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07/06/2024

ब्रांड-मोदी! अनिकेत नाम रखकर मोदी ने घर छोड़ा, कश्मीर में आतंकियों को ललकारा, कोई चुनाव नही हारे-विपक्ष को पटखनी दी, पार्टी को अर्श तक पहुंचाया, हिंदुत्व-विकास-बेदाग छवि, अपने संदेश-निर्णय में देशहित सर्वोपरि रखा, कई रिकॉर्ड तोड़े-अपने नाम किए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले रिकॉर्ड तोड़ते हुए इस चुनावी सीजन 206 रैलियां और रोड शो किए। टीवी चैनलों को करीब 80 इंटरव्यू दिए। होर्डिंग और कटआउट में हर जगह सिर्फ नरेंद्र मोदी रहे। पूरा कैंपेन मोदी की गारंटी पर फोकस था। छोटे से बड़ा नेता उन्ही पर निर्भर दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि अभी तक जो किया ट्रेलर था, पिक्चर अभी बाकी है।

विपक्ष ने इस चुनावी सीजन नरेंद्र मोदी पर फंड्स रोकने, दो CM को जेल भेजने के आरोप लगाए। मोदी के शासन में महंगाई, बेरोजगारी का मुद्दा उठाया। मोदी को तीसरा टर्म मिला तो संविधान बदलने की आशंका जताई। जनता से मोदी की तानाशाही के खिलाफ वोट देने की अपील की। 2024 लोकसभा चुनाव में 'ब्रांड मोदी' केंद्र में रहे। अब नतीजे आ चुके हैं।एक बार फिर मोदी नया रिकॉर्ड बनाते, इतिहास रचते प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं।आइए एक नजर डालें उनकी जीवनी पर...

1948 में गांधी जी की हत्या के बाद RSS पर बैन लगा। 20 हजार से ज्यादा स्वयं सेवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। 1949 में बैन हटा तो नए सिरे से इसका विस्तार हुआ। गुजरात में इसकी जिम्मेदारी लक्ष्मणराव ईमानदार को मिली। इन्होंने शाखाएं बढ़ाई और कार्यकर्ता तैयार किए। 1958 में दिवाली के दिन वे शपथ दिलाते है और संबोधित करते हैं। इनकी बातों से प्रभावित हो एक 8 साल का लड़का उनसे अकेले में मिलने गया जिसका नाम था- नरेंद्र मोदी। नरेन्द्र के पिता चाय की दुकान चलाते थे और मां गृहिणी थी और घर खर्च में मदद के लिए छोटा-मोटा काम करती थीं।

मोदी के संस्कृत टीचर प्रहलाद पटेल बताते हैं कि मोदी की डिबेट और रंगमंच में खास रूचि थी। उम्र बढ़ने के साथ नए विचार पैदा हुए। मन घर के दायरे से बाहर जाने लगा। उन्होंने अपना उपनाम अनिकेत रख लिया। मोदी के बड़े भाई सोमभाई कहते हैं कि एक बार मोदी ने नमक-तेल खाना बंद कर दिया तो हमने समझा कि वैद्य बनने को राह पर है। जीवनी 'नरेंद्र मोदी द गेमचेंजर' में वरिष्ठ पत्रकार सुदेश के वर्मा लिखते हैं बचपन मे मोदी अक्सर शमिष्ठा झील में नहाने जाते थे। एक बार मगरमच्छ ने हमला कर दिया और 9 टांके लगाने पड़े। आज भी निशान बाएं पैर में है। 14 साल की उम्र में एक ज्योतिषी ने कहा था लड़का या तो एक बड़ा संत बनेगा या राजनेता।

जानकारीनुसार वडनगर के घांची जाती में शादी 3 चरण में होती थी। 3-4 साल की उम्र में सगाई, 13 साल में शादी और 18-20 में गौना। नरेंद्र मोदी ने 13 साल की उम्र में ब्राम्हणवाणा गांव की जशोदा बेन से शादी की। लेकिन 17 की उम्र में बड़े उद्देश्य की तलाश में घर छोड़ दिया। वे कलकत्ता के रामकृष्ण परमहंस मिशन के बेलूर मठ गए लेकिन स्नातक न होने से सन्यास नही मिला। इसके बाद पूर्वोत्तर, अल्मोड़ा, हिमालय और दिल्ली-राजस्थान गए। 2 साल बाद घर लौटे लेकिन फिर 17 दिन बाद चले गए और अहमदाबाद मेंअपने चाचा की कैंटीन में काम करने लगे। वहां एक बार फिर मोदी की मुलाकात संघ प्रचारक लक्ष्मण राव से हुई। वे उन्हें अपने साथ ले गए। वे मोदी को अपना बेटा मानने लगे और मोदी उन्हें अपना गुरु। फिर धीरे धीरे प्रचारक बन गए। 1973-74 में नवनिर्माण आंदोलन से जुड़े। इमरजेंसी के दौरान विपक्षी नेताओं की मदद किए। गिरफ्तारी से बचने के लिए सरदार का वेश बनाए।

