Ragunath Temple Prat

Ragunath Temple Prat A historical place of JAMMU Kashmir. Hindu lord Rama Temple at channi prat, district Rajouri, Tehsi

16/08/2025

।। यज्ञोपवीत का महत्व।।
शौचालय (वॉशरूम) जाते समय जनेऊ (यज्ञोपवीत) को कान पर क्यों रखा जाता है?

जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति शौच या मूत्र त्याग करते समय जनेऊ को कान पर चढ़ाते हैं। यह एक शास्त्रीय नियम है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण होते हैं – एक भावनात्मक और दूसरा शारीरिक स्वास्थ्य विज्ञान से जुड़ा हुआ।

🔸 भावनात्मक कारण:

शास्त्रों के अनुसार, मल-मूत्र त्याग करते समय शरीर का निचला भाग विशेष रूप से कमर के नीचे का हिस्सा अपवित्र हो जाता है। चूंकि जनेऊ पवित्रता का प्रतीक है, इसलिए अशुद्ध अवस्था में उसे शरीर से ऊपर, कान पर रख दिया जाता है।

आचार मयूख में कहा गया है:

> "अग्निरापश्च वेदाश्च सोमः सूर्योनिलस्तथा।
सर्वे देवास्तु विप्रस्य कर्णे तिष्ठन्ति दक्षिणे।।"

अर्थात – अग्नि, जल, वेद, चंद्र (सोम), सूर्य, वायु आदि समस्त देवता ब्राह्मण के दाहिने कान में वास करते हैं। इसलिए सिर और कान के आसपास का भाग पवित्र माना जाता है।

🔸 वैज्ञानिक कारण:

मानव शरीर में वीर्यकोष से लेकर मल-मूत्र मार्ग तक जाने वाली “लोहितिका” नामक नाड़ी का मुख्य केंद्र कान के नीचे स्थित होता है। शौच के समय जनेऊ को कान पर चढ़ाने से उस नाड़ी पर दबाव पड़ता है, जिससे:

वीर्यकोष में संकुचन (संकुचित अवस्था) और

मल/मूत्र मार्ग में शिथिलता (ढीलापन) आती है।

इस प्रक्रिया से मल-मूत्र का विसर्जन सरल और सहज रूप से होता है और अनायास वीर्यस्खलन से भी बचाव होता है।

शास्त्र में भी इसका निर्देश है:

> "मूत्रे तु दक्षिणे कर्णे पुरीषे वामकर्णके।
उपवीतं सदाधार्यं मैथुने तूपवीतिवत्।"

अर्थ: मूत्र त्याग के समय जनेऊ को दाहिने कान में, और मल त्याग के समय बाएं कान में रखना चाहिए। मैथुन के समय जनेऊ को वैसे ही धारण किया जाता है।

मनुस्मृति में कहा गया है:

> "उर्ध्वं नाभे मेध्यतरः पुरुषः परिकीर्तितः।
तस्मान् मेध्यतमं त्वस्य मुखमुक्तं स्वयंभुवा।।"

अर्थ: मनुष्य की नाभि के ऊपर का भाग पवित्र और नीचे का भाग अपवित्र होता है। शौच करते समय नाभि के नीचे का हिस्सा अपवित्र होता है, इसलिए उस समय जनेऊ को कान पर रखा जाता है।

🔸 अन्य शास्त्रीय उद्धरण:

"मरुतः सोम इन्द्राग्नी मित्रा वरुणौ तथैव च।
एते सर्वे च विप्रस्य श्रोत्रे तिष्ठन्ति दक्षिणे।।"

अर्थ: वायु, चंद्रमा, इन्द्र, अग्नि, मित्र और वरुण ये सभी देवता ब्राह्मण के दाहिने कान में निवास करते हैं।

कूर्मपुराण में भी लिखा है:

"निधाय दक्षिणे कर्णे ब्रह्मसूत्रमुदङ्मुखः।
अग्निं कुर्यात् शङ्कृन्मूत्रं रात्रौ चेद् दक्षिणान्मुखः।"

अर्थ: दिन में उत्तर की ओर मुख करके और रात में दक्षिण की ओर मुख करके, दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाकर शौच या मूत्र का त्याग करना चाहिए।

🔸 आधुनिक विज्ञान भी सहमत है:

लंदन के "क्वीन एलिजाबेथ चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल" के डॉक्टर एस.आर. सक्सेना के अनुसार:

कान की एक नस सीधे आंत से जुड़ी होती है।

जनेऊ कान पर रखने से यह नस उत्तेजित होती है, जिससे मलद्वार खुलता है और कब्ज जैसी समस्याएं नहीं होतीं।

मूत्राशय की मांसपेशियों पर भी असर होता है, जिससे मूत्र त्याग भी सहज होता है।

इटली के "बाटी विश्वविद्यालय" के न्यूरोसर्जन प्रोफेसर एनारीब पीताजेली ने बताया कि:

कान के पास दबाव डालने से हृदय मज़बूत होता है और रक्तचाप नियंत्रित रहता है।

🔸 आयुर्वेद और अन्य लाभ:

