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30/05/2025
माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहासजोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता च...
30/05/2025

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

मसानी देवी को भगत ललिता मईया, शीतला मईया और मसानी माता के नाम से पुकार कर जयकारे लगाते हैं। गुड़गाँव के शीतला माता मन्दिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य के वीरगति प्राप्त होने पर उनकी पत्नी कृपि (शीतला माता) ने इसी स्थान पर 'सती प्रथा' द्वारा आत्मदाह किया था। उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुँचेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।

कहा जाता है कि गुड़गाँव में दो भाइयों पदारथ व सिंघा प्रारंभ से ही सदचरित्र व शील स्वभाव के थे। उस जमाने में दोनों भाइयों के पास हजा़ारों एकड़ जमीन थी। सिंघा की भजन वृत्ति और निठल्लेपन के कारण परिवार की औरतों में टकराव हुआ तथा जमीनों कें बंटवारे हो गए। सिंघा को 8 बिस्वा भूमि सौंप दी गयी। इस धरती पर बाद में अर्जुन नगर, भीम नगर, केम्प कालोनी, अर्बन स्टेट, शिवपुरी, शिवाजी नगर आदि आबाद हो गए। यह भूमि खाण्डसा तक फैली है, इसी भूमि पर गुरू द्रोणाचार्य का तालाब है। कहा जाता है कि गुरु द्रोणार्चाय ने यहां कौरवों व पाडवों को धनुर्विद्या व गजविद्या का प्रशिक्षण दिया था।

सिंघा की भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन मां शीतला देवी ने स्वप्न में उसे दर्शन दिए और वर दिया कि जिसे भी तू स्पर्श करेगा वह स्वतः ही कष्ट मुक्त हो जाएगा। सिंघा भक्त अपने महल से निकल कर उस तालाब के पास पहुंचा और तपस्या में लीन हो गया। उसने एक कच्ची मढ़ी बनाकर देवी पूजन प्रारम्भ किया। किवदन्ती है कि एक दिन तालाब की मिट्टी उठाते समय सिंघा को वह मुर्ति मिल गयी जिसे उसने मढ़ी में स्थापित कर दिया। यही बाद में माता शीतला देवी का मंदिर कहलाया।
माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-2

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

उल्लेखनीय है कि मुगल काल में हिन्दू मंदिरों व मूर्तियों को कुछ कट्टरपंथी बादशाह तालाबों में फिंकवा दिया करते थे। इसी भय से सूर्यास्त होने पर पुजारी मूर्ति को उठाकर अपने घर ले जाते रहे तथा सूर्योदय से पूर्व मूर्ति को स्नान इत्यादि कराके मंदिर में ले आया करते थे। कहा जाता है कि एक मुगल बादशाह ने कृपी माता की इस मूर्ति को तालाब में फिकवा दिया था। मूर्ति बाद में मिट्टी में दब गयी। समय ने करवट ली तथा सिंघा भक्त ने इस मूर्ति को बाहर निकलवाया और मढ़ी में रख दिया।

मसानी देवी को भगत अजन्मी या होनी व योगमाया का अवतार के नाम से पुकारते हैं पर मसानी देवी चौगानन माता या चौगान की मसानी या चौगान वासिनी शक्ति कैसै बनी ये कोई नही बताता। चौगान या चौक की शक्ति का अाशीवाद भगवान कृष्ण ने माता शीतला को दिया था अब भगतो ने मसानी देवी या चौगानन माता या चौगान की मसानी या चौगान वासिनी शक्ति कैसै बना दिया ये भी कोई भगत नही बताता।

एक प्राचीन कथा के अनुसार भगवान कृष्ण पांडवो और कोरवो दोनो पक्ष मे पूज्यनीय रहै है कृष्ण को 16 कला अवतार माना जाता है जब भी भगवान कृष्ण गुड़गाँव अाते तब माता शीतला उनका अतिथि सत्कार करती अौर पूज्य के रूप मे मान देती उनके अानै वाली राह को एक साधिका की तरह निहारती गुड़गाँव के किस राह से वे अायेगै पर उसका माता शीतला को पता ना चल पाने पर वो अपने पूज्य भगवान कृष्ण के पृथम दशँन ना कर पाती इस मंशा के हल स्वरूप भगवान कृष्ण ने माता शीतला को चौक की शक्ति का अाशीवाद दिया जैसै-जैसै भगवान कृष्ण गुड़गाँव के एक-एक चौक पार करते माता शीतला जान जाती कि वे किस राह से अायेगै।

हिन्दू समाज मे पुजा सेवा के नाम पर भेदभाव होता था पुजा सेवा उस समय कुछ वगँ तक सीमित रह गई माता शीतला मन्दिर मे कुछ वगौ का ही पृवेश हो पाता था मसानी देवी को मदानण देवी को शुरूवात मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पूजा जाता था।

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-3

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

माता मदानण को सभी मसानी देवियों की रानी माना जाता है जिसे यक्षिणी माता भी कहते है इनका एक जैसा रूप नही होता मान्यता के अनुसार ये भी कोई भगत नही बताता इनका मैन रूप है क्या शुरूवात मे मसानी सात देवियाँ या सात बहनो के रूप मे पूजी जाती थी

योगमाया के अवतार मे मसानी को चौगानन माता या चौगान की मसानी या चौगान वासिनी शक्ति कैसै बना दिया ये माता शीतला मन्दिर से जुडी एक प्राचीन कथा है इस के दो कारण है जब मां के भक्त सिंघा को लोग पूजने लगे इसे संयोग कहा जाए अथवा मां भगवती का आशीर्वाद कि निठल्ले सिंघा की कीर्ति जगत मे फैलने लगी

तब मां शीतला ने सिंघा को सक्षात उसे दर्शन दिए और वर मागने को कहा तब सिंघा ने मां शीतला ने अपने नाम अमर होने का वर मांगा पर मां शीतला जानती थी नाम अमर किस मानव का होता है जो जगत मे हो ही नही उसका......तब मां शीतला ने सिंघा से एक बार अौर सोचने को कहा पर सिंघा जिद पर अडहा ही रहा जगत कीर्ति के लिए.......

शीतला देवी ने मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्ति सात देवियाँ या सात बहनो (ये सात बहिने थी-आवड, गुलो, हुली, रेप्यली, आछो, चंचिक और लध्वी। ) को मसानी मां के रूप में बुलाया अौर सिंघा के वरदान को पूरा मन चाहा पु्रा किया मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियाँ उस समय तामसिक पूजा विधान मे पूजी जाती थी अधिकतर साधक उन्है मदिरा बकरे कि बलि लगाते थे ये शक्तियाँ सभी सात द्वीपों में रात्रि में रास रचाती है यानि माया दिखाती है साधको के मन भावना के हिसाब से भोग लेती है देवी की माया का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से ही सामने अाता है मतलब साधक खुशी से जो दे सके

शीतला देवी के कथन अनुसार सिंघा के घर मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियो का घर की अोर रूख हुअा इस कारण अाज सिंघा का नाम अमर है बाकि परिजनो को मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियो कि बलि होना पडा... सिंघा के परिजनो मे किसी के ना बचने पर मां शीतला के थान का सारा पैसा सरकारी फंड मे जाता है ......