1979 में मोरबी मच्छु नदी का डैम टूटा तो मोदी अपने स्वयंसेवकों के साथ वहां पहुंचे और कई दिनों तक इंसानों-पशुओं की लाशें उठाते रहे और अंतिम संस्कार किया। 1981 में मेहनत देख संघ ने उन्हें प्रान्त प्रचारक बना दिया। 1980 में बीजेपी अस्तित्व में आ चुकी थी। आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष बने तो मोदी को गुजरात इकाई का संगठन सचिव बना दिया। यहीं से राजनीति में इंट्री हुई। 1987 के निकाय चुनाव में मोदी की स्ट्रेटजी ने जीत दिलाई। मोदी ने एलान किया कि जिसे भी विधानसभा चुनाव लड़ना है रथनुमा गाड़ी में बीजेपी के झंडे-पोस्टर-नारों के साथ सजाकर यात्रा करते अहमदाबाद आए। सैकड़ो रथ आ पहुंचे। उन्हें टिकट मिला या नही लेकिन बीजपी का प्रचार जरूर हो गया। लंबे नारों की प्रथा तोड़ छोटे नारे गढ़े। 1989 लोकसभा चुनाव में 14 में 11 सीट जीती। 1990 विधानसभा चुनाव में जनता दल से गठबंधन कर 182 में 68 सीट पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई। रामजन्मभूमि आंदोलन में गुजरात मे रथयात्रा की जिम्मेदारी मोदी को दी गई। इसमे उमड़े जानसैलाब को देख महाराष्ट्र प्रभारी भौचक्के रह गए। 1991 में मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक एकता यात्रा निकाली। इसकीभी जिम्मेदारी मोदी को दी गई। 24 जनवरी 1992 को श्रीनगर में मोदी ने कहा- लाल चौक में पोस्टर लगे हैं कि जिसने अपनी मां का दूध पिया है वो श्रीनगर में तिरंगा फहराए। अगर वो जिंदा वापस गया तो आतंकवादी उसे इनाम देंगे। आतंकवादी कान खोलकर सुन लें गाजे-बाजे के साथ आ रहे है लाल-चौक, तुम्हारे पास जितना गोला-बारूद-गोली हो तैयार रख लेना, आ रहे हैं, 26 जनवरी को फैसला हो जाएग। 26 जनवरी को मोदी ने लाल चौक पर तिरंगा फहराया जिससे वे सबके चहेते बन गए।

जब मोदी संगठन में महामंत्री पड़ संभलते थे तो केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला का दबदबा था। मोदी केशुभाई का साथ देना शुरू किए उन्हें अपना राजनीतिक गुरु भी मानते थे। मोदी हमेशा अलग रहने-करने की कोशिश करते थे। 1995 में गुजरात मे बीजेपी जीती तो केशुभाई पटेल के नेतृत्व में सरकार बनी। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में वाघेला को तवज्जो नही दी जिससे बगावत शुरू हो गया। मामला इतना बढ़ा कि अटल बिहारी वाजपेयी को अहमदाबाद में कैंप करना पड़ा। मान मनौव्वल के बाद वाघेला माने और मोदी को राजनीतिक वनवास मिला। उन्हें राज्य से हटा दिल्ली में राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। उठा पटक के बीच 1998 में फिर पटेल सीएम बने। इस बीच मोदी दिल्ली से गुजरात जाने के रास्ता बनाते रहे। कहा जाता है कि मोदी केशुभाई पटेल के खिलाफ दिल्ली में माहौल बनाने लगे। मेहनत रंग लाई और केशुभाई को पदमुक्त करने का फैसला लिया गया। 1 अक्टूबर 2001 को मोदी के पास पीएम आवास से फोन आया कि तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें बुलाया है। जब मोदी मिलने गए तो अटल बोले दिल्ली में पंजाबी खाना खाकर बहुत मोटे हो गए हो अब गुजरात लौट जाओ। 7 अक्तूबर 2001 को गुजरात सीएम के तौर पर शपथ लिए। मोदी न कभी विधायक रहे और न मंत्री, सीधा सीएम बन गए। उन्होंने सरकारी मशीनरी और ब्यूरोक्रेसी को समझने के लिए उन्हें ध्यान से सुनने समझने लगे। 2002 में गोधरा कांड हुआ। दंगे भड़के। अटल जी को दखल देना पड़ा। लेकिन फिर सूझ बूझ से कुछ दिनों में सब शांत हो गया।