दाहिने कान से होकर गुजरने वाली एक नस सीधे मूत्र और मल मार्ग से जुड़ी होती है।

मूत्र त्याग करते समय दाहिने कान में जनेऊ रखने से मधुमेह (डायबिटीज) से भी लाभ होता है।

बाएं कान में जनेऊ रखने से पाइल्स (बवासीर) की संभावना कम होती है।

मूत्र त्याग के समय शरीर से थोड़ी मात्रा में शुक्राणु भी निकल सकते हैं, इसलिए जनेऊ को कान पर रख कर उसे बचाया जाता है।

दाहिने कान पर दबाव देने से सूर्य नाड़ी सक्रिय होती है, जिससे पेट की बीमारियाँ और ब्लड प्रेशर में राहत मिलती है।

🔸 निष्कर्ष:

जनेऊ सिर्फ धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह शरीर की ऊर्जा प्रणाली और स्वास्थ्य संतुलन से भी जुड़ा है।

शौच या मूत्र त्याग करते समय इसे कान पर रखने की परंपरा शास्त्र, विज्ञान और अनुभव – तीनों से सिद्ध होती है।

यह न केवल शरीर को शुद्ध रखता है, बल्कि मन को भी अनुशासित और शांत बनाता है।

09/08/2025

⚜️᯼༺꧁🙏🏽अष्टावक्र🙏🏽꧂༻᯼⚜️
#अष्टावक्र इतने प्रकाण्ड विद्वान थे कि माँ के गर्भ से ही अपने पिताजी "कहोड़" को अशुद्ध वेद पाठ करने के लिये टोंक दिए जिससे क्रुद्ध होकर पिताजी ने आठ जगह से टेड़ें हो जाने का श्राप दे दिया था।

अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।

'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है।
कहते हैं कि अष्टावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था।

उद्दालक ऋषि के पुत्र का नाम श्‍वेतकेतु था। उद्दालक ऋषि के एक शिष्य का नाम कहोड़ था। कहोड़ को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान देने के पश्‍चात् उद्दालक ऋषि ने उसके साथ अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित होकर बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) हो जायेगा।

हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्‍वेतकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्‍वेतकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहाँ से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय में पूछताछ की। माता ने अष्टावक्र को सारी बातें सच-सच बता दीं।

अपनी माता की बातें सुनने के पश्‍चात् अष्टावक्र अपने मामा श्‍वेतकेतु के साथ बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिये राजा जनक के यज्ञशाला में पहुँचे। वहाँ द्वारपालों ने उन्हें रोकते हुये कहा कि यज्ञशाला में बच्चों को जाने की आज्ञा नहीं है। इस पर अष्टावक्र बोले कि अरे द्वारपाल! केवल बाल श्वेत हो जाने या अवस्था अधिक हो जाने से कोई बड़ा व्यक्ति नहीं बन जाता। जिसे वेदों का ज्ञान हो और जो बुद्धि में तेज हो वही वास्तव में बड़ा होता है। इतना कहकर वे राजा जनक की सभा में जा पहुँचे और बंदी को शास्त्रार्थ के लिये ललकारा।

अष्टावक्र भरी सभा में जाकर खड़े हो गए। उनका आठ जगहों से टेढ़ा-मेढ़ा शरीर और अजीब चाल देखकर सारी सभा हँसने लगी। अष्टावक्र यह नजारा देखकर सभाजनों से भी ज्यादा जोर से खिलखिलाकर हँसे।

जनक ने पूछा, 'सब हँसते हैं, वह तो मैं समझ सकता हूँ, लेकिन बेटे, तेरे हँसने का कारण बता?

अष्टावक्र ने कहा, 'मैं इसलिए हँस रहा हूँ कि इन चमारों की सभा में सत्य का निर्णय हो रहा है, आश्चर्य! ये चमार यहाँ क्या कर रहे हैं।'

सारी सभा में सन्नाटा छा गया। सब अवाक् रह गए। राजा जनक खुद भी सन्न रह गए। उन्होंने बड़े संयत भाव से पूछा, 'चमार!!! तेरा मतलब क्या?'

अष्टाव्रक ने कहा, 'सीधी-सी बात है। इनको चमड़ी ही दिखाई पड़ती है, मैं नहीं दिखाई पड़ता। ये चमार हैं। चमड़ी के पारखी हैं। इन्हें मेरे जैसा सीधा-सादा आदमी दिखाई नहीं पड़ता, इनको मेरा आड़ा-तिरछा शरीर ही दिखाई देता है। राजन, मंदिर के टेढ़े होने से आकाश कहीं टेढ़ा होता है? घड़े के फूटे होने से आकाश कहीं फूटता है? आकाश तो निर्विकार है। मेरा शरीर टेढ़ा-मेढ़ा है लेकिन मैं तो नहीं। यह जो भीतर बसा है, इसकी तरफ तो देखो। मेरे शरीर को देखकर जो हँसते हैं, वे चमार नहीं तो क्या हैं?

