugs and Crime (UNODC) priorities. Her unwavering commitment to combating human trafficking, safeguarding victims especially women and children and advocating for systemic reforms has earned her international acclaim.
Dr. Kaur’s Contributions at the UN:
Strengthening Legal Measures Advocacy for a comprehensive Trafficking in Persons (Prevention, Care, and Rehabilitation) Bill in India to enhance victim protection and prosecution of offenders.
Global Collaboration Partnering with UNODC and international stakeholders to improve cross-border cooperation, victim rehabilitation, and law enforcement capabilities.
She aims for Sustainable Reforms ,Integrating anti-trafficking efforts with AISDC’s flagship initiatives ,addressing root causes such as poverty, gender inequality, and lack of education. Her mission is to support Human Rights Advocacy Raising a strong voice against the misuse of technology and illicit networks in trafficking while promoting justice, dignity, and sustainability.
In her address, Dr. Navneet Kaur emphasised, “Together, let’s build a world free from exploitation and committed to justice and sustainability.” Her leadership underscores India’s dedication to eradicating human trafficking through policy reform, community resilience, and international cooperation .
Dr. Navneet Kaur dynamic Social reformer and Rotarian .Dr. Kaur has been instrumental in driving impactful change in Jammu & Kashmir and across India .Her work focuses on women’s empowerment, child rights, addressing Harrasment of women at workplace and anti-trafficking initiatives , addressing the aligning with the United Nations Sustainable Development Goals . As the founder Chairperson of NGO SUPPORT she stands committed to advancing social justice, sustainable development, and human rights through advocacy, capacity-building, grassroots interventions and restoring health and well-being of women and children in J&K . Together, We Can End Human Trafficking and Build a Just, Equitable Future!

*शिव सायुज्य की प्राकृतिक हिमवत शिवलिंग की अनुभूति का आधार है अमरनाथ यात्रा* शिव सायुज्य की प्राकृतिक हिमवत शिवलिंग की अ...
02/07/2025

