पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोधपुर

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पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोधपुर के इतिहास, जानकारी, सूचना, शिक्षा, रोजगार, विवाह, व्यवसाय, भवन, सम्पत्ति, सेवा एवं सहयोग इत्यादि की सूचना एवं समाज को एकीकृत कर विकसित समाज के लिए प्रयासरत संस्था।
जय माँ उष्ट्रवाहिनी। जय जय पुष्करणा।
जय श्री मण्डलनाथ री सा।

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में पंचायतन पूजन पद्धति की स्थापना की थी। इसमें उन्होंने पाँच प्रमुख देवताओं को एक ...
30/09/2025

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में पंचायतन पूजन पद्धति की स्थापना की थी। इसमें उन्होंने पाँच प्रमुख देवताओं को एक समान महत्व दिया, ताकि विभिन्न संप्रदायों में मतभेद समाप्त हो और सभी एक ईश्वरत्व की ओर उन्मुख हों।

वे पाँच देवता हैं –
1. भगवान शिव
2. भगवान विष्णु
3. भगवान गणेश
4. भगवती आदिशक्ति (देवी/दुर्गा/पार्वती/लक्ष्मी)
5. सूर्य देव

👉 इस पद्धति में इन पाँच देवताओं की उपासना एक साथ की जाती है, और उपासक अपनी श्रद्धा अनुसार इनमें से किसी एक को इष्ट देवता मानकर पूजता है।

🌸 1. पृष्ठभूमि
शंकराचार्य जी के समय (8वीं शताब्दी) में समाज में कई मत-मतान्तर और संप्रदाय सक्रिय थे।

कोई केवल शैव था (केवल शिव की पूजा करता था),
कोई वैष्णव था (केवल विष्णु की भक्ति करता था),
कोई शाक्त था (देवी को ही सर्वोच्च मानता था),
कोई केवल सौर (सूर्य उपासक) था,
और कोई गाणपत्य (गणेश उपासक) था।

इन संप्रदायों के बीच अक्सर टकराव हो जाता था और लोग एक-दूसरे की पूजा पद्धति को नीचा दिखाते थे।

🌸 2. शंकराचार्य जी का समाधान
शंकराचार्य जी ने अद्वैत वेदांत के आधार पर बताया कि
"सभी देवता एक ही परम सत्य (ब्रह्म) के अलग-अलग रूप हैं।"

यही कारण था कि उन्होंने पंचायतन पूजन पद्धति की स्थापना की।

इसमें पाँच देवताओं (शिव, विष्णु, गणेश, देवी, सूर्य) को एक साथ पूजने का विधान किया।

उपासक इनमें से किसी एक को इष्ट देवता मान सकता है, लेकिन बाकी देवताओं का भी सम्मान और पूजन करना चाहिए।

🌸 3. महत्व और उद्देश्य
1. समन्वय – विभिन्न संप्रदायों में एकता और मेल-मिलाप स्थापित करना।
2. समानता – किसी एक देवता को सर्वोच्च बताकर अन्य को छोटा न दिखाना।
3. अद्वैत का अभ्यास – यह समझाना कि सब देवता एक ही ब्रह्म के रूप हैं।
4. सामाजिक एकता – समाज को संप्रदायवाद और आपसी झगड़ों से बचाना।
5. सर्वमान्य पूजा – हर घर में सब देवताओं का सम्मान और पूजन हो सके।

🌸 4. पूजा की पद्धति
पूजा में एक मंडल या चौकोर वेदी बनाई जाती है।
बीच में इष्ट देवता की मूर्ति या शिलारूप स्थापित किया जाता है।
चारों कोनों पर बाकी चार देवताओं की मूर्तियाँ/प्रतीक रखे जाते हैं।
इस प्रकार पाँच देवताओं की सामूहिक उपासना होती है।

👉 इसलिए शंकराचार्य जी की पंचायतन पूजा का सार यही है कि –
“सभी देवता एक ही परम सत्य (ब्रह्म) के भिन्न रूप हैं, किसी में भेदभाव नहीं।”

🪔 पंचायतन पूजा की गृहस्थ व्यवस्था

1. वेदी (स्थान की तैयारी)
घर में पूजा का एक स्वच्छ स्थान निर्धारित करें।
वहाँ एक चौकोर या गोल वेदी (मंडल) बनाएं।
बीच में इष्ट देवता की मूर्ति/शिला रखें।
चारों कोनों में शेष चार देवताओं को रखें।
👉 सामान्यतः व्यवस्था इस प्रकार होती है:
मध्य (बीच में) → इष्ट देवता (जो मनपसंद हो – शिव, विष्णु, देवी, गणेश या सूर्य)
पूर्व दिशा → सूर्य
दक्षिण दिशा → गणेश
पश्चिम दिशा → विष्णु
उत्तर दिशा → देवी
(शिव की भी एक निश्चित स्थिति होती है, जो इष्ट देवता न हों तो बाकी स्थान पर स्थापित होते हैं)

2. पूजन सामग्री
जल, दीपक, धूप, फूल, चंदन, अक्षत (चावल), नैवेद्य (भोग), घी का दीपक।
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) भी स्नान के लिए रखा जाता है।

3. पूजन विधि (सरल गृहस्थ पद्धति)
1. सबसे पहले आचमन और संकल्प लें।
2. पाँचों देवताओं को जल, पुष्प, अक्षत, दीप और धूप से अर्पित करें।
3. बीच में रखे इष्ट देवता की विशेष पूजा करें (मंत्र जप, स्तोत्र आदि)।
4. शेष चार देवताओं को भी सम्मानपूर्वक नमस्कार करें।
5. अंत में आरती और नैवेद्य अर्पित करें।
6. परिवार सहित प्रणाम करें।

