16/08/2025
।। यज्ञोपवीत का महत्व।।
शौचालय (वॉशरूम) जाते समय जनेऊ (यज्ञोपवीत) को कान पर क्यों रखा जाता है?
जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति शौच या मूत्र त्याग करते समय जनेऊ को कान पर चढ़ाते हैं। यह एक शास्त्रीय नियम है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण होते हैं – एक भावनात्मक और दूसरा शारीरिक स्वास्थ्य विज्ञान से जुड़ा हुआ।
🔸 भावनात्मक कारण:
शास्त्रों के अनुसार, मल-मूत्र त्याग करते समय शरीर का निचला भाग विशेष रूप से कमर के नीचे का हिस्सा अपवित्र हो जाता है। चूंकि जनेऊ पवित्रता का प्रतीक है, इसलिए अशुद्ध अवस्था में उसे शरीर से ऊपर, कान पर रख दिया जाता है।
आचार मयूख में कहा गया है:
> "अग्निरापश्च वेदाश्च सोमः सूर्योनिलस्तथा।
सर्वे देवास्तु विप्रस्य कर्णे तिष्ठन्ति दक्षिणे।।"
अर्थात – अग्नि, जल, वेद, चंद्र (सोम), सूर्य, वायु आदि समस्त देवता ब्राह्मण के दाहिने कान में वास करते हैं। इसलिए सिर और कान के आसपास का भाग पवित्र माना जाता है।
🔸 वैज्ञानिक कारण:
मानव शरीर में वीर्यकोष से लेकर मल-मूत्र मार्ग तक जाने वाली “लोहितिका” नामक नाड़ी का मुख्य केंद्र कान के नीचे स्थित होता है। शौच के समय जनेऊ को कान पर चढ़ाने से उस नाड़ी पर दबाव पड़ता है, जिससे:
वीर्यकोष में संकुचन (संकुचित अवस्था) और
मल/मूत्र मार्ग में शिथिलता (ढीलापन) आती है।
इस प्रक्रिया से मल-मूत्र का विसर्जन सरल और सहज रूप से होता है और अनायास वीर्यस्खलन से भी बचाव होता है।
शास्त्र में भी इसका निर्देश है:
> "मूत्रे तु दक्षिणे कर्णे पुरीषे वामकर्णके।
उपवीतं सदाधार्यं मैथुने तूपवीतिवत्।"
अर्थ: मूत्र त्याग के समय जनेऊ को दाहिने कान में, और मल त्याग के समय बाएं कान में रखना चाहिए। मैथुन के समय जनेऊ को वैसे ही धारण किया जाता है।
मनुस्मृति में कहा गया है:
> "उर्ध्वं नाभे मेध्यतरः पुरुषः परिकीर्तितः।
तस्मान् मेध्यतमं त्वस्य मुखमुक्तं स्वयंभुवा।।"
अर्थ: मनुष्य की नाभि के ऊपर का भाग पवित्र और नीचे का भाग अपवित्र होता है। शौच करते समय नाभि के नीचे का हिस्सा अपवित्र होता है, इसलिए उस समय जनेऊ को कान पर रखा जाता है।
🔸 अन्य शास्त्रीय उद्धरण:
"मरुतः सोम इन्द्राग्नी मित्रा वरुणौ तथैव च।
एते सर्वे च विप्रस्य श्रोत्रे तिष्ठन्ति दक्षिणे।।"
अर्थ: वायु, चंद्रमा, इन्द्र, अग्नि, मित्र और वरुण ये सभी देवता ब्राह्मण के दाहिने कान में निवास करते हैं।
कूर्मपुराण में भी लिखा है:
"निधाय दक्षिणे कर्णे ब्रह्मसूत्रमुदङ्मुखः।
अग्निं कुर्यात् शङ्कृन्मूत्रं रात्रौ चेद् दक्षिणान्मुखः।"
अर्थ: दिन में उत्तर की ओर मुख करके और रात में दक्षिण की ओर मुख करके, दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाकर शौच या मूत्र का त्याग करना चाहिए।
🔸 आधुनिक विज्ञान भी सहमत है:
लंदन के "क्वीन एलिजाबेथ चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल" के डॉक्टर एस.आर. सक्सेना के अनुसार:
कान की एक नस सीधे आंत से जुड़ी होती है।
जनेऊ कान पर रखने से यह नस उत्तेजित होती है, जिससे मलद्वार खुलता है और कब्ज जैसी समस्याएं नहीं होतीं।
मूत्राशय की मांसपेशियों पर भी असर होता है, जिससे मूत्र त्याग भी सहज होता है।
इटली के "बाटी विश्वविद्यालय" के न्यूरोसर्जन प्रोफेसर एनारीब पीताजेली ने बताया कि:
कान के पास दबाव डालने से हृदय मज़बूत होता है और रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
🔸 आयुर्वेद और अन्य लाभ:
दाहिने कान से होकर गुजरने वाली एक नस सीधे मूत्र और मल मार्ग से जुड़ी होती है।
मूत्र त्याग करते समय दाहिने कान में जनेऊ रखने से मधुमेह (डायबिटीज) से भी लाभ होता है।
बाएं कान में जनेऊ रखने से पाइल्स (बवासीर) की संभावना कम होती है।
मूत्र त्याग के समय शरीर से थोड़ी मात्रा में शुक्राणु भी निकल सकते हैं, इसलिए जनेऊ को कान पर रख कर उसे बचाया जाता है।
दाहिने कान पर दबाव देने से सूर्य नाड़ी सक्रिय होती है, जिससे पेट की बीमारियाँ और ब्लड प्रेशर में राहत मिलती है।
🔸 निष्कर्ष:
जनेऊ सिर्फ धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह शरीर की ऊर्जा प्रणाली और स्वास्थ्य संतुलन से भी जुड़ा है।
शौच या मूत्र त्याग करते समय इसे कान पर रखने की परंपरा शास्त्र, विज्ञान और अनुभव – तीनों से सिद्ध होती है।
यह न केवल शरीर को शुद्ध रखता है, बल्कि मन को भी अनुशासित और शांत बनाता है।