*शिव सायुज्य की प्राकृतिक हिमवत शिवलिंग की अनुभूति का आधार है अमरनाथ यात्रा*

शिव सायुज्य की प्राकृतिक हिमवत शिवलिंग की अनुभूति का आधार है अमरनाथ यात्रा इस विषय पर गम्भीरता से प्रकाश डालते हुए डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय ने बताया कि सनातन परम्परा में आध्यात्मिक एवं धार्मिक स्थलों की बात करें तो अखण्ड भारत में जम्मू कश्मीर का आध्यात्मिक, भौगोलिक एवं पौराणिक दृष्टि से विशेष स्थान है। यहां की ज्ञान परम्परा सदा से ही उच्च कोटि की रही है। हमारे यहां उच्च कोटि के शिव योगी साधकों की साधना एवं धर्म के प्रति अटूट आस्था का दिग्दर्शन प्राच्यकाल से ही रहा है। वैसे ही अखण्ड भारत का सिरमौर मुकुटमणि जम्मू कश्मीर को शारदा देश, उतरा पथ एवं छोटी काशी के रूप में भी ग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया है। क्या है अमरेश्वर धाम का पुराणों में माहात्म्य और अमरत्व का रहस्य। तो आइए जानते हैं इस अमरेश्वर धाम का महत्व और क्या है इस यात्रा का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्व के साथ ही जानिए क्या है अमरनाथ धाम की विशेषता।
भारतभूमि में आध्यात्मिक ऊर्जा के आधिक्य से देवी देवताओं के भूमि इस नाम से भी प्रसिद्ध हैं। यहां 51 शक्तिपीठों के साथ ही द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग एवं अन्यान्य देव स्थानों पर और भी बहुत से सिद्ध एवं स्वयंभू शिवलिङ्ग का वर्णन शिव पुराण, लिङ्गपुराण, वेद, उपनिषद व धर्मग्रंथों में प्राप्त होता है। शिव का अर्थ कल्याण एवं लिङ्ग का अर्थ प्रतीक होता है, अर्थात् उस परमात्मा की कल्याणकारी सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है शिवलिङ्ग। शिवलिङ्ग साकार एवं निराकार ईश्वर का प्रतीक है जो परमात्मा-आत्मा-लिङ्ग का द्योतक है। शिवलिङ्ग का अर्थ है शिव का आदि-अनादि स्वरूप शून्य, आकाश, अनन्त ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक। स्कंदपुराण के अनुसार आकाश स्वयं लिङ्ग है। धरती उसका आधार है व अनंत शून्य से पैदा होकर, उसी में लय होने के कारण इसे लिङ्ग कहा है।
लिङ्ग स्वरूप शिवतत्त्व का वर्णन करते हुए सूत जी कहते हैं-निर्गुण निराकार ब्रह्म शिव ही लिङ्ग के मूल कारण हैं तथा स्वयं लिङ्ग रूप भी हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध आदि से रहित अगुण, अलिङ्ग (निर्गुण) तत्त्व को ही शिव कहा गया है तथा शब्द- स्पर्श-रूप-रस-गन्धादि से संयुक्त प्रधान प्रकृति को ही उत्तम लिङ्ग कहा गया है। वह जगत के उत्पत्ति- स्थान है। पंच भूतात्मक अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, आकाश, वायु से युक्त है; स्थूल है, सूक्ष्म है, जगत् का विग्रह है तथा यह लिङ्ग तत्त्व निर्गुण परमात्मा शिव से स्वयं उत्पन्न हुआ है। महत्तत्त्व आदि से लेकर पंचमहाभूत पर्यन्त सभी तत्त्व अण्ड की उत्पत्ति करते हैं, इस सृष्टि में करोड़ों अण्डों (ब्रह्माण्डों) की स्थिति के विषय में कहा गया है। प्रधान (प्रकृत्ति) ही सदाशिव के आश्रय को प्राप्त करके इन करोड़ों ब्रह्माण्डों में सर्वत्र चतुर्मुख ब्रह्मा, विष्णु और शिव का सृजन करती है। इस सृष्टि की रचना, पालन तथा संहार करने वाले वे ही एकमात्र महेश्वर ही हैं। वे ही महेश्वर क्रम पूर्वक तीन रूपों में होकर सृष्टि करते समय रजोगुण से युक्त रहते हैं, पालन की स्थिति में सत्त्वगुण में स्थित रहते हैं तथा प्रलयकाल में तमोगुण से आविष्ट रहते हैं। वे ही भगवान् शिव प्राणियों के सृष्टिकर्ता, पालक तथा संहर्ता हैं- श्रीलिङ्गमहापुराण पू. भा. ४, ३५-३७ के श्लोक में इस विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है।
सर्गस्य प्रतिसर्गस्य स्थितेः कर्ता महेश्वरः।
सर्गे च रजसा युक्तः सत्त्वस्थः प्रतिपालने।।
प्रतिसर्गे तमोद्रिक्तः स एव त्रिविधः क्रमात् ।
आदिकर्ता च भूतानां संहर्ता परिपालकः ।।

