श्री हित

श्री हित महाराज जी को निस्संदेह ज्ञान और प्रेम के श्री जी का आशीर्वाद प्राप्त है।
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Big shout out to my newest top fans! 💎ह.भ.प प्रा.चेतन सुरेश चौधरी
30/06/2023

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ह.भ.प प्रा.चेतन सुरेश चौधरी

08/06/2023

जय श्री राधे

21/05/2023

पूजा घर एवं हिन्दू धर्म की अति महत्वपूर्ण बातें

1. घर में सेवा पूजा करने वाले जन भगवान के एक से अधिक स्वरूप की सेवा पूजा कर सकते हैं ।

2. घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश जी नहीं रखें।

3. शालिग्राम जी की बटिया जितनी छोटी हो उतनी ज्यादा फलदायक है।

4. कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।

5. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं।

6. पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए।

7. पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं।

8. तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं।

9. आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं।

10. दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है।

11. कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के।

12. देवताओं को अंगूठे से नहीं मले।

13. चकले पर से चंदन कभी नहीं लगावें। उसे छोटी कटोरी या बांयी हथेली पर रखकर लगावें।

15. पुष्पों को बाल्टी, लोटा, जल में डालकर फिर निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिए।

16. श्री भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार या तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों की सात बार आरती उतारें।

17. श्री भगवान की आरती समयानुसार जो घंटा, नगारा, झांझर, थाली, घड़ावल, शंख इत्यादि बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्मा होता हैं। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती हैं उसमे असीम शक्ति होती हैं।

18. लोहे के पात्र से श्री भगवान को नैवेद्य अपर्ण नहीं करें।

19. हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही आहुति दें।

20. समिधा अंगुठे से अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए तथा दस अंगुल लम्बी होनी चाहिए।

21. छाल रहित या कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में वर्जित हैं।

22. पंखे आदि से कभी हवन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करें।

23. मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला नहीं जपनी चाहिए।

24. माला, रूद्राक्ष, तुलसी एवं चंदन की उत्तम मानी गई हैं।

25. माला को अनामिका (तीसरी अंगुली) पर रखकर मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना चाहिए।

26.जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं रखें।

27. तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिए।

28. माला का पूजन करके ही जप करना चाहिए।

29. ब्राह्मण को या द्विजाती को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना चाहिए।

30. जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति, दौड़ते हुए, शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं।

31. बिना नमस्कार किए आशीर्वाद देना वर्जित हैं।

32. एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

33. सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

34. बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

35. जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

36. जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

37. जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

38. संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

39. दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

40. यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

41. शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, किन्तु रविवार को परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।

42. कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

43. भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

44. देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

45. किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

46. एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

47. बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

48. यदि शिखा नहीं हो तो स्थान को स्पर्श कर लेना चाहिए।

49. शिवजी की जलहारी उत्तराभिमुख रखें ।

50. शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

51. शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।

52.शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को समर्पित

10/05/2023

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Shivani Consul

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09/05/2023

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05/05/2023

रैप संगीत इसके आस-पास भी नहीं है... यह बिल्कुल अविश्वसनीय👌 पूर्ण आनंद है... प्यारा 👌

26/04/2023

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥

अर्थ : ऋक्षपति जाम्बवान ने कहा कि हनुमान् ! सुनो । हे बलवान् ! तुमने चुप्पी क्यों साध रक्खी है ? हे पवन के पुत्र ! तुम्हें पवन के समान बल है। तुम बल विवेक और विज्ञान के निधान हो ।

व्याख्या : हनुमानजी को आज्ञा देने में अङ्गदजी को भी सङ्कोच है। अतः वयोवृद्ध जाम्बवानजी ने कहा कि वस्तुतः जो बलवान है वह तो चुप्पी साधे हुए है । चुप्पी साधने का करण क्या है ? हनुमान् जो ! तुम पवन के पुत्र हो । अतः तुम में पवन सा ही बल है । पवनदेव तो दिन रात समुद्र के आर पार जाया करते हैं । अतः तुम्हारे लिए समुद्रोल्लङ्घन खेल है और बुद्धि तुम्हारी संसार पारदर्शी है उभय लोकावगाहिनी है । तुम बुद्धि, विवेक और विज्ञान के निधान हो ।