2008 में बंगाल में रतन टाटा ने अपनी एक फैक्ट्री किसान आंदोलन के कारण बंद करने के एलान किया। तो मोदी ने उन्हें sms भेज कहा- गुजरात मे आपका स्वागत है। 4 दिन बाद टाटा ने एलान किया कि गुजरात मे नैनो प्लांट लगाएंगे। मोदी की सरकारी नीतियों के कारण कई फैक्ट्री गुजरात की तरफ भागने लगीं। उन्होंने गुजरात मॉडल को बढावा दिया। गुजरात मॉडल का हवाला दे केंद्र की मनमोहन सरकार को घेरने लगे। उनकी शैली से काफी लोग प्रभावित हुए और हर ओर टीवी-अखबार में मोदी छा गए। उनकी सरकार पर आक्रामक छवि उनको आगे ले गई। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा- 'मोदी ने दिल्ली हिलाई'। 2013 में मोदी को सेंट्रल कैंपेन कमेटी का चेयरमैन घोषित कर दिया गया। इससे नाराज आडवाणी ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि बाद में मनाने पर वापस ले लिया। 13 सितंबर 2013 को उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। 2014 में बीजेपी ने 282 और फिर 2019 में 303 सीट जीत नया मुकाम बनाया। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद तमाम राज्यों में बीजेपी ने सरकार बना नया आयाम रचा। मोदी लगातार 10 सालों से प्रधानमंत्री हैं। अब फिर 2024 में प्रधानमंत्री पद का शपथ लेने जा रहे है और नेहरू की बराबरी कर नया इतिहास रचने वाले है।

07/06/2024

इंडी गठबंधन ने विपक्ष में बैठने का लिया फैसला, सही है सिवाय इसके कोई चारा नहीं क्योंकि नीतीश-नायडू ने फिलहाल टूटने से इनकार कर दिया, वहीं ग़र JDU-TDP ने खींचा हाथ तब भी BJP बना-चला लेगी सरकार, आइए जानें कैसे....

इंडिया गठबंधन में लोगों ने जितना भी विश्वास इस बार दिखाया, उसने उसका सम्मान किया और बुधवार को शामिल बैठक करके घोषणा कर दी कि हम सही समय का इंतज़ार करेंगे। इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि फ़िलहाल इंडिया गठबंधन विपक्ष में ही बैठेगा। सरकार बनाने की कोई कोशिश फ़िलहाल नहीं करेंगे।

सही है, सिवाय इसके इंडिया गठबंधन के पास को चारा नहीं था। नीतीश और चंद्रबाबू ने टूटने से इनकार कर दिया है और ऐसे में इन दोनों का पेशेंस ख़त्म होने की राह तकने के अलावा विपक्ष के पास कोई चारा नहीं है। लेकिन वे विपक्ष में बैठने का साफ़ निर्णय घोषित नहीं भी करते तो कोई क्या कर लेता! कम से कम फ़िलहाल तो उन्होंने एक तरह की राजनीतिक ईमानदारी दिखा ही दी।

बहरहाल, तमाम हालात साफ़ होने के बाद आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार मिली- जुली सरकार बनने जा रही है। केंद्र में यह उनकी तीसरी सरकार होगी लेकिन अभी तक उन्होंने पूर्ण बहुमत वाली सरकार ही चलाई है। निश्चित रूप से इस बार उनके सामने नई चुनौतियाँ होंगी लेकिन जिस विश्वास के साथ वे आगे बढ़ रहे हैं, लगता है मिली- जुली सरकार को भी भली-भाँति चला लेंगे। राजनीति में कब मुलायम होना है और कब कठोर, यह वे अच्छी तरह जानते हैं।