ऐसे ही अद्भुत, चमत्कारी, प्राकृतिक स्वयंभू लिङ्ग के रूप में अमरेश्वर महादेव (अमरनाथ) का वर्णन मिलता है। अमरेश्वर महादेव (अमरनाथ) की गुफा की प्राचीनता की बात करें तो इसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने 5 हजार वर्ष पूर्व में ही बताया है अर्थात् महाभारत काल में भी इस गुफा का अस्तित्व रहा होगा। जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित होने के नाते इसकी प्रामाणिकता को यही के विश्वप्रसिद्ध विद्वानों द्वारा रचित एवं अन्य उपलब्ध धर्मग्रंथो के आधार पर सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाएगा। कश्मीर में हुए राजवंशों के इतिहास लिखते समय महाकवि कल्हण ने 11 वीं सदी में विरचित राजतरंगिणी नामक ग्रन्थ में अमरेश्वर महादेव अर्थात अमरनाथ का वर्णन किया है। राजतरंगिणी एक ऐसी अद्भुत विद्वतापूर्ण रचना है जिसे प्रामाणिक 'इतिहास' कहा जाता है। राजतरंगिणी की प्रथम तरंग के 267 वें श्लोक में अमरेश्वर यात्रा का उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। इसी ग्रंथ में अन्यत्र भी कवि कल्हण भगवान शिव के अमरनाथ स्वरूप को अमरेश्वर के नाम से संबोधित करते हैं।
ज्ञात हो कि अमरेश्वर महादेव एक मात्र बर्फानी शिवलिंग है इसके अलावा विश्व में और कही भी प्राप्त होने का उल्लेख नहीं मिलता है।
ऐसे तो हमारे ऋषियों द्वारा बताए गए सनातन परम्परा का ज्ञान जनमानस को हो उसके लिए बहुत से पुराणों की रचना हुआ। उपलब्ध पुराणों में ऐसा एक भी पुराण नही है जिसमें किसी एक क्षेत्र विशेष के बारे में कोई भी वर्णन किया गया हो मात्र नीलमत पुराण ही एक ऐसा पुराण है जिसमें जम्मू कश्मीर को विशेष रूप से ध्यानकर विद्वान ऋषि ने इसकी रचना किया हैं। नीलमत पुराण की रचना छठी सदी में हुई है। नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा के बारे में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। इस पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं एवं धार्मिक अनुष्ठानों का विस्तृत रूप में वर्णन मिलता है। इसमें अमरेश्वर महादेव के बारे में दिए गए वर्णन से पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे। बृंगेशसंहिता नामक ग्रंथ में भी अमरेश्वरतीर्थ का भौगोलिक स्थिति का बारंबार उल्लेख मिलता है। अमरेश्वर गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माचभवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) आदि स्थलों का वर्णन मिलता है। पुराणों में तो इसे अमरेशतीर्थ, क्षणिक शिवलिंग और मुक्तिधाम कहा गया है। स्कन्दपुराण में भैरव भैरवी संवाद के कुछ अंश में महेश्वरखण्‍ड अरुणाचल माहात्म्य खण्‍ड’ में शिव के विभिन्न तीर्थों की महिमा की व्याख्या करते हुए ‘‘अमरेशतीर्थ को सब पुरुषार्थों का साधक बताया गया है। वहां ॐ कार नाम वाले महादेव और चण्डिका नाम से प्रसिद्ध पार्वती जी निवास करती हैं। मान्यता है कि जब भगवान् शिव ने देवी पार्वती को अमरकथा सुनाने का निश्चय किया तब उन्होंने अपने समस्त गणों को पीछे छोड़ दिया और अमरनाथ की गुफा की ओर बढ़ते गए। जहां अनंत नामक नाग को छोड़ा वह स्थान अनन्तनाग और जहां शेष नामक नाग को छोड़ा वह शेषनाग नाम से विख्यात है। इसी प्रकार जहां उन्होंने अपने नंदी बैल को छोड़ा वह स्थान बैलग्राम हुआ और बैलग्राम से अपभ्रंश होकर पहलगाम बना। अभिप्राय यह है कि जिस स्थान पर अमरेश्वर ने अमरकथा सुनाई वह स्थान जनशून्य था। फलस्वरुप इन नगरों के नामों से ही हमें शिव सायुज्य का आभास आज तक हो रहा है यही उस अमरकथा की अमरता का वास्तविक प्रमाण है।
यदि हम अमरेश्वर गुफा में स्वयंभू शिवलिंग की प्राकृतिक स्वरूप की उत्पति की बात करें तो यह पूर्णरूप से आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक चमत्कार ही तो है यहां प्रत्येक मास हिमवत शिवलिंग शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से बनाना प्रारम्भ होता है और यह क्रम अनवरत बढ़ता हुआ पूर्णिमा के दिन अपने सम्पूर्ण कलाओं से युक्त भव्य, दिव्य स्वरूप में दिखाई देता है, जैसे चंद्रमा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से बढ़ते बढ़ते पूर्णिमा को पूर्णरूप से दिखाई देता है। इसके साथ ही कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से इसके स्वरूप का क्षय होने लगता है और अमावस्या तक पूर्ण से न के बराबर होता है। यह क्रम अनवरत चलते रहता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह स्वयंभूलिंग निर्माण में कोई मानवीय प्रयास नहीं की जाती बल्कि यह प्राकृतिक रूप में ही सुलभ हो जाता है। ऐसे दुर्गम क्षेत्र में वर्षभर बर्फबारी के चलते अमरेश्वर महादेव का दर्शन केवल तपस्वी, योगीजन ही कर सकते है। वर्षभर आम जनता के लिए दर्शन सर्वसुलभ नहीं हो सकता इसीलिए हमारे ऋषियों ने इसके लिए ऋतुओं के अनुकूल तिथि को तय किया। प्रारम्भ से अमरेश्वर महादेव की गुफा दर्शन के लिए यात्रा केवल श्रावण शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक यानी 15 दिन तक चलती रही, कुछ वर्ष पूर्व में यह यात्रा 1 माह के लिए शुरू हुई अब तो मौसम और व्यवस्था अनुसार दो महीने तक भी चल रही है। बाबा बर्फानी तो सदा प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप में विराजमान रहते ही है। दर्शन के लिए जो मध्यकाल है श्रावण शुक्ल पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन तिथि। प्राकृतिक बर्फबारी से गुफा में लगातार स्वयंभू शिवलिंग के साथ ही शिव परिवार की भी आकृतियां बर्फ के माध्यम से बनती रहती हैं और गुफा में बर्फ के स्वयंभू शिवलिंग बनने की प्रक्रिया को बार बार होते देख जनमानस ने इन्हें बर्फानी और हिमानी बाबा कहने लगा।

