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30/06/2024
10/05/2024

*चन्द्रकान्ता वर्मा: *🚩 धर्म की ओर बढ़ता एक कदम🚩*

* *कर भला तो हो भला*

एक माँ थी उसका एक बेटा था। माँ-बेटे बड़े गरीब थे।
एक दिन माँ ने बेटे से कहा – बेटा !! यहाँ से बहुत दूर तपोवन में एक दिगम्बर मुनि पधारे हैं वे बड़े सिद्ध पुरुष हैं और महाज्ञानी हैं।
तुम उनके पास जाओ और पूछो कि हमारे ये दु:ख के दिन और कब तक चलेंगे। इसका अंत कब होगा।
बेटा घर से चला। पुराने समय की बात है, यातायात की सुविधा नहीं थी। वह पद यात्रा पर था।
चलते-चलते सांझ हो गई। गाँव में किसी के घर रात्रि विश्राम करने रुक गया।
सम्पन्न परिवार था। सुबह उठकर वह आगे की यात्रा पर चलने लगा तो घर की सेठानी ने पूछा – बेटा कहाँ जाते हो ?
उसने अपनी यात्रा का कारण सेठानी को बताया। तो सेठानी ने कहा – बेटा एक बात मुनिराज से मेरी भी पूछ आना कि मेरी यह इकलौती बेटी है, वह बोलती नहीं है। गूंगी है। वह कब तक बोलेगी ? तथा इसका विवाह किससे होगा ?
उसने कहा – ठीक है और वह आगे बढ़ गया।
रास्ते में उसने एक और पड़ाव डाला। अबकी बार उसने एक संत की कुटिया में पड़ाव डाला था।
विश्राम के पश्चात्‌ जब वह चलने लगा तो उस संत ने भी पूछा – कहाँ जा रहे हो ? उसने संत श्री को भी अपनी यात्रा का कारण बताया।
संत ने कहा – बेटा! मेरी भी एक समस्या है, उसे भी पूछ ले

मेरी समस्या यह है कि मुझे साधना करते हुए 50 साल हो गये। मगर मुझे अभी तक संतत्व का स्वाद नहीं आया। मुझे कब संतत्व का स्वाद आयेगा, मेरा कल्याण कब होगा। बस इतना सा पूछ लेना।
युवक ने कहा – ठीक है। और संत को प्रणाम करके आगे चल पड़ा।
युवक ने एक पड़ाव और डाला। अबकी बार का पड़ाव एक किसान के खेत पर था।
रात में चर्चा के दौरान किसान ने उससे कहा मेरे खेत के बीच में एक विशाल वृक्ष है। मैं बहुत परिश्रम और मेहनत करता हूँ, लेकिन उस बड़े वृक्ष के आस-पास दूसरे वृक्ष पनपते नहीं हैं। पता नहीं क्या कारण है।
किसान ने युवक से कहा – मेरी भी इस समस्या का समाधान कर लेना। युवक ने स्वीकृति में सिर हिला दिया और सुबह आगे बढ़ गया।
अगले दिन वह मुनिराज के चरणों में पहुँच गया। मुनिराज के दर्शन किये। दर्शन कर उसने अपने जीवन को धन्य माना।
मुनिराज से प्रार्थना की कि प्रभु! मेरी कुछ समस्याएं हैं, जिनका मैं समाधान चाहता हूँ। आप आज्ञा दें तो श्री चरणों में निवेदन करूं।
मुनि ने कहा – ठीक है !! मगर एक बात का विशेष ख्याल रखना कि तीन प्रश्न से ज्यादा मत पूछना। मैं तुम्हारे किन्हीं भी तीन प्रश्नों का ही समाधान दूंगा। इससे ज्यादा का नहीं।

