05/12/2025
वसुंधरा राजे को बड़ी चुनौती, अब करेगी क्या?
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पिछले एक सप्ताह से राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं, लेकिन अब मामला उत्तर प्रदेश की ओर से फंस रहा है। गृह मंत्री अमित शाह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के धुर विरोधी केशव प्रसाद मौर्य को लगातार आगे कर रहे हैं और इसे समझते हुए खुद योगी भी हठ योग की मुद्रा में हैं। इस बात के संकेत भाजपा अध्यक्ष को लेकर पिछले बुधवार को संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ यूपी से लौटे भाजपा के संगठन महामंत्री बी एल संतोष, अमित शाह और भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष जे पी नड्डा की बैठक में मिले हैं। योगी न तो कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं और न ही मौर्य को स्वीकार करने के लिए। इधर, यूपी के इस विवाद की आंच राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तक पहुंचने की आशंका खड़ी हो गई है।
सियासी संकेत बहुत साफ हैं कि मोदी शाह राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन करने के मूड में कत्तई नहीं है। बल्कि देश की इस मजबूत राजनीतिक जोड़ी ने राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे के विरोधियों को आगे करना तेज कर दिया है। हाल ही अमित शाह ने दो वसुंधरा विरोध नेताओं सतीष पूनिया और राजेंद्र राठौड़ को काफी अहमियत दी है। अंता उपचुनाव में हार का ठीकरा भी वसुंधरा के माथे पर फोड़ने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए मोदी शाह ने वसुंधरा के अशोक गहलोत जैसे कांग्रेस नेताओं से मधुर सम्बन्धों को आधार बना रखा है। कांग्रेस के नेता समय समय पर वसुंधरा का नाम लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर निशाना साधते रहते हैं।
ऐसे हालातों में यह तो तय है कि मोदी शाह वसुंधरा राजे को राजस्थान की राजनीति से दूर करने का मन बना चुके हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि वसुंधरा के मुकाबले का कोई नेता अभी यहां सामने हैं नहीं। इधर वसुंधरा लगातार सक्रिय हैं राजस्थान की राजनीति में। वे सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों के जरिए लगातार अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से मिल रही है। इसे देखते हुए खबर आ रही है कि वसुंधरा को अब राजस्थान की राजनीति से दूर करने के लिए उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाने पर विचार चल रहा है, जो आसानी से वसुंधरा राजे को मंजूर होगा नहीं।
कुल मिलाकर वसुंधरा के सामने चुनौती हैं कि क्या वे सिर्फ एक विधायक रहकर पूर्व मुख्यमंत्री के तमगे के साथ राजस्थान की राजनीति में सक्रिय रहना पसंद करेगी या विधायक दल और पार्टी में अपना व्यक्तिगत दबदबा साबित करते हुए कोई और कदम उठाएगी? वसुंधरा की फितरत से लगता नहीं है कि वे कोई पार्टी विरोधी कदम उठाएंगी, लेकिन यह देखना अहम हो गया है कि वसुंधरा को अगर भाजपा अध्यक्ष या राजस्थान की बागडोर नहीं सौंपकर दरकिनार किया जाता है तो क्या वे क्या करेंगी?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाजपा में वही होगा, जो मोदी शाह ने तय कर लिया है। जाहिर है इन दोनों ने भाजपा अध्यक्ष का नाम भी तय कर ही रखा है, लेकिन अब इस पर सहमति बनाने की कोशिश सिरे नहीं चढ़ पा रही। मामला संघ तक जाएगा और उसकी राय अहम होगी, लेकिन सवाल फिर भी बना रहेगा कि वसुंधरा के सामने जो चुनौती है, वे उसमें क्या करेगी? क्या राजस्थान और भाजपा से उनकी राजनीति को पूरी तरह दरकिनार कर दिया जाएगा?
इस विश्लेषण में जानिए
-भाजपा की मौजूदा राजनीतिक गतिविधियों पर एक नजर
-क्या मोदी शाह ने तय कर लिया भाजपा अध्यक्ष का नाम
-यूपी के समीकरण क्यों उलझा रहे हैं फैसला
-क्या योगी आदित्यनाथ फेर रहे हैं शाह की कोशिशों पर पानी
-वसुंधरा राजे क्यों आ रही इस विवाद की चपेट में
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