4. विशेष नियम
पूजन में किसी देवता को छोटा-बड़ा न मानें।
इष्ट देवता को केंद्र में रखकर बाकी देवताओं को समान श्रद्धा से पूजें।
दैनिक पूजा समय बहुत अधिक न हो सके तो भी – दीपक जलाना, जल अर्पित करना और नमस्कार करना पर्याप्त है।

5. लाभ
घर में सद्भाव और शांति बनी रहती है।
संप्रदायिक पक्षपात नहीं रहता।
मन में यह भावना पुष्ट होती है कि – “सभी देवता एक ही ब्रह्म के रूप हैं।”
परिवार में धर्म, संस्कार और एकता का वातावरण रहता है।

🪔 पंचायतन पूजा – संक्षिप्त घरेलू क्रम

1. प्रारंभ
आसन पर बैठें, जल से आचमन करें और संकल्प लें।
दीपक जलाएँ।

2. गणेश पूजन (दक्षिण दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ गं गणपतये नमः ।
(फूल अर्पित करें और प्रणाम करें।)

3. सूर्य पूजन (पूर्व दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ आदित्याय नमः ।
(दीपक दिखाएँ और जल अर्पित करें।)

4. विष्णु पूजन (पश्चिम दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
(फूल और अक्षत चढ़ाएँ।)

5. देवी पूजन (उत्तर दिशा)
👉 मंत्र –
ॐ दुं दुर्गायै नमः ।
(चंदन, फूल, अक्षत अर्पित करें।)

6. शिव पूजन (यदि इष्ट न हों तो शेष स्थान पर)
👉 मंत्र –
ॐ नमः शिवाय ।
(अभिषेक जल या फूल चढ़ाएँ।)

7. इष्ट देवता (मध्य में)
👉 अपने इष्ट देवता का विशेष मंत्र जपें।
उदाहरण:
शिव इष्ट हो तो – ॐ नमः शिवाय
विष्णु इष्ट हो तो – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गणेश इष्ट हो तो – ॐ गं गणपतये नमः
देवी इष्ट हो तो – ॐ दुं दुर्गायै नमः
सूर्य इष्ट हो तो – ॐ सूर्याय नमः

8. समर्पण
सभी देवताओं से प्रार्थना करें:
सर्वे देवाः प्रसन्नन्तु सर्वे मे मंगलानि भूयुः ।

9. आरती और नैवेद्य
दीपक से आरती करें।
थोड़ा फल, दूध या मिठाई नैवेद्य अर्पित करें।
परिवार सहित प्रणाम करें।

👉 इस तरह 5–10 मिनट में भी रोज़ पंचायतन पूजा पूरी हो सकती है।

पंचायतन (पाँच देवताओ) की पुजा का महत्त्व एवं विधि
हिन्दू पूजा पद्यति में किसी भी कार्य का शुभारंभ करने अथवा जप-अनुष्ठान एवं प्रत्येक मांगलिक कार्य के आरंभ में सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता, एक ही परमात्मा पांच इष्ट रूपों में पूजे जाते है।

निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव

परब्रह्म परमात्मा निराकार व अशरीरी है, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उसके स्वरूप का ज्ञान असंभव है । इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार रूप में पांच देवों को उपासना के लिए निश्चित किया जिन्हें पंचदेव कहते हैं ।

ये पंचदेव हैं—विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और शक्ति।

👉 सूर्य, गणेश, देवी, रुद्र और विष्णु—ये पांच देव सब कामों में पूजने योग्य हैं, जो आदर के साथ इनकी आराधना करते हैं वे कभी हीन नहीं होते, उनके यश-पुण्य और नाम सदैव रहते हैं ।

वेद-पुराणों में पंचदेवों की उपासना को महाफलदायी और उसी तरह आवश्यक बतलाया गया है जैसे नित्य स्नान को । इनकी सेवा से ‘परब्रह्म परमात्मा’ की उपासना हो जाती है ।

अन्य देवताओं की अपेक्षा इन पांच देवों की प्रधानता ही क्यों?

अन्य देवों की अपेक्षा पंचदेवों की प्रधानता के दो कारण हैं—

१.👉 पंचदेव पंचभूतों के अधिष्ठाता (स्वामी) हैं।

पंचदेव आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी—इन पंचभूतों के अधिपति हैं ।

👉 सूर्य वायु तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी अर्घ्य और नमस्कार द्वारा आराधना की जाती है ।

👉 गणेश के जल तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान हैं, क्योंकि सृष्टि के आदि में सर्वत्र ‘जल’ तत्त्व ही था ।

👉 शक्ति (देवी, जगदम्बा) अग्नि तत्त्व की अधिपति हैं इसलिए भगवती देवी की अग्निकुण्ड में हवन के द्वारा पूजा करने का विधान हैं ।

👉 शिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा करने का विधान हैं ।

👉 विष्णु आकाश तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं ।

२.👉 अन्य देवों की अपेक्षा इन पंचदेवों के नाम के अर्थ ही ऐसे हैं कि जो इनके ब्रह्म होने के सूचक हैं।

विष्णु अर्थात् सबमें व्याप्त, शिव यानी कल्याणकारी, गणेश अर्थात् विश्व के सभी गणों के स्वामी, सूर्य अर्थात् सर्वगत (सभी जगह जाने वाले), शक्ति अर्थात् सामर्थ्य ।

