29/12/2024
90 के दशक के बच्चों का साइकिल सीखने का सफर: यादों की सवारी
90 के दशक में साइकिल चलाना सीखना हर बच्चे के लिए एक खास अनुभव हुआ करता था। यह केवल एक कला सीखने का सफर नहीं था, बल्कि आत्मविश्वास, संतुलन, और दोस्तों के साथ मस्ती का हिस्सा था। साइकिल सीखने की प्रक्रिया अक्सर चरणबद्ध होती थी, जो इस प्रकार है:
चरण 1: तीन पहियों वाली साइकिल
सबसे पहला कदम होता था तीन पहियों वाली साइकिल से शुरुआत करना। बच्चे इसे अपने आंगन या घर के बाहर चलाते थे। यह संतुलन और पैडल मारने का पहला सबक होता था।
चरण 2: दो पहियों वाली साइकिल और सहायक पहिए
जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता, तो उसे दो पहियों वाली साइकिल दी जाती जिसमें साइड व्हील्स (सहायक पहिए) लगे होते थे। यह आत्मविश्वास बनाने के लिए जरूरी था और बच्चे को यह सिखाता था कि साइकिल के हैंडल और पैडल को कैसे नियंत्रित किया जाए।
चरण 3: सहायक पहियों को हटाना
सहायक पहियों को हटाने का दिन बच्चों और माता-पिता दोनों के लिए बड़ा दिन होता था। आमतौर पर माता-पिता या बड़े भाई-बहन साइकिल के पीछे पकड़कर बच्चे को चलाना सिखाते थे। बच्चे के गिरने और रोने का डर भी इसी चरण में ज्यादा होता था।
चरण 4: संतुलन बनाना
यह सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण चरण था। बच्चों को बार-बार गिरने और उठने के बाद संतुलन बनाना आता था। गिरने पर घुटनों में चोट लगती थी, लेकिन सीखने का जुनून हर दर्द से बड़ा होता था।
चरण 5: पहली बार बिना मदद के चलाना
इस पल की खुशी शब्दों में बयान करना मुश्किल है। जैसे ही बच्चा पहली बार बिना किसी मदद के साइकिल चलाना शुरू करता, उसे अपनी आजादी और आत्मनिर्भरता का एहसास होता।
चरण 6: दोस्तों के साथ रेस लगाना
साइकिल चलाना सीखने के बाद, अगला कदम दोस्तों के साथ रेस लगाना और गली-मोहल्लों में घूमना होता था। यह समय दोस्ती को मजबूत करने और बचपन की यादें बनाने का सबसे खूबसूरत हिस्सा था।
साइकिल सीखना: एक जीवन सबक
साइकिल सीखना सिर्फ एक खेल नहीं था, यह धैर्य, आत्मविश्वास, और कड़ी मेहनत से मिलने वाली सफलता का पहला सबक भी था। 90 के दशक की ये यादें आज भी दिल को सुकून देती हैं, जब सड़कों पर बच्चों की खिलखिलाहट और घंटी की आवाजें गूंजा करती थीं।
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