जिसके परिवार के लोगो ने मसानी थान की स्थापना करवाई वे अाज भी मसानी थान की सेवा मे है दादा समय से.........तब से अाज भी शीतला देवी के उधार को मसानी मां लेने अाती है

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-4

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

चौगान पर वास मां शीतला ने मसानी मां को अपने नाम के जोडै पर दिया क्यो कि शीतला पूरी सात्विक थी मसानी मां पूरी तामसिक थी इस लिए जिसकी जो स्थापना की गई, उसमें सात्विक और तामसिक दोनों ही पूजा विधान रखे गये। मठ मे सात्विक चौक मे तामसिक......

सिंघा के परिजनो को बलि लेने पर मसानी मां गुस्सै मे चौक चौक माया की हा हा का्र मचाने लगी वो देवी किसी भी प्रकार शांत न हुयी तब पीरो फकीरो ने अान दे देकर देवी को शांत किया अौर तब मसानी मां चौक पर मांसाहार करने वालो से मन्दिर की स्थापना करवाई अपना खुला परचा व रूप दिखा कर जिसके परिवार के लोग अाज भी मसानी थान की सेवा मे है

मुगल काल में हिन्दू मंदिरों से मूर्तियों को कुछ कट्टरपंथी बादशाह तालाबों में फिंकवा दिया करते थे। इसी कारण भोग मे नन्ही सुअर की बची की माँग करी देवी ने कहा मैने एक काफ़िर को बचाने के लिए अवतार लिया है ताकि हिन्दू मंदिरों को अाँच न अायै इसलिए मेरा आहार भी काफिरों वाला ही होगा ! मै इस्लाम के खिलाफ कार्य करूंगी ! मुझे सूअर और शराब का भोग लगेगा !

उस दिन से आज तक देवी को सूअर और शराब का भोग लगाया जाता है ! पहले मसानी थान मे सूअर और शराब का भोग लगने मात्र से किसी मुगल काल के कट्टरपंथी बादशाह ने पाँव रखने की हिम्मत नही की

अब भेट बलि की मान्यता करने वाले इस वगँ ने एक नयी लाइन की शुरूवात मिली - भगताई ये सात्विक और तामसिक दैवी-देवताओं का यह अनुठा गठबन्धन था।

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-5

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

प्रारम्भ मे अनेकों साधक इसी नियम को मानते हुऐ पुजन करते आ रहे है। किन्तु इन साधकों में भी दो मत बन गये- एक सात्विक दुसरा तामसिक।

सात्विक साधक साधना पूर्ण होने पर खीर-हलवे मीठै पकवान आदि का भोग लगाते है। किन्तु तामसिक साधक साधना पूर्ण होने पर मदिरा और बकरे आदि कि बलि लगाते है। सिद्धियाँ दोनों ही साधकों को प्राप्त होती है और दोनों ही साधक अपनी इच्छा अनुसार अपनी सिद्धियों का उपयोग करते है।

चौक मे मसानी थान की सेवा मे पाँच-वीरों की साधना को प्रधानता दी गई इन वीरों में जहाँ जाहर वीर और हनुमन्त वीर सात्विक है, वहीं नारसिहं, भैरव वीर और अंघोरी वीर तामसिक है। जैसै माँ शीतला का मसानी देवी उधार का हिशाब लेने वाली है वैसै बाबा सवलसिंह बाबरी देवी मसानी के दूत है !

किन्तु पाँच वीरों की साधना करने वाला साधक,अपनी इच्छा अनुसार अपनी सिद्धि का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। यहाँ पर साधक या आम व्यक्ति केवल अर्जी लगा कर (प्रार्थना करके) छोड़ देता है। उस अर्जी का फैसला उन पाँच वीरों के हाथ में होता है। ये पाँच वीर साधक की अर्जी को सुनकर, उसके भाग्य, कर्म, श्रद्धा और भक्ति को देख कर ही फैसला करते है।

हिन्दुओं की इस नई व्यवस्था को देख कर ही, मुस्लिम सम्प्रदाय में भी पाँच पीरों की स्थापना हुई। इन पाँच पीरों को कुछ साधक पाँच-बली भी कहते है। अस्त बली, शेरजंग, मोहम्मद वीर, मीरा साहब और कमाल-खाँ-सैयद जैसी व्यवस्था पाँच पीरों-वीरों की साधना में थी।

आज के समय में इस परम्परा का रूप अनेकों ही जगह देखा जा सकता है। पाँच हिन्दू वीर और पाँचों मुस्लमानी पीर इकठ्ठे पूजे जाने लगे। अधिकतर हिन्दू पाँच वीरों के साथ-साथ पाँच पीरों को भी मानने लगे। वहीं पाँचों पीर सुख और समृद्धि प्रदान करते थे। इसी प्रकार सिख धर्म में भी पंच प्यारे हैं।

आज के समय सात्विक कम तामसिक आवेश धीरे-धीरे बढने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ है धीरे-धीरे मूल साधनाऐं और सात्विक साधनाऐं समाप्त होने लगी और सभी जगह तामसिकता ने स्थान ग्रहण कर लिया। नौ दुर्गाओं का स्थान 64 योगनियों ने ले लिया और साथ-ही-साथ डाकनी, शाकनी की पूजा, नवदुर्गा के सात्विक और तामसिक साधकों ने प्रारम्भ कर दी।

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-6

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

मसानी देवी अजन्मी या होनी व भगवान कृष्ण की योगमाया का अवतार होके भी यह मां शीतला के जोडै मे पुजती अा रही है वैसै योगमाया को भगवन श्रीकृष्ण कि बहन कहा जाता है | जो वरदान भगवान कृष्ण ने माता शीतला को चौक की शक्ति अौर ज्ञान का दिया था उसका अाशीश मसानी मां को मां शीतला ने अपने नाम के जोडै पर दिया

अामतौर पर चौक पर पुजने वाले सब देव -देवी यक्ष व यक्षिणी की तरह अपना रूप शक्ति दिखाते है मान्यता के अनुसार ये कोई भगत नही बता पाता कि इनका मैन रूप है क्या बस पुजने या पुकारने मात्र से ये साधको के साथ हो जाते है देवी का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से मे समक्ष अाता है परिणामस्वरूप ये शक्ति मन भावना के हिसाब से परचा देती है योगमाया की माया का मूल स्वरुप साधक की समझ से परे भी माना जाता है