युवक तो बड़े धर्म-संकट में फंस गया। अब क्या करूं, प्रश्न तो चार हैं. तीन कैसे पूछूं। तीन प्रश्न दूसरों के हैं और एक प्रश्न मेरा खुद का है।
अब किसका प्रश्न छोड़ दूं। क्या लड़की का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह तो ठीक नहीं है, यह उसकी जिन्दगी का सवाल है।
तो क्या महात्मा के प्रश्न को छोड़ दूं ? यह भी नहीं हो सकता। तो क्या किसान का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह भी ठीक नहीं है। बेचारा खून-पसीना एक करता है, तब भी उसे कुछ भी नहीं मिलता है।
अंत में काफी उहापोह के बाद उसने तय किया कि वह खुद का प्रश्न नहीं पूछेगा।
उसने अपना प्रश्न छोड़ दिया और शेष तीनों प्रश्नों का समाधान लिया और वापिस अपने घर की ओर चल दिया।
रास्ते में सबसे पहले किसान से मुलाकात हुई। किसान से युवक ने कहा – मुनिराज ने कहा है...
कि तुम्हारे खेत में जो विशाल वृक्ष है, उसके नीचे चारों तरफ सोने के कलश दबे हुए हैं। इसी कारण से तुम्हारी मेहनत सफल नहीं होती है।
किसान ने वहाँ खोदा तो सचमुच सोने के कलश निकले।
किसान ने कहा – बेटा यह धन-सम्पदा तेरे कारण से निकली है। इसलिए इसका मालिक भी तू है। और किसान ने वह सारा धन उस युवक को दे दिया। युवक आगे बढ़ा।
अब संत के आश्रम आया। संत ने पूछा – मेरे प्रश्न का क्या समाधान बताया है।
युवक ने कहा – स्वामी जी! माफ करना मुनिराज ने कहा है कि आपने अपनी जटाओं में कोई कीमती मणि छुपा रखी है। जब तक आप उस मणि का मोह नहीं छोड़ेंगे, तब तक आपका कल्याण नहीं होगा।
साधु ने कहा – बेटा तू ठीक ही कहता है, सच में मैंने एक मणि अपनी जटाओं में छिपा रखी है, और मुझे हर वक्त इसके खो जाने का, चोरी हो जाने का भय बना रहता है।
इसलिए मेरा ध्यान भजन-सुमिरण में भी नहीं लगता। ले अब इसे तू ही ले जा, और साधु ने वह मणि उस युवक को दे दी।
युवक दोनों चीजों को लेकर फिर आगे बढ़ा। अब वह सेठानी के घर पहुँचा।
सेठानी दौड़ी-दौड़ी आई और पूछा – बेटा ! बोल क्‍या कहा है मुनिराज ने।

युवक ने कहा कि माँ जी मुनिजी ने कहा है कि तुम्हारी बेटी जिसको देखकर ही बोल पड़ेगी, वही इसका पति होगा।
अभी सेठानी और युवक की बात चल ही रही थी कि वह लड़की अन्दर से बाहर आई और उस युवक को देखते ही एकदम से बोल पड़ी।
सेठानी ने कहा – बेटा आज से तू इसका पति हुआ। मुनिराज की वाणी सच हुई। और उसने अपनी बेटी का विवाह उस युवक से कर दिया।
अब वह युवक धन, मणि और कन्या को साथ लेकर अपने घर पहुँचा।
माँ ने पूछा – बेटा तू आ गया। क्या कहा है मुनिश्री ने। कब हमें इन दु:खों से मुक्ति मिलेगी।
बेटा ने कहा – माँ मुक्ति मिलेगी नहीं, मुक्ति मिल गई। मुनिराज के दर्शन कर मैं धन्य हो गया। उनके तो दर्शन मात्र से ही जीवन के दु:ख, पीड़ाएं और दर्द खो जाते हैं।
माँ ने पूछा – तो क्या मुनिराज ने हमारी समस्याओं का समाधान कर दिया है।
बेटे ने कहा – हाँ माँ ! मैंने तो अपनी समस्‍या उनसे पूछी ही नहीं और समाधान भी हो गया।
माँ ने पूछा वो कैसे ?
बेटे ने कहा -माँ मैंने सबकी समस्या को अपनी समस्या समझा तो मेरी समस्या का समाधान स्वत: हो गया।
जब दूसरों की समस्या अपनी खुद की समस्या बनने लगती है तो फिर अपनी समस्या कोई समस्या ही नहीं रहती।
जो दूसरों के लिए सोचता है। ईश्वर स्वयं उसके लिए करतें है।

जय श्री राम🙏

10/05/2024

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*

*!! एक सच्चा योद्धा !!*
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यह घटना सन् 1492 की है, जब कोलम्बस अपनी महान यात्रा पर निकलने वाला था। चारों तरफ नाविकों में हर्षोल्लास का वातावरण था, परन्तु गांव का ही एक युवक फ्रोज बहुत ही डरा हुआ था और वह नहीं चाहता था कि कोलम्बस और उनके साथी इस खतरनाक और दुस्साहसी यात्रा के मिशन पर जायें ? इसलिए वह नाविकों के मन में समुद्री यात्रा के प्रति डर उत्पन्न कर देना चाहता था।

एक बार फ्रोज की मुलाकात पिजारो नाम के साहसी युवा नाविक से हुई। फ्रोज ने उससे मिलते ही सोचा कि यह एक अच्छा मौका है। पिजारो को डराया जाए और उसने इसी नियत से पिजारो से पूछा, तुम्हारे पिता की मृत्यु कहां हुई थी ?

दुःखी स्वर में पिजारो ने कहा- समुद्री तूफान में डूबने के कारण।

और तुम्हारे दादाजी की ?