पौराणिक अमरकथा के कुछ ऐसे भी रहस्य है जो अमरेश्वर गुफा में शिवलिंग के साथ-साथ इनसे ही गणेश और पार्वतीशक्तिपीठ की थी उत्पत्ति हुई है। विद्वान सन्तों का कहना है कि यहां माता सती के कंठ का निपात भी हुआ था। अमरेश्वर गुफा के मार्ग में पड़ने वाले चार पड़ाव पहलगाव, चंदनवाड़ी, शेषनाग व पंचतरणी का वर्णन लिंगपुराण में भी किया गया है। पांचवी शताब्दी में रचित लिंगपुराण के 12 वें अध्याय के 151 वे श्लोक में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्तुति में अमरेश्वर का उल्लेख के साथ एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है कि इस पवित्र गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को मोक्ष के मार्ग के बारे में बताया था और उन्हें अमृत्व तत्व देने वाली अमरकथा सुनाई थी यही कारण है कि भगवान शिव के इस धाम को अमरेश्वर धाम भी कहा गया है। इस अमरत्व की कथा सुनाने के लिए भगवान शिव ने पंचतत्वों का त्याग किया था।
भगवान शिव ने यह अमरकथा सुनाने के लिए पंचतत्वों में पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्नि का त्याग किया था। सर्वप्रथम पहलगांव में इन्होंने नंदी बैल को त्यागा था उसके बाद चंदनवाड़ी में अपनी जटाओं से चंद्रमा का त्याग किया। चंद्रमा का त्याग करने के पश्चात भगवान शिव शेषनाग झील पहुंचे जहां पर उन्होंने अपने गले से सर्पों का त्याग किया उसके बाद महागुणस पर्वत पर पहुंचकर गणेश जी का त्याग किया जब भगवान ने अपना सर्वस्व त्याग दिया उसके पश्चात पंचतरणी स्थान पर पहुंच कर अपने शरीर के अवयव वाले पांच तत्वों को त्यागा उसके बाद पर्वत मालाओं पर पहुंचकर माता पार्वती को अमरत्व की यह कथा सम्यक रूप से सुनाई थी।
हालांकि कुछ तथ्य ऐसे भी प्राप्त होते हैं कि जब भगवान शिव पार्वती जी को अमरकथा सुना रहे थे उस समय एक कबूतर के जोड़े ने उनकी कथा को छिपकर सुन लिया था जिसके कारण वे दोनों कबूतर भी अमरत्व को प्राप्त हो गए और ऐसी मान्यता है कि वे आज भी इसी गुफा में रहते हैं और कभी कभी उनकी युगल जोड़ी तीर्थयात्रियों को दिखाई भी देते हैं।
अगर उपरोक्त साक्ष्यों की माने तो यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि भगवान शिव के अमरेश्वर शिवलिंग की खोज 1850 में नही हुई और ना ही किसी मुस्लिम गरेड़िया ने इसकी खोज की। यह आश्चर्य का विषय है विगत वर्ष कुछ जानकर लोगों से पता चला है कि आज भी बोर्ड द्वारा चढ़ावे का एक चौथाई हिस्सा उस गरेडिया मुसलमान के वंशजों को अमरेश्वर शिवलिंग को खोजने के नाम पर दिया जाता है। जो सनातन परम्परा के लिए चिंतनीय एवं विचारणीय है। जब अमरेश्वर महादेव के विषय में इतने साक्ष्य हमारे ग्रन्थों में भरे पड़े है तो उन्हें यह चढ़ावा की यहां यात्रा में किसी भी व्यवस्था से प्राप्त राशि उन्हें क्यों दी जा रही है। पूर्व में ही इस स्वयंभू लिंग के विषय में हमारे ऋषियों ने अपने मेधा शक्तियों के द्वारा शास्त्रों में वर्णित कर दिया था।