यह सुनकर मिथिला देश के नरेश एवं भगवान राम के श्‍वसुर राजा जनक सन्न रह गए। जनक को अपराधबोध हुआ कि सब हँसे तो ठीक, लेकिन मैं भी इस बालक के शरीर को देखकर हँस दिया। राजा जनक के जीवन की सबसे बड़ी घटना थी। देश का सबसे बड़ा ताम-झाम। सबसे सुंदर गायें। सबसे महँगे हीरे-जवाहरात। सबसे विद्वान पंडित और सारे संसार में इस कार्यक्रम का समाचार और सिर्फ एक ही झटके में सब कुछ खत्म। जनक को बहुत पश्चाताप हुआ। सभा भंग हो गई।

रातभर राजा जनक सो न सके। दूसरे दिन सम्राट जब घूमने निकले तो उन्हें वही बालक अष्टावक्र खेलते हुए नजर आया। वे अपने घोड़े से उतरे और उस बालक के चरणों में गिर पड़े। कहा- 'आपने मेरी नींद तोड़ दी। आपमें जरूर कुछ बात है। आत्मज्ञान की चर्चा करने वाले शरीर पर हँसते हैं तो वे कैसे ज्ञानी हो सकते हैं। प्रभु आप मुझे ज्ञान दो।'

राजा जनक ने अष्टावक्र की परीक्षा लेने के लिये पूछा कि वह पुरुष कौन है जो तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अक्षरों वाली वस्तु का ज्ञानी है? राजा जनक के प्रश्‍न को सुनते ही अष्टावक्र बोले कि राजन्! चौबीस पक्षों वाला, छः ऋतुओं वाला, बारह महीनों वाला तथा तीन सौ साठ दिनों वाला संवत्सर आपकी रक्षा करे। अष्टावक्र का सही उत्तर सुनकर राजा जनक ने फिर प्रश्‍न किया कि वह कौन है जो सुप्तावस्था में भी अपनी आँख बन्द नहीं रखता? जन्म लेने के उपरान्त भी चलने में कौन असमर्थ रहता है? कौन हृदय विहीन है? और शीघ्रता से बढ़ने वाला कौन है? अष्टावक्र ने उत्तर दिया कि हे जनक! सुप्तावस्था में मछली अपनी आँखें बन्द नहीं रखती। जन्म लेने के उपरान्त भी अंडा चल नहीं सकता। पत्थर हृदयहीन होता है और वेग से बढ़ने वाली नदी होती है।

अष्टावक्र के उत्तरों को सुकर राजा जनक प्रसन्न हो गये और उन्हें बंदी के साथ शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान कर दी। बंदी ने अष्टावक्र से कहा कि एक सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है, देवराज इन्द्र एक ही वीर हैं तथा यमराज भी एक है। अष्टावक्र बोले कि इन्द्र और अग्निदेव दो देवता हैं। नारद तथा पर्वत दो देवर्षि हैं, अश्‍वनीकुमार भी दो ही हैं। रथ के दो पहिये होते हैं और पति-पत्नी दो सहचर होते हैं। बंदी ने कहा कि संसार तीन प्रकार से जन्म धारण करता है। कर्मों का प्रतिपादन तीन वेद करते हैं। तीनों काल में यज्ञ होता है तथा तीन लोक और तीन ज्योतियाँ हैं। अष्टावक्र बोले कि आश्रम चार हैं, वर्ण चार हैं, दिशायें चार हैं और ओंकार, आकार, उकार तथा मकार ये वाणी के प्रकार भी चार हैं। बंदी ने कहा कि यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं, यज्ञ की अग्नि पाँच हैं, ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं, पंच दिशाओं की अप्सरायें पाँच हैं, पवित्र नदियाँ पाँच हैं तथा पंक्‍ति छंद में पाँच पद होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दक्षिणा में छः गौएँ देना उत्तम है, ऋतुएँ छः होती हैं, मन सहित इन्द्रयाँ छः हैं, कृतिकाएँ छः होती हैं और साधस्क भी छः ही होते हैं। बंदी ने कहा कि पालतू पशु सात उत्तम होते हैं और वन्य पशु भी सात ही, सात उत्तम छंद हैं, सप्तर्षि सात हैं और वीणा में तार भी सात ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि आठ वसु हैं तथा यज्ञ के स्तम्भक कोण भी आठ होते हैं। बंदी ने कहा कि पितृ यज्ञ में समिधा नौ छोड़ी जाती है, प्रकृति नौ प्रकार की होती है तथा वृहती छंद में अक्षर भी नौ ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दिशाएँ दस हैं, तत्वज्ञ दस होते हैं, बच्चा दस माह में होता है और दहाई में भी दस ही होता है। बंदी ने कहा कि ग्यारह रुद्र हैं, यज्ञ में ग्यारह स्तम्भ होते हैं और पशुओं की ग्यारह इन्द्रियाँ होती हैं। अष्टावक्र बोले कि बारह आदित्य होते हैं बारह दिन का प्रकृति यज्ञ होता है, जगती छंद में बारह अक्षर होते हैं और वर्ष भी बारह मास का ही होता है। बंदी ने कहा कि त्रयोदशी उत्तम होती है, पृथ्वी पर तेरह द्वीप हैं।...... इतना कहते कहते बंदी श्‍लोक की अगली पंक्ति भूल गये और चुप हो गये। इस पर अष्टावक्र ने श्‍लोक को पूरा करते हुये कहा कि वेदों में तेरह अक्षर वाले छंद अति छंद कहलाते हैं और अग्नि, वायु तथा सूर्य तीनों तेरह दिन वाले यज्ञ में व्याप्त होते हैं।

