30/09/2025
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में पंचायतन पूजन पद्धति की स्थापना की थी। इसमें उन्होंने पाँच प्रमुख देवताओं को एक समान महत्व दिया, ताकि विभिन्न संप्रदायों में मतभेद समाप्त हो और सभी एक ईश्वरत्व की ओर उन्मुख हों।
वे पाँच देवता हैं –
1. भगवान शिव
2. भगवान विष्णु
3. भगवान गणेश
4. भगवती आदिशक्ति (देवी/दुर्गा/पार्वती/लक्ष्मी)
5. सूर्य देव
👉 इस पद्धति में इन पाँच देवताओं की उपासना एक साथ की जाती है, और उपासक अपनी श्रद्धा अनुसार इनमें से किसी एक को इष्ट देवता मानकर पूजता है।
🌸 1. पृष्ठभूमि
शंकराचार्य जी के समय (8वीं शताब्दी) में समाज में कई मत-मतान्तर और संप्रदाय सक्रिय थे।
कोई केवल शैव था (केवल शिव की पूजा करता था),
कोई वैष्णव था (केवल विष्णु की भक्ति करता था),
कोई शाक्त था (देवी को ही सर्वोच्च मानता था),
कोई केवल सौर (सूर्य उपासक) था,
और कोई गाणपत्य (गणेश उपासक) था।
इन संप्रदायों के बीच अक्सर टकराव हो जाता था और लोग एक-दूसरे की पूजा पद्धति को नीचा दिखाते थे।
🌸 2. शंकराचार्य जी का समाधान
शंकराचार्य जी ने अद्वैत वेदांत के आधार पर बताया कि
"सभी देवता एक ही परम सत्य (ब्रह्म) के अलग-अलग रूप हैं।"
यही कारण था कि उन्होंने पंचायतन पूजन पद्धति की स्थापना की।
इसमें पाँच देवताओं (शिव, विष्णु, गणेश, देवी, सूर्य) को एक साथ पूजने का विधान किया।
उपासक इनमें से किसी एक को इष्ट देवता मान सकता है, लेकिन बाकी देवताओं का भी सम्मान और पूजन करना चाहिए।
🌸 3. महत्व और उद्देश्य
1. समन्वय – विभिन्न संप्रदायों में एकता और मेल-मिलाप स्थापित करना।
2. समानता – किसी एक देवता को सर्वोच्च बताकर अन्य को छोटा न दिखाना।
3. अद्वैत का अभ्यास – यह समझाना कि सब देवता एक ही ब्रह्म के रूप हैं।
4. सामाजिक एकता – समाज को संप्रदायवाद और आपसी झगड़ों से बचाना।
5. सर्वमान्य पूजा – हर घर में सब देवताओं का सम्मान और पूजन हो सके।
🌸 4. पूजा की पद्धति
पूजा में एक मंडल या चौकोर वेदी बनाई जाती है।
बीच में इष्ट देवता की मूर्ति या शिलारूप स्थापित किया जाता है।
चारों कोनों पर बाकी चार देवताओं की मूर्तियाँ/प्रतीक रखे जाते हैं।
इस प्रकार पाँच देवताओं की सामूहिक उपासना होती है।
👉 इसलिए शंकराचार्य जी की पंचायतन पूजा का सार यही है कि –
“सभी देवता एक ही परम सत्य (ब्रह्म) के भिन्न रूप हैं, किसी में भेदभाव नहीं।”
🪔 पंचायतन पूजा की गृहस्थ व्यवस्था
1. वेदी (स्थान की तैयारी)
घर में पूजा का एक स्वच्छ स्थान निर्धारित करें।
वहाँ एक चौकोर या गोल वेदी (मंडल) बनाएं।
बीच में इष्ट देवता की मूर्ति/शिला रखें।
चारों कोनों में शेष चार देवताओं को रखें।
👉 सामान्यतः व्यवस्था इस प्रकार होती है:
मध्य (बीच में) → इष्ट देवता (जो मनपसंद हो – शिव, विष्णु, देवी, गणेश या सूर्य)
पूर्व दिशा → सूर्य
दक्षिण दिशा → गणेश
पश्चिम दिशा → विष्णु
उत्तर दिशा → देवी
(शिव की भी एक निश्चित स्थिति होती है, जो इष्ट देवता न हों तो बाकी स्थान पर स्थापित होते हैं)
2. पूजन सामग्री
जल, दीपक, धूप, फूल, चंदन, अक्षत (चावल), नैवेद्य (भोग), घी का दीपक।
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) भी स्नान के लिए रखा जाता है।
3. पूजन विधि (सरल गृहस्थ पद्धति)
1. सबसे पहले आचमन और संकल्प लें।
2. पाँचों देवताओं को जल, पुष्प, अक्षत, दीप और धूप से अर्पित करें।
