27/11/2024
गाँव शब्द सुनते ही आपकें दिमाग़ में क्या आता है ??
सुकून,अपनापन,प्रेमभाव,द्वेष और छलावा से परे एक ऐसा परिवेश जो शहर के मकरजाल से दूर आपको एक अलग ही आंतरिक ख़ुशी दे।
लेकिन गाँव अब वो नहीं रहा गाँव अब जलन ईर्ष्या .. एक दूसरे को नीचा दिखाने की नई-नई तकरीब के साथ-साथ पैसे की अंधी होड़ का अड्डा बन गया है । गाँव तो कभी से ऐसा नहीं था…..
गांव जाता हूँ ..पर अब गांव का विमर्श बदल चुका है।
हर कोई यही बताता है के कौन कितना कमाता है और कौन गाँव का सबसे बड़का है।
किसके कितने मकान किस शहर में हैं।
पैसा अब गाँव में भी बड़का और छोटका तय करने लगा है।
पहले का गाँव छल-कपट,दिखावे,जलन,ईर्ष्या से कोसों दूर सुकून और शांति देता था,लोग इसको तरक़्क़ी कह रहे है हाँ ठीक है लालटेन से बल्ब पे आ गये,कच्चा सड़क पक्का हो गया,चापाकल अब नल में बदल गया कुआँ का रूप मोटर और summer सेबल ने ले लिया पर मैटेरियलिस्टिक बदलाव के साथ साथ लोगों का धर्म करम और ईमान भी बदल गया।
पहले का खेल भी अद्भुत था चुड़िया-नुकिया,बैट-बॉल,फटेर,चोर-पुलिस,डेंगा-पानी,ढीलो-ढीलो,कुस्ती,कबड्डी,बम-पिट्टो यूँ कहें तो वो बचपन-बचपन लगता था,आज तो बचपन भी साज़िशे रच रहा है।गाँव के बचपन पर mobile का गहरा पकड़ मज़बूत हो चुका है अब तो बचपन भी एक ढकोसला सा है।
पहले का गाँव यार सच मुच में ऐसा नहीं था...👦