शुरूवात मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियाँ सात देवियाँ के रूप मे पूजी जाती थी जैसै मसानी, धुतनी, मदानन, जेवरवाली,खादरवाली या जिस देवी का भोग घर के बाहर दिया जाता हो जब से मसानी मां को मां शीतला ने अपने नाम के जोडै पर दिया चौक पर थान दिया तब से सब देवियाँ के थान व चढावा चौक पर जाने लगा पर अाज भी मैदान, कल्लर, घर के बाहर मे पुजने वाली काफी शक्तियाँ है जो अपनी मूल जगह नही छोड पाई

माँ मसानी, माता धुतनी, मात मदानन, माई जेवरवाली व शीतला भगवती की साधना भक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करने वाली है। इसी योगमाया के प्रभाव से समस्त जगत आवृत्त है। जगत में जो भी कुछ दिख रहा है, वह सब भगवान कृष्ण की योगमाया की ही माया है।

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-7

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

हिन्दुओं की धमँ व्यवस्था (हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने के लिए)बदलने के लिए मुस्लिम सम्प्रदाय मुगल काल से हिन्दू मंदिरों से मूर्तियों को कुछ कट्टरपंथी बादशाह तालाबों में फिंकवा दिया करते थे। इसी कारण माता चौगानन मसानी ने भोग मे नन्ही सुअर की बची की माँग करी जिस कारण अाज तक कोई मुगल बादशाह इनके मन्दिर मे दाखिल नही हो पाया ना हो पायेगा......दाखिल......मन्दिर मे......

सिंघा के परिजनो को बलि लेने पर मसानी मां गुस्सै मे चौक चौक माया की हा हा का्र मचाने लगी (चौक से अाने-जाने लोगो को ऊपरी हवा का असर होने लगा ) वो देवी एक समय मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे खुली भेट लेती थी अब भगतो के उतारा करके भी रोग हटता नही लोगो का.... पीर,फकीर,वीर सबका चढावा उतारा करके भी रोग हटता नही ये मसानी की माया की हा हा का्र....है........

जो वरदान भगवान कृष्ण ने माता शीतला को चौक की शक्ति अौर ज्ञान का दिया था उसका अाशीश मसानी मां को मां शीतला ने अपने नाम के जोडै पर दिया था चौक पर थान भेट-बलि के लिए मन्दिर की स्थापना करवानी थी......तब मसानी मां चौक पर अपने मन्दिर की स्थापना करवाई अपना खुला परचा व रूप दिखा कर जिस परिवार के लोगो ने चौक पर मन्दिर की स्थापना की वो अाज भी मसानी मां की सेवा मे है जिसके परिवार के लोग अाज भी मसानी थान की सेवा करते एक ही खानदान के लोग ये सेवा निभा रहे है..........

अाज के समय मे मसानी मन्दिर साफ भी रहता है जब भगतो ने मसानी मां को मन्दिर थान के अासन पर बिठाया तब मसानी मां की मैन मुर्ति के अागे भेट-बलि दी जाती थी परिसर की दिवारे सुअर की बची के खुन की छाप लाल रंग मे रंगी रहती थी चारो अोर फशँ पर खुन की छाप मिलती थी लोग अपनी साख से भेट करते थे......

अगर अाप सबको पुराने मन्दिर की छाप बैठकर या मसानी मां की माया को अनुभव लेना है तो कृपा एक बार अाज के मसानी मां के थान की बगल वाले भेट-बलि के कमरे मे बैठने का मन बनाअो अाप समझ जाअोगै इनका मैन रूप है क्या बस पुजने या पुकारने मात्र से ये साधको के साथ क्यो हो जाती है मसानी मां की माया का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से कैसै सामने अाता है कुछ समय मे ये शक्ति मन भावना के हिसाब से परचा दिखा देती है मसानी मां की माया का मूल स्वरुप साधको की मन भावना के हिसाब से भी माना जाता है

माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास-8

जोर से बोलो......माता मसानी, माता धुतनी, माता मदानन, माता जेवरवाली,माता खादरवाली माता चौगानन, माता शीतला की जय-जयकार

माता मदानण को सभी मसानी देवियों की रानी माना जाता है मसानी जिसे चौगान वासिनी शक्ति भी कहते है इनका एक जैसा रूप नही होता मान्यता के अनुसार ये भी कोई भगत नही बताता इनका मैन रूप है क्या शुरूवात मे मसानी सात देवियाँ या सात बहनो के रूप मे पूजी जाती थी ये सात बहिने थी-आवड, गुलो, हुली, रेप्यली, आछो, चंचिक और लध्वी।

मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियाँ उस समय तामसिक पूजा विधान मे पूजी जाती थी अधिकतर साधक उन्है मदिरा बकरे कि बलि लगाते थे ये शक्तियाँ सभी सात द्वीपों में रात्रि में रास रचाती है यानि माया दिखाती है साधको के मन भावना के हिसाब से भोग लेती है

देवी की माया का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से ही सामने अाती है मतलब साधक खुशी से जो दे सके बलि व भोग अब ये शक्तियाँ कहाँ अौर कब रास रचाती है ये कहा नही जा सकता.....अब भी कुछ घर के बाहर मे पुजने वाली देवी शक्तियाँ है जो अपनी मूल जगह नही छोड पाई

यदि आप सभी कुछ अागे का जानते है तो जरूर बतायै चुपी तोडो भलाई के दो शब्द बोलो बात ज्ञान की हो रही है !! जय हो जगत मे पूजने वाले समस्त माँ, बाबा, गुरू महाराज की जय..

