30/03/2025
◆चैत्र नवरात्रि 2025 :
नव वर्ष विक्रम संवत 2082 की ढेरों शुभकामनाएं, हिन्दू नववर्ष सभी के लिये शुभ हो।
नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं - चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है।
यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र, 30 मार्च से प्रारंभ है और समापन 06 अप्रैल को है। नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि २०२५ की तिथि :-
३० मार्च (पहला दिन)
प्रतिपदा - इस दिन पर "घटत्पन", "चंद्र दर्शन" और "शैलपुत्री पूजा" की जाती है।
३१ मार्च (दूसरा दिन)
दिन पर "सिंधारा दौज" और "माता ब्रह्राचारिणी पूजा" की जाती है।
१ अप्रैल (तीसरा दिन)
यह दिन "गौरी तेज" या "सौजन्य तीज" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "चन्द्रघंटा की पूजा" है।
२ अप्रैल (चौथा दिन)
"वरद विनायक चौथ" के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कूष्मांडा की पूजा" है।
२ अप्रैल (पांचवा दिन)
इस दिन को "लक्ष्मी पंचमी" कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "नाग पूजा" और "स्कंदमाता की पूजा" जाती है।
३ अप्रैल (छटा दिन)
इसे "यमुना छत" या "स्कंद सस्थी" के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कात्यायनी की पूजा" है।
४ अप्रैल (सातवां दिन)
सप्तमी को "महा सप्तमी" के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए “कालरात्रि की पूजा” की जाती है।
५ अप्रैल (आठवां दिन)
अष्टमी को "दुर्गा अष्टमी" के रूप में भी मनाया जाता है और इसे "अन्नपूर्णा अष्टमी" भी कहा जाता है। इस दिन "महागौरी की पूजा" और "संधि पूजा" की जाती है।
६ अप्रैल (नौंवा दिन)
"नवमी" नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन "राम नवमी" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन "सिद्धिंदात्री की पूजा महाशय" की जाती है।
चैत्र नवरात्रि के महत्वपूर्ण समय :
सूर्योदय ३० मार्च २०२५ 06:36 पूर्वाह्न
सूर्यास्त ३० मार्च २०२५ 18:33 अपराह्न
प्रतिपदा तिथी आरंभ २९ मार्च २०२५ 05: 51सायं
प्रतिपाद तिथी समाप्त ३० मार्च २०२५ 02:27अपराह्न
अभिजीत मुहूर्त 12:11 अपराह्न - 12:59 अपराह्न
घोस्टाप्पन मुहूर्ता 06:36 पूर्वाह्न - 10:35 पूर्वाह्न
चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान -
बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।
चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।
पूजा विधि -
घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन सबसे आवश्यक है, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है और इसे पवित्र स्थान पर रखा जाता है, घर की शुद्धि और खुशाली के लिए।
१. अखण्ड ज्योति :
नवरात्रि ज्योति घर और परिवार में शांति का प्रतीक है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप नवरात्रि पूजा शुरू करने से पहले देसी घी का दीपक जलतें हैं। यह आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में मदद करता है और भक्तों में मानसिक संतोष बढ़ाता है।
२. जौ की बुवाई :
नवरात्रि में घर में जौ की बुवाई करते है। ऐसी मान्यता है की जौ इस सृष्टी की पहली फसल थी इसीलिए इसे हवन में भी चढ़ाया जाता है। वसंत ऋतू में आने वाली पहली फसल भी जौ ही है जिसे देवी माँ को चैत्र नवरात्रि के दौरान अर्पण करते है।
३. नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद) :
प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है। सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:
• 1 दिन: केले
• 2 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)
• 3 दिन: नमकीन मक्खन
• 4 दिन: मिश्री
• 5 दिन: खीर या दूध
• 6 दिन: माल पोआ
• 7 दिन: शहद
• 8 दिन: गुड़ या नारियल
• 9 दिन: धान का हलवा
४. दुर्गा सप्तशती :
दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है, और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।
५. नौ दिनों के लिए नौ रंग :
शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:
• 1 दिन: हरा
• 2 दिन: नीला
• 3 दिन: लाल
• 4 दिन: नारंगी
• 5 दिन: पीला
• 6 दिन: नीला
• 7 दिन: बैंगनी रंग
• 8 दिन: गुलाबी
• 9 दिन: सुनहरा रंग
६. कन्या पूजन :
कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।
अनुष्ठान के कुछ विशेष नियम :
बहुत सारे भक्त निचे दिए गए अनुष्ठानों का पालन करते हैं:
1. प्रार्थना और उपवास चैत्र नवरात्रि समारोह का प्रतीक है। त्योहार के आरंभ होने से पहले, अपने घर में देवी का स्वागत करने के लिए घर की साफ सफाई करते हैं।
2. सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं। भूमि शयन करते हैं। सात्त्विक आहार करते हैं।
3. उपवास करते वक्त सात्विक भोजन जैसे कि आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल, आदि खाते हैं।
4. नवरात्रि के दौरान, भोजन में सख्त समय का अनुशासन बनाए रखते हैं और अपने व्यवहार की निगरानी भी करते हैं, जैसे की
• अस्वास्थ्यकर खाना (Junk Food) नहीं खाते।
• सत्संग करते हैं।
• ज्ञान सूत्र से जुड़ते हैं।
• ध्यान करते हैं।
• चमड़े का प्रयोग नहीं करते हैं।
• क्रोध से बचे रहते हैं।
• कम से कम 2 घंटे का मौन रहते हैं।
• अनुष्ठान समापन पर क्षमा प्रार्थना का विधान है तथा विसर्जन करते हैं।
चैत्र नवरात्री का महत्व :
यह माना जाता है कि यदि भक्त बिना किसी इच्छा की पूर्ति के लिए महादुर्गा की पूजा करते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर कर मोक्ष प्राप्त करते है।
#चैत्र_नवरात्री_विशेष_साधना ◆
इस वर्ष रविवार, ३० मार्च २०२५ से ०६ अप्रैल २०२५ तक चैत्र नवरात्रि विक्रम संवत-2082 #कलयुक्त नाम संवत्सर है।
साधकोंकी दृष्टी से इस पर्व काल का बहुत
महत्त्व है। नवरात्री में भगवती कि साधना करके उनकी कृपा प्राप्त कि जा सकती है। नवरात्री में शक्ति साधना का ही महत्त्व
है। और नवरात्री का मतलब ही रात्रिकालीन साधना से है।
चैत्र नवरात्रि से ही हिन्दू नववर्ष (शालिवाहन शक ) का आरम्भ माना
जाता है। इस काल में ही सृष्टी का आरम्भ माना जाता है। जब सृष्टी कि रचना करने का समय आया तो ब्रम्हा जी को
कुछ सूझ नहीं रहा था। तब भगवान विष्णु और महादेव की सूचना के अनुसार उन्होंने भगवती त्रिपुरसुंदरी कि साधना की। भगवती त्रिपुरसुंदरी ने भुवनेश्वरी के रूप में उन्हें दर्शन दिए। और भगवती भुवनेश्वरी ने तीनो भुवनो का निर्माण ब्रम्हाजी के माध्यम से किया इसीलिए वे भुवनेश्वरी कहलायी। वे ही महामाया है ..
