Sunil Sharma astrology

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ये जो साधारण सलवार सूट वाली महिला है न ? ये लगभग 7 हजार करोड़ रुपए की मालकिन हैये जो पेंट शर्ट पहने अंकल हैं न ? ये ब्रि...
14/09/2023

ये जो साधारण सलवार सूट वाली महिला है न ? ये लगभग 7 हजार करोड़ रुपए की मालकिन है

ये जो पेंट शर्ट पहने अंकल हैं न ? ये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैं

अक्षरधाम मंदिर गए ऋषि सुनक व अक्षरा मूर्ति सुनक की ये तस्वीरें उन छपरी लौंडे-लौंडियों को अवश्य देखनी चाहिए जो मंदिर के नियमों का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि - My life my rules... My body my choice...

हजारों करोड़ की संपत्ति के साथ ब्रिटेन में रहते हुए भी अपने संस्कार नहीं भूले
लेकिन
हमारे देश के युवा गांव से निकलर जम्मू दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु आते ही अपने संस्कार, मर्यादा और धर्म के साथ ही औकात भूल जाते हैं.

कितने भी आधुनिक हो जाओ लेकिन संस्कार, सभ्यता और मर्यादा को मत त्यागो

सनातन को ब्रिटेन के ऋषि नमन कर रहे हैं🙏❣️🚩

यह 15 मंत्र जो हर हिंदू को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए।1. Mahadevॐ त्र्यम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,उर्वारु...
13/09/2023

यह 15 मंत्र जो हर हिंदू को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए।

1. Mahadev

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे,
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,
उर्वारुकमिव बन्धनान्,
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!

2. Shri Ganesha

वक्रतुंड महाकाय,
सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नम कुरू मे देव,
सर्वकार्येषु सर्वदा !!

3. Shri hari Vishnu

मङ्गलम् भगवान विष्णुः,
मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,
मङ्गलाय तनो हरिः॥

4. Shri Brahma ji

ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,
नमस्ते परमात्ने ।
निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,
सदुयाय नमो नम:।।

5. Shri Krishna

वसुदेवसुतं देवं,
कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं,
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।

6. Shri Ram

श्री रामाय रामभद्राय,
रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय,
सीताया पतये नमः !

7. Maa Durga

ॐ जयंती मंगला काली,
भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,
स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।

8. Maa Mahalakshmi

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,
धन धान्यः सुतान्वितः ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन,
भविष्यति न संशयःॐ ।

9. Maa Saraswathi

ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।

10. Maa Mahakali

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,
हलीं ह्रीं खं स्फोटय,
क्रीं क्रीं क्रीं फट !!

11. Hanuman ji

मनोजवं मारुततुल्यवेगं,
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

12. Shri Shanidev

ॐ नीलांजनसमाभासं,
रविपुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तण्डसम्भूतं,
तं नमामि शनैश्चरम् ||

13. Shri Kartikeya

ॐ शारवाना-भावाया नम:,
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,
वल्लीईकल्याणा सुंदरा।
देवसेना मन: कांता,
कार्तिकेया नामोस्तुते ।

14. Kaal Bhairav ji

ॐ ह्रीं वां बटुकाये,
क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,
कुरु कुरु बटुकाये,
ह्रीं बटुकाये स्वाहा।

15. Gayatri Mantra

ॐ भूर्भुवः स्वः,
तत्सवितुर्वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

परिवार और बच्चों को भी सिखायें ।।

राधे राधे - जय श्री कृष्ण 🙏
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 #कुशा_कि_उत्पति_कहा_से_हुईकुश / कुशा (दर्भ) एक घास है।  अत्यन्त पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। इसके सिर...
13/09/2023

#कुशा_कि_उत्पति_कहा_से_हुई
कुश / कुशा (दर्भ) एक घास है। अत्यन्त पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। इसके सिरे नुकीले होते हैं।

भारत में हिन्दू लोग इसे पूजा /श्राद्ध में काम में लाते हैं। श्राद्ध -तर्पण विना कुशा के सम्भव नहीं हैं।

कुशा की उत्पत्ति....महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं। एक का नाम कद्रू था और दूसरी का नाम विनता। कद्रू और विनता दोनों महार्षि कश्यप की खूब सेवा करती थीं। महार्षि कश्यप ने उनकी सेवा-भावना से अभिभूत हो वरदान मांगने को कहा।