3. बीच में रखे इष्ट देवता की विशेष पूजा करें (मंत्र जप, स्तोत्र आदि)।
4. शेष चार देवताओं को भी सम्मानपूर्वक नमस्कार करें।
5. अंत में आरती और नैवेद्य अर्पित करें।
6. परिवार सहित प्रणाम करें।
4. विशेष नियम
पूजन में किसी देवता को छोटा-बड़ा न मानें।
इष्ट देवता को केंद्र में रखकर बाकी देवताओं को समान श्रद्धा से पूजें।
दैनिक पूजा समय बहुत अधिक न हो सके तो भी – दीपक जलाना, जल अर्पित करना और नमस्कार करना पर्याप्त है।
5. लाभ
घर में सद्भाव और शांति बनी रहती है।
संप्रदायिक पक्षपात नहीं रहता।
मन में यह भावना पुष्ट होती है कि – “सभी देवता एक ही ब्रह्म के रूप हैं।”
परिवार में धर्म, संस्कार और एकता का वातावरण रहता है।
🪔 पंचायतन पूजा – संक्षिप्त घरेलू क्रम
1. प्रारंभ
आसन पर बैठें, जल से आचमन करें और संकल्प लें।
दीपक जलाएँ।
2. गणेश पूजन (दक्षिण दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ गं गणपतये नमः ।
(फूल अर्पित करें और प्रणाम करें।)
3. सूर्य पूजन (पूर्व दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ आदित्याय नमः ।
(दीपक दिखाएँ और जल अर्पित करें।)
4. विष्णु पूजन (पश्चिम दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
(फूल और अक्षत चढ़ाएँ।)
5. देवी पूजन (उत्तर दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ दुं दुर्गायै नमः ।
(चंदन, फूल, अक्षत अर्पित करें।)
6. शिव पूजन (यदि इष्ट न हों तो शेष स्थान पर)
👉 मंत्र –
ॐ नमः शिवाय ।
(अभिषेक जल या फूल चढ़ाएँ।)
7. इष्ट देवता (मध्य में)
👉 अपने इष्ट देवता का विशेष मंत्र जपें।
उदाहरण:
शिव इष्ट हो तो – ॐ नमः शिवाय
विष्णु इष्ट हो तो – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गणेश इष्ट हो तो – ॐ गं गणपतये नमः
देवी इष्ट हो तो – ॐ दुं दुर्गायै नमः
सूर्य इष्ट हो तो – ॐ सूर्याय नमः
8. समर्पण
सभी देवताओं से प्रार्थना करें:
सर्वे देवाः प्रसन्नन्तु सर्वे मे मंगलानि भूयुः ।
9. आरती और नैवेद्य
दीपक से आरती करें।
थोड़ा फल, दूध या मिठाई नैवेद्य अर्पित करें।
परिवार सहित प्रणाम करें।
👉 इस तरह 5–10 मिनट में भी रोज़ पंचायतन पूजा पूरी हो सकती है।
पंचायतन (पाँच देवताओ) की पुजा का महत्त्व एवं विधि
हिन्दू पूजा पद्यति में किसी भी कार्य का शुभारंभ करने अथवा जप-अनुष्ठान एवं प्रत्येक मांगलिक कार्य के आरंभ में सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता, एक ही परमात्मा पांच इष्ट रूपों में पूजे जाते है।
निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव
परब्रह्म परमात्मा निराकार व अशरीरी है, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उसके स्वरूप का ज्ञान असंभव है । इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार रूप में पांच देवों को उपासना के लिए निश्चित किया जिन्हें पंचदेव कहते हैं ।
ये पंचदेव हैं—विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और शक्ति।
👉 सूर्य, गणेश, देवी, रुद्र और विष्णु—ये पांच देव सब कामों में पूजने योग्य हैं, जो आदर के साथ इनकी आराधना करते हैं वे कभी हीन नहीं होते, उनके यश-पुण्य और नाम सदैव रहते हैं ।
वेद-पुराणों में पंचदेवों की उपासना को महाफलदायी और उसी तरह आवश्यक बतलाया गया है जैसे नित्य स्नान को । इनकी सेवा से ‘परब्रह्म परमात्मा’ की उपासना हो जाती है ।
अन्य देवताओं की अपेक्षा इन पांच देवों की प्रधानता ही क्यों?