संसार में देवपूजा को स्थायी रखने के उद्देश्य से वेदव्यासजी ने विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग पुराणों की रचना की। अपने-अपने पुराणों में इन देवताओं को सृष्टि को पैदा करने वाला, पालन करने वाला और संहार करने वाला अर्थात् ब्रह्म माना गया है। जैसे विष्णुपुराण में विष्णु को, शिवपुराण में शिव को, गणेशपुराण में गणेश को, सूर्यपुराण में सूर्य को और शक्तिपुराण में शक्ति को ब्रह्म माना गया है। अत: मनुष्य अपनी रुचि अथवा भावना के अनुसार किसी भी देव को पूजे, उपासना एक ब्रह्म की ही होती है क्योंकि पंचदेव ब्रह्म के ही प्रतिरुप (साकार रूप) हैं। उनकी उपासना या आराधना में ब्रह्म का ही ध्यान होता है और वही इष्टदेव में प्रविष्ट रहकर मनोवांछित फल देते हैं। वही एक परमात्मा अपनी विभूतियों में आप ही बैठा हुआ अपने को सबसे बड़ा कह रहा है वास्तव में न तो कोई देव बड़ा है और न कोई छोटा।

एक उपास्य देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि अनुसार ।। (पद रत्नाकर)

पंचदेव और उनके उपासक

विष्णु के उपासक ‘वैष्णव’ कहलाते हैं,
शिव के उपासक ‘शैव’ के नाम से जाने जाते हैं, गणपति के उपासक ‘गाणपत्य’ कहलाते हैं, सूर्य के उपासक ‘सौर’ होते हैं, और शक्ति के उपासक ‘शाक्त’ कहलाते हैं । इनमें शैव, वैष्णव और शाक्त विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं ।

पंचदेवों के ही विभिन्न नाम और रूप हैं अन्य देवता

शालग्राम, लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण, गोविन्ददेव, सिद्धिविनायक, हनुमान, भवानी, भैरव, शीतला, संतोषीमाता, वैष्णोदेवी, कामाख्या, अन्नपूर्णा आदि अन्य देवता इन्हीं पंचदेवों के रूपान्तर (विभिन्न रूप) और नामान्तर हैं ।

पंचायतन में किस देवता को किस कोण (दिशा) में स्थापित करें?

पंचायतन विधि👉 पंचदेवोपासना में पांच देव पूज्य हैं। पूजा की चौकी या सिंहासन पर अपने इष्टदेव को मध्य में स्थापित करके अन्य चार देव चार दिशाओं में स्थापित किए जाते हैं। इसे ‘पंचायतन’ कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन पाँच देवों की मूर्तियों को अपने इष्टदेव के अनुसार सिंहासन में स्थापित करने का भी एक निश्चित क्रम है। इसे ‘पंचायतन विधि’ कहते हैं। जैसे👉

विष्णु पंचायतन
जब विष्णु इष्ट हों तो मध्य में विष्णु, ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में सूर्य और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी।

सूर्य पंचायतन
यदि सूर्य को इष्ट के रूप में मध्य में स्थापित किया जाए तो ईशान कोण में शिव, अग्नि कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में विष्णु और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी ।

देवी पंचायतन
जब देवी भवानी इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में सूर्य रहेंगे ।

शिव पंचायतन
जब शंकर इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में सूर्य, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में शक्ति का स्थान होगा।

गणेश पंचायतन
जब इष्ट रूप में मध्य में गणेश की स्थापना है तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में सूर्य तथा वायव्य कोण में शक्ति की पूजा होगी।

शास्त्रों के अनुसार यदि पंचायतन में देवों को अपने स्थान पर न रखकर अन्यत्र स्थापित कर दिया जाता है तो वह साधक के दु:ख, शोक और भय का कारण बन जाता है।

देवता चाहे एक हो, अनेक हों, तीन हों या तैंतीस करोड़ हो, उपासना ‘पंचदेवों’ की ही प्रसिद्ध है। इन सबमें गणेश का पूजन अनिवार्य है। यदि अज्ञानवश गणेश का पूजन न किया जाए तो विघ्नराज गणेशजी उसकी पूजा का पूरा फल हर लेते हैं।

अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत रूप का पूजन एवं कथा।अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु जी की पूजा करने से विशेष फलों की...
07/09/2025

अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत रूप का पूजन एवं कथा।

अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु जी की पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति हो सकती है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और पापों से मुक्ति मिल जाती है।

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।

सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। अब पूजा आरंभ करें।

सबसे पहले एक चौकी में पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या स्वरूप स्थापित करें।
इसके साथ ही तांबा या पीतल का कलश, घी का दीपक सहित अन्य सामग्री रख लें।

अनंत सूत्र (धागा) की तैयारी कर लें। इसके लिए एक कच्चे धागे में 14 गांठ लगाएं और इसे हल्दी और केसर से रंग लें।
अब पूजा आरंभ करें। भगवान विष्णु को जल, फूल, माला, चंदन, अक्षत, तुलसीदल, फल और भोग अर्पित करें।
इसके साथ ही अनंत सूत्र अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक जला लें।
विष्णु सहस्रनाम या अनंत व्रत कथा का पाठ करें।
अंत में विष्णु जी की आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
दिनभर व्रत रखें और शाम को पूजा के साथ व्रत का समापन कर लें।

ऐसे करें अनंत सूत्र धारण
भगवान को चढ़ाया हुआ अनंत सूत्र उठा लें और पुरुष दाहिने हाथ और महिलाएं बाएं हाथ में बांध लें। इसे बांधते समय भगवान विष्णु से रक्षा और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