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

अर्थ : संसार में कौन ऐसा कार्य कठिन है जो तुमसे न हो सके । तुम्हारा तो अवतार रामकार्य के लिए है। यह सुनते ही हनुमानजी पर्वताकार हो गये ।

व्याख्या : जितने कार्य हैं उनकी सिद्धि तो बल और बुद्धि से ही होती है । सो परमेश्वर ने तुमको सबसे अधिक दिया है। तुम्हारे बल बुद्धि का पारावार नहीं है। अतः संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसे तुम न कर सको। किं पुनः रामकार्य जिसके लिए तुम्हारा अवतार है । ऐसी कथा है कि भगवान् ने शङ्कर की आराधना करके उनसे वरदान मांगा था कि आप मेरे सेवक होकर मेरा कार्य साधन करें। तदनुसार साक्षात् रुद्र भगवान् हो हनुमान् रूप से अवतीर्णं हुए । अतः कहते हैं कि हम लोग तो कौतुक के लिए साथ हैं। रामकाज के लिए अवतार तो तुम्हारा ही है । सुनते हो हनुमानजी का आकार पर्वत सा हो गया ।

कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥

अर्थ : सोने के रंग के शरीर में तेज शोभायमान हुआ । मानो पर्वत के दूसरे राजा हैं। बार बार सिंहनाद करके कहा कि इस लवर्णासिंधु को तो खेल में ही डाक जाऊँगा ।

व्याख्या: हनुमान् जी का शरीर स्वभाव से ही सोने के रंग का है। सो जाम्बवानजी के कथन ने मानो मन्त्र का काम किया। उनके वचन से ऐसा उत्साह बढ़ा कि शरीर तेज से चमकने लगा । विशाल शरीर था ही। ऐसे मालूम होने लगे जैसे दूसरे सुमेरु हैं । जाम्बवानजी के इस कहने का कि चुप्पी क्यों साधे हो ? बार बार सिंहनाद करके उत्तर दिया। "कौन सो काज कठिन जगमाहीं । जो नहि होय तात तुम पाहीं" का उत्तर देते हैं कि इस खारे समुद्र को तो खेल में डाक जाऊँगा । खारे समुद्र से उत्तरोत्तर छः समुद्र एक से एक आयाम में दुगुने हैं। कहिये तो उन्हें डाक जाऊँ । इस खारे समुद्र में रक्खा ही क्या है ?

सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही॥

अर्थ : सहाय के सहित रावण को मारकर यहाँ त्रिकूट पर्वत उखाड़ लाऊँ । जाम्बवान ! मैं तुमसे पूछता हूँ। मुझे उचित शिक्षा दीजिये ।

व्याख्या : यहाँ संशय को स्थान नहीं है । समुद्र पार करके सेना सहित रावण को मारकर यहाँ त्रिकूटाचल को जिस पर लङ्कापुरी वसी है उखाड़ लाऊँ । राम का कार्य ही पूरा कर दूँ । इस भांति : "राम काज लगि तव अवतारा" का उत्तर दिया । त्रिकूट उखाड़ लाने का भाव यह कि तब आप लोग खोज लें कि सीता कहाँ हैं ?
अब हनुमान् जी जाम्बवान से पूछते हैं कि आप सबसे वयोवृद्ध हैं । आप मुझे बतलाइये कि मैं क्या करूं ? रामजी का सब कार्य हो पूरा कर दूँ कि केवल आज्ञा मात्र का पालन करूँ । मेरे लिए क्या उचित होगा ?

#रामचरितमानस #किष्किंधाकाण्ड

24/04/2023

जो व्यक्ति सक्षम होते हुए भी अपमान को सह लेता है उसके हृदय में न बुझने वाला दावानल होता है, जिस दिन यह बाहर निकला, तुमको भस्म कर देगा। सहनशीलता को निर्बलता समझना तुम्हारी मूर्खता है, अब इतने पढ़े लिखे हो तो इससे आगे समझाना मेरी मूर्खता होगी। 🙄😐😑

14/04/2023

*पहले मिलते थे तो राम राम कहते थे और अब hi कहते है... अंतर सुनिए*

13/04/2023

परमपूज्य महाराज जी का आगमन

13/04/2023

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