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Good morningएक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिएएक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामानबेचा करता था,एक दिन उसका ...
20/07/2025

Good morning
एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए
एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान
बेचा करता था,
एक दिन उसका कोई
सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग
रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस
भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग
लेगा...
🚪पहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने
दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और
बजाय खाने के उसने पानी का एक
गिलास माँगा....
लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए
वह एक...... बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने
धीरे-धीरे दूध पी लिया...
" कितने पैसे दूं?"
लड़के ने पूछा.
" पैसे किस बात के?"
लड़की ने जवाव में कहा.
"माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर
दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."
😯"तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ." जैसे
ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक
तौर पर शक्ति मिल चुकी थी ,
बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और
भी बढ़ गया था....
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़
गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में
इलाज के लिए भेज दिया...
विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के
लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्बे
का नाम सुना, उसकी आँखों में
चमक आ गयी...
वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया.
उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और
तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए
जमीन-आसमान एक कर देगा....
😎उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस
लड़की कि जान बच गयी.
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस
लड़की के इलाज का बिल लिया....
उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस
लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल
का लिफाफा देखकर घबरागयी...
उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है
लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी...
फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम
को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने RSkaithal
में पैन से लिखे नोट पर गयी...
जहाँ लिखा था, "एक गिलास दूध द्वारा इस बिल
का भुगतान किया जा चुका है." नीचे उस नेक
डॉक्टर rskaithal
होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.
ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक rskaithal
पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर
कहा, " हे भगवान..! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..
आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों के
द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है."
अगर आप दूसरों पर.. अच्छाई करोगे तो.. आपके साथ
भी.. अच्छा ही होगा ..!!
अब आपको दो में से एक चुनाव करना है...!
या तो आप इसे शेयर करके इस सन्देश को हर जगह
पहुंचाएँ..! या
अपने आप को समझा लें कि इस कहानी ने
आपका दिल नहीं छूआ..!!

बारात में कोई बूढ़ा नहीं जाएगा (एक शिक्षाप्रद कहानी)बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर और समृद्ध गांव में एक युवक रहता था...
19/07/2025

बारात में कोई बूढ़ा नहीं जाएगा (एक शिक्षाप्रद कहानी)

बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर और समृद्ध गांव में एक युवक रहता था। वह युवा, सुशील और मेहनती था। जब उसकी उम्र विवाह योग्य हुई, तो उसके माता-पिता ने उसके लिए एक सुंदर और संस्कारी लड़की ढूंढ़ निकाली। लड़की का परिवार भी बहुत प्रतिष्ठित था और विवाह तय हो गया।

सगाई के बाद जब विवाह की तारीख निकली, तो लड़की वालों ने एक अजीब शर्त रख दी। उन्होंने कहा, "हमारी यह सख्त शर्त है कि बारात में कोई भी बूढ़ा व्यक्ति, विशेषकर 60 वर्ष से ऊपर का, नहीं आना चाहिए।"

लड़के वालों को यह शर्त थोड़ी अजीब तो लगी, लेकिन उन्होंने सोचा कि शादी का रिश्ता ना टूटे इसलिए मान लेना ही ठीक होगा। उन्होंने गांव के सभी बड़े-बुज़ुर्गों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि वे बारात में न आएं। लड़के का दादा, जो अपने पोते से अत्यधिक स्नेह करता था, यह बात सुनकर बहुत आहत हुआ। उसे यह स्वीकार नहीं था कि वह अपने पोते की शादी में शामिल न हो।

आखिरकार, उसने चुपचाप बारात के साथ जाने का निर्णय लिया। वह साधारण कपड़े पहनकर, बिना किसी को बताए बैलगाड़ी के पीछे छिप गया।

बारात बड़े धूमधाम से लड़की के गांव पहुँची। स्वागत सत्कार हुआ, ढोल-नगाड़े बजे और रस्में शुरू होने लगीं। तभी लड़की वालों ने एक और शर्त रख दी, जो सबको चौंका देने वाली थी। उन्होंने कहा, "हमारी दूसरी शर्त यह है कि शादी तभी होगी जब आप लोग इस गांव की नदी में दूध बहाएँ।"