🙏
16/05/2025

🙏

भारतीय समयानुसार, 29 मार्च यानी कल लगने वाले सूर्य ग्रहण की शुरुआत दोपहर 2 बजकर 21 मिनट पर होगी और इसका समापन शाम 6 बजकर...
28/03/2025

भारतीय समयानुसार, 29 मार्च यानी कल लगने वाले सूर्य ग्रहण की शुरुआत दोपहर 2 बजकर 21 मिनट पर होगी और इसका समापन शाम 6 बजकर 14 मिनट पर होगा. इस ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 53 मिनट की रहने वाली है. चूंकि, यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होगा, इसलिए यहां इसका सूतक काल प्रभावी नहीं रहेगा

एक बार स्पेस से जुड़ी चीजों में दिलचस्पी रखने वालों के लिए खास मौका आने वाला है। हाल ही में होली के मौके पर 14 मार्च को साल 2025 का पहला पूर्ण चंद्रग्रहण लगा था। और अब इसी महीने के आखिर में साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण लग रहा है। जी हां, पृथ्वी और सूर्य के बीच जब चंद्रमा गुजरेगा तो दिन में धरती पर अंधेरा छा जाएगा।

आपको बताते हैं इस आंशिक सूर्य ग्रहण के समय व तारीख के बारे में सबकुछ…

क्या होता है आंशिक सूर्य ग्रहण

बता दें कि आंशिक सूर्य ग्रहण के दौरान जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है और धरती के कुछ हिस्सों पर उसकी छाया पड़ती है जिसके चलते सूर्य की रोशनी नहीं आ पाती। इस स्थिति में चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढक पाता और एक सूर्य के कुछ हिस्से की रोशनी पृथ्वी पर आती है। इस खगोलीय स्थिति को वैज्ञानिकों ने आंशिक सूर्य ग्रहण का नाम दिया है। आसमान में दिखने वाले इस दुर्लभ नजारे का दुनियाभर के खगोलविदों को बेसब्री से इंतजार है और उनके लिए इस आकाशीय घटना को समझने का यह शानदार मौका होगा।

कब होता है सूर्य ग्रहण ?

गौर करने वाली बात है कि हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, सूर्य ग्रहण की घटना केवल अमावस्या के दिन ही होती है। इस दौरान सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं। साल 2025 में दो सूर्य ग्रहण लग रहे हैं। साल का पहला सूर्य ग्रहण नजदीक है और 29 मार्च को लगेगा वहीं साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को लगेगा।

सूर्य ग्रहण किस समय लग रहा है ?

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के अनुसार, आंशिक सूर्य ग्रहण अमेरिकी समय के मुताबिक सुबह 4.50 बजे शुरु होगी और 6 बजकर 47 मिनट पर यह पीक यानी अपने चरम पर होगा। और सुबह 8.43 पर ग्रहण समाप्त हो जाएगा।

नासा के मुताबिक, कुछ जगहों पर ग्रहण के दौरान सूर्य का 93 प्रतिशत तक हिस्सा ढकने की उम्मीद है यानी इन जगहों पर दिन में अंधेरा छा जाएगा।

क्या भारत में दिखाई देगा सूर्य ग्रहण ?

साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण एशिया, अफ्रीका, यूरोप अटलांटिक सूर्यग्रहण को एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अटलांटिक महासागर, आर्कटिक, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका में नजर आएगा। बता दें कि भारत में दिखाई ना देने के चलते, हिंदू पंचांग के मुताबिक, माने जाने वाला सूतक काल भी देश में मान्य नहीं होगा।

भले ही ग्रहण भारत में दिखाई ना दे, लेकिन हर बार की तरह भारतीय इसे ऑनलाइन लाइव देख सकेंगे। NASA के यूट्यूब चैनल पर सूर्यग्रहण की लाइव स्ट्रीमिंग होगी। इसके अलावा कई अन्य लैबोरेटरीज भी इस ग्रहण को लाइव स्ट्रीम करेंगी।

Holika Dahan 2025 Muhurat: होलिका दहन पर रात 11 बजकर 26 मिनट तक भद्रा का साया, अग्नि दहन के लिए केवल 1 घंटे का समय, जाने...
12/03/2025

Holika Dahan 2025 Muhurat: होलिका दहन पर रात 11 बजकर 26 मिनट तक भद्रा का साया, अग्नि दहन के लिए केवल 1 घंटे का समय, जानें शुभ मुहूर्त

Holika Dahan 2025 Muhurat Bhadra Kaal:

फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के लिए भद्रा काल का देखना जरूरी माना गया है क्योंकि इस काल में दहन नहीं किया जाता. ऐसा करना अशुभ माना जाता है और इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. आइए जानते हैं होलिक दहन के लिए सही मुहूर्त क्या है...

होलिका दहन पर रात 11 बजकर 26 मिनट तक भद्रा का साया

13 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा.

होलिका दहन मुहूर्त रात 11:27 से 12:30 तक है.
भद्रा काल 10:35 से 11:26 तक रहेगा.

13 मार्च दिन गुरुवार को होलिका दहन किया जाएगा और अगले दिन यानी शुक्रवार को रंगों वाली होली खेली जाएगी. हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जा है और इस छोटी होली भी कहा जाता है. होलिका दहन में तिथि, भद्रा और शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है. लेकिन होलिका दहन पर इस बार सुबह 10 बजकर 35 मिनट से रात 11 बजकर 26 मिनट तक भद्रा का साया रहने वाला है. शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन कभी भी भद्रा काल में नहीं करना चाहिए. इसलिए लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि आखिर पूरे दिन भद्रा का साया रहने से होलिका दहन के लिए शुभ समय क्या होगा, आइए जानते हैं…

बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व

होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई के जीत के तौर पर मनाया जाता है और हर वर्ष यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. कहा जाता है कि विधि पूर्वक और नियमों के साथ होलिका दहन किया जाए तो सभी चिंता व परेशानियां भी उसी अग्नि में स्वाहा हो जाती हैं और परिवार में सुख-शांति का वास होता है. इस पर्व का सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं और दूर दूर से अपने घरों में जाते हैं. इस शुभ दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ चंद्र देव की भी पूजा की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से मानसिक शांति मिलती है और धन धान्य की कभी कमी नही होती.

13 मार्च को होलिका दहन

फाल्गुन पूर्णिमा प्रारंभ – 13 मार्च, सुबह 10 बजकर 35 मिनट सेफाल्गुन पूणिमा समापन – 14 मार्च, दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक13 मार्च को दिन और रात को पूर्णिमा तिथि होने की वजह से होलिका दहन इसी दिन किया जाएगा

Holi 2025: इस बार 14 मार्च को धुलंडी मनाई जाएगी. जबकि होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा.
वही साल का पहला चंद्रग्रहण 14 मार्च को लगेगा. ग्रहण का समय सुबह 9:29 बजे से दोपहर 3:29 तक रहने वाला है. इस दौरान पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाएगी और पृथ्वी की छाया चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेगी. इसी के चलते यह पूर्ण चंद्रग्रहण होगा. खगोलशास्त्रियों के लिए भी यह दिन काफी महत्‍व रखता है. इस दृश्‍य के हर पल की गणना करने के साथ वे इसे अपने कैमरे में कैद करना चाहते हैं. लेकिन होली के दिन ग्रहण का असर क्या रहेगा, इसे लेकर भी सवाल बरकरार है.

