12/06/2025
#पुस्तक_समीक्षा
पुस्तक - ये अंत नहीं
लेखक - हिमांशु सिंघल
प्रकाशक -
मूल्य - 229/-
— शब्दों की वो खामोशियाँ, जो हम सबने कभी न कभी महसूस की हैं।
कुछ किताबें किसी बड़े प्रचार की मोहताज नहीं होतीं, क्योंकि उनके पास कहने को बहुत कुछ होता है — चुपचाप, बिना शोर के। हिमांशु सिंघल की पहली पुस्तक "ये अंत नहीं" भी वैसी ही एक किताब है।
यह सिर्फ कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि मन के कोनों में जमा उन सवालों, उन भावनाओं का दस्तावेज़ है जो अक्सर हमारे साथ रहते हैं लेकिन शब्द नहीं बन पाते।
"खुला आकाश, दिखाई देता है, कभी-कभी, ज्यादा कुछ नहीं, कभी कोई, राख, नौकरी, बचपन, हमेशा से, बारिश की याद" जैसी 114 खूबसूरत रचनाओं का संग्रह आपके मन में अपनी एक अलग छप छोड़ देता है।
इन कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगा मानो कोई अपना, बड़ी नर्मी से कुछ कह रहा हो — कुछ अधूरी सी बातें, कुछ पुरानी यादें, कुछ चुभते हुए सच, और थोड़ी सी उम्मीद। यहाँ कविताएँ लंबी-लंबी व्याख्याओं में नहीं उलझतीं, वो पंक्तियों में कम और एहसास में ज़्यादा होती हैं।
एक और बात जो इस किताब को ख़ास बनाती है, वो है इसकी सादगी। न कोई भारी-भरकम भाषा, न बेतुके प्रतीक। जो है, जैसा है — वही हमारे सामने है। यही वजह है कि ये कविताएँ पाठक को पढ़ने से ज़्यादा महसूस करने के लिए मजबूर करती हैं।
यह किताब बहुत कुछ कहती है बिना कहे — जैसे कोई ग़म भी बाँट रहा हो और हौसला भी दे रहा हो। यह संग्रह उन लोगों के लिए नहीं है जो कविता को केवल कलात्मक चमत्कार समझते हैं, बल्कि उनके लिए है जो शब्दों के पीछे की खामोशी को भी सुन सकते हैं।
हर कविता एक पड़ाव है — कहीं रुकने का, सोचने का और फिर आगे बढ़ने का। और अंत में जब आप किताब बंद करते हैं, तो महसूस होता है कि कुछ तो छूट गया है... शायद इसलिए क्योंकि ये अंत नहीं।
हिमांशु सिंघल को इस बेहद आत्मीय शुरुआत के लिए ढेरों शुभकामनाएं। आशा है अगली किताबें भी ऐसे ही दिल के दरवाज़े खटखटाती रहेंगी।