वैसे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की सभी माँगें मानना इतना आसान नहीं होगा लेकिन कुछ कम पर इन दोनों को मनाना वे जानते हैं। चूँकि नीतीश और नायडू पहले भी एनडीए सरकार में रह चुके हैं इसलिए वे बड़े मंत्रालय तो माँगेंगे ही, उन मंत्रालयों में और किसी की दख़लंदाज़ी न हो, इस तरह की माँग भी रख सकते हैं। लगता है दख़लंदाज़ी न करते हुए भी निगरानी रखना प्रधानमंत्री को आता है। उधर इंडिया गठबंधन नीतीश और नायडू को अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश में लगा हुआ तो था लेकिन फिर इन दोनों को साफ़ कह दिया कि आओ तो दरवाज़ा खुला है और न आओ तो रास्ता खुला है।

वहीं इस दौरान अटकलें लगाई जा रही हैं कि अगर जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार या टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए का साथ छोड़कर चले जाते हैं तो भाजपा तीसरी बार सरकार नहीं बना पाएगी। अगर मैं कहूं कि अगर नीतीश कुमार या चंद्रबाबू नायडू में से कोई आईएनडीआईए के साथ चले जाते हैं, तब भी नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कैसे तो आइए बताते हैं...

चुनाव परिणाम के मुताबिक, एनडीए के पास 292 सांसद हैं। इनमें से 12 सांसद जदयू (JDU) यानी नीतीश कुमार की पार्टी के हैं। अगर जदयू एनडीए का साथ छोड़कर आईएनडीआई गठबंधन का समर्थन करती है। ऐसी स्थिति में भी एनडीए के पास 280 सांसद होंगे, जोकि बहुमत से आठ सांसद अधिक होंगे। यानी नीतीश कुमार के एनडीए से नाता तोड़ने के बावजूद भी मोदी तीसरी बार केंद्र में सरकार बना सकते हैं।

अभी एनडीए के पास 292 सांसद हैं। इनमें 16 सांसद टीडीपी के हैं। अगर टीडीपी आईएनडीआईए के साथ जाती है तो तब भी एनडीए के पास बचेंगे 276 सांसद,जोकि बहुमत से चार अधिक हैं। यानी कि नायडू के इंडी गठबंधन में शामिल होने पर भी केंद्र में एनडीए की सरकार बन सकती है।

टीडीपी के पास 16 सांसद हैं और जदयू के पास 12 सीटें। अगर दोनों के मिलाकर कुल हुए 28 सांसद। अगर नायडू और नीतीश दोनों की पार्टियां एनडीए का साथ छोड़ देती हैं तो 292 में से 28 सांसद कम हो जाएंगे। यानी कि एनडीए के पास कुल 264 सांसद बचेंगे, जोकि बहुमत से आठ कम हैं। ऐसे में एनडीए गठबंधन बहुमत से पीछे रह जाएगा।

आपको बता दें कि अगर नीतीश या नायडू दोनों में एक एनडीए का साथ छोड़ता है तो भी NDA के पास बहुमत रहेगा। ऐसे में राष्ट्रपति एनडीए के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे। मोदी गठबंधन के नेता हैं, ऐसे में वह तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे।

07/06/2024

सारे पोल फेल-जनता ने कर दिया खेल! इस जनादेश के क्या मायने- BJP जीती-विपक्ष हारा, BJP हारी-विपक्ष जीता, BJP कमजोर इसलिए विपक्ष जीता, सारे बड़े विपक्षी दल इकट्ठा हुए इसलिए BJP पिछड़ी, सांसद फ़िसड्डी इसलिए BJP ने सीटें गंवाईं, मुसलमानों ने एकतरफा मोदी के खिलाफ वोट किया

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनाव में जनता ने एक बार फिर चौंका दिया। लोकसभा चुनाव में आए जनादेश ने सारे अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। रुझानों में भाजपा 240 तक पहुंची है। इस जनादेश में कई सवाल छुपे हैं....