इस प्रकार शास्त्रार्थ में बंदी की हार हो जाने पर अष्टावक्र ने कहा कि राजन्! यह हार गया है, अतएव इसे भी जल में डुबो दिया जाये। तब बंदी बोला कि हे महाराज! मैं वरुण का पुत्र हूँ और मैंने सारे हारे हुये ब्राह्मणों को अपने पिता के पास भेज दिया है। मैं अभी उन सबको आपके समक्ष उपस्थित करता हूँ। बंदी के इतना कहते ही बंदी से शास्त्रार्थ में हार जाने के पश्चात जल में डुबोये गये सार ब्राह्मण जनक की सभा में आ गये जिनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे।

अष्टावक्र ने अपने पिता के चरणस्पर्श किये। तब कहोड़ ने प्रसन्न होकर कहा कि पुत्र! तुम जाकर समंगा नदी में स्नान करो, उसके प्रभाव से तुम मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। तब अष्टावक्र ने इस स्थान में आकर समंगा नदी में स्नान किया और उसके सारे वक्र अंग सीधे हो गये।।

*धन्य है हमारी सनातन संस्कृति*
🙏🏽🌼जय श्री कृष्णा राधे राधे 🥀🥀

 # # 🕉️  "सोलकी की गुफा से गूंजे शंकर का नाम"****सुनो हिमालय की गोद में, एक गुफा पुरानी है,****जहाँ ऋषियों की साधना, और ...
09/08/2025

# # 🕉️ "सोलकी की गुफा से गूंजे शंकर का नाम"**

**सुनो हिमालय की गोद में, एक गुफा पुरानी है,**
**जहाँ ऋषियों की साधना, और शिव की कहानी है।**

**राजौरी की भूमि पे, सोलकी वो स्थान है,**
**जहाँ स्वयं शौनक ऋषि का, तप में तपता ध्यान है।**

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**न कोई सिंहासन, न स्वर्णाभूषण का दर्प है,**
**यहाँ तो केवल शांति है, और साधना का अर्थ है।**

**नाद करता है हर पत्थर, 'हर हर शंकर' की बात,**
**गुफा की छाया में मिलता है, मन को दिव्य प्रातः।**

---

**सुंदरबनी से पंद्रह कोस, प्रकृति का एक संग है,**
**कलाकोट के पथ पर बसा, शिव का साक्षात रंग है।**

**झरनों की सरगम, पवनों का गीत,
गुफा की गहराई में है शिव का मीत।**

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**कथा ये केवल पौराणिक नहीं, यह आज की भी पुकार है,**
**संवारे इसे, सँजोए इसे, यह धरती का उपहार है।**

**बोलो शिव भोले की जय, ऋषियों के ज्ञान की जय,
सोलकी की गुफा रहे, सनातन की शान की जय।**

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**चलो साथ मिलकर दीप जलाएँ, इस तपोभूमि की सेवा करें,**
**सोलकी की इस गुफा को, विश्व धरोहर का स्तर दें।**

**जहाँ ऋषि ने पाया था शिव को ध्यान की गहराई में,
आज हम उन्हें पाएँ श्रद्धा और सच्चाई में।**

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🌿
**जय ऋषि शौनक!
हर हर महादेव!
जय सोलकी तपोभूमि!**

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09/08/2025

सोलकी शिव गुफा — ऋषि शौनक जी की तपोभूमि (राजौरी, जम्मू-कश्मीर)**

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**🔔 आदरणीय मंच, उपस्थित श्रद्धालुजनों, मीडिया प्रतिनिधियों, और मेरे प्रिय भाइयों एवं बहनों,**

नमस्कार।

आज मुझे अपार गर्व और अत्यंत भावनात्मक संतोष का अनुभव हो रहा है कि मैं आप सबके समक्ष **हमारी सनातन परंपरा के एक अनमोल रत्न**, एक **पवित्र तपोभूमि**, और **आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर स्थान** — **सोलकी शिव गुफा** के विषय में अपने विचार साझा कर रहा हूँ।

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# # # 🕉️ **यह गुफा केवल पत्थर की गुफा नहीं, एक जीवित आध्यात्मिक धरोहर है।**