अनंत चतुर्दशी पर करें इन मंत्रों का जाप अवश्य करे।

विष्णु मूल मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॥

विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥

शांतिप्रदायक विष्णु मंत्र
ॐ विष्णवे नमः ॥

संकटनाशक मंत्र
ॐ नारायणाय नमः ॥

अनंत चतुर्दशी के त्योहार का हिंदू धर्म में खास महत्व होता है। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी पड़ती है। इस व्रत को रखने से जातक के जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। वहीं, इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है और व्रत कथा का पाठ करना भी अनिवार्य होता है। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं।
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन गणेश भगवान की मूर्ति का विसर्जन करने के साथ-साथ व्रत रखने का भी खास महत्व होता है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है और विधि-विधान से व्रत रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जातक के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। वहीं, व्रत कथा का पाठ करना भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। इससे आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो सकती है।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
महाराज युधिष्ठिर ने एक बार राजसूय यज्ञ किया था और यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत ही सुंदर और अद्भुत तरीके से कराया गया था। यज्ञ के मंडप में जल की जगह स्थल तो स्थल की जगह जल की भ्रांति होती थी। इसी के चलते दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जाकर गिर गए। जब द्रौपदी ने यह देखा तो उनका उपहास करते हुए बोलीं कि अंधे की संतान भी अंधी होती है। इस कटुवचन को सुनकर दुर्योधन बहुत आहत हो गए और अपने अपमान का बदला लेने हेतु उसने युधिष्ठिर को द्युत यानी जुआ खेलने के लिए बुला लिया। वहां, छल से जीत हासिल करके पांडवों को 12 वर्ष का वनवास दे दिया।

वन में रहते वक्त उन्हें अनेक प्रकार के कष्टों को सहना पड़ा। फिर एक दिन वन में भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने के लिए गए। तब युधिष्ठिर ने उन्हें अपना सब हाल विस्तार से बताया और इस विपदा से निकलने का मार्ग दिखाने के लिए कहा। इसके उत्तर में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा। उन्होंने व्रत के बारे में बताया कि इसे करने से खोया हुआ राज्य भी प्राप्त हो जाएगा। वार्तालाप करने के बाद कृष्णजी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाने लगते हैं।

उन्होंने कहा, प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था और उसकी एक सुशीला नामक कन्या थी। जब कन्या बड़ी हो गई तो ब्राह्मण ने कौण्डिन्य ऋषि से उसका विवाह कर दिया। विवाह संपन्न होने के बाद कौण्डिन्य ऋषि अपने आश्रम की तरफ चल लगे। मार्ग में रात होने पर वह नदी किनारे आराम करने रहे थे। तभी सुशीला के पूछने पर उन्होंने अनंत व्रत का महत्व बताया। इसके बाद, सुशीला ने उसी स्थान पर व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया। इसके बाद, वह अपने पति के पास आ गई।

कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में डोरे बंधे देखा तो उसके बारे में पूछने लगे। तभी सुशीला ने उन्हें सारी बात बता दी। लेकिन कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात सुनकर बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं हुए और उसके हाथ में बंधे डोर को भी आग लगाकर जला दिया। जिससे अनंत भगवान का अपमान हुआ और इसके परिणामस्वरूप कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई। सुशीला ने इसके पीछे का कारण डोर का आग लगाना बताया। इसके बाद, ऋषि पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए अनंत भगवान की खोज में वन की ओर निकल गए। वहां भटकते-भटकते वह निराश होकर गिर पड़े और बेहोश हो गए।

भगवान अनंत ने उन्हें तब दर्शन दिया और कहा कि मेरे अपमान के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई और सारी विपत्तियां आई। लेकिन अब तुम्हारे पश्चाताप से मैं प्रसन्न हूं और अब तुम अपने आश्रम में वापस जाओ और 14 साल तक मेरे इस व्रत को विधि-विधान से करो। ऐसा करने से तुम्हारे समस्त कष्ट दूर हो जाएंगे। इसके बाद कौण्डिनय ऋषि ने वैसा ही किया जैसा भगवान ने कहा था। इससे उनके सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें मोक्ष भी प्राप्त हो गया। युधिष्ठिर ने भी श्रीकृष्ण की आज्ञा से अनंत भगवान का व्रत किया। जिससे महाभारत के युद्ध में पांडवों को जीत प्राप्त हुई।

09/08/2025

ब्राह्मण की पहचान
1. शिखा 2. भस्म त्रिपुंड, चंदन तिलक
3. रुद्राक्ष माला 4. जनेऊ
5. मौली रक्षा सूत्र

आज हमारे देश में एक ऐसी पीढ़ी सामने आ रही है जो आर्थिक रूप से तो मजबूत परिवारों से है, लेकिन मानसिक, सामाजिक और आत्मिक र...
08/08/2025

आज हमारे देश में एक ऐसी पीढ़ी सामने आ रही है जो आर्थिक रूप से तो मजबूत परिवारों से है, लेकिन मानसिक, सामाजिक और आत्मिक रूप से बहुत उलझी हुई है। यह पीढ़ी एक विचित्र द्वंद्व में जी रही है — Superiority और Inferiority Complex एक साथ!

न कुछ ठीक से कर पा रहे हैं, न छोड़ पा रहे हैं।

न नौकरी रास आ रही है, न पारिवारिक बिज़नेस।

न खुद को साधारण दिखा सकते हैं, न अमीर जैसा जी पा रहे हैं।

एक कहानी, जो आज बहुत आम है:

मान लीजिए किसी के पिता का ट्रांसपोर्ट या कंस्ट्रक्शन बिज़नेस है।
कई ट्रक हैं, करोड़ों का टर्नओवर है।

बेटा अच्छे कॉलेज से ग्रेजुएट है। लेकिन जैसे ही पिता कहते हैं
"बेटा, अब तू बिज़नेस संभाल"
तो बेटा पीछे हट जाता है।

क्यों?

क्योंकि उसके दोस्तों की नौकरी MNC में है।
कोई अमेरिका जा रहा है, कोई बंगलुरु के ऑफिस में बैठा है।
उसे लगता है "मैं ट्रक वालों से उठ-बैठ कैसे करूं? मेरा तो स्टेटस गिर जाएगा!"