अमरेश्वर महादेव की यात्रा तो पहले से ही की जाती थी। कालक्रम में कुछ समय के लिए आक्रांताओं द्वारा यात्रा में कुछ व्यवधान अवश्य उत्पन्न किया गया था। लेकिन जनमानस की दृढ़ विश्वास और संकल्प शक्ति के कारण बार बार व्यवधान होने के बाद भी यात्रा चलती रही। आज धर्म के प्रति युवा पीढ़ी के झुकाव एवं भारतीय जनमानस की श्रद्धा के आधिक्य को देखते हुए भारत सरकार के दिशा निर्देश में वर्तमान जम्मू कश्मीर का नेतृत्व कर रही उप राज्यपाल महोदय श्रीमान मनोज सिन्हा जी की दूरदर्शी एवं आध्यात्मिक प्रकाष्ठा पर विश्वास रखने वाली शासन के साथ ही समय समय पर वास्तविकता से जनता को जगाने वाले संवादाताओं के माध्यम से अमरेश्वर महादेव की यात्रा में समुचित व्यवस्था के साथ ही दर्शन करने वाले यात्रियों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। आज जम्मू कश्मीर पुनः अपने गौरवशाली परंपरा को प्राप्त कर आध्यात्मिकता को प्राप्त हो रहा है। आध्यात्म की इसी प्रकाष्ठा के कारण इसे अखण्ड भारत का सिरमौर कहा जाता हैं। प्राकृतिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिकता की प्रकाष्ठा का द्योतक है अमरेश्वर धाम की यात्रा। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्री अमरनाथ की वार्षिक यात्रा 3 जुलाई से आरंभ होकर 9 अगस्त तक के लिए सुनिश्चित है। इस अवसर पर वर्षभर बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए लालायित श्रद्धालु शिवभक्त विश्वभर से भूत भावन बाबा अमरेश्वर के दर्शनार्थ आते है। यह यात्रा पूर्ण से साक्षात प्राकृतिक हिमवत लिंग स्वरूप में विराजमान भोलेनाथ के विशेष विग्रह के दर्शन करके पूर्णता को प्राप्त होती है। आध्यात्मिक एवं साधना की दृष्टि से विचार करे तो यह यात्रा सम्यक प्रकार से शिव सायुज्य की अनुभूति कराती है। तीर्थो में जाकर स्नान, दान एवं दर्शन करने पर जो पुण्य मिलते है उसके बारे में शास्त्रों में जो वर्णन मिलता है उसे विद्वानों ने मुक्त कंठ से बखान किया है। जैसे काशी में भूतभावन बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ जी के लिंग दर्शन का पुण्य, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य तीर्थ से हजार गुना अधिक पुण्य बाबा बर्फानी के दर्शन करने से मिलता है। इतना ही नहीं अमरनाथ तीर्थ करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद के साथ मनोवांक्षित फल भी प्राप्त होता है। यही कारण है कि भक्त पूरे श्रद्धाभाव के साथ इस कठिन यात्रा को पूरा करते हैं और बाबा बर्फानी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। बाबा बर्फानी की सब पर ऐसी ही कृपा बनी रहे इसी आशा के साथ जो भी शिवभक्त अभी तक इस यात्रा को नही कर पाए है वे रजिस्ट्रेशन करवाकर नियमानुसार अवश्य यात्रा में जाए।
अन्त में एक विशेष बात यह है कि तीर्थयात्राएँ मानव इतिहास की जननी रही हैं। यात्राओं से ही इतिहास बना है और उसी इतिहास ने आज तक मानव सभ्यता में भगवान को स्थापित किया है।
हर हर महादेव।