अन्य देवों की अपेक्षा पंचदेवों की प्रधानता के दो कारण हैं—
१.👉 पंचदेव पंचभूतों के अधिष्ठाता (स्वामी) हैं।
पंचदेव आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी—इन पंचभूतों के अधिपति हैं ।
👉 सूर्य वायु तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी अर्घ्य और नमस्कार द्वारा आराधना की जाती है ।
👉 गणेश के जल तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान हैं, क्योंकि सृष्टि के आदि में सर्वत्र ‘जल’ तत्त्व ही था ।
👉 शक्ति (देवी, जगदम्बा) अग्नि तत्त्व की अधिपति हैं इसलिए भगवती देवी की अग्निकुण्ड में हवन के द्वारा पूजा करने का विधान हैं ।
👉 शिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा करने का विधान हैं ।
👉 विष्णु आकाश तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं ।
२.👉 अन्य देवों की अपेक्षा इन पंचदेवों के नाम के अर्थ ही ऐसे हैं कि जो इनके ब्रह्म होने के सूचक हैं।
विष्णु अर्थात् सबमें व्याप्त, शिव यानी कल्याणकारी, गणेश अर्थात् विश्व के सभी गणों के स्वामी, सूर्य अर्थात् सर्वगत (सभी जगह जाने वाले), शक्ति अर्थात् सामर्थ्य ।
संसार में देवपूजा को स्थायी रखने के उद्देश्य से वेदव्यासजी ने विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग पुराणों की रचना की। अपने-अपने पुराणों में इन देवताओं को सृष्टि को पैदा करने वाला, पालन करने वाला और संहार करने वाला अर्थात् ब्रह्म माना गया है। जैसे विष्णुपुराण में विष्णु को, शिवपुराण में शिव को, गणेशपुराण में गणेश को, सूर्यपुराण में सूर्य को और शक्तिपुराण में शक्ति को ब्रह्म माना गया है। अत: मनुष्य अपनी रुचि अथवा भावना के अनुसार किसी भी देव को पूजे, उपासना एक ब्रह्म की ही होती है क्योंकि पंचदेव ब्रह्म के ही प्रतिरुप (साकार रूप) हैं। उनकी उपासना या आराधना में ब्रह्म का ही ध्यान होता है और वही इष्टदेव में प्रविष्ट रहकर मनोवांछित फल देते हैं। वही एक परमात्मा अपनी विभूतियों में आप ही बैठा हुआ अपने को सबसे बड़ा कह रहा है वास्तव में न तो कोई देव बड़ा है और न कोई छोटा।
एक उपास्य देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि अनुसार ।। (पद रत्नाकर)
पंचदेव और उनके उपासक
विष्णु के उपासक ‘वैष्णव’ कहलाते हैं,
शिव के उपासक ‘शैव’ के नाम से जाने जाते हैं, गणपति के उपासक ‘गाणपत्य’ कहलाते हैं, सूर्य के उपासक ‘सौर’ होते हैं, और शक्ति के उपासक ‘शाक्त’ कहलाते हैं । इनमें शैव, वैष्णव और शाक्त विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं ।
पंचदेवों के ही विभिन्न नाम और रूप हैं अन्य देवता
शालग्राम, लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण, गोविन्ददेव, सिद्धिविनायक, हनुमान, भवानी, भैरव, शीतला, संतोषीमाता, वैष्णोदेवी, कामाख्या, अन्नपूर्णा आदि अन्य देवता इन्हीं पंचदेवों के रूपान्तर (विभिन्न रूप) और नामान्तर हैं ।
पंचायतन में किस देवता को किस कोण (दिशा) में स्थापित करें?
पंचायतन विधि👉 पंचदेवोपासना में पांच देव पूज्य हैं। पूजा की चौकी या सिंहासन पर अपने इष्टदेव को मध्य में स्थापित करके अन्य चार देव चार दिशाओं में स्थापित किए जाते हैं। इसे ‘पंचायतन’ कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन पाँच देवों की मूर्तियों को अपने इष्टदेव के अनुसार सिंहासन में स्थापित करने का भी एक निश्चित क्रम है। इसे ‘पंचायतन विधि’ कहते हैं। जैसे👉
विष्णु पंचायतन
जब विष्णु इष्ट हों तो मध्य में विष्णु, ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में सूर्य और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी।
सूर्य पंचायतन
यदि सूर्य को इष्ट के रूप में मध्य में स्थापित किया जाए तो ईशान कोण में शिव, अग्नि कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में विष्णु और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी ।
देवी पंचायतन
जब देवी भवानी इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में सूर्य रहेंगे ।
शिव पंचायतन
जब शंकर इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में सूर्य, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में शक्ति का स्थान होगा।
गणेश पंचायतन
जब इष्ट रूप में मध्य में गणेश की स्थापना है तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में सूर्य तथा वायव्य कोण में शक्ति की पूजा होगी।
शास्त्रों के अनुसार यदि पंचायतन में देवों को अपने स्थान पर न रखकर अन्यत्र स्थापित कर दिया जाता है तो वह साधक के दु:ख, शोक और भय का कारण बन जाता है।
देवता चाहे एक हो, अनेक हों, तीन हों या तैंतीस करोड़ हो, उपासना ‘पंचदेवों’ की ही प्रसिद्ध है। इन सबमें गणेश का पूजन अनिवार्य है। यदि अज्ञानवश गणेश का पूजन न किया जाए तो विघ्नराज गणेशजी उसकी पूजा का पूरा फल हर लेते हैं।