यह सुनते ही बारातियों के चेहरे उतर गए। नदी बहुत बड़ी थी और उसमें दूध बहाना तो असंभव जैसा कार्य था। सब हैरान थे कि अब क्या किया जाए? कुछ समय तो सभी लोग चुपचाप सोचते रहे, फिर किसी ने कहा, "शायद हमें यह रिश्ता तोड़ देना चाहिए।"

उसी समय छिपे हुए दादा जी ने यह सब सुना और वह आगे आए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। लड़की वालों से कहिए कि हम दूध बहाने को तैयार हैं, पहले वे नदी का सारा पानी खाली करवा दें। जब नदी में पानी नहीं रहेगा तभी तो दूध बहाया जा सकेगा।"

लड़के वालों ने दादा जी की बात को दुहराया और लड़की वालों के सामने रख दिया। यह सुनकर लड़की वालों को जैसे झटका लगा। वे समझ गए कि यह उत्तर किसी अनुभवी और बुद्धिमान व्यक्ति का ही हो सकता है। उन्हें अपनी पहली शर्त याद आई और वे शर्मिंदा हो उठे।

लड़की के पिता ने हाथ जोड़कर कहा, "हमें माफ कीजिए। हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई। वास्तव में, शादी जैसा बड़ा संस्कार बुजुर्गों के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के बिना अधूरा होता है। आपने हमारी आंखें खोल दीं।"

इसके बाद गांव में सभी बुजुर्गों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। दादा जी को सबसे आगे बैठाया गया और उनका आदर-सत्कार किया गया। विवाह बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ संपन्न हुआ।
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सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि बुजुर्गों के अनुभव और बुद्धिमानी जीवन की बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं। किसी भी कार्य में उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, विशेषकर विवाह जैसे जीवन के महत्वपूर्ण अवसर पर।
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नम्रता, अनुभव और सम्मान – यही है सफल जीवन की कुंजी।
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वह रोज़ की तरह अपनी किराने की दुकान बंद करके गली में थोड़ी देर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम सी आवाज़ आई — *"अंक...
19/07/2025

वह रोज़ की तरह अपनी किराने की दुकान बंद करके गली में थोड़ी देर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम सी आवाज़ आई — *"अंकल... अंकल..."*
वे पलटे। एक लगभग *7-8 साल की बच्ची हांफती हुई* उनके पास आ रही थी।
*"क्या बात है... भाग कर आ रही हो?"* उन्होंने थोड़े थके मगर सौम्य स्वर में पूछा।
*"अंकल पंद्रह रुपए की कनियाँ (चावल के टुकड़े) और दस रुपए की दाल लेनी थी..."* बच्ची की आंखों में मासूमियत और ज़रूरत दोनों झलक रहे थे।
उन्होंने पलट कर अपनी दुकान की ओर देखा, फिर कहा —
*"अब तो दुकान बंद कर दी है बेटा... सुबह ले लेना।"*
*"अभी चाहिए थी..."* बच्ची ने धीरे से कहा।
*"जल्दी आ जाया करो न... सारा सामान समेट दिया है अब।"* उन्होंने नर्म मगर व्यावसायिक अंदाज़ में कहा।
बच्ची चुप हो गई। आंखें नीची कर के बोली —
*"सब दुकानें बंद हो गई हैं... और घर में आटा भी नहीं है..."*
उसके ये शब्द किसी हथौड़े की तरह उनके सीने पर लगे।
वे कुछ देर चुप रहे। फिर पूछा, "तुम पहले क्यों नहीं आई?"
*"पापा अभी घर आए हैं... और घर में..."* वो रुकी, शायद आँसू रोक रही थी।
उन्हें कुछ और पूछने की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने बच्ची की आंखों में देखा और बिना कुछ कहे, ताले की चाबी जेब से निकाल ली। दुकान का ताला खोला, अंदर घुसे, और समेटे हुए सामान को हटाते हुए कनियाँ और दाल बिना तोले ही थैले में डाल दी।
बच्ची ने थैला पकड़ते हुए कहा — *"धन्यवाद अंकल..."*
*"कोई बात नहीं। अब घर ध्यान से जाना।"*
इतना कह कर उन्होंने दुकान फिर से बंद कर दी।
उस रात वह जल्दी सो नहीं पाए। मन में बच्ची की उदासी, उसका मासूम चेहरा और वो शब्द *"घर में आटा भी नहीं है..."* गूंजते रहे।
उन्हें अपना बचपन याद आ गया।
वे भी कभी ऐसे ही हालात से गुजरे थे। पिता रिक्शा चलाते थे, मां दूसरों के घरों में काम करती थीं। कई बार तो रात को पानी में रोटी भिगो कर खाना पड़ता था। तब किसी ने मदद की होती तो कितना सुकून मिलता था।
*"अब मेरे पास दुकान है, कमाई है, लेकिन क्या मैंने इंसानियत भी कमा ली है?"* उन्होंने खुद से सवाल किया।
सुबह जब उन्होंने दुकान खोली, तो सबसे पहले एक बोर्ड बनाया — *"यदि आपको ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए। कुछ सामान उधार नहीं, हक़ से मिलेगा।"*
पास में ही एक डब्बा रख दिया, जिस पर लिखा था —
*"अगर आप किसी के लिए मदद करना चाहें, तो इसमें पैसे डाल सकते हैं।"*
गली के लोग पहले तो हैरान हुए। लेकिन धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि ये कोई पब्लिसिटी स्टंट नहीं, ये उस इंसान का दिल था जो अपने अतीत से सबक लेकर किसी का आज सुधारना चाहता था