भारत में नहीं, बल्कि इन हिस्सों में दिखेगा ग्रहण

इसका प्रभाव मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र के अलावा प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक महासागर, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, पूर्वी एशिया और अंटार्कटिका पर पड़ेगा. लेकिन भारत में चंद्रग्रहण दिखाई नहीं देगा, क्योंकि चंद्रग्रहण भारतीय समय अनुसार दिन में घटित होने वाला है. ऐसे में इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा.

इन कार्यों को करने की होती है मनाही
होलाष्टक के समय विवाह नहीं होते हैं.
होलाष्टक के समय नामकरण, मुंडन, जनेऊ जैसे कार्य नहीं होते हैं.
होलाष्टक के समय गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार समेत सभी 16 संस्कारों पर रोक रहती है.
होलाष्टक की अवधि में नया मकान, संपत्ति, आभूषण और वाहन की खरीदारी नहीं करनी चाहिए.
इस समय घर बनवाने का काम शुरू नहीं करना चाहिए.
होलाष्टक के आठ दिन हवन और यज्ञ पर भी रोक रहती है.
होलाष्टक के दौरान नई नौकरी जौइन करने या नौकरी बदलने से भी बचना चाहिए.

मानव शरीर में कौन कौन से देवताओं का वास है और उनके कार्य क्या हैं मानव शरीर एक देवालय (मंदिर) हैईश्वर ने अपनी माया से चौ...
25/11/2024

मानव शरीर में कौन कौन से देवताओं का वास है और उनके कार्य क्या हैं
मानव शरीर एक देवालय (मंदिर) है

ईश्वर ने अपनी माया से चौरासी लाख योनियों की रचना की लेकिन जब उन्हें संतोष न हुआ तो उन्होंने मनुष्य शरीर की रचना की।
मनुष्य शरीर की रचना करके ईश्वर बहुत ही प्रसन्न हुए क्योंकि मनुष्य ऐसी बुद्धि से युक्त है जिससे वह ईश्वर के साथ साक्षात्कार कर सकता है।

हमारे ज्ञानवान पाठक जानते हैं कि मानव शरीर एक देवालय है। ईश्वर ने पंचभूतों (आकाश ,वायु ,अग्नि भूमि और जल ) से मानव शरीर का निर्माण कर उसमें भूख-प्यास भर दी।

आकाश की सूक्ष्म शरीर से, भूमि की हड्डियों, flesh से और अग्नि की body heat के साथ तुलना की गयी है।

देवताओं ने ईश्वर से कहा कि हमारे रहने योग्य कोई स्थान बताएं जिसमें रह कर हम अपने भोज्य-पदार्थ का भक्षण कर सकें। देवताओं के आग्रह पर जल से गौ और अश्व बाहर आए पर देवताओं ने यह कह कर उन्हें ठुकरा दिया कि यह हमारे रहने के योग्य नहीं हैं।

जब मानव शरीर प्रकट हुआ तब सभी देवता प्रसन्न हो गए।
तब ईश्वर ने कहा—अपने रहने योग्य स्थानों में तुम प्रवेश करो ।

तब सूर्य नेत्रों में ज्योति (प्रकाश) बन कर, वायु छाती और नासिका-छिद्रों में प्राण बन कर,
अग्नि मुख में वाणी और उदर में जठराग्नि बन कर,
दिशाएं श्रोत्रेन्द्रिय (सुनना ) बन कर कानों में,
औषधियां और वनस्पति लोम (रोम) बन कर त्वचा में,
चन्द्रमा मन होकर हृदय में, मृत्यु (मलद्वार) होकर नाभि में और जल देवता वीर्य होकर पुरुषेन्द्रिय में प्रविष्ट हो गए।

तैंतीस देवता अंश रूप में आकर मानव शरीर में निवास करते हैं ।

उपनिषद् का निम्नलिखित कथानक मानव शरीर के देवालय होने की पुष्टि करता है :

हमारा शरीर भगवान का मंदिर है। यही वह मंदिर है, जिसके बाहर के सब दरवाजे बंद हो जाने पर जब भक्ति का भीतरी पट खुलता है, तब यहां ईश्वर ज्योति रूप में प्रकट होते हैं और मनुष्य को भगवान के दर्शन होते हैं।

आइये देखें मानव शरीर में कौन कौन से देवताओं का वास है और उनके कार्य क्या हैं :

संसार में जितने देवता हैं, उतने ही देवता मानव शरीर में “अप्रकट” रूप से स्थित हैं, किन्तु दस इन्द्रियों (पांच ज्ञानेन्द्रिय और पांच कर्मेन्द्रियां) के और चार अंतकरण (भीतरी इन्द्रियां—बुद्धि, अहंकार, मन और चित्त) के अधिष्ठाता देवता प्रकट रूप में हैं। इस सभी इन्द्रियों का टोटल किया जाये तो 14 बनता है।

आइए इन देवताओं के बारे में संक्षेप में जानकारी प्राप्त करें ,इतनी संक्षेप में कि साधारण मनुष्य को भी समझ आ जाये। सभी कठिन शब्दों को सरल करने का प्रयास तो किया है लेकिन जिनका सरलीकरण नहीं किया गया है वह केवल इस लिए कि सरलीकरण के बाद और अधिक कठिनता देखी गयी थी।

1. नेत्रेन्द्रिय (चक्षुरिन्द्रिय) के देवता—भगवान सूर्य नेत्रों में निवास करते हैं और उनके अधिष्ठाता देवता हैं; इसीलिए नेत्रों के द्वारा किसी के रूप का दर्शन सम्भव हो पाता है । नेत्र विकार में चाक्षुषोपनिषद्, सूर्योपनिषद् की साधना और सूर्य की उपासना से लाभ होता है ।

2. घ्राणेन्द्रिय (नासिका) के देवता—नासिका के अधिष्ठाता देवता अश्विनीकुमार हैं । इनसे गन्ध का ज्ञान होता है ।

3. श्रोत्रेन्द्रिय (कान) के देवता—श्रोत-कान के अधिष्ठाता देवता दिक् देवता (दिशाएं) हैं । इनसे शब्द सुनाई पड़ता है ।

4. जिह्वा के देवता—जिह्वा में वरुण देवता का निवास है, इससे रस का ज्ञान होता है ।

5. त्वगिन्द्रिय (त्वचा) के देवता—त्वगिन्द्रिय के अधिष्ठाता वायु देवता हैं । इससे जीव स्पर्श का अनुभव करता है ।

6. हस्तेन्द्रिय (हाथों) के देवता—मनुष्य के अधिकांश कर्म हाथों से ही संपन्न होते हैं । हाथों में इन्द्रदेव का निवास है ।

7. चरणों के देवता—चरणों के देवता उपेन्द्र (वामन, श्रीविष्णु) हैं । चरणों में विष्णु का निवास है ।