इसलिए वो स्लीक सूट पहनकर मेट्रो सिटी में नौकरी कर रहा है।
सैलरी 1 लाख, लेकिन रेंट 50-60 हज़ार।
हर महीने का अंत – ज़ीरो बैलेंस!
10 साल की नौकरी में सेविंग्स – बस 2-3 लाख!
ना घर खरीदा, ना गाड़ी, ना जीवन का ठिकाना।

उधर पिता – एक पुराने टिन शेड वाले ऑफिस में,
लकड़ी की कुर्सी पर बैठकर लाखों का काम निपटा रहे हैं।
बिना AC, बिना ड्रामा, बिना इमेज की चिंता किए।

सच्चाई क्या है?

कई बार पिता खुद भी नहीं चाहते कि बेटा उनके धंधे में आए।
उन्हें अच्छा लगता है जब कह सकते हैं
"मेरा बेटा SBI में अफसर है, MNC में मैनेजर है।"

लेकिन जब अचानक पिता नहीं रहते,
तो पूरा बिज़नेस ठप हो जाता है।
क्योंकि बेटा कुछ जानता ही नहीं
ना फील्ड, ना लेबर, ना ग्राहक, ना सिस्टम।

दूसरी ओर, वो बच्चे...

जो न तो ज्यादा पढ़ पाए,
और न ही पिता ने बिज़नेस में बिठाया,
वे गांव-कस्बे में अमीर का बेटा कहलाकर घूमते हैं।
नौकरी कर नहीं सकते क्योंकि लोग कहते हैं
"अरे ये तो सेठ का बेटा है, इसे हम क्या काम देंगे?"

छोटे पद की नौकरी मिल भी जाए,
तो बॉस को उसे डांटने में हिचक होती है।
ऐसे में वो या तो बेरोजगार रहता है, या फिर नकारात्मक सोच में डूब जाता है:

"मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं किसी काम का नहीं हूं।"

असल सच्चाई क्या है?

भारत के अधिकतर ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़,
सेकंड जेनरेशन के बच्चों ने बनाए हैं।

पिता ने शुरुआत की – चाय, बीड़ी, कपड़े या ट्रक से।

बेटे ने पढ़ाई के बाद – सीमेंट, सिरेमिक, रियल एस्टेट या टेक्नोलॉजी में कदम रखा।

पिता ने सिर्फ मार्गदर्शक की भूमिका निभाई।

आपके पिता का जो 30-40 साल पुराना लाइसेंस है –
कंस्ट्रक्शन का, ट्रांसपोर्ट का, ट्रेडिंग का –
वो एक सोने की खान है।

आप उसपर अपने आइडिया और पढ़ाई की समझ लगाएं,
तो वो बिज़नेस ग्रुप बन सकता है।

असली अमीर कौन?

जो सादा कपड़े पहनकर काम करता है,
पर उसकी कंपनी में दर्जनों सूटेड-बूटेड लोग काम करते हैं।

जो बाहर से दिखावा नहीं करता,
लेकिन अंदर से आत्मविश्वास से भरपूर होता है।

और जो सिर्फ दिखावे में जीते हैं?

वे कभी न खुद को जान पाते हैं,
न अवसरों को।
ऊपर से फिट और स्मार्ट,
पर अंदर से खोखले
जैसे गाड़ी चमचमाती हो, पर इंजन ना हो।

आख़िरी बात:
“अगर आप जिंदगी भर हाथी का पैर पकड़कर बैठे रहेंगे, तो ना हाथी को जान पाएंगे, ना उसे चला पाएंगे।

छोटे स्तर से काम शुरू करिए।
जमीन से जुड़िए।
तभी बड़े व्यापार की समझ आएगी।

बैंक में बैठकर दूसरे के पैसों का हिसाब करने से आप खुद अमीर नहीं बन सकते।

👇 सीख:

अगर आपके पिता के पास बिज़नेस है, तो वो आपकी दौलत नहीं, आपकी ज़िम्मेदारी है।

उसे संभालिए,
उस पर गर्व कीजिए,
और अपने ज्ञान और नज़रिया से उसे 10 गुना बड़ा बनाइए।

पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोधपुर की सम्पतियों की सूचीआभारManmohan Joshi जी साब का।
08/08/2025

पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोधपुर की सम्पतियों की सूची

आभार
Manmohan Joshi जी साब का।

शिखा (ब्राह्मणों के चोटी नही शिखा होती है) रखने के वैज्ञानिक और वैदिक कारण और अभूतपूर्व लाभ शिखा का अधिपति मर्म क्षेत्र ...
08/08/2025

शिखा (ब्राह्मणों के चोटी नही शिखा होती है) रखने के वैज्ञानिक और वैदिक कारण और अभूतपूर्व लाभ

शिखा का अधिपति मर्म क्षेत्र होता है। यह अधिपति मर्म क्षेत्र वह स्थान है जहां पर व्यक्ति की समस्त नाड़ियों का मेल होता है और यह अधिपति मर्म स्थान ही शरीर को संतुलित करता है।

शिखा का आकार-
धर्मं ग्रंथो और शास्त्रों के अनुसार शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के समान होना चाहिए, न उससे अधिक और न ही उससे कम। ग्रंथो में कहा जाता है कि शिखा का आकर इससे कम या ज्यादा होने पर वह ठीक से काम नहीं कर पाती है।

शिखा क्यो बांधी जाती है / शिखा बंधन क्यों?
शिखा को जीवन का आधार माना गया है, मस्तिष्क के भीतर जहां पर बालों का आवर्त या भंवर होता है उस स्थान पर नाड़ियों का मेल होता है, जिसे अधिपति मर्म कहा जाता है। यह स्थान बहुत ही नाजुक होता है जिस पर चोट लगने पर व्यक्ति की तुरंत मृत्यु हो सकती है। शिखा में गांठ लगाने पर वह इस स्थान पर कवच के जैसे कार्य करती है, यह तीव्र सर्दी और गर्मी से इस स्थान को सुरक्षित रखने के साथ ही चोट लगने से भी बचाव करती है।