लेखक - डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय, मुख्य न्यासी श्री श्री 1008 श्री मौनी बाबा चैरिटेबल ट्रस्ट न्यास एवं मन्दिर एवं गुरुकुल योजना सेवा प्रमुख जम्मू कश्मीर प्रान्त।

शिवसेना के दावे पुख्ता  , करंट रजिस्ट्रेशन के लिए उमड़ा  शिव भक्तों का हजूम।प्रशासन व श्राइन बोर्ड से  व्यवस्था दुरुस्त ...
02/07/2025

शिवसेना के दावे पुख्ता , करंट रजिस्ट्रेशन के लिए उमड़ा शिव भक्तों का हजूम।

प्रशासन व श्राइन बोर्ड से व्यवस्था दुरुस्त करने की मांग।

जम्मू :- श्री अमरनाथ यात्रा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में गिरावट के बावजूद तत्काल पंजीकरण के लिए शिव भक्तों की उमड़ी भारी भीड़ ने एक रिकार्ड संख्या में श्रद्धालुओं के यात्रा का हिस्सा बनेंगे व आतंक पर आस्था भारी रहने के हमारे दावों को पुख्ता साबित किया है , यह कहना है शिवसेना(यूबीटी) जम्मू-कश्मीर ईकाई प्रमुख मनीश साहनी का।

पार्टी प्रदेश मध्यवर्ती कार्यालय से पत्रकारों से विशेष बातचीत पर शिवसेना(यूबीटी) जम्मू-कश्मीर ईकाई प्रमुख मनीश साहनी ने प्रशासन व श्राइन बोर्ड से तत्काल पंजीकरण व्यवस्था को दुरुस्त करने की मांग की है ।
साहनी ने कहा कि 30 सितंबर को जम्मू में तत्काल पंजीकरण खुलने के साथ ही शिव भक्तों का भारी हुजूम उमड़ा , श्रद्धालुओं को घंटों कतारों में खड़े होना पड़ रहा है । वहीं श्रीनगर में 1 जुलाई से काउंटर खोलने की जानकारी दी गई थी जबकि श्रद्धालु आज घंटों कतारों में खड़े हो काउंटर खुलने का इंतजार ही करते रहे।
साहनी ने कहा कि पूर्व की भांति
एकबार फिर प्रशासन व श्राइन बोर्ड की तरफ से भीड़ से निपटने को लेकर तैयारियां में भारी खामियां दिखाई दी है।
साहनी ने कहा कि वह लगातार पंजीकरण काउंटरों की संख्या बढ़ाने व पूर्व में सामने आई खामियों को दूर करने की अपील कर रहे थे ।‌ मगर प्रशासन व श्राइन बोर्ड द्वारा लगातार उनके तमाम सुझावों को नजरंदाज किया गया। पूर्व की भांति एकबार फिर जम्मू रेलवे स्टेशन के करीब तत्काल पंजीकरण काउंटरों पर लोगों को घंटों कतारों में खड़े रहने व कुप्रबंधों को झेलने को मजबूर होना पड़ा ।
साहनी ने आगे वाले दिनों में तत्काल पंजीकरण के लिए भीड़ लगाकर बढ़ने का दावा करते हुए , प्रशासन व श्राइन बोर्ड से व्यवस्था में खामियों को दूर करने के साथ पंजीकरण सुविधा को जम्मू रेलवे स्टेशन के साथ विभिन्न स्थलों पर देने की मांग की है। उन्होंने कहा कि तत्काल पंजीकरण के लिए बाबा बर्फानी के भक्तों की
लगातार बढ़ती भीड़ ने
साबित कर दिया है इस साल एक रिकार्ड संख्या में श्रद्धालु श्री अमरनाथ यात्रा का हिस्सा होंगे और आतंक पर आस्था भारी रहगी । साहनी ने जम्मू पहुंचने वाले अमरनाथ यात्रियों से जम्मू में एक दिन बिताने व अन्य धार्मिक व पर्यटन स्थलों के भ्रमण की अपील को भी दौहराया है।

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