वे भी समुद्र में डूबने से मरे।

और तुम्हारे परदादाजी, वे कैसे मरे हैं?

उनकी मौत भी समुद्र में डूबने से हुई थीं।

अफसोस जाहिर करते हुए पिजारो ने जवाब दिया। इस पर हंसकर ताना मारते हुए फ्रोज ने कहा- "हद कर दिया। जब तुम्हारे सारे पूर्वज समुद्र में डूबकर मरे, तो तुम क्यों मरना चाहते हो ?"

मुझे तो तुम्हारी बुद्धि पर तरस आता है कि इतना कुछ होने के बावजूद तुम नहीं सुधरे ?

पिजारो को फ्रोज की गलत मंशा को भांपते देर न लगी। उसने तुरन्त सम्भलते हुए फ्रोज से पूछा- अब तुम बताओ कि तुम्हारे पिताजी कहां मरे ?

बहुत आराम से, अपने बिस्तर पर। मुस्कुराते हुए फ्रोज ने कहा।

और तुम्हारे दादा जी ?

वे भी अपने पलंग पर मरे।

और तुम्हारे परदादा जी ?

प्रायः उसी तरह अपनी खाट पर। गर्व से भरकर फ्रोज ने उत्तर दिया।

अब तंज कसते हुए पिजारो ने कहा अच्छा, जब तुम्हारे समस्त पूर्वज बिस्तर पर ही मरे, तो फिर तुम अपने बिस्तर पर जाने की मूर्खता क्यों करते हो? क्या तुम्हें डर नहीं लगता ? इतना सुनते ही फ्रोज का खिला हुआ चेहरा उतर गया।

पिजारो ने उसे समझाया "मेरे मित्र, इस दुनिया में कायरों के लिए कोई स्थान नहीं है। साहस के साथ प्रतिकूल स्थितियों में जीना जिंदगी कहलाती है।"

*शिक्षा:-*
कितनी बड़ी समस्या क्यों न हो जब तक हम डट कर उसका सामाना नहीं करते तब तक हम कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकते। आप जितना आगे बढ़ेंगे आपका समस्याओं से सामना उतना ही होगा। समस्याओं का सामना करें तो वो छोटी हो जाती हैं और डर जाने से बड़ी हो जाती है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

10/05/2024

*चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में*
_*मोबाइल नहीं थे...*
_*पत्नी*_ :
_पर ठीक 5 बजकर 55 मिनट पर_
_मैं पानी का ग्लास लेकर_
_दरवाज़े पे आती और_
_आप आ पहुँचते..._
_*पति*_ :
_मैंने तीस साल नौकरी की_
_पर आज तक मैं ये नहीं समझ_
_पाया कि_
_मैं आता इसलिए तुम_
_पानी लाती थी_
_या तुम पानी लेकर आती थी_
_इसलिये मैं आता था..._
_*पत्नी*_ :
_हाँ... और याद है..._
_तुम्हारे रिटायर होने से पहले_
_जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी_
_और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती_
_तब तुम कहते कि_
_आज दोपहर में ही ख़्याल आया_
_कि खीर खाने को मिल जाए_
_तो मज़ा आ जाए..._
_*पति*_ :
_हाँ... सच में..._
_ऑफ़िस से निकलते वक़्त_
_जो भी सोचता,_
_घर पर आकर देखता_
_कि तुमने वही बनाया है..._
_*पत्नी*_ :
_और तुम्हें याद है_
_जब पहली डिलीवरी के वक़्त_
_मैं मैके गई थी और_
_जब दर्द शुरु हुआ_
_मुझे लगा काश..._
_तुम मेरे पास होते..._
_और घंटे भर में तो..._
_जैसे कोई ख़्वाब हो..._
_तुम मेरे पास थे..._
_*पति*_ :
_हाँ... उस दिन यूँ ही ख़्याल_
_आया_
_कि ज़रा देख लूँ तुम्हें..._
_*पत्नी*_ :
_और जब तुम_
_मेरी आँखों में आँखें डाल कर_
_कविता की दो लाइनें बोलते..._
_*पति*_ :
_हाँ और तुम_
_शरमा के पलकें झुका देती_
_और मैं उसे_
_कविता की 'लाइक' समझता..._
_*पत्नी*_ :
_और हाँ जब दोपहर को चाय_
_बनाते वक़्त_
_मैं थोड़ा जल गई थी और_
_उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब_
_अपनी ज़ेब से निकाल कर बोले.._
_इसे अलमारी में रख दो..._
_*पति*_ :
_हाँ... पिछले दिन ही मैंने देखा था_
_कि ट्यूब ख़त्म हो गई है..._
_पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए.._
_यही सोच कर मैं ट्यूब ले आया था..._
_*पत्नी*_ :
_तुम कहते ..._
_आज ऑफ़िस के बाद_
_तुम वहीं आ जाना_
_सिनेमा देखेंगे और_
_खाना भी बाहर खा लेंगे..._
_*पति*_ :
_और जब तुम आती तो_
_जो मैंने सोच रखा हो_
_तुम वही साड़ी पहन कर आती..._
_फिर नज़दीक जा कर_
_उसका हाथ थाम कर कहा :_
_हाँ, हमारे ज़माने में_
_मोबाइल नहीं थे..._
_पर..._
_हम दोनों थे!!!_
_*पत्नी*_ :
_आज बेटा और उसकी बहू_
_साथ तो होते हैं पर..._
_बातें नहीं व्हाट्सएप होता है..._
_लगाव नहीं टैग होता है..._
_केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है..._
_लव नहीं लाइक होता है..._
_मीठी नोकझोंक नहीं_
_अनफ़्रेन्ड होता है..._
_उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा,_
_टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए..._
_*पति*_ :
_छोड़ो ये सब बातें..._
_हम अब Vibrate Mode पर हैं..._
_हमारी Battery भी 1 लाइन पे है..._
_अरे!!! कहाँ चली?_
_*पत्नी*_ :
_चाय बनाने..._
_*पति*_ :
_अरे... मैं कहने ही वाला था_
_कि चाय बना दो ना..._
_*पत्नी*_ :
_पता है..._
_मैं अभी भी कवरेज क्षेत्र में हूँ_
_और मैसेज भी आते हैं..._
_दोनों हँस पड़े..._
_*पति*_ :
_हाँ, हमारे ज़माने में_
_मोबाइल नहीं थे..._
😊🙏😊🙏😊🙏
वाक़ई बहुत कुछ छुट गया और बहुत कुछ छुट जायेगा,,, ,,शायद हम अंतिम पीढ़ी है जिसे प्रेम, स्नेह, अपनेपन ,सदाचार और सम्मान का प्रसाद वर्तमान पीढ़ी को बाटना पड़ेगा ।। जरूरी भी है 🙏🙏🙏🙏