शिखा बंधन मस्तिष्क की उर्जा तरंगों की रक्षा कर व्यक्ति की आत्मशक्ति बढ़ाता है।

पूजा पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिष्क में संकलित ऊर्जा तरंगे बाहर नहीं निकल पाती है और वह अंतर्मुखी हो जाती है। इनके अंतर्मुखी हो जाने से मानसिक शक्तियों को पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति वहीं वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोतरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अनिष्टकर प्रभाव से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता जैसे अनेक लाभ मिलते हैं।

शिखा कब बांधनी चाहिए
शास्त्रों के अनुसार संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मंत्र के साथ शिखा बंधन का विधान है। किसी भी प्रकार की साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मंत्र के साथ होता है जो कि एक सनातन परंपरा है।

स्नान, दान, जप, होम, संध्या और देव पूजन के समय शिखा में गांठ अवश्य लगानी चाहिए।

मंत्र उच्चारण और अनुष्ठान करने के समय भी शिखा में गांठ मारने का विधान है, इसका कारण यह है कि गांठ मारने से मंत्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली समस्त ऊर्जा शरीर में ही एकत्र होती है।

शिखा बंधन मंत्र
वेसे तो गायत्री मंत्र के साथ शिखा बांधी जाती है, लेकिन इस मंत्र के साथ भी शिखा बंधन किया जा सकता है।

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।
अथार्थ
यानी कि जो चित्रस्वरूपी महामाया है, जो दिव्य तेजोमयी है, वह महामाया शिखा के मध्य में निवास करें और तेज में वृद्धि करें।

इस समय शिखा खोल देनी चाहिए या इस समय शिखा नही बंधी होनी चाहिए -
धर्म ग्रंथों के अनुसार व्यक्ति को लघुशंका, दीर्घशंका, मैथुन एवं किसी शव यात्रा को कंधा देते वक्त शिखा को खोल देना चाहिए। शिखा ज्ञान प्राप्त करने का और अपनी देह को स्वस्थ रखने का उत्तम माध्यम है।

मन बुद्धि और शरीर को नियंत्रण करने में भी सहायक -
शरीर के पांच चक्रों में सहस्त्रार चक्र इसी स्थान पर होता है जहा शिखा रखी जाती है। शिखा रखने से सहस्त्रार चक्र को जागृत करने और शरीर बुद्धि व मन को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।

जिस स्थान पर शिखा होती है वह स्थान अन्य जगहों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है वहीं पर सुषुम्ना नाड़ी भी होती है। इसी स्थान के कारण वातावरण से उस्मा व अन्य ब्रह्मांड की विद्युत चुंबकीय तरंगे मस्तिक से सरलता से आदान प्रदान कर लेती है। इस स्थान पर शिखा रखने से मस्तिष्क के यथोचित उपयोग के लिए नियंत्रित ताप प्राप्त होता है।

शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक -
शिखा या चौटी का हल्का का दबाव पड़ने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है, जो मस्तिष्क को बहुत ही फायदा पहुंचाता है। शिखा रखने से व्यक्ति प्राणायाम अष्टांग योग आदि योगिक क्रियाओं को ठीक प्रकार से कर सकता है। शिखा रखने से व्यक्ति की नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है, वही यह रखने से व्यक्ति स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु रहता है।

शिखा कुंडली पर भी प्रभाव डालती है जिससे जिस किसी भी व्यक्ति की कुंडली में राहु खराब या निम्न स्तर पर होकर खराब असर दे रहा होता है तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर शिखा रखने की सलाह दी जाती है।

शिखा रखने पर देवता भी करते है मनुष्य की रक्षा,
सर पर शिखा रखने के वैज्ञानिक महत्व -
विज्ञान के अनुसार शिखा रखे जाने का स्थान मस्तिष्क का केंद्र होता है। इसी स्थान से बुद्धि, मन और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है इसी कारण इस स्थान पर शिखा रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस स्थान पर होने वाले सहस्त्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।

वेद ही नही विज्ञान ने भी बताया है शिखा का महत्व
शिखा रखने के महत्व को न केवल वेद ने बल्कि विज्ञान ने भी अनेक अवसरों पर प्रमाणित किया है। शिखा सुषुम्ना की रक्षा करती है एवं इससे स्मरण शक्ति का भी विकास होता है साथ ही यह मानसिक रोगों से भी बचाव करती है। शिखा के कसकर बंधने से मस्तिष्क पर दबाव बनता है जिससे रक्त का संचार सही तरीके से होता है। शिखा रखने के स्थान पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है जिससे उस रस का निर्माण होता है जो पूरे शरीर और बुद्धि को तेज, संपन्न, स्वस्थ और चिरंजीवी बनाता है। शिखा रहने से वह स्थान स्वस्थ रहता है।

शिखा रखने के कारण

1. परंपरा के मुताबिक हिंदू ब्राह्मण के बच्चे को जब दीक्षा देते हैं या संस्कारित करते हैं तो उनके सिर के बाकी के बाल उतरवाकर एक शिखा छोड़ देते हैं। ब्राह्मण के बच्चे साधना से पहले अपनी चोटी को पकड़कर उसे घुमाते, मोड़ते और खींचते हैं और सिर की चोटी को बांधने से पहले वह उस बिंदु पर पर्याप्त जोर डालते हैं।

2. पहले के समय सभी ब्राह्मण हर दिन अपनी शिखा के बाल पकड़कर खींचते थे, रोजाना साधना से पहले वह शिखा को खींचकर कसकर बांध देते थे। माना जाता है कि ऐसा करने से साधना बेहतर होती थी और परमात्मा के प्रति गहरी भावना उत्पन्न होती थी।

3. ब्राह्मण पुरुषों के सिर पर शिखा रखने का सबसे बड़ा कारण सुषुम्ना नाड़ी को बताया जाता है। कहा जाता है कि शिखा के ठीक नीचे यह नाड़ी होती है जो कपाल तंत्र की दूसरी खुली जगहों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील भी होती है।