यह वही स्थान है जहाँ **ऋषि शौनक जी** ने हजारों वर्ष पहले कठोर तपस्या की थी। वेदों के ज्ञाता, धर्म और ज्ञान के प्रतीक, ऋषि शौनक जी की तपस्या से यह भूमि आज भी दिव्यता से चमक रही है।

यह कोई साधारण गुफा नहीं है – **यह तप का केंद्र है, ध्यान का स्थान है, और भगवान शिव की कृपा का साक्षात प्रतीक है।**

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# # # 📍 **स्थान का परिचय:**

यह पवित्र गुफा **जम्मू-कश्मीर के जिला राजौरी** में स्थित है, **तहसील सुंदरबनी और तहसील कलाकोट** के बीच बसे एक शांत और प्राकृतिक स्थान **सोलकी** में स्थित है। यह सुंदरबनी से मात्र **15 किलोमीटर** की दूरी पर है।

पेड़ों से घिरी हुई घाटियों के बीच स्थित यह गुफा प्रकृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम है।

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# # # 🙏 **स्थानीय मान्यताएँ और श्रद्धा:**

यहाँ के ग्रामीण, श्रद्धालु, और साधक मानते हैं कि इस गुफा में बैठकर ध्यान करने से मन को विशेष शांति प्राप्त होती है। **यहाँ की ऊर्जा आज भी वैसी ही शुद्ध और जाग्रत है**, जैसी ऋषियों के युग में थी।

हर वर्ष **महाशिवरात्रि**, **श्रावण मास**, और अन्य पावन अवसरों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहाँ दर्शन के लिए आती है। लेकिन सच कहूँ, तो देश और दुनिया को अभी भी इस दिव्य स्थल के बारे में बहुत कम जानकारी है। और यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इसे उजागर करें, इसे पुनः विश्व के आध्यात्मिक मानचित्र पर स्थान दिलाएँ।

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# # # 🌿 **पर्यटन और संरक्षण की आवश्यकता:**

सोलकी शिव गुफा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व जितना गहरा है, उतनी ही इसकी उपेक्षा भी हुई है।

आज आवश्यकता है कि हम सब मिलकर:

* यहाँ तक आने के लिए **बेहतर सड़कें** बनवाएँ,
* **श्रद्धालुओं के लिए पीने का पानी**, **शौचालय**, **विश्राम स्थल**, और **प्रकाश व्यवस्था** की व्यवस्था करें,
* इस स्थान को **धार्मिक पर्यटन स्थल** के रूप में विकसित करें।

यह न केवल आस्था की सेवा होगी, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए **रोज़गार**, **स्वावलंबन**, और **विकास** का एक नया द्वार भी खुलेगा।

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# # # 📣 **प्रशासन और समाज से अपील:**

मैं यहाँ उपस्थित शासन-प्रशासन, पर्यटन विभाग, धार्मिक संगठनों और मीडिया से विशेष रूप से आग्रह करता हूँ:

* आइए, इस पवित्र स्थल को वह पहचान दिलाएँ, जिसका यह सदियों से अधिकारी है।
* आइए, इस गुफा को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि **सांस्कृतिक धरोहर** के रूप में संरक्षित करें।
* आइए, इस भूमि की पुकार सुनें और इसे **भारत की आध्यात्मिक आत्मा** का अंग बनाएँ।

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# # # 🌍 **जन-सामान्य को आमंत्रण:**

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

आप सभी से मेरा करबद्ध निवेदन है —
एक बार इस पवित्र स्थान पर पधारिए।
यहाँ की हवा में शांति है, मिट्टी में श्रद्धा है, और हर कण में **ऋषि शौनक जी की साधना की ऊर्जा** बसी है।

यह अनुभव केवल दर्शन का नहीं होता —
यह अनुभव आत्मा के जागरण का होता है।
यह अनुभव शिव को **स्वयं अपने भीतर** महसूस करने का होता है।

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# # # 🙏 **समापन:**

अंत में मैं यही कहना चाहता हूँ —
**धरोहरें केवल मंदिर नहीं होतीं,**
**वे हमारी पहचान होती हैं।**

**सोलकी शिव गुफा** केवल एक स्थल नहीं,
**यह हमारी संस्कृति की जीवित गाथा है।**
आइए इसे संजोएँ, प्रचार करें और अगली पीढ़ी तक इस विरासत को intact पहुँचाएँ।

**जय शंकर!
हर हर महादेव!
ऋषि शौनक जी की जय!**

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24/07/2025

अगर आप कुछ खाने पीने की चीज़ों में सुधार करते हो तो अपने शरीर को स्वस्थ बनाने में मदद हो सकती है
आप अपने डॉक्टर खुद बन सकते है,

1. नमक केवल सेन्धा प्रयोग करें।थायराइड, बी.पी., पेट ठीक होगा।

2. कुकर स्टील का ही काम में लें। एल्युमिनियम में मिले lead से होने वाले नुकसानों से बचेंगे

3.तेल कोई भी रिफाइंड न खाकर केवल तिल, सरसों, मूंगफली, नारियल प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं ।

4. सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर, मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करें।

5. देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं।अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता।

6. ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा।

7. ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं। आयरन की कमी किसी को नहीं होगी।

8. भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा। भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देगा।

9. नाश्ते में अंकुरित अन्न शामिल करें। पोषक विटामिन, फाइबर मिलेंगें।

10. सुबह के खाने के साथ देशी गाय के दूध का बना ताजा दही लें, पेट ठीक रहेगा।

11. चीनी कम से कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में हड्डियां ठीक रहेंगी।

12. चीनी की जगह बिना मसले का गुड़ या देशी शक्कर लें।

13. रसोई में घुसते ही नाक में घी या सरसों तेल लगाएं, सर और फेफड़े स्वस्थ रहेंगें।

14. करेले, मैथी, मूली याने कड़वी सब्जियां भी खाएँ, रक्त शुद्ध रहेगा।

15. पानी मटके वाले से ज्यादा ठंडा न पिएं, पाचन व दांत ठीक रहेंगे।

16. प्लास्टिक, एल्युमिनियम रसोई से हटाये, केन्सर कारक हैं।

17. माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग केन्सर कारक है।

18. खाने की ठंडी चीजें कम से कम खाएँ, पेट और दांत को खराब करती हैं।

19. बाहर का खाना बहुत हानिकारक है, खाने से सम्बंधित ग्रुप से जुड़कर सब घर पर ही बनाएं।

20. तली चीजें छोड़ें, वजन, पेट, एसिडिटी ठीक रहेंगी।

21.हमेशा नहा कर ही किचिन मे प्रवेश करे।

22. अदरक, अजवायन का प्रयोग बढ़ाएं, गैस और शरीर के दर्द कम होंगे।

23. रात को आधा चम्मच त्रिफला एक कप पानी में डाल कर रखें, सुबह कपड़े से छान कर इस जल से आंखें धोएं, चश्मा उतर जाएगा। छान कर जो पाउडर बचे उसे फिर एक गिलास पानी में डाल कर रख दें। रात को पी जाएं। पेट साफ होगा, कोई रोग एक साल में नहीं रहेगा।

24. सुबह रसोई में चप्पल न पहनें, शुद्धता भी, एक्यू प्रेशर भी।

25. रात का भिगोया आधा चम्मच कच्चा जीरा सुबह खाली पेट चबा कर वही पानी पिएं, एसिडिटी खतम।

26. एक्यूप्रेशर वाले पिरामिड प्लेटफार्म पर खड़े होकर खाना बनाने की आदत बना लें तो भी सब बीमारी शरीर से निकल जायेगी।

27. चौथाई चम्मच दालचीनी का कुल उपयोग दिन भर में किसी भी रूप में करने पर निरोगता अवश्य होगी।

28. सर्दी में बाहर जाते समय 2 चुटकी अजवायन मुहं में रखकर निकलिए, सर्दी से नुकसान नहीं होगा.

29.रस निकले नीबू के चौथाई टुकड़े में जरा सी हल्दी, नमक, फिटकरी रख कर दांत मलने से दांतों का कोई भी रोग नहीं रहेगा

30. कभी-कभी नमक-हल्दी में 2 बून्द सरसों का तेल डाल कर दांतों को उंगली से साफ करें, दांतों का कोई रोग टिक नहीं सकता।

31. बुखार में 1 लीटर पानी उबाल कर 250 ml कर लें, साधारण ताप पर आ जाने पर रोगी को थोड़ा थोड़ा दें, दवा का काम करेगा।

32. सुबह के खाने के साथ घर का जमाया देशी गाय के ताजा दही जरूर शामिल करें, प्रोबायोटिक का काम करेगा।

अगर पोस्ट अच्छी लगे तो फॉलो जरूर करें🙏

02/07/2025

अगर थोड़ा समय नहीं है तब इस पोस्ट को मत पढ़ना क्योंकि यह कोई मज़ाक नहीं है...🙏
लेकिन मेरी राय है कि जरूर पढ़ें और यदि अच्छा लगे तो दूसरों को भी पढ़ने का अवसर दें!!

!!!!! अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था !!!!!
डॉ. अनन्या सरकार

दो-तीन दिन बुखार रहा, दवा न लेते तो भी ठीक हो जाते, शरीर अपने आप कुछ दिनों में ठीक हो जाता। लेकिन आप डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर साहब ने शुरुआत में ही ढेर सारे टेस्ट लिख दिए। टेस्ट रिपोर्ट में बुखार का कोई खास कारण तो नहीं मिला, लेकिन कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर थोड़े से बढ़े हुए पाए गए, जो सामान्य इंसानों में थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे होना आम बात है।

बुखार तो चला गया, लेकिन अब आप बुखार के मरीज नहीं रहे। डॉक्टर साहब ने बताया — आपका कोलेस्ट्रॉल ज़्यादा है और शुगर थोड़ी अधिक है, यानी आप ‘प्री-डायबेटिक’ हैं। अब आपको कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए दवाएं लेनी होंगी। साथ ही खाने-पीने में बहुत सारी पाबंदियाँ लगा दी गईं। आपने खाने में पाबंदियाँ भले न मानी हों, लेकिन दवाएं लेना नहीं भूले।