एनडीए को 400 पार और पार्टी को 370 पार ले जाने की भाजपा की रणनीति कामयाब नहीं हो पाई। जनादेश ने साफ कर दिया कि सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के भरोसे रहने से भाजपा का काम नहीं चलेगा। उसके निर्वाचित सांसदों और राज्य के नेतृत्व को भी अच्छा प्रदर्शन करना होगा। जनादेश बताता है कि गठबंधन की अहमियत का दौर 10 साल बाद फिर लौट आया है। भाजपा के पास अकेले के बूते अब वह आंकड़ा नहीं है, जिसके सहारे वह अपना एजेंडा आगे बढ़ा सके। एग्जिट पोल्स की भी हवा निकल गई। 11 एग्जिट पोल्स में एनडीए को 340 से ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। तीन सर्वेक्षणों में तो एनडीए को 400 लोकसभा सीटें मिलने का अनुमान था। रुझानों/नतीजों में एनडीए उससे तकरीबन 100 सीट पीछे है।

1999 में 182 सीटें जीतने वाली भाजपा जब 2004 में 138 सीटों पर आ गई तो उसने सत्ता गंवा दी। उसके पास स्पष्ट बहुमत 1999 में भी नहीं था और उससे पहले भी नहीं था। फिर भी यह माना गया कि जनादेश भाजपा के 'फील गुड फैक्टर' के विरोध में था। वहीं, 2004 में भाजपा से महज सात सीटें ज्यादा यानी 145 सीटें जीतकर कांग्रेस ने यूपीए की सरकार बना ली। 2009 में कांग्रेस इससे बढ़कर 206 सीटों पर पहुंच गई, लेकिन 2014 में 44 पर सिमट गई। इसे स्पष्ट तौर पर यूपीए के लिए सत्ता विरोधी लहर माना गया। हालांकि, जब उत्तर प्रदेश जैसे सबसे अहम राज्य के नतीजे देखते हैं तो तस्वीर इस बार अलग नजर आती है। यहां भाजपा सिमटती दिख रही है, जबकि 2014 में यहां भाजपा ने 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं। सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को इसी राज्य से हुआ है।

वैसे तो इस बार लोकसभा चुनाव के शुरुआती छह चरण में ही पिछली बार के मुकाबले ढाई करोड़ से ज्यादा वोटरों ने मतदान किया था। फिर भी मतदान का प्रतिशत कम रहा। इसके ये मायने निकाले जा रहे हैं कि भाजपा अब की पार 400 पार के नारे में खुद ही उलझ गई। उसके वोट इसलिए नहीं बढ़े क्योंकि भाजपा को पसंद करने वाले वोटरों ने तेज गर्मी के बीच संभवत: खुद ही यह मान लिया कि इस बार भाजपा की जीत आसान रहने वाली है। इसलिए वोटरों का एक बड़ा तबका वोट देने के लिए निकला ही नहीं।

यह भाजपा की स्पष्ट जीत नहीं है। यह एनडीए की जीत ज्यादा है। आंकड़ों की दोपहर तक की स्थिति को देखें तो यह माना जा सकता है कि पूरे पांच साल भाजपा गठबंधन के सहयोगियों खासकर जदयू और तेदेपा के भरोसे रहेगी। इन दोनों दलों के बारे में यह कहना मुश्किल है कि ये भाजपा के साथ पूरे पांच साल बने रहेंगे या नहीं। राज्य के लिए विशेष पैकेज और केंद्र और प्रदेश की सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर इनके भाजपा से मतभेद के आसार ज्यादा रहेंगे। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, दोनों ही अतीत में एनडीए से अलग हो चुके हैं। इंडी गठबंधन की बात करें तो यह उसकी स्पष्ट जीत कम और बड़ी कामयाबी ज्यादा है। यह गठबंधन 200 का आंकड़ा आसानी से पार कर रहा है। इसके ये सीधे तौर पर मायने हैं कि अगले पांच साल विपक्ष केंद्र की राजनीति में मजबूती से बना रहेगा। क्षेत्रीय दल देश की राजनीति में अपरिहार्य बने रहेंगे।

आंकड़ों की मानें तो इसका जवाब है हां, लेकिन इसका दूसरा जवाब यह भी है कि यह मुकाबला 2014 और 2019 में मोदी की लोकप्रियता बनाम 2024 में मोदी की लोकप्रियता का रहा। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पहली बार 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। पहली बार में ही वह अकेले के बूते 282 सीटों पर पहुंची। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। इस बार भाजपा की अपनी सीटें 240 के आसपास हैं। यानी वह 2014 से 40 सीटें और 2019 से 60 सीटें पीछे है।

07/06/2024

अबकी बार-उल्टी बयार, लौट आई गठबंधन सरकार! NDA ने पाया बहुमत और बनाएगी सरकार, विपक्षी सीटों में इजाफा लेकिन बहुमत नही, बड़ा सवाल- क्या सशक्त लोकतंत्र के लिए अस्थाई मैन्टेड उचित, उन्नत देश के लिए गठबंधन सरकार सही, देशहित में बिना दिक्कत ले सकेगी सारे फैसले?

