16/04/2025
रणछोड़दास पगी: सीमाओं के प्रहरी, देशभक्ति की मिसाल
भारतीय इतिहास में अनेक वीरों ने अपने अदम्य साहस और देशभक्ति से देश की रक्षा की है, लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जो भले ही बहुत प्रसिद्ध न हों, पर उनकी कहानियाँ दिल में जोश और गर्व भर देती हैं। ऐसा ही एक नाम है रणछोड़दास पगी — एक ऐसा जांबाज़, जिसने बिना किसी सैन्य पद के भारतीय सेना के लिए वो कर दिखाया, जो बड़े-बड़े जनरल भी नहीं कर सके।
कौन थे रणछोड़दास पगी?
रणछोड़दास पगी गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित वाव तालुका के पंथवाड़ा गाँव के रहने वाले थे। "पगी" शब्द का अर्थ होता है "पदचिन्हों को पहचानने वाला"। यह कला रेगिस्तानी और सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले कुछ समुदायों में पीढ़ियों से चलती आई है। पगी यानी पैरों के निशान देखकर यह जान लेना कि कौन गया है, कितने लोग थे, वे किस दिशा में गए हैं — यह एक अद्भुत और सूक्ष्म ज्ञान है, और रणछोड़दास जी इस विद्या के अद्वितीय ज्ञाता थे।
भारतीय सेना के गुप्त सहयोगी
रणछोड़दास पगी का योगदान 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में बहुत महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने भारतीय सेना को पाकिस्तान की सेना की गतिविधियों की सटीक जानकारी दी। वे रेगिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों के पैरों के निशान देखकर यह अंदाजा लगा लेते थे कि सैनिक कितने हैं, कितनी दूर हैं और कितनी गति से आगे बढ़ रहे हैं।
उनकी यह कला इतनी भरोसेमंद थी कि सेना ने उन्हें "मार्गदर्शक" के रूप में शामिल कर लिया। उन्होंने भारतीय सैनिकों को बार-बार पाकिस्तानी घुसपैठ से बचाया, दुश्मन के मूवमेंट का पता लगाया और कई जानें बचाईं।
सम्मान और पदवी
रणछोड़दास पगी को उनके अद्वितीय योगदान के लिए सेना द्वारा सम्मानित 'होनरेरी कैप्टन' की उपाधि दी गई। वे भारतीय सेना की वर्दी पहनते थे और उनका दर्जा एक अधिकारी के समान था। उन्हें पद्मश्री सम्मान दिए जाने की भी चर्चा लंबे समय तक होती रही, हालांकि उन्हें वह औपचारिक रूप से नहीं मिला, पर देश की जनता के दिलों में वे हमेशा एक नायक रहे।
सादा जीवन, ऊँचे आदर्श
रणछोड़दास पगी का जीवन सादगी से भरा हुआ था। वे कभी भी अपने काम का घमंड नहीं करते थे। युद्ध के बाद भी वे अपने गाँव लौटकर आम जीवन जीते रहे। उनकी देशभक्ति, निष्ठा और विनम्रता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है।
विरासत और स्मृति
उनकी याद में गुजरात सरकार और भारतीय सेना ने उनके नाम पर कई स्मारक बनाए हैं। 2020 में बनासकांठा में "रणछोड़दास पगी म्यूज़ियम" की स्थापना की गई, जिसमें उनके जीवन, योगदान और देश सेवा की गाथाएँ संजोई गई हैं।
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निष्कर्ष
रणछोड़दास पगी उन असली देशभक्तों में से एक थे, जो नायक तो थे, पर पर्दे के पीछे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि देशभक्ति वर्दी से नहीं, कर्म और समर्पण से होती है। उनकी सूझबूझ, साहस और सेवा को भारत सदैव याद रखेगा।
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