03/07/2024
हाथरस पर किसी की नज़र लग गई। गलत वजहों से चर्चा में रहता है।
एक स्वघोषित बाबा। पाखंड के पैरोकारों का जमावड़ा। हाईवे जाम, इलाका जाम। व्यवस्था ठप। भगदड़ मची। कीड़े मकोड़ों की तरह कुचल कर मरी महिलाएं। मासूम बच्चे। बुजुर्ग। सब मारे गए। अब तक 116 है मरने वालों की संख्या लेकिन बढ़ सकती है।
कुछ सवाल हैं जिन्हें पावर और पोजीशन तो चाहिए लेकिन जवाबदेही की बात उन्हे बेहोश कर देती है।
*आयोजन की अनुमति गलत दी गई।
*सुरक्षा व्यवस्था दोयम दर्जे की थी, मंजूरी कैंसल क्यों नही हुई
*व्यवस्था थी 80 हजार की तो 3 लाख लोग कैसे आए
*अगर आ गए थे तो पर्याप्त प्रबंध किसको करना था और किसको ये लागू करवाने का दायित्व था
*अब हादसा हो गया तो डीएम एसपी राहत बचाव कार्य शुरू कराएगा और उसमें कितना समय लगेगा? समय पर संसाधन मौके पर क्यों नही थे। जिन्हें बचा सकते थे वो कैसे मर गए?
*तीन घंटे क्यों लगे मौके पर पर्याप्त राहत बचाव दल के आने में, तब तक लोगों को मरने के लिए छोड़ा
*लखनऊ डीजीपी हेडक्वार्टर ने राहत कार्य शुरू करवाने अलग से टीम बनाने में वक्त क्यों लिया
डीजीपी ऑफिस ने घटना पर मानक के मुताबिक तत्काल कदम क्यों नही उठाए।
*मीडिया वालों ने पूछना शुरू किया तब बताया की हां ऐसी एक घटना हुई है हम नजर रखे हैं। जबकि वहां पर संसाधन चाहिए थे मदद के। ताकि घायलों को निकाला जा सके।
*डीएम और एसपी, कमिश्नर और आईजी साथ में एडीजी। ये सब फील्ड स्टाफ। एक से बढ़कर एक कारीगर हैं इसमें। इनके अतीत और कार्यशैली से वो भी वाकिफ हैं जिन्होंने इन्हे पोस्टिंग दी है। लेकिन जब वो सब जानते हैं इनके हर निकम्मेपन को, तो पोस्टिंग कैसे मिल गई?
*जांच कौन किसकी करेगा? कौन किसके खिलाफ रिपोर्ट देगा ? आईएएस आईपीएस सरकार के राजकुमार होते हैं। बलिदान सिपाही का होता है। जैसे एसडीएम, CO और थानेदार। इन्हे ही बलिदान देना है। आईएएस आईपीएस तो गद्दी पर बैठने वाली कौम हैं।
*मुख्यमंत्री कह रहे हैं की वो कठोर कार्रवाई करेंगे। लेकिन उनको क्या कार्रवाई करनी है ये सलाह भी वही देंगे जो हुकूमत के "राजकुमार" हैं!
*मुआवजा बंटेगा। गुस्सा कम होगा। मीडिया हटेगा। छोटे की बलि चढ़ेगी। बड़े कुछ दिन बाद पुराने धंधे (ट्रांसफर पोस्टिंग ) में लग जायेंगे। बस इतना ही होगा।
*लेकिन परिवार के परिवार बिखर गए। किसी का पूरा परिवार साफ हो गया। कोई अकेला रह गया। हे ईश्वर इनके दुखों का कोई अंत नहीं है।