8. वाणी के देवता—जिह्वा में दो इन्द्रियां हैं, एक रसना जिससे स्वाद का ज्ञान होता है और दूसरी वाणी जिससे सब शब्दों का उच्चारण होता है । वाणी में सरस्वती का निवास है और वे ही उसकी अधिष्ठाता देवता हैं ।

9. उपस्थ (मेढ़ू) के देवता—इस गुह्येन्द्रिय के देवता प्रजापति हैं । इससे प्रजा की सृष्टि (संतानोत्पत्ति) होती है ।

10. गुदा के देवता—इस इन्द्रिय में मित्र, मृत्यु देवता का निवास है । यह मल निस्तारण कर शरीर को शुद्ध करती है ।

11. बुद्धि इन्द्रिय के देवता—बुद्धि इन्द्रिय के देवता ब्रह्मा हैं । गायत्री मंत्र में सद्बुद्धि की कामना की गई है इसीलिए यह ‘ब्रह्म-गायत्री’ कहलाती है । जैसे-जैसे बुद्धि निर्मल होती जाती है, वैसे-वैसे सूक्ष्म ज्ञान होने लगता है, जो परमात्मा का साक्षात्कार भी करा सकता है ।

12. अहंकार के देवता—अहं के अधिष्ठाता देवता रुद्र हैं । अहं से ‘मैं’ का बोध होता है ।
13. 13. मन के देवता—मन के अधिष्ठाता देवता चन्द्रमा हैं । मन ही मनुष्य में संकल्प-विकल्प को जन्म देता है । मन का निग्रह परमात्मा की प्राप्ति करा देता है और मन के हारने पर मनुष्य निराशा के गर्त में डूब जाता है ।

14. चित्त के देवता—प्रकृति-शक्ति, चिच्छत्ति ही चित्त के देवता हैं । चित्त ही चैतन्य या चेतना है । शरीर में जो कुछ भी स्पन्दन (चलन, चेतना) होती है, सब उसी चित्त के द्वारा होती है ।

भगवान ने ब्रह्माण्ड बनाया और समस्त देवता आकर इसमें स्थित हो गए, किन्तु तब भी ब्रह्माण्ड में चेतना नहीं आई और वह विराट् मनुष्य उठा नहीं। जब चित्त के अधिष्ठाता देवता ने चित्त में प्रवेश किया तो विराट् पुरुष उसी समय उठ कर खड़ा हो गया। इस प्रकार भगवान संसार में सभी क्रियाओं का संचालन करने वाले देवताओं के साथ इस शरीर में विराजमान हैं

अब मनुष्य का कर्तव्य है कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस देवालय को कैसे साफ-सुथरा रखे ? इसके लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए:

1. नकारात्मक विचारों और मनोविकारों-काम,क्रोध,लोभ,मोह,ईर्ष्या,अहंकार से दूर रहे ।

2. योग साधना, व्यायाम व सूर्य नमस्कार करके अधिक-से-अधिक पसीना बहाकर शरीर की आंतरिक गंदगी दूर करें ।

3. अनुलोम-विलोम व सूक्ष्म क्रियाएं करके ज्यादा-से ज्यादा शुद्ध हवा का सेवन करे ।

4. शुद्ध सात्विक भोजन सही समय पर व सही मात्रा में करके पेट को साफ रखें ।

नीचे दिए गए विवरण को पढ़ते समय आप सोच रहे होंगें कि ऊपर दी गयी जानकारी रिपीट हो रही है। हाँ कुछ तथ्य रिपीट अवश्य हो रहे हैं लेकिन इनका अध्ययन करना लाभदायक ही होगा।

हम जानते हैं कि मनुष्य का शरीर एक देवालय है। इस देवालय के आठ चक्र और नौ द्वार हैं। अर्थववेद में कहा गया है-

“अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या,तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः”

जिसका अर्थ है कि आठ चक्र और नौ द्वारों वाली अयोध्या देवों की पुरी है, उसमें प्रकाश वाला कोष है जो आनन्द और प्रकाश से युक्त है अर्थात आठ चक्रों और नौ द्वारों से युक्त यह देवों की अयोध्या नामक नगरी है।

विज्ञान के अनुसार मनुष्य का जन्म माता-पिता के संयोग से संभव हो पाता है।

लेकिन क्या केवल संयोग से ही मनुष्य की रचना हो जाती हैं, बिलकुल नहीं ! इसके लिए देवी-देवताओं का सहयोग भी होता है। 33 कोटी के देवी-देवता जैसे कि सूर्य, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, चन्द्र आदि हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

हमारी माता के गर्भ में ये देव अपने एक-एक अंश से बच्चा पैदा करने और उसका पालन पोषण करने में सहयोग करते हैं।

ज़रा कल्पना करें कि अगर वायुदेव माँ के गर्भ में न पहुंच पाए तो क्या गर्भ में जीवन संभव हो सकता है। यही बात जल की है,यही बात अग्नि आदि देवों के बारे में भी लागू होती है। इन सभी देवों को एक-एक करके समझने के लिए तो विज्ञान और अध्यात्म की बैकग्राउंड होनी चाहिए ,अग्निदेव का अर्थ यह कदापि न लिया जाए कि माँ के गर्भ में कोई स्टोव या भट्टी स्थापित है और वह बच्चे के लिए खाना पका रही है। बेसिक साइंस का ज्ञान बताता है कि भोजन का पचना (digestion),उससे रक्त का बनना, एनर्जी का पैदा होना एक प्रकार का combustion/ burning/ignition process है।

अथर्ववेद के 5वें कांड में लिखा है:

सूर्य मेरी आँखें हैं, वायु मेरे प्राण हैं,अन्तरिक्ष मेरी आत्मा है और पृथ्वी मेरा शरीर है। इस तरह दिव्यलोक का सूर्य, अंतरिक्ष लोक की वायु और पृथ्वी लोक के पदार्थ क्रमशः मेरी आँखें और प्राण स्थूल शरीर में आकर रह रहे है और हाथ जो तीनों लोकों के सूक्ष्म अंश हैं, हमारे शरीर में अवतरित हुए हैं। इसीलिए ज्ञानी मनुष्य मानव शरीर को ब्रह्म मानता है क्योंकि सभी देवता इसमें वैसे ही रहते हैं जैसे गोशाला में गायें रहती हैं। माँ के गर्भ में 33 देवता अपने-अपने सूक्ष्म अंशों से रहते हैं परन्तु यह गर्भ तभी स्थिर (ठोस) होने लगता है जब परमात्मा अपने अंश से गर्भ में जीवात्मा को अवतरित करते हैं | उस समय सभी देवता गर्भ में उस परमात्मा की स्तुति करते हैं और उसकी रक्षा व् वृद्धि करते है | सभी देवता प्रार्थना करते हैं कि- हे जीव ! आप अपने साथ अन्य जीवों का भी कल्याण करना,परन्तु जन्म के समय के कठिन कष्ट के कारण मनुष्य इन बातों को भूल जाता है |

