JOURNALIST MANOJ SHARMA

JOURNALIST MANOJ SHARMA मैं विश्वास करता हुं सादा जीवन मुदित विचार में। साधारण, सकारात्मक, बेबाक एवम् स्पष्टवादी व्यक्ति हूं।

15/08/2025

राजनीति में समय और शब्दों का महत्व

शहर विधायक अतुल भंसाली राजनीति के नए खिलाड़ी हैं। हाल ही में एक अवसर था, जिसमें विपक्ष के मतदाताओं के बीच सेंध लगाने का मौका मिल सकता था। लेकिन अफसोस, सूचना तंत्र की कमी और परिस्थितियों को भांपने में चूक के कारण यह अवसर हाथ से निकल गया। न तो वे मौके पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर पाए और न ही राजनीतिक क्रेडिट ले सके।

राजनीति में केवल बोलना पर्याप्त नहीं, बल्कि कब, कहाँ और कैसे बोलना है—यही असली राजनीतिज्ञ की पहचान होती है। यदि सूचना मिलते ही विधायक पीड़ित परिवार से मिलते, उन्हें सांत्वना देते और उनके दुख-सुख में सहभागी बनते, तो यह न केवल उनकी छवि को सशक्त करता बल्कि मुख्यमंत्री तक यह संदेश भी पहुंचता कि उनका विधायक सक्षम, संवेदनशील और दक्ष है।

दुर्भाग्य से, समय पर कदम न उठाने और अपरिपक्व शब्दों के प्रयोग ने उनकी गंभीरता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। परिणामस्वरूप, न केवल मतदाताओं का विश्वास कमजोर हुआ, बल्कि मुख्यमंत्री की नजरों में भी वे भरोसेमंद प्रतिनिधि के रूप में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए।

14/08/2025

अभी भी अधूरी है हमारी आज़ादी

मनोज शर्मा (9414243105)

आज़ादी—एक ऐसा शब्द, जिसके लिए लाखों ने अपने प्राण न्योछावर किए और अनगिनत ने अपना सर्वस्व अर्पित किया।
अंग्रेज़ी हुकूमत की बेड़ियाँ टूटे दशकों बीत गए, पर आज भी यह सवाल गूंजता है—
क्या हम सचमुच आज़ाद हैं?

यदि आज भी जनता अपने अधिकार, सम्मान और सुरक्षा के लिए संघर्षरत है,
यदि न्याय की राह में सत्ता, धन और भय की दीवारें खड़ी हैं,
तो मानना पड़ेगा—हमारी आज़ादी अधूरी है।

हमें आज़ादी चाहिए—

भ्रष्टाचारियों से, जो जनता की मेहनत की कमाई को सत्ता के सौदों में लुटाते हैं।

दमनकारी नीतियों से, जो अन्नदाता को कर्ज़, निराशा और मौत की खाई में धकेल देती हैं।

धनकुबेरों के आतंक से, जो गरीब के पसीने को निचोड़कर अपने महलों में ऐश करते हैं।

निष्ठुर अफ़सरों से, जिनके लिए पीड़ित जनता सिर्फ एक फाइल नंबर है।

हमें आज़ादी चाहिए—

सच लिखने-बोलने की ताक़त, ताकि पत्रकार की कलम पर ताले न लगें।

सत्ता में बैठे उन गिद्ध-नज़रों से मुक्ति, जो बेटियों को शिकार समझती हैं।

भूमाफ़ियाओं से, जो जंगल, नदियों और धरती को निगलकर भविष्य बेचते हैं।

उन ताक़तों से, जो धर्म के नाम पर नफ़रत की आग फैलाती हैं।

उन नीतियों से, जो लाखों घरों के चूल्हे बुझा देती हैं और खेतों को बंजर बना देती हैं।

यह आज़ादी अधूरी है, क्योंकि—

अमीर अपनी दीपावली गरीब का चूल्हा बुझाकर मनाते हैं।

करों का बोझ गली-मोहल्लों से लेकर अंतिम संस्कार तक पीछा करता है।

कानून का मज़ाक उड़ाकर न्याय को बेबस कर दिया जाता है।

लोकतंत्र की आवाज़ कुचलकर जनता को खामोश किया जाता है।

एक आह्वान

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जी, जनता को वह आज़ादी चाहिए जो सिर्फ काग़ज़ पर नहीं, बल्कि ज़मीन पर महसूस हो—
एक ऐसी आज़ादी, जिसमें हर नागरिक बिना डर, बिना भेदभाव और बिना अपमान के जी सके।

जिस दिन यह सपना साकार होगा,
तब तिरंगे की लहराती छांव तले हम गर्व से कह सकेंगे—
"अब हमारी आज़ादी पूरी हुई है।"

14/06/2025

11/06/2025
02/03/2025

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