23/01/2024
हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) की 950 बरस की तबलीग़ के बाद भी उनकी क़ौम के अक्सर व बेशतर लोग ईमान लाने के बजाय उनको सताते रहे। आख़िरकार उनकी ज़बान से एक दुआ निकली, जो सूरह क़मर आयत नम्बर 10 में है,
फ़-दआ "रब्बहू अन्-नी मग़लूबुन् फंतसिर" (हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने दुआ की, "ऐ मेरे रब! मैं दबा लिया गया हूँ")
दुआ का क़ुबूल होना था कि बस ज़ालिमों की जड़ें कट गईं। आसमान से पानी बरस रहा था, ज़मीन पानी उगल रही थी, सारे ज़ालिम उस सैलाब में डूबकर जहन्नम-रसीद हो गये। सिर्फ़ वही ज़िंदा बचाए गये, जो उस वक़्त के नबी हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) के साथ थे, उनकी कश्ती में सवार थे।
ये वक़्त फिर आएगा, आज से ढाई बरस (हिजरी) के बाद या साढ़े बयालीस बरस (हिजरी) के बाद जो भी अल्लाह को मंज़ूर होगा।
याद रखियेगा, दुनिया के उमूमी हिसाब-किताब का वक़्त क़रीब है, बहुत क़रीब है। अपने ईमान को संवार लीजिये, अपने आमाल को दुरुस्त कर लीजियेगा।