वेद का मंत्र हमें यह स्मरण दिलाता है मैं अमर अथवा अदम्य शक्ति से युक्त हूँ। हमारा शरीर ऐसा दिव्य और मनोहारी मनुष्य शरीर होता है। तभी तो उपनिषदों में ऋषियों का अमर संदेश गूंजता है: अहं ब्रह्मास्मि तत्वमसि | इसी तरह सभी जीवों की उत्पत्ति होती है। अतः देवता यह घोषणा करते हैं कि सृष्टि का हर प्राणी परमात्मा का ही अंश है इसलिए हम सभी को इसी भगवानमय दृष्टि से एक दूसरे को देखना चाहिए। इस वाक्य को पढ़कर आज के मानव पर घृणा तो आती है कि हमारे वेद, पुराण, उपनिषद ,देवता क्या शिक्षा देते हैं, कैसे इतने परिश्रम से सृष्टि की स्थापना करते हैं,लेकिन मानव
महामानव और देवमानव बनने के बजाय दैत्यमानव बनने में कोई कसर नहीं छोड़ता। शायद उस मानव को यह नहीं मालूम की सृष्टि के नियम, विधाता की अदालत में एक-एक प्राणी के एक-एक कर्म का लेखा लिखा जा रहा है। कर्म अपने कर्ता को ढूंढ ही निकालता है, सज़ा या इनाम मिल कर ही रहते हैं। कर्म की थ्योरी इतनी strong है कि इससे तो देवता क्या भगवान तक भी बच नहीं पाए।

ॐ नमः शिवाय 🙏
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🏻

उपनिषद क्या है (1)उपनिषद वेदों का सार है। सार अर्थात निचोड़ या संक्षिप्त। उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं...
10/11/2024

उपनिषद क्या है (1)

उपनिषद वेदों का सार है। सार अर्थात निचोड़ या संक्षिप्त। उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। ईश्वर है या नहीं, आत्मा है या नहीं, ब्रह्मांड कैसा है आदि सभी गंभीर, तत्वज्ञान, योग, ध्यान, समाधि, मोक्ष आदि की बातें उपनिषद में मिलेंगी। उपनिषदों को प्रत्येक हिन्दू को पढ़ना चाहिए। इन्हें पढ़ने से ईश्वर, आत्मा, मोक्ष और जगत के बारे में सच्चा ज्ञान मिलता है।

वेदों के अंतिम भाग को 'वेदांत' कहते हैं। वेदांतों को ही उपनिषद कहते हैं। उपनिषद में तत्वज्ञान की चर्चा है। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 है, परंतु मुख्य 12 माने गए हैं, जैसे- 1. ईश, 2. केन, 3. कठ, 4. प्रश्न, 5. मुण्डक, 6. माण्डूक्य, 7. तैत्तिरीय, 8. ऐतरेय, 9. छांदोग्य, 10. बृहदारण्यक, 11. कौषीतकि और 12. श्वेताश्वतर।

षड्दर्शन क्या है?

वेद से निकला षड्दर्शन : वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं। दरअसल, यह वेद के ज्ञान का श्रेणीकरण है। ये 6 दर्शन हैं- 1. न्याय, 2. वैशेषिक, 3. सांख्य, 4. योग, 5. मीमांसा और 6. वेदांत। वेदों के अनुसार सत्य या ईश्वर को किसी एक माध्यम से नहीं जाना जा सकता। इसीलिए वेदों ने कई मार्गों या माध्यमों की चर्चा की है।

गीता में क्या है?

महाभारत के 18 अध्यायों में से 1 भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता में भी कुल 18 अध्याय हैं। 10 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। वेदों के ज्ञान को नए तरीके से किसी ने व्यवस्थित किया है तो वे हैं भगवान श्रीकृष्ण। अत: वेदों का पॉकेट संस्करण है गीता, जो हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र ग्रंथ है। किसी के पास इतना समय ही नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़े। उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। गीता को बार-बार पढ़ने के बाद ही वह समझ में आने लगती है।

गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म मार्ग की चर्चा की गई है। उसमें यम-नियम और धर्म-कर्म के बारे में भी बताया गया है। गीता ही कहती है कि ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है। गीता को बार-बार पढ़ेंगे तो आपके समक्ष इसके ज्ञान का रहस्य खुलता जाएगा। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है।

गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकास क्रम, हिन्दू संदेशवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म-कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी-देवता, उपासना, प्रार्थना, यम-नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्व जन्म, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है।

श्रीमद्भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञानरूपी प्रकाश है जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गों की विस्तृत व्याख्या की गई है। इन मार्गों पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परम पद का अधिकारी बन जाता है। गीता को अर्जुन के अलावा और संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण ने 574, अर्जुन ने 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक कहा है।

उपरोक्त ग्रंथों के ज्ञान का सार बिंदुवार :

1. ईश्वर के बारे में :

ब्रह्म (परमात्मा) एक ही है जिसे कुछ लोग सगुण (साकार) तो कुछ लोग निर्गुण (निराकार) कहते हैं। हालांकि वह अजन्मा, अप्रकट है। उसका न कोई पिता है और न ही कोई उसका पुत्र है। वह किसी के भाग्य या कर्म को नियंत्रित नहीं करता। न कि वह किसी को दंड या पुरस्कार देता है। उसका न तो कोई प्रारंभ है और न ही अंत। वह अनादि और अनंत है। उसकी उपस्थिति से ही संपूर्ण ब्रह्मांड चलायमान है। सभी कुछ उसी से उत्पन्न होकर अंत में उसी में लीन हो जाता है। ब्रह्मलीन।

2. ब्रह्मांड के बारे में :

यह दिखाई देने वाला जगत फैलता जा रहा है और दूसरी ओर से यह सिकुड़ता भी जा रहा है। लाखों सूर्य, तारे और धरतीयों का जन्म है, तो उसका अंत भी। जो जन्मा है वह मरेगा भी। सभी कुछ उसी ब्रह्म से जन्मे और उसी में लीन हो जाने वाले हैं। यह ब्रह्मांड परिवर्तनशील है। इस जगत का संचालन उसी की शक्ति से स्वत: ही होता है, जैसे कि सूर्य के आकर्षण से ही धरती अपनी धूरी पर टिकी हुई होकर चलायमान है। उसी तरह लाखों सूर्य और तारे एक महासूर्य के आकर्षण से टिके होकर संचालित हो रहे हैं। उसी तरह लाखों महासूर्य उस एक ब्रह्मा की शक्ति से ही जगत में विद्यमान हैं।