इस नवरात्रि में भुवनेश्वरी तत्व प्रधान तत्व माना जाता है। भगवान श्रीराम ने भी जो स्वयं भुवनेश्वरी के साधक थे
इसी नवरात्री काल को राज्याभिषेक (लंका ले लौटने के बाद )के लिए सर्वश्रेष्ठ समय माना था।
वसंत ऋतु का आगमन भी इसी काल में होता है। भुवनेश्वरी सूर्य मंडल कि अधिष्ठात्री है। सूर्य भी इस नवरात्री से और गरम होने लगता है।
वर्ष में चार नवरात्रियाँ होती है। चैत्र नवरात्री , आश्विन नवरात्रि जो हम
सब मनाते है। दो नवरात्री गुप्त नवरात्री कहलाती है। एक माघ महीने में और
दूसरी आषाढ़ महीने में होती है। इस 36 दिनों में भगवती तत्व ब्रह्माण्ड के सबसे
करीब होता है। और मनुष्य अगर उचित साधनाओं के माध्यम से उस शक्ति
तत्व को प्राप्त कर लेता है तो वह अपनी भौतिक एवं अध्यात्मिक उन्नति
को प्राप्त कर सकता है।
नवरात्री से बढकर और कोई पर्व काल नहीं जो शक्ति तत्व कि कृपा प्राप्त करने में सहायक हो।
इसीलिए साधकों को नवरात्री में साधना करके इस पर्व काल का लाभ उठाना
चाहिए। फालतू चीजों में समय बर्बाद करके पर्व काल को गवाना
नहीं चाहिए। हम लोग समय को पहचान नहीं सकते।
हम तो बस वर्त्तमान में जीते है। आज अगर सब कुछ अच्छा चल रहा है तो
हम यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि कल कुछ प्रतिकूल समय भी आ सकता है
और प्रतिकूलता कभी भी किसी भी रूप में आ सकती है। जरुरी नहीं कि वह
सिर्फ आर्थिक संकट हो जैसा कि हम अक्सर सोचते है। पारिवारिक समस्या ,
रोग,शत्रु बाधा , मानसिक तनाव , आदि कई सारे माध्यम है जिनसे प्रतिकूलता
का अनुभव किया जा सकता है। इसलिए किसी भी भ्रम में ना रहके कमसे कम
नवरात्री और बाकी पर्व काल में तो आध्यात्मिक साधना करके अपने आपको
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कवचित करना चाहिए और अपनी समस्याओं से
छुटकारा पाना चाहिए।
इस नवरात्री में या तो भुवनेश्वरी साधना करनी चाहिए या नवार्ण मंत्र " ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे " कि यथाशक्ति साधना करनी चाहिए।
वैसे अभी के नवग्रह स्थिती के अनुसार साधक गण के लिये महाकाली की साधना भी लाभदायक रहेगी ..
जो साधक माँ भुवनेश्वरी या महाकाली कि दीक्षा प्राप्त कर चुके है वे भुवनेश्वरी या महाकाली कि साधना कर सकते है।
जो लोग किसी गुरु से दीक्षित नहीं है वे भगवती दुर्गाजी के नवार्ण मन्त्र का जाप कर सकते है।
1) भुवनेश्वरी का मंत्र " ॐ ह्रीम नमः " स्फटिक माला से करे
2) महाकाली मंत्र " ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ॐ " का जाप रुद्राक्ष माला या काली हकिक माला से करे ..
3) दुर्गाजी के नवार्ण मंत्र का जाप " ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे " का जाप रुद्राक्ष माला या काली हकीक माला से करे ..
साधना कैसे करे ?
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सर्व प्रथम सामान्य पूजन सामग्री एकत्र करे। पंचोपचार पूजन जैसे गंध,अक्षत,पुष्प,धुप, दीप , नैवेद्य आदि कि व्यवस्था करे।
फिर सर्व प्रथम सदगुरु का स्मरण करे
फिर गणेश जी का स्मरण करे। फिर संकल्प करे।
संकल्प में अगर आप देश काल का उच्चारण करे तो ठीक, नहीं तो सिर्फ
अपना नाम और गोत्र का उच्चारण कर अपनी मनोकामना या
सिर्फ " भगवती प्रीत्यर्थं " ऐसा कहके जल छोड़े।
फिर भगवती का पंचोपचार या षोडश उपचार पूजन करे।
जो साधक आवरण पूजन जानते है वे कर सकते है। फिर अगर साधक चाहे तो अष्टोत्तर नामावली या सहस्त्र नामावली से पूजन करे और मन्त्र जाप रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला से करे। भगवती के जिस रुप की आप साधना कर रहे है उनके उचित स्तोत्रों का पाठ भी कर सकते है ..