ऐसे तीन महीने बीते। फिर टेस्ट कराया गया। कोलेस्ट्रॉल कुछ कम हुआ, लेकिन अब ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ा हुआ पाया गया। उसे कंट्रोल करने के लिए एक और दवा दी गई। अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 3।

इतनी बात सुनने के बाद आपकी चिंता बढ़ने लगी। "अब क्या होगा?" — इसी चिंता में आपकी नींद उड़ने लगी। डॉक्टर ने नींद की दवा भी शुरू कर दी। अब दवाओं की संख्या 4 हो गई।

इतनी सारी दवाएं खाते ही अब आपको पेट में जलन शुरू हो गई। डॉक्टर बोले — खाने से पहले एक गैस की टैबलेट खाली पेट लेना होगा। दवाओं की संख्या बढ़कर 5 हो गई।

ऐसे ही छह महीने बीत गए। एक दिन सीने में दर्द हुआ तो आप भागे अस्पताल की इमरजेंसी में। डॉक्टर ने सब चेकअप करके कहा — "समय पर आ गए, नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था।" फिर कुछ विशेष जाँचों की सलाह दी गई।

कई महंगे टेस्ट के बाद डॉक्टर बोले — "पुरानी दवाएं तो चलती रहेंगी, अब हार्ट की दो दवाएं और जुड़ेंगी। साथ ही आपको एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (हार्मोन विशेषज्ञ) से भी मिलना होगा।" अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 7।

हार्ट स्पेशलिस्ट के कहने पर आप एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के पास गए। उन्होंने शुगर के लिए एक और दवा और थायरॉइड थोड़ा बढ़ा होने पर एक और दवा जोड़ दी।

अब आपकी कुल दवाएं हो गईं 9।

अब आप अपने मन में यह मानने लगे कि आप बहुत बीमार हैं — हार्ट के मरीज, शुगर के मरीज, अनिद्रा के मरीज, गैस के मरीज, थायरॉइड के मरीज, किडनी के मरीज, आदि-आदि।

आपको यह नहीं बताया गया कि आप अपनी इच्छाशक्ति, आत्मबल और जीवनशैली सुधार कर स्वस्थ रह सकते हैं। बल्कि आपको बार-बार यह बताया गया कि आप एक "गंभीर रोगी" हैं, निर्बल हैं, असमर्थ हैं, एक टूटे हुए व्यक्ति हैं!

ऐसे ही और छह महीने बीतने के बाद दवाओं के साइड इफेक्ट से आपको पेशाब की कुछ समस्याएं हुईं। फिर रूटीन चेकअप में पता चला कि आपकी किडनी में भी कुछ समस्या है। डॉक्टर ने फिर कई टेस्ट करवाए।

रिपोर्ट देखकर डॉक्टर बोले — "क्रिएटिनिन थोड़ा बढ़ा हुआ है, लेकिन दवाएं नियमित चलती रहीं तो चिंता की बात नहीं।" और दो दवाएं और जोड़ दी गईं।

अब आपकी कुल दवाओं की संख्या हो गई 11।

अब आप भोजन से ज्यादा दवा खा रहे हैं, और दवाओं के अनेक दुष्प्रभावों से आप धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं!!

जबकि जिस बुखार की वजह से आप सबसे पहले डॉक्टर के पास गए थे, अगर डॉक्टर साहब कहते:

"चिंता की कोई बात नहीं। यह मामूली बुखार है, कोई दवा लेने की ज़रूरत नहीं। कुछ दिन आराम कीजिए, भरपूर पानी पिएं, ताजे फल-सब्जियाँ खाएँ, सुबह टहलने जाइए — बस, इतना ही काफी है। दवा की ज़रूरत नहीं।"

तो फिर डॉक्टर साहब और दवा कंपनियों का पेट कैसे भरता❓

और सबसे बड़ा सवाल: किस आधार पर डॉक्टर मरीजों को कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी, डायबिटीज, हार्ट डिज़ीज और किडनी डिज़ीज़ घोषित कर रहे हैं❓❓❓

ये मानदंड कौन तय करता है❓

आइए, थोड़ा विस्तार से जानें —
★ 1979 में जब ब्लड शुगर 200 mg/dl से ऊपर होता था, तभी व्यक्ति को डायबिटिक माना जाता था। उस समय दुनिया की सिर्फ 3.5% आबादी को टाइप-2 डायबिटिक माना जाता था।

★ 1997 में इंसुलिन बनाने वाली कंपनियों के दबाव में यह स्तर घटाकर 126 mg/dl कर दिया गया। इससे डायबिटिक मरीजों की संख्या 3.5% से बढ़कर 8% हो गई — यानी बिना किसी लक्षण के 4.5% और लोग रोगी बना दिए गए! 1999 में WHO ने भी इस पैमाने को मान लिया।

इंसुलिन कंपनियों ने जबरदस्त मुनाफा कमाया और नई फैक्ट्रियाँ खोलीं।

★ 2003 में ADA (American Diabetes Association) ने फास्टिंग ब्लड शुगर 100 mg/dl को डायबिटीज का मानक घोषित किया। इसके चलते बिना कारण 27% लोग डायबेटिक रोगी घोषित कर दिए गए।

★ अब ADA के अनुसार पोस्ट प्रांडियल (भोजन के बाद) 140 mg/dl को डायबिटीज का संकेत माना जाता है। इससे दुनिया की लगभग 50% आबादी डायबेटिक घोषित हो चुकी है — जबकि इनमें से कई वास्तविक मरीज नहीं हैं।

भारतीय दवा कंपनियाँ इसे और नीचे, 5.5% HbA1c पर लाने की कोशिश कर रही हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मरीज बन जाएँ और दवा बिके।

जबकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि HbA1c 11% तक डायबिटीज नहीं मानी जानी चाहिए।

एक और उदाहरण:
2012 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रसिद्ध दवा कंपनी पर $3 बिलियन का जुर्माना लगाया। आरोप था कि उनकी डायबिटीज की दवा से 2007–2012 के बीच हार्ट अटैक के कारण मरीजों की मृत्यु दर 43% बढ़ गई थी।

कंपनी को यह पहले से पता था, लेकिन उन्होंने मुनाफे के लिए जानबूझकर इसे छुपाया। इसी अवधि में उन्होंने 300 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया।

यही है आज की 'अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था'!!
सोचिए... और सोचना शुरू कीजिए.

#निश्चित रूप से संग्रहित
सभी स्वस्थ रहें, खुश रहे

महात्मा श्री रामदास जी के समय में कुछ महत्वपूर्ण योजनाएं , कार्य, प्रमाणपत्र आदि के दस्तावेज़,ये उस समय के हैं जब मंदिर ...
30/06/2025

महात्मा श्री रामदास जी के समय में कुछ महत्वपूर्ण योजनाएं , कार्य, प्रमाणपत्र आदि के दस्तावेज़,
ये उस समय के हैं जब मंदिर के चारों और मिट्टी हुआ करती थी, फर्श का कार्य शुरू हुआ था,
फर्श के बाद पुराने हॉल को पलस्तर इत्यादि हुआ था,
उसके बाद पुराने हॉल के नीचे 2 छोटे छोटे कमरों को साथ में ऊपर महात्मा जी की रसोई बनी थी,
रसोई के बाद पहले जिस कक्ष में महात्मा जी रहते थे उसकी रिपेयरिंग हुई थी और उसके छत आदि की मरम्मत हुई थी ,

इन कार्यों के बाद सरकारी शौचालय आदि का कार्य, और मंदिर के सामने पुलिया आदि बनी थी ,

पुलिया बनने के बाद महात्मा जी ने कच्ची कुटिया स्वयं अपने हाथों से बनवाई थी,
कुटिया के पीछे टिन शेड बनाया था ।
बाद में जब कार्य प्रगति पकड़ने लगा तो महात्मा जी ने नीचे वाला बड़ा हाल बनवाया ,
हां , उसी दौरान महात्मा जी ने जमीन की लकड़ी से बहुत सा लकड़ी का कार्य भी करवाया था ।
एक पुराना टैंक था उसको तुड़वाकर नया टैंक बनवाया ,
नीचे का हॉल बन जाने के बाद महात्मा जी ने ऊपर का हॉल भी बनवाया ।
इसके बाद सभी भक्तों ने महात्मा जी की कुटिया अलग से बनवाई क्योंकि महात्मा जी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था ।
बाद में महात्मा जी की इह लोक यात्रा पूर्ण हो गई । ये कुछ दस्तावेज़ स्मरणार्थ हैं । इनका वर्तमान में कोई प्रयोजन नहीं हैं।
Ragunath Temple Prat

14/06/2025

यज्ञ से वर्षा होती है 'गीता'में कहा गया है । यज्ञ शुद्ध विधि से होना चाहिए । यज्ञ के अन्न से प्राणशक्ति , किंतु अन्न उन बर्तनों में बनना चाहिए जो केवल यज्ञ के लिए ही प्रयोग होते हों, यज्ञ के बर्तनों की शक्ति पर विश्वास करना चाहिए। यज्ञ के बर्तन शादी विवाह में प्रयोग नहीं करने चाहिए, ना ही किसी tent house वाले बर्तनों में यज्ञ का अन्न बनाना चाहिए ।
हमारे पूर्वज हमेशा यज्ञ के बर्तनों की खरीददारी करके उनकी पूजा करके उनका प्रयोग यज्ञ में करते थे , पीतल के सखले, और भी पीतल का, लोग यज्ञ के लिए दान भी करते थे ।

यज्ञ के बर्तन बर्तन नहीं होते वो अमृत के पात्र होते हैं ।
ॐ Ragunath Temple Prat

06/06/2025

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Sunderbani
Jammu
185152

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