एक हफ्ते बाद वही बच्ची फिर से आई, इस बार अपने छोटे भाई के साथ।
*"अंकल, पापा ने कुछ पैसे दिए हैं... पिछली बार जो आपने दिया था उसका भी जोड़ लें।"* वह मासूमियत से बोली।
*"नहीं बेटा, उस दिन जो दिया था वो इंसानियत का कर्ज़ था। उसका कोई हिसाब नहीं होता।"*
बच्ची मुस्कुरा दी। उसने दुकान में रखा वो बोर्ड पढ़ा और बोली — *"पापा ने कहा है कि जब वे मज़दूरी करके लौटेंगे, तो इस डब्बे में पैसे डालेंगे... ताकि किसी और को भी मदद मिल सके।"*
उस दिन उस दुकानदार की आंखें भर आईं। किसी ने सच ही कहा है — *"नेकी कभी बेकार नहीं जाती।"*

धीरे-धीरे इस दुकान का नाम गली में फैलने लगा — *"इंसानियत वाली दुकान।"*
गली की बुज़ुर्ग महिलाएं, अकेले रहने वाले बुज़ुर्ग, और दिहाड़ी मज़दूर अब यहां से इज़्ज़त से सामान लेते।
जो सक्षम होते, वे उस डब्बे में कुछ न कुछ डालते जाते।
कई स्कूल के बच्चे भी अपनी गुल्लक से पैसे लाकर उसमें डालते।
यह दुकान अब सिर्फ व्यापार का स्थान नहीं थी, यह एक भरोसे का मंदिर बन गई थी।
कुछ ही समय में इस दुकान की चर्चा सोशल मीडिया पर हुई। एक स्थानीय पत्रकार ने इस कहानी को अपने अख़बार में छापा —
*"जहां मुनाफा ज़रूरी नहीं, ज़रूरत की कीमत ज़्यादा है – पढ़िए इस दुकान की कहानी"*
यह लेख वायरल हो गया। कई सोशल मीडिया पेजों ने इस दुकान का वीडियो बनाया। लोग दूर-दूर से इस ‘इंसानियत वाली दुकान’ को देखने आने लगे। RSkaithal rskaithal
पर दुकानदार ने कभी उसका फ़ायदा नहीं उठाया। उन्होंने कहा —
*"अगर एक बच्ची की भूख ने मुझे बदल दिया, तो शायद ये दुकान किसी और को भी बदल दे।"*
वो बच्ची अब रोज़ स्कूल जाती है। दुकानदार ने उसके स्कूल की फ़ीस भी गुप्त रूप से भर दी।
उसके पिता ने दुकानदार से कहा —
*"आपने उस दिन सिर्फ चावल और दाल नहीं दी थी, आपने मेरी बेटी को भरोसा दिया था कि दुनिया में अच्छे लोग अब भी ज़िंदा हैं।"*
आज भी उस दुकान के बाहर वो बोर्ड लगा है —
*"यदि आपको ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए।"*
और उस डब्बे में हर दिन कोई न कोई चुपचाप कुछ न कुछ डाल कर चला जाता है।
यह कहानी उस छोटी सी बच्ची की है, लेकिन यह बदलाव की बड़ी लहर बन चुकी है।
एक व्यक्ति, एक दुकान, और एक मासूम सी आवाज़ ने यह सिद्ध कर दिया कि —
*"बदलाव की शुरुआत बाहर से नहीं, दिल के भीतर से होती है।"*