कद्रू ने कहा, मुझे एक हजार पुत्र चाहिए। महार्षि ने ‘तथास्तु’ कह कर उन्हें वरदान दे दिया।
विनता ने कहा कि मुझे केवल दो प्रतापी पुत्र चाहिए। महार्षि कश्यप उन्हें भी दो तेजस्वी पुत्र होने का वरदान देकर अपनी साधना में तल्लीन हो गए।

कद्रू के पुत्र सर्प रूप में हुए, जबकि विनता के दो प्रतापी पुत्र हुए। किंतु विनता को भूल के कारण कद्रू की दासी बनना पड़ा।

विनता के पुत्र गरुड़ ने जब अपनी मां की दुर्दशा देखी तो दासता से मुक्ति का प्रस्ताव कद्रू के पुत्रों के सामने रखा। कद्रू के पुत्रों ने कहा कि यदि गरुड़ उन्हें स्वर्ग से अमृत लाकर दे दें तो वे विनता को दासता से मुक्त कर देंगे। गरुड़ ने उनकी बात स्वीकार कर अमृत कलश स्वर्ग से लाकर दे दिया और अपनी मां विनता को दासता से मुक्त करवा लिया।

यह अमृत कलश ‘कुश’ नामक घास पर रखा था, जहां से इंद्र इसे पुन: उठा ले गए तथा कद्रू के पुत्र अमृतपान से वंचित रह गए। उन्होंने गरुड़ से इसकी शिकायत की कि इंद्र अमृत कलश उठा ले गए। गरुड़ ने उन्हें समझाया कि अब अमृत कलश मिलना तो संभव नहीं, हां यदि तुम सब उस घास (कुश) को, जिस पर अमृत कलश रखा था, जीभ से चाटो तो तुम्हें आंशिक लाभ होगा।

कद्रू के पुत्र कुश को चाटने लगे, जिससे कि उनकी जीभें चिर गई इसी कारण आज भी सर्प की जीभ दो भागों वाली चिरी हुई दिखाई पड़ती है, किंतु ‘कुश’ घास की महत्ता अमृत कलश रखने के कारण बढ़ गई और भगवान विष्णु के निर्देशानुसार इसे पूजा कार्य में प्रयुक्त किया जाने लगा।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर समुद्रतल में छिपे महान असुर हिरण्याक्ष का वध कर दिया और पृथ्वी को उससे मुक्त कराकर बाहर निकले तो उन्होंने अपने बालों को फटकारा। उस समय कुछ रोम पृथ्वी पर गिरे। वहीं कुश के रूप में प्रकट हुए।

कुश ऊर्जा की कुचालक है। इसलिए इसके आसन पर बैठकर पूजा-वंदना, उपासना या अनुष्ठान करने वाले साधन की शक्ति का क्षय नहीं होता। परिणामस्वरूप कामनाओं की अविलंब पूर्ति होती है।

वेदों ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।

कुश का प्रयोग पूजा करते समय जल छिड़कने, ऊंगली में पवित्री पहनने, विवाह में मंडप छाने तथा अन्य मांगलिक कार्यों में किया जाता है।

इस घास के प्रयोग का तात्पर्य मांगलिक कार्य एवं सुख-समृद्धिकारी है, क्योंकि इसका स्पर्श अमृत से हुआ है।

हिंदू धर्म में किए जाने वाले विभिन्न धार्मिक कर्म-कांडों में अक्सर कुश का उपयोग किया जाता है।

इसको उखाड़ते समय सावधानी रखनी पड़ती है कि यह जड़ सहित उखड़े और हाथ भी न कटे।

कुशल शब्द इसीलिए बना...."ऊँ हुम् फट" मन्त्र का उच्चारण करते हुए

उत्तराभिमुख होकर कुशा उखाड़नी चाहिए।

पुरातन समय में गुरुजन अपने शिष्यों की परीक्षा लेते समय उन्हें कुश लाने का कहते थे। कुश लाने में जिनके हाथ ठीक होते थे उन्हें कुशल कहा जाता था अर्थात उसे ही ज्ञान का सद्पात्र माना जाता था।

