19/06/2025
भारतीय न्यायपालिका और हिन्दी भाषा
भारतीय लोकतंत्र की तीन प्रमुख संस्थाओं — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — में न्यायपालिका को विशेष महत्व प्राप्त है। यह संविधान की व्याख्या करने वाली सर्वोच्च संस्था है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की संरक्षक भी। परंतु जब भाषा की बात आती है, तो भारतीय न्यायपालिका में हिन्दी भाषा की स्थिति एक जटिल और विचारणीय विषय बन जाती है।
1. भारतीय न्यायपालिका में भाषा का महत्व
भारत एक बहुभाषी देश है, और संविधान ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार, संघ सरकार का कामकाज हिन्दी में होना चाहिए। लेकिन न्यायपालिका में, विशेषकर उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में, अभी भी अंग्रेज़ी का वर्चस्व बना हुआ है।
2. न्यायपालिका में हिन्दी की वर्तमान स्थिति
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय: संविधान के अनुच्छेद 348(1) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की कार्यवाही और निर्णय अंग्रेज़ी में होंगे। हालांकि, राज्य सरकारें भारत सरकार की अनुमति से उच्च न्यायालयों में हिन्दी अथवा राज्य की अन्य भाषाओं का प्रयोग कर सकती हैं।
निचली अदालतें: यहाँ स्थानीय भाषाओं और हिन्दी का अधिक उपयोग होता है। आम नागरिकों की पहुंच इन अदालतों तक अधिक होती है, इसलिए भाषा का लोकप्रचलित स्वरूप आवश्यक होता है।
3. हिन्दी के प्रयोग की चुनौतियाँ
कानूनी शब्दावली की जटिलता: हिन्दी में तकनीकी और विधिक शब्दों का अभाव या असामान्यता।
न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की शिक्षा: अधिकांश न्यायिक अधिकारी और वकील अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षित होते हैं।
अनुवाद की समस्या: अंग्रेज़ी से हिन्दी में सटीक अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण होता है, विशेषकर जब कानून की व्याख्या की बात आती है।
4. हिन्दी को प्रोत्साहन देने के प्रयास
राजभाषा विभाग और विधि मंत्रालय समय-समय पर न्यायिक शब्दावली का हिन्दीकरण कराता है।
अनेक राज्यों में उच्च न्यायालयों में हिन्दी में याचिका दाखिल करने की अनुमति दी गई है, जैसे: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार आदि।
अनुवादकों और हिन्दी में विधिक शिक्षा की उपलब्धता बढ़ाई जा रही है।
5. आगे की दिशा
हिन्दी को न्यायपालिका में प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है।
कानून की पढ़ाई हिन्दी में भी सुलभ होनी चाहिए।
न्यायिक दस्तावेज़ों, निर्णयों और अधिनियमों के प्रमाणिक हिन्दी अनुवाद सुलभ कराना होगा।
डिजिटल तकनीकों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से अनुवाद और भाषा-सम्बंधित बाधाएँ कम की जा सकती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय न्यायपालिका में हिन्दी का प्रयोग संविधान के अनुरूप बढ़ाया जा सकता है, परंतु यह केवल भाषाई निर्णय नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक, तकनीकी और शैक्षिक चुनौती भी है। यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएँ, तो हिन्दी को न्यायिक व्यवस्था का अभिन्न अंग बनाना न केवल संभव है, बल्कि आवश्यक भी है — ताकि आम जन तक न्याय सरल भाषा में पहुँच सके।
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