👉जिस पर आँख बंद करके भरोसा करोगे वही एक दिन आपकी आँखें खोल देगा.।।
19/07/2025

👉जिस पर आँख बंद करके भरोसा करोगे वही एक दिन आपकी आँखें खोल देगा.।।

19/07/2025
19/07/2025
19/07/2025
 #चार_पेड़ेमुख्य सड़क पर सैकड़ों एकड़ में बना सरकारी प्लांट। सुबह-शाम काम करने वालों की इतनी भीड़ जमा होती है कि देखकर मेले क...
19/07/2025

#चार_पेड़े

मुख्य सड़क पर सैकड़ों एकड़ में बना सरकारी प्लांट। सुबह-शाम काम करने वालों की इतनी भीड़ जमा होती है कि देखकर मेले का भ्रम होता है। सिर पे पीली टोपी लगाये, हाथ में साधारण सा झोला लटकाये जिसमें टिफिन होता है, लोग ड्यूटी पकड़ने के लिए भागते नजर आते हैं!

देर शाम उस रास्ते से गुजर रहा था। सामने रेलवे क्रासिंग पर गेट बंद था सो रुकना पड़ा। तभी पीछे से एक तेज आवाज गूँजी....

"गाँव जा रहे हैं क्या?"

मैंने पलटकर देखा! वो मेरे पड़ोसी गाँव का एक युवा था, मजदूर के वेष में!

"हाँ, जा तो रहा हूँ!"

"मुझे भी लेते चलेंगे?"--उसकी आवाज में कातरता थी।

"बैठ जाओ भई!"

उसका चेहरा खिल उठा।

क्रासिंग के कुछ आगे ही बस स्टैंड था। उसने धीरे से कहा...

"बस दो मिनट के लिए रुकियेगा?"

"कुछ काम है?"

"घर के लिए पेड़े लेने हैं!"

मैंने मोटरसाइकिल रोक दी!

वो तेजी से सामने की दुकान में गया और जल्दी ही लौट आया!

"पेड़े ले लिए?"--मेरी नजर उसके खाली हाथ पर थी।

"हाँ!"--वो जेब को थपथपाते हुए मुस्कराया।

मैंने कहा कुछ नहीं, बस उसे देखता रहा!

उसने मन की बात पकड़ ली....

"बस चार ही लेने थे। दुकानदार ने कागज में लपेटकर दे दिए तो जेब में रख लिया!"

"बस चार....!"

"बहुत हैं जी!"

मैं फिर चुप लगा गया!

वो समझ गया....

"दो बच्चों के लिए, एक माँ और एक बीवी के लिए!"

"और तुम...?"

"मेरा क्या! कह दूँगा कि मैंने दुकान पर खा लिए!"

"यहाँ कब से काम कर रहे हो?"

"चार साल हो गए जी! पंद्रह-सोलह हजार बन जाते हैं महीने के! दिल्ली-बंबई जा के इससे ज्यादे थोड़े कमा लूँगा!"

"बात तो सही कह रहे हो! डेली आते हो या रुकते हो यहीं!"

"रोज बस से आ जाता हूँ जी, पच्चीस रुपये एक तरफ का भाड़ा लगता है!"

"हम्म!"

"आज आपने बैठा लिया तो पच्चीस रुपये बच गये मेरे! जिस दिन आप जैसा कोई मिल जाता है, उस दिन बचे पैसों से पेड़े खरीद लेता हूँ! माँ भी खुश और बीवी-बच्चे भी! आखिर उनको भी तो आसरा लगा होता होगा कि शाम को मैं उनके लिए कुछ लाऊँगा!"

"हूँ...!"

"पर रोज ये कहाँ संभव है जी! घर भी तो चलाना होता है!"

"कोई बात नहीं भाई....जैसे भी हालात हों, खुश रहना चाहिए!"

"खुश हूँ जी, बहुत खुश! पैसा भले कम है, पर अपने मेहनत की कमाई है, किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ता!"

"चलो, अगले बस स्टैंड पर हम इकट्ठे मिठाई खायेंगे!"
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"ना जी ना! आदत बिगड़ जायेगी मेरी! वैसे भी मेरी उमर अब बच्चों वाली तो रही नहीं! दो दो पीढ़ियों को देखना है! वो खुश रहें, तो मैं ऐसे ही खुश हूँ! आज आपकी वजह से घर पर पेड़े ले जा रहा हूँ, यही बहुत है!"
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मेरे पास कहने को कुछ नहीं बचा था, पर सीखने को.....!*
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कृपा शंकर मिश्र #खलनायक*
गाजीपुर, उ0प्र0*

19/07/2025
एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था — नाम था हरिहर। उसके बच्चे शहर जाकर बस गए थे, और वह गाँव ...
19/07/2025

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था — नाम था हरिहर। उसके बच्चे शहर जाकर बस गए थे, और वह गाँव में अकेला रहता था। उम्र ढल चुकी थी, कमर झुक गई थी, लेकिन स्वाभिमान अब भी सीधा था। हरिहर दिनभर अपने छोटे से खेत में काम करता, थोड़ी सब्ज़ियाँ उगाता और उसी से अपनी जिंदगी चलाता।

एक दिन दोपहर की तपती धूप में, हरिहर खेत से घर लौट रहा था। रास्ते में उसे एक थका-हारा नौजवान दिखा, जो सड़क के किनारे बैठा था। कपड़े फटे हुए थे, आँखों में थकान थी और शरीर पर धूल जमी थी।

हरिहर ने पास जाकर पूछा, “बेटा, कौन हो तुम? यहाँ क्यों बैठे हो इस हालत में?”

नौजवान बोला, “मैं रमेश हूँ… शहर में नौकरी करता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद सब कुछ छूट गया। गाँव लौट रहा था, लेकिन रास्ते में खाना खत्म हो गया। तीन दिन से भूखा हूँ।”

हरिहर ने कुछ नहीं कहा, बस अपने थैले से एक रोटी निकाली — जो उसने खुद के लिए रखी थी — और रमेश की ओर बढ़ा दी।

रमेश ने हैरानी से पूछा, “बाबा, आपके पास तो बस यही एक रोटी है… आप खुद क्या खाएँगे?”

हरिहर मुस्कुराए और बोले, “बेटा, यह रोटी तो मैं खा लूँगा और फिर भूखा रहूँगा। लेकिन अगर तुम इसे खाओगे, तो शायद तुम्हारी हिम्मत लौट आएगी और तुम कुछ कर दिखाओगे। मेहनती लोग कभी भूखे नहीं मरते, पर उम्मीद खो दी तो सब खो जाता है।”

रमेश की आँखें भर आईं। उसने रोटी ली और धीरे-धीरे खाई। उस एक रोटी में उसे सिर्फ अन्न नहीं, बल्कि अपनापन और उम्मीद का स्वाद मिला।

उस दिन के बाद रमेश वहीं गाँव में रुक गया। हरिहर के साथ खेतों में काम करने लगा। उसने देखा कि बुज़ुर्ग होते हुए भी हरिहर सुबह सबसे पहले उठता और खेत में जुट जाता। रमेश को हरिहर की मेहनत ने प्रेरित किया।

धीरे-धीरे रमेश ने खेती की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली। कुछ महीनों में उसने इतना अनाज उगा लिया कि गाँव के और भूखे मजदूरों की भी मदद करने लगा।rskaithal

हरिहर ने एक दिन कहा, “देखा बेटा, एक रोटी ने तुझे बदल दिया… अब तू औरों के लिए सौ रोटियाँ उगा रहा है।”
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रमेश मुस्कुराया और बोला, “बाबा, वो सिर्फ रोटी नहीं थी — वो सम्मान था, आत्म-विश्वास था, जो आपने दिया।”

सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची मदद वही होती है जो किसी की ज़िंदगी को दिशा दे दे। और जब मदद मेहनती इंसान को मिले, तो वह सौ गुना लौटकर आती है। भूख से ज़्यादा खतरनाक है उम्मीद का टूटना — और एक छोटा-सा सहारा किसी को फिर से ज़िंदगी की लड़ाई लड़ने की ताकत दे सकता है।

18/07/2025

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