4. सिर पर शिखा रखकर आसानी से तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है यही बड़ी वजह है कि प्राचीन काल से ही सिर पर शिखा रखने का प्रचलन है। पहले के समय जो शिखा नहीं रखते थे वह व्यक्ति अपने सिर पर पगड़ी बांध कर रखते थे।

5. प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में पांच चक्र होते हैं, जिसमें से सहस्त्रार चक्र इसी स्थान पर होता है इस जगह पर शिखा रखने से यह चक्र जागृत होता है जिससे मन और बुद्धि नियंत्रित रहती है।

6. शरीर के जिस भाग पर शिखा रखी जाती है वह स्थान बौद्धिक क्षमता, बुद्धिमता और शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करता है साथ ही मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को सुचारू रूप से रखने में भी सहायता करता है।

7. सिर पर शिखा को कसकर बांधने की वजह से मस्तिष्क पर दबाव बनता है और रक्त का संचार सही तरीके से होता है।

8. सिर पर शिखा रखने से व्यक्ति योगासनों को भी सही तरीके से कर पाता है एवं इसकी सहायता से आंखों की रोशनी भी सही रहती है और वह शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं सक्रीय रहता है।

जय शंकर।

 #पुष्टिकर_ब्राह्मणों की कुलदेवी  #माँ_उष्ट्रवाहिनी के प्राकट्य दिवस (श्रावण शुक्ल त्रयोदशी)  #पुष्करणा_दिवस की सभी  #पु...
06/08/2025

#पुष्टिकर_ब्राह्मणों की कुलदेवी #माँ_उष्ट्रवाहिनी के प्राकट्य दिवस (श्रावण शुक्ल त्रयोदशी) #पुष्करणा_दिवस की सभी #पुष्करणा_ब्राह्मण_समाज बंधुओं को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।

जय माँ उष्ट्रवाहिनी।
जय श्री मण्डलनाथ री सा।
जय जय पुष्करणा।

#सादर
पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोधपुर
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

अग्निहोत्री आश्रम के वर्तमान गादी पति श्री रविदत्त जी अग्निहोत्री को तिरुपति में आयोजित अग्निहोत्र सम्मेलन में श्री श्री...
03/08/2025

अग्निहोत्री आश्रम के वर्तमान गादी पति श्री रविदत्त जी अग्निहोत्री को तिरुपति में आयोजित अग्निहोत्र सम्मेलन में श्री श्री 1008 श्री विजेंद्र जी सरस्वती तथा श्री सत्य शेखरेन्द्र जी सरस्वती (कांची कमाकोटी पीठम) की कृपा सन्निधि प्राप्त हुई साथ ही केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री श्री नितिन जी गडकरी से आत्मीय भेंट की।

बहुत बहुत बधाई।

Ravi Dutt Agnihotri

Congratulations to Ms Sanjula Thanvi JiTaken over charge as    ,   Rajasthan. 30, July, 2025     #पुष्करणा  #पुष्टिकर  #...
30/07/2025

Congratulations to Ms Sanjula Thanvi Ji
Taken over charge as , Rajasthan.
30, July, 2025
#पुष्करणा #पुष्टिकर #ब्राह्मण

हाई एजुकेटेड बेरोजगार युवक एक बात गांठ बांध लें।6 महीने में आप बाइक के मैकेनिक बन सकते हो।6 महीने में आप कार के मैकेनिक ...
30/07/2025

हाई एजुकेटेड बेरोजगार युवक एक बात गांठ बांध लें।

6 महीने में आप बाइक के मैकेनिक बन सकते हो।
6 महीने में आप कार के मैकेनिक बन सकते हो।
6 महीने में आप साइकिल के मकैनिक बन सकते हो।
6 महीने में आप मधुमक्खी पालन सीख सकते हो।
6 महीने में आप दर्जी का काम सिख सकते हो।
6 महीने में आप डेयरी फार्मिंग सीख सकते हो।
6 महीने में आप हलवाई का काम सीख सकते हो।
6 महीने में आप घर की इलेक्ट्रिक वायरिंग सीख सकते हो।
6 महीने में आप घर का प्लंबर का कार्य सीख सकते हो।
6 महीने में आप मोबाइल रिपेयरिंग सीख सकते हो।
6 महीने में आप जूते बनाना सीख सकते हो।
6 महीने में आप दरवाजे बनाना सीख सकते हो।
6 महीने में आप वेल्डिंग का काम सीख सकते हो।
6 महीने में आप मिट्टी के बर्तन बनाना सीख सकते हो।
6 महीने में आप घर की चिनाई करना सीख सकते हैं।
6 महीने में आप योगासन सीख सकते हो।
6 महीने में आप मशरूम की खेती का काम सीख सकते हो।
6 महीने में आप बाल काटने सीख सकते हो।
6 महीने में आप बहुत से काम ऐसे सीख सकते हो जो आपके परिवार को भूखा नहीं सोने देगा।

आज भारत में सबसे अधिक दुखी वह लोग हैं जो बहुत अधिक पढ़ लिखकर बेरोजगार हैं।
जो शिक्षा आप को रोजगार न दे सके वह शिक्षा किसी काम की नहीं।
रोजगार के लिए आपका अधिक पढ़ा लिखा होना कोई मायने नहीं।
भारत में 90% रोजगार वे लोग कर रहे हैं जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं।
10% रोजगार पाने के लिए पढ़े लिखे लोगों में मारामारी है।।

स्वंय विचार करें।

11वॉ विशाल रक्तदान एवं निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन। जोधपुर। स्व. श्री मनीष जी जोशी की स्मृति में टीम "आशाएं अ रे ऑफ ...
28/07/2025