बीते दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को बड़ा बहुमत देने वाली जनता ने इस बार चौंकाने वाला जनादेश दिया है। इंडी गठबंधन के रूप में एकजुट विपक्ष के सामने मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतरी भाजपा का हाथ तो मतदाता लगातार तीसरी बार भी थामे रहा, लेकिन इतने सधे अंदाज में कि बहुमत के लिए आवश्यक 272 सीटों से कुछ दूर लाकर छोड़ दिया। 18वीं लोकसभा की संतुलित तस्वीर सजाते हुए जनता ने विपक्षी गठबंधन को 234 सीटों के साथ ताकत और हौसला दिया है तो पीएम मोदी के नेतृत्व में दस वर्ष तक चली राजग सरकार और उसके निर्णयों पर भी भरोसे की मुहर लगाई है।

यही कारण है कि भाजपा को 240 सीटों सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की झोली में 295 सीटें डालकर जनादेश दिया है- अबकी बार NDA सरकार। 18वीं लोकसभा के लिए 543 सीटों पर सात चरणों में हुए चुनाव के परिणामों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के दावों का पटाक्षेप मंगलवार को मतगणना के साथ हो गया। मतगणना शुरू होने से लेकर अंत तक ईवीएम से निकलते रहे वोटों का रुझान लगभग एक समान था। कुछ सीटों उतार-चढ़ाव को छोड़ दिया जाए तो यह परिणाम लगभग स्थिर ही रहा कि भाजपा 250 का आंकड़ा तो राजग 300 का आंकड़ा पार नहीं कर पाया। इसी तरह विपक्ष की उम्मीदें भी 230 के आसपास आकर ऐसी ठिठकीं कि उससे आगे न बढ़ सकीं।

निस्संदेह लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में वापसी भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि है, लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव की बम्पर जीत के परिणामों ने उसकी उम्मीदों को ऐसा आसमान दे दिया था कि इस जीत का स्वाद भी भाजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए कसैला हो गया। इन परिणामों का यह संकेत साफ है कि विपक्ष के नेता मन मुताबिक मुद्दों के सहारे नैरेटिव गढ़ने में काफी हद तक सफल रहे। जातिगत जनगणना भले ही मुद्दा बनती न दिखी हो, लेकिन विपक्ष की जातीय बिसात ने भाजपा की राह में किस तरह रोड़े अटकाए हैं, यह खास तौर पर उत्तर प्रदेश में दिखाई दिया। 80 लोकसभा सीटों वाले इस सबसे बड़े राज्य में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ीं।

यहां अखिलेश की रणनीति खास तौर पर कारगर साबित हुई और सपा 37 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है और भाजपा 62 से घटकर 33 सीटों पर सिमट गई। इन परिणामों ने यह भी स्पष्ट किया है कि कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में भाजपा इस बार भी बेहद मजबूत साबित हुई। मध्य प्रदेश में दशकों बाद छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस से छीनकर क्लीन स्वीप करते हुए भाजपा ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की है। गुजरात और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सिर्फ एक-एक सीट जीत सकी तो दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में से कोई भाजपा को क्लीन स्वीप से नहीं रोक सका।

हालांकि, ओडिशा में बीजू जनता दल के निराशाजनक प्रदर्शन को छोड़ दें तो अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय क्षत्रपों ने जरूर राजग के लिए चुनौती खड़ी की है। मसलन, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, तमिलनाडु में डीएमके, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा की उम्मीदों को झटका दिया है। भाजपा उत्तर प्रदेश के गढ़ में जरूर ठिठक गई लेकिन ओडिशा में भारी जीत हासिल की। लोकसभा सीटों पर भी और विधानसभा में भी। इसी तरह केरल में भाजपा खाता खोलने में कामयाब रही तो तेलंगाना में अपना 4 के पिछले आंकड़े को दोगुना कर दिया। तमिलनाडू में भी भी भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा।

05/05/2024

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