नवरात्री के नौ दिनोमे घी या तेल का या दोनों का दिया जलाये। .इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है।
कमसे कम 5 माला या 11 माला जाप करे। इससे ज्यादा करे तो और अच्छा। लेकिन पहले दिन जीतनी माला करे उतनी रोज करे।
स्त्रियों को अगर पिरियड कि समस्या हो तो उतने दिन साधना ना करे
और फिर पिरियड ख़त्म होने के बाद साधना कर सकते है।
रात्रि कालीन साधना में रात्रि 9 से देर रात 3 -4 बजे तक का समय होता है।
अगर आप ज्यादा समय नहीं दे सकते तो
सबसे अच्छा समय है रात 10 से 11.30 .. इस समय का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करे।
जो लोग रात्री में साधना नहीं कर सकते वे सुबह कर सकते है।
जिस साधना में बली कि आवशकता हो वहाँ पर नारियल या निम्बू बली दे।
मंत्र जाप के बाद या पहले जैसा उचित लगे स्तोत्र पाठ कर सकते है।
स्तोत्र पाठ में कवच, स्तोत्र, ह्रदय स्तोत्र , अष्टोत्तरशत नाम और सहस्त्र नाम
का महत्त्व है। और भी दूसरे स्तोत्र का पाठ कर सकते है।
नवार्ण मन्त्र की साधना में श्री दुर्गा सप्तशती में जो स्तोत्र दिए है जैसे कि
कवच, अर्गला, किलक, सिद्ध कुंजिका स्तोत्र , देवी अथर्वशीर्ष ,तांत्रोक्त देवी
सूक्तम , रात्रि सूक्तम , सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र,देवी अपराधक्षमापन स्तोत्र, दुर्गा
द्वात्रिंश नामावली आदि स्तोत्र का महत्त्व है। इन स्तोत्रो मे से उपलब्ध समय के अनुसार जो स्तोत्र पढ सकते है उनका पाठ करे .. कमसे कम कवच स्तोत्र का तो पाठ करे .. यह सारे स्तोत्र मेरे " साधना दर्शन " के फेसबूक पेज पर उपलब्ध है ..
जो साधक न्यास जानते है वे न्यास करे। जो लोग न्यास नहीं जानते
वे कवच पाठ करे या सीधे मन्त्र जाप करे।
जो लोग पुरे नौ दिन साधना नहीं कर सकते वे उन दिनोमे साधना करे जो
इन नौ दिनोमे ज्यादा से ज्यादा महत्व पूर्ण हो। जैसे कि इस नवरात्री में पहला दिन , फिर पंचमी , अष्टमी और नवमी के दिन कर सकते है। पंचमी और अष्टमी का महत्त्व ज्यादा है।
हां एक महत्त्व पूर्ण बात बताना भूल गया हूँ । कुमारी पूजन ....
किसी भी नवरात्री में अगर सम्भव हो सके तो रोज कुमारी पूजन करे।
नहीं तो पंचमी, अष्टमी, या नवमी के दिन तो करे। अष्टमी पर करे तो ज्यादा अच्छा .
किसी एक शुभ लक्षणी कन्या को जो 3 साल से 7 साल तक कि हो
उसे बुलाये और उसका पूजन ( चरण धोकर ) कर उसे गंध , पुष्प
अर्पण करे और उसकी मन पसंद मिठाई या भोजन उसे दे। जैसी
अपनी आर्थिक ताकत हो वैसे दक्षिणा या वस्त्र दे। कुमारी पूजन में
एक कन्या से लेकर 5 ,9 या 11 या उससे भी अधिक संख्या में कन्यायों को
आमंत्रित कर सकते है। कुमारी पूजन के बारे में अधिक विस्तार इससे
पूर्व एक पोस्ट मे विस्तृत पूजन के साथ लिखा गया है। उसे पढ़े।
जो साधक हवन करना जानते है वे अपने मन्त्र जप कि संख्या का दशांश
हवन करे। कमसे कम 108 आहुतियां तो देनी चाहिए। अगर हवन नहीं कर सके तो दशांश जाप ज्यादा कर सकते है। साधना के अनुसार हवन सामग्री का उपयोग करे नहीं तो सामान्य हवन सामग्री का उपयोग करे।
आप जो भी साधना करे और जो भी मनोकामना लेकर करे ,उसमे आपको
सफलता मिले ऐसी ही गुरुचरणोमे प्रार्थना करता हूl
llजय सद्गुरुदेव, जय महाकाली ll