कुश ऊर्जा का कुचालक है। इसीलिए सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन तथा पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं तथा भोजन व पानी पर उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता।

पांच वर्ष की आयु के बच्चे की जिव्हा पर शुभ मुहूर्त में कुशा के अग्र भाग से शहद द्वारा सरस्वती मन्त्र लिख दिया जाए तो वह बच्चा कुशाग्र बन जाता है।

कुश से बने आसन पर बैठकर तप, ध्यान तथा पूजन आदि धार्मिक कर्म-कांडों से प्राप्त ऊर्जा धरती में नहीं जा पाती क्योंकि धरती व शरीर के बीच कुश का आसन कुचालक का कार्य करता है।

कुशा से बनी अंगूठी पहनकर पूजा /तर्पण के समय पहनी जाती है जिस भाग्यवान् की सोने की अंगूठी पहनी हो उसको जरूरत नहीं है। कुशा प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन अमावाश्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों की अमावश्या के दिन की तोडी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड के रख लते हैं।

👉दस प्रकार के होते हैं कुश

शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है-
कुशा, काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा, सबल्वजा।।
यानि कुश, काश , दूर्वा, उशीर, ब्राह्मी, मूंज इत्यादि

कोई भी कुश अमावस्या को उखाड़ी जा सकती है और उसका घर में संचय किया जा सकता है।

लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि हरी पत्तेदार कुश जो कहीं से भी कटी हुई ना हो , एक विशेष बात और जान लीजिए कुश का स्वामी केतु है लिहाज़ा कुश को अगर आप अपने घर में रखेंगे तो केतु के बुरे फलों से बच सकते हैं।

कौन सा कुश उखाड़ेंं

कुश उखाडऩे से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गन्दे स्थान पर हो, जो जला हुआ हो, जो मार्ग में हो या जिसका अग्रभाग कटा हो, इस प्रकार का कुश ग्रहण करने योग्य नहीं होता है।

शास्त्रों में में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है. इसलिए श्राद्धकर्म मे, त्रयोदशी संस्कार मे पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य कुशा के द्वारा किया जाता है
आचार्य जितेंद्र

04/09/2023

#विद्यार्थियों के बहुत उपयोगी
विद्यार्थियों को आठ बातों से बचना चाहिए --
काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, शृङ्गार, खेल, अति निद्रा और अति सेवा लेना ।
विद्यार्थी में पाँच गुण आवश्यक हैं --
कौए जैसा प्राप्त करने का प्रयास, बगुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी निद्रा, थोड़ा भोजन और आवश्यकता से अधिक न बोलना (शिक्षा के लिए गृह का त्याग) ।
विद्या प्राप्ति में छः प्रकार के विघ्न हैं --
जुआ खेलना, पुस्तकों की सजावट करना, नाटक(फिल्में) देखना, स्त्री, आलस्य और निद्रा ।।
जिस प्रकार भवन निर्माण के लिए सुदृढ नींव की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार से प्रारम्भिक जीवन में ब्रह्मचर्य की भी आवश्यकता है ।।
पुस्तक में लिखी हुई विद्या सिद्धि देने वाली नहीं होती, गुरुमुख से अधिकारी शिष्य को प्राप्त विद्या ही फलवती होती है । सुनील शास्त्री

कामक्रोधौ तथा लोभं
स्वादुशृङ्गारकौतुकम् ।
अतिनिद्राsतिसेवा च
विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत् ।। .....
काकचेष्टा बको ध्यानं
श्वाननिद्रा तथैव च ।
अल्पाहारी मितभाषी (गृहत्यागी)
विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ।। ....
द्यूतं पुस्तकशुश्रूषा
नाटकासक्तिरेव च ।
स्त्रियस्तन्द्रा च निद्रा च
विद्याविघ्नकराणि षट् ।।
तथा च ---
प्रासादस्य विनिर्माणे मूलभित्तिरपेक्षते ।
तथैव जीवनस्यादौ ब्रह्मचर्यमपेक्षते ।।
पुस्तके लिखिता विद्या नैव सिद्धिप्रदा नृणाम् ।
गुरुं विना हि विद्यायां नाधिकारः कथञ्चन ।।
सुनील शास्त्री
प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें।

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