11वॉ विशाल रक्तदान एवं निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन।

जोधपुर। स्व. श्री मनीष जी जोशी की स्मृति में टीम "आशाएं अ रे ऑफ हॉप" द्वारा आयोजित" 11वा विशाल रक्तदान एवं निशुल्क चिकित्सा शिविर" हेतु कल रविवार 27 जुलाई 2025 को प्रातः 11 से 5 बजे तक सिवाची गेट श्री राम ऋषि ब्रह्मचर्य आश्रम ट्रस्ट जोधपुर द्वारा आयोजन किया गया। इसमें 112 रक्त दाताओं द्वारा रक्त दान किया गया।

साथ ही इस कैंप में डॉ. रोहित माथुर - हदय रोग विशेषज्ञ, डॉ शरद थानवी - न्यूरोसर्जन, डॉ इंदु थानवी - फिजिशियन, डॉ अनु राजपुरोहित - कैंसर विशेषज्ञ, डॉ अभिषेक बोड़ा - एमबीबीएस एमडी, डॉ सिद्धार्थ श्रीवास्तव - स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ श्वेता सिंह श्रीवास्तव - मनो चिकित्सा एवं नशा मुक्ति विशेषज्ञ, डॉ सवाई सिंह माली - हड्डी रोग विशेषज्ञ, डॉ शिवदत्त व्यास - दंत रोग विशेषज्ञ, डॉ पंकज जोशी - एमडी, डॉ अतुल कल्ला - फिजियोथैरेपिस्ट, डॉ राजेश पुरोहित - एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ, श्री महेंद्र जी व्यास - पूर्व नर्सिंग अधीक्षक एवं पूर्व प्रभारी कैथ लैब एमडीएम हॉस्पिटल ने कैम्प में पधारे 242 रोगियों को अपनी निशुल्क सेवाएं प्रदान की। साथ ही कैम्प में सभी तरह की 1500 से 2000 रुपये लागत की जाँचे पूर्ण रूप से निःशुल्क उपलब्ध करवाई गई।

आशाएं संस्था के अध्यक्ष आशीष व्यास ने बताया कि इस कैंप में रक्तदान को बढ़ावा देने एवं अपनी स्वास्थ्य की देखभाल के लिए समय समय पर ऐसे कैम्प पहले भी आयोजित होते रहे है और आगे भी होते रहेंगे।

जोधपुर के युवाओं की टीम द्वारा संचालित "आशाएं-अ रे ऑफ हॉप" संस्था के सभी पदाधिकारी भुवनेश्वर व्यास, निखिल व्यास, मोहित जोशी, अमित माथुर, अविनाश व्यास, अनिरुद्ध कल्ला, प्रवीण बोड़ा, राकेश बिस्सा, नितिन पुरोहित, कनिका व्यास एवं सहयोगी संस्थान श्री राम ऋषि ब्रह्मचारी आश्रम ट्रस्ट जोधपुर के सभी पदाधिकारी का सहयोग रहा।

🙏आमंत्रण🙏"आशायें... a ray of hope" और "Helping Hands" संस्था द्वाराश्री श्री 1008 रामऋषि महाराज जी की प्रेरणा सेस्व. श्र...
26/07/2025

🙏आमंत्रण🙏
"आशायें... a ray of hope" और "Helping Hands" संस्था द्वारा
श्री श्री 1008 रामऋषि महाराज जी की प्रेरणा से
स्व. श्री मनीष जोशी जी की स्मृति में
11वां विशाल चिकित्सा एवं रक्तदान शिविर

📅 दिनांक: रविवार, 27 जुलाई 2025
🕚 समय: सुबह 11:00 बजे से शाम 5:30 बजे तक
📍 स्थान: श्री रामऋषि आश्रम गड्डी, सिवांची गेट, जोधपुर

👨‍⚕️ विशेष सहयोग – जोधपुर के अनुभवी डॉक्टर्स की टीम:

1. डॉ. शरद थानवी – न्यूरो सर्जन विशेषज्ञ, MDM हॉस्पिटल
2. डॉ. रोहित माथुर – हृदय रोग विशेषज्ञ, MDM हॉस्पिटल
3. डॉ. इन्दु थानवी – फिजिशियन विशेषज्ञ, MDM हॉस्पिटल
4. डॉ. अनु रजपुरोहित – कैंसर विशेषज्ञ, मेडिपल्स हॉस्पिटल
5. डॉ. अभिषेक बोहरा – चेस्ट फिजिशियन
6. डॉ. सिद्धार्थ श्रीवास्तव – स्त्री रोग विशेषज्ञ / IVF, अम्बिका हॉस्पिटल
7. डॉ. श्वेता सिंह श्रीवास्तव – मानसिक रोग विशेषज्ञ, अम्बिका हॉस्पिटल
8. डॉ. सवाई सिंह माली – हड्डी रोग विशेषज्ञ, मेडिपल्स हॉस्पिटल
9. डॉ. शिवदत्त व्यास – दंत रोग विशेषज्ञ, वेद डेंटल केयर
10. डॉ. पंकज जोशी – एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ
11. डॉ. अतुल कल्ला – फिजियोथेरेपिस्ट
12. डॉ. राजेश पुरोहित – एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ

🧪 निःशुल्क जाँच सेवाएं उपलब्ध:
CBC, Sugar, HBA1C, Lipid Profile, Vitamin B12, Vitamin D3, LFT, RFT, T3, T4, TSH, BMD, Urine, CRP, Electrolyte, Thermal Screening for Women

📝 बेहतर परामर्श के लिए कृपया अपनी पुरानी मेडिकल रिपोर्ट साथ लाएं।

📞 संपर्क सूत्र:
9782379146 | 6375935923 | 7296916900
6350040936 | 9461030730 | 9782578403

🎯 सहयोगी संस्था:
श्री रामऋषि ब्रह्मचारी आश्रम ट्रस्ट, जोधपुर

Address

Jodhpur
342001

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