3. आत्मा के बारे में :

आत्मा का स्वरूप ब्रह्म (परमात्मा) के समान है। जैसे सूर्य और दीपक में जो फर्क है उसी तरह आत्मा और परमात्मा में फर्क है। आत्मा के शरीर में होने के कारण ही यह शरीर संचालित हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि संपूर्ण धरती, सूर्य, ग्रह-नक्षत्र और तारे भी उस एक परमपिता की उपस्थिति से ही संचालित हो रहे हैं।

आत्मा का न जन्म होता है और न ही उसकी कोई मृत्यु होती है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है। यह आत्मा अजर और अमर है। आत्मा को प्रकृति द्वारा 3 शरीर मिलते हैं- एक, वह जो स्थूल आंखों से दिखाई देता है। दूसरा, वह जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं, जो कि ध्यानी को ही दिखाई देता है और तीसरा, वह शरीर जिसके कारण शरीर कहते हैं, उसे देखना अत्यंत ही मुश्किल है। बस उसे वही आत्मा महसूस करती है, जो कि उसमें रहती है। आप और हम दोनों ही आत्मा हैं। हमारे नाम और शरीर अलग-अलग हैं लेकिन भीतरी स्वरूप एक ही हैं।

4. स्वर्ग और नरक के बारे में :

वेदों के अनुसार पुराणों के स्वर्ग या नर्क को गतियों से समझा जा सकता है। स्वर्ग और नर्क 2 गतियां हैं। आत्मा जब देह छोड़ती है तो मूलत: 2 तरह की गतियां होती हैं- 1. अगति और 2. गति।

1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।

2. गति : गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है या वह अपने कर्मों से मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

अगति के 4 प्रकार हैं- 1. क्षिणोदर्क, 2. भूमोदर्क, 3. अगति और 4. दुर्गति।

क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्युलोक में आता है और संतों-सा जीवन जीता है।

भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।

अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।

दुर्गति : दुर्गति में वह कीट-कीड़ों जैसा जीवन पाता है।

गति के भी 4 प्रकार- गति के अंतर्गत 4 लोक दिए गए हैं- 1. ब्रह्मलोक, 2. देवलोक, 3. पितृलोक और 4. नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।

तीन मार्गों से यात्रा :

जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे 3 प्रकार के मार्ग मिलते हैं। ऐसा कहते हैं कि उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा और यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये 3 मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।

5. धर्म और मोक्ष के बारे में :

धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म का अर्थ है यम और नियम को समझकर उसका पालन करना। नियम ही धर्म है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार व्यक्ति को मोक्ष के बारे में विचार करना चाहिए। मोक्ष क्या है? स्थितप्रज्ञ आत्मा को मोक्ष मिलता है। मोक्ष का भावार्थ यह कि आत्मा शरीर नहीं है, इस सत्य को पूर्णत: अनुभव करके ही अशरीरी होकर स्वयं के अस्तित्व को पुख्‍ता करना ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है।

अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।

2. गति : गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है या वह अपने कर्मों से मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

*अगति के 4 प्रकार हैं- 1. क्षिणोदर्क, 2. भूमोदर्क, 3. अगति और 4. दुर्गति।

*क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्युलोक में आता है और संतों-सा जीवन जीता है।

*भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।

*अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।

*दुर्गति : दुर्गति में वह कीट-कीड़ों जैसा जीवन पाता है।

* गति के भी 4 प्रकार- गति के अंतर्गत 4 लोक दिए गए हैं- 1. ब्रह्मलोक, 2. देवलोक, 3. पितृलोक और 4. नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।

तीन मार्गों से यात्रा :

जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे 3 प्रकार के मार्ग मिलते हैं। ऐसा कहते हैं कि उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा और यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये 3 मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।

6. व्रत और त्योहार के बारे में :

हिन्दू धर्म के सभी व्रत, त्योहार या तीर्थ सिर्फ मोक्ष की प्राप्त हेतु ही निर्मित हुए हैं। मोक्ष तब मिलेगा जब व्यक्ति स्वस्थ रहकर प्रसन्नचित्त और खुशहाल जीवन जीएगा। व्रत से शरीर और मन स्वस्थ होता है। त्योहार से मन प्रसन्न होता है और तीर्थ से मन और मस्तिष्क में वैराग्य और अध्यात्म का जन्म होता है।

मौसम और ग्रह-नक्षत्रों की गतियों को ध्यान में रखकर बनाए गए व्रत और त्योहारों का महत्व अधिक है। व्रतों में चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा, श्रावण मास और कार्तिक मास के दिन व्रत रखना श्रेष्ठ है। यदि उपरोक्त सभी नहीं रख सकते हैं तो श्रावण के पूरे महीने व्रत रखें। त्योहारों में मकर

संक्रांति, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और हनुमान जन्मोत्सव ही मनाएं। पर्व में श्राद्ध और कुंभ का पर्व जरूर मनाएं।

व्रत करने से काया निरोगी और जीवन में शांति मिलती है। सूर्य की 12 और 12 चन्द्र की संक्रांतियां होती हैं। सूर्य संक्रांतियों में उत्सव का अधिक महत्व है, तो चन्द्र संक्रांति में व्रतों का अधिक महत्व है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन। इसमें से श्रावण मास को व्रतों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। इसके अलावा प्रत्येक माह की एकादशी, चतुर्दशी, चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या और अधिकमास में व्रतों का अलग-अलग महत्व है। सौरमास और चान्द्रमास के बीच बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिकमास कहते हैं। साधुजन चातुर्मास अर्थात 4 महीने श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते हैं।

उत्सव, पर्व और त्योहार सभी का अलग-अलग अर्थ और महत्व है। प्रत्येक ऋतु में एक उत्सव है। उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परंपरा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र, स्मृति, पुराण और आचार संहिता में मिलता है। चन्द्र और सूर्य की संक्रांतियों के अनुसार कुछ त्योहार मनाए जाते हैं। 12 सूर्य संक्रांतियां होती हैं जिसमें 4 प्रमुख हैं- मकर, मेष, तुला और कर्क। इन 4 में मकर संक्रांति महत्वपूर्ण है। सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ, संक्रांति और कुंभ। पर्वों में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपूर्णिमा, वसंत पंचमी, हनुमान जयंती, नवरात्रि, शिवरात्रि, होली, ओणम, दीपावली, गणेश चतुर्थी और रक्षाबंधन प्रमुख हैं। हालांकि सभी में मकर संक्रांति और कुंभ को सर्वोच्च माना गया है।

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