*सुप्रभात* 🙏🏻🙏🏻
10/05/2024

*सुप्रभात* 🙏🏻🙏🏻

अक्षय तृतीया के दिन को क्यों शुभ माना जाता है!!!!अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु द्वारा शासित होता है जिन्हें हिंदू त्र...
10/05/2024

अक्षय तृतीया के दिन को क्यों शुभ माना जाता है!!!!

अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु द्वारा शासित होता है जिन्हें हिंदू त्रिमूर्ति में संरक्षक भगवान माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग का दूसरा योग अक्षय तृतीया के दिन शुरू हुआ था।
शास्‍त्रों में अक्षय तृतीया के दिन को बहुत शुभ माना गया गया है. कहा जाता है कि इस दिन किए गए कर्मों से जीवन में बरकत होती है. उसका फल कभी समाप्‍त नहीं होता. इ‍सलिए इस दिन अधिक से अधिक दान-पुण्‍य वगैरह किए जाते हैं.
अक्षय तृतीया को लेकर कहा जाता है कि वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है और उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है.
भगवान विष्‍णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्‍म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था. इस दिन को परशुराम जयंती के तौर पर भी मनाया जाता है. भगवान परशुराम को आठ चिरंजीवियों में से एक माना गया है. मान्‍यता है कि वे आज भी धरती पर मौजूद हैं.

माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान वेदव्‍यास ने महाभारत की कथा सुनाना शुरू किया था और भगवान गणपति ने इसे लिखना शुरू किया था. इस महाभारत में ही गीता भी समाहित है.

ये भी माना जाता है कि मां गंगा इसी दिन धरती पर अवतरित हुई थीं. इस‍लिए इस दिन गंगा स्‍नान का विशेष महत्‍व माना जाता है. इस दिन गंगा स्‍नान करने से आपके जाने-अंजाने किए गए पाप कट जाते हैं.

अक्षय तृतीया को लेकर कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्‍ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी. इसी दिन युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था. इस पात्र का भोजन कभी समाप्‍त नहीं होता. इससे युधिष्ठिर अपने राज्‍य के लोगों को भोजन उपलब्‍ध करवाते थे.

अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा अपने मित्र भगवान कृष्ण से मिले थे. सुदामा ने कृष्‍ण को भेंट स्‍वरूप चावल के मात्र कुछ मुट्ठी दाने दिए थे. उनके पास श्रीकृष्‍ण को देने के लिए कुछ नहीं था. भाव के भूखे भगवान ने उनके प्रेम से प्रसन्‍न होकर उनकी झोपड़ी को महल बना दिया था.